अंतरराष्ट्रीय गोल्फर ज्योति रंधावा, निशानेबाज दिलीप एच. अयाची, अर्जुन पुरस्कार विजेता निशानेबाज गुरबीर सिंह संधू, एशियाई खेल में पदक विजेता मेराज अहमद खान, राष्ट्रीय स्तर के निशानेबाज प्रशांत बिश्नोई। जी नहीं, यहां खेल का जिक्र नहीं हो रहा है, ये कुछ नाम हैं जिन पर कथित तौर पर एक नए घातक आपराधिक खेल या शौकिया शिकार (गेम शूटिंग) में मशगूल होने का आरोप है। वन्यजीवों के शिकार की यह गेम शूटिंग रसूखदारों का नया शगल बनता जा रहा है। ये नए दौर के शिकारी हैं, जो अपनी झूठी बहादुरी की नुमाइश और चंद फायदे के लिए वन्यजीवों के शिकार को अपना शौक बना रहे हैं। हालात इस तरह गंभीर हो गए हैं कि अब वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो ने बड़े पैमाने पर खिलाड़ियों और सेलिब्रिटी के बीच नई साठगांठ की पड़ताल के लिए एक टॉस्क फोर्स का गठन किया है। वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो की एडिशनल डायरेक्टर तिलोतमा वर्मा ने आउटलुक को बताया कि पिछले 5-6 साल में यह ट्रेंड देखा गया है, उसे देखते हुए टॉस्क फोर्स का गठन किया गया है। रिपोर्ट के आधार पर हम आगे एक्शन लेंगे। इसके लिए ब्यूरो, राइफल एसोसिएशन और दूसरे संबंधित एसोसिएशन के सामने भी यह मुद्दा उठाएगा और उनको जरूरी कार्रवाई करने को भी कहेगा।
असल में शौकिया शिकार का यह ट्रेंड शायद इसलिए जोर पकड़ रहा है क्योंकि रसूखदारों को लगने लगा है कि वे अपने रसूख से कानून की पकड़ से बच जाएंगे। अगर इनके खिलाफ एक्शन नहीं होते हैं तो निश्चित तौर पर कई वन्यजीवों के अस्तित्व पर खतरा हो जाएगा। ज्योति रंधावा को पकड़ने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले उत्तर प्रदेश के दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर रमेश पांडे का कहना है, “पिछले 7-8 साल में गेम शूटिंग का प्रचलन काफी तेजी से बढ़ा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों के पास रसूख, हथियार और कौशल सबकुछ होता है। ऐसे में वह केवल अपनी मौज-मस्ती के लिए शिकार करते हैं।” उनका कहना है कि ज्योति रंधावा के मामले में भी रसूख और पैसे के बल से मामले को निपटाने की कोशिश की गई। लेकिन अधिकारियों की ईमानदारी और हिम्मत ने इस मामले को उजागर कर दिया है। रंधावा मामले में एक और राष्ट्रीय स्तर के निशानेबाज दिलीप एच. अयाची भी शक के घेरे में आ गए हैं। उनकी बंदूक शिकार में शामिल पाई गई है। इसके अलावा पिछले वर्षों में मेरठ, बुलंदशहर, खुर्जा में पकड़े गए मामलों से स्पष्ट है कि कैसे राष्ट्रीय स्तर के निशानेबाज इस अपराध में लिप्त हैं।
सेलिब्रिटी और निशानेबाजों के इस ट्रेंड पर वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के ट्रस्टी और सीईओ विवेक मेनन कहते हैं, “शिकार तीन तरह से प्रमुख रूप से किए जाते हैं। एक तो जनजातियां अपने भोजन के लिए करती हैं। दूसरा पेशेवर शिकारी अवैध रूप से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तस्करी के लिए करते हैं। तीसरी तरह के शिकारी रसूखदार लोग होते हैं। पिछले कुछ समय से यह ट्रेंड शुरू हुआ है। ये लोग उसी तरह के हैं, जैसे पहले राजा-महाराजा अपनी बहादुरी दिखाने के लिए शिकार करते थे। आज के दौर में यह काम बॉलीवुड स्टार, खिलाड़ी और दूसरे रसूखदार लोग कर रहे हैं।” शौकिया तौर पर शिकार करने से सबसे गंभीर खतरा यह है कि खिलाड़ी, बॉलीवुड स्टार आदि आम आदमी के रोल मॉडल होते हैं। जब वे इस तरह के अपराध करते हैं, तो उनके प्रशंसकों को भी ऐसा करने का प्रोत्साहन मिलता है। अगर इन पर नकेल नहीं कसी गई तो यह शौक कई सारी वन्य प्रजातियों के अस्तित्व को ही खतरे में डाल देगा। क्योंकि उनके प्रशंसक भी ऐसा करने के लिए प्रेरित होंगे। इसीलिए जब भी ऐसे अपराध सामने आएं, उन पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि वह लोगों के लिए नजीर बने। “निशानेबाज और रसूखदारों के लिए यह काम इसलिए आसान हो जाता है, क्योंकि उनके पास न केवल हथियार के लाइसेंस होते हैं, बल्कि हथियारों की गुणवत्ता भी बहुत अच्छी होती है। यह लोग बेहद चालाकी से रिजर्व क्षेत्र के आसपास के इलाकों में अपने शौक और मर्दानगी दिखाने के लिए शिकार करते हैं। इन पर नजर रखने के लिए खास तौर से सतर्कता बरतनी चाहिए। ट्रस्ट ने सलमान खान का मामला हो या पटौदी का सभी में कानूनी रूप से सहयोग देने का काम किया है। ज्योति रंधावा के मामले में भी ट्रस्ट ने इस तरह की पहल की है।”
नए दौर के शिकारियों के अलावा भी देश में शिकार करने के कई तरह के ट्रेंड उभर रहे हैं। मसलन, अब कहीं ज्यादा अत्याधुनिक हथियारों से शिकार किए जा रहे हैं। निशानेबाजों के पास जिस तरह के हथियार मिल रहे हैं, उससे यह तस्वीर साफ हो रही है। निशानेबाज शिकार में साइलेंसर के साथ लगी .22 राइफल और ए.के. 47 जैसी अत्याधुनिक राइफल का इस्तेमाल कर रहे हैं। बढ़ते नेटवर्क पर नकेल कसने के लिए ऐसे पेशेवर शिकारियों का प्रोफाइल भी तैयार किया जा रहा है, जिससे उन पर सही समय पर एक्शन लिया जा सके। इस प्रोफाइल में खास तौर से उनके शिकार करने के ट्रेंड को ध्यान में रखा जाता है, जिसके आधार पर उनकी श्रेणी बनाई गई है।
इसी कड़ी में वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो ने देश भर में ऐसे 1900 से ज्यादा शिकारियों की पहचान की है, जो वन्यजीवों के शिकार में लिप्त हैं। देश में सबसे ज्यादा गैंडे के 239 शिकारी हैं। इसके अलावा 186 पैंगोलिन के शिकारी, 185 टाइगर के शिकारी, 170 तेंदुए के शिकारी, 134 कछुए और 37 हिरन के शिकारी हैं। जो कि हर पल शिकार करने के लिए घात लगाए बैठे रहते हैं। चार साल में वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो ने 1800 से ज्यादा जब्तियां की हैं।
तिलोतमा वर्मा के अनुसार, “इस समय भारत की प्रमुख प्रजातियां खतरे में हैं। प्रमुख रूप से हाथी, गैंडे, तेंदुआ, नेवला, कछुए, टाइगर, समुद्री घोड़ा, कोरल आदि का अवैध रूप से शिकार हो रहा है। शिकारी जहां शेर, टाइगर या तेंदुए का शिकार उनकी हड्डियों, नाखून और खाल के लिए करते हैं। वहीं हाथी का उसके दांत और गैंडे का शिकार प्रमुख रूप से उसकी सींग के लिए करते हैं। अकेले गैंडे की एक किलो सींग की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में 70 हजार डॉलर तक है।’ भारत से हो रहे वन्यजीवों के शिकार का प्रमुख बाजार चीन, मध्य एशिया और दक्षिण-पूर्व एशियाई देश हैं, जहां पर इनका इस्तेमाल दवाइयों के लिए किया जाता है। इन देशों में ऐसी मान्यता है कि इनके जरिए कई असाध्य बीमारियों का इलाज किया जा सकता है। साथ ही यह शक्तिवर्धक के रूप में भी काम आती हैं।
वन्यजीवों के शिकार का ट्रेंड भी देखा जाए तो वह क्षेत्र के आधार पर अलग-अलग है। जहां नगालैंड, मणिपुर जैसे पूर्वोत्तर राज्यों से शिकारी काजीरंगा अभयारण्य में गैंडे का शिकार करते हैं। वहीं, कछुओं की मांग उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में बहुत ज्यादा है। हाल के दिनों में कछुओं का शिकार बहुत तेजी से बढ़ा है। नौबत यहां तक पहुंच चुकी है कि इसे संकटग्रस्त जीव की श्रेणी में भी डालने की तैयारी है। वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो ने इसे परिशिष्ट-2 की जगह परिशिष्ट-1 में करने का आवेदन किया है। परिशिष्ट-1 श्रेणी में उन्हीं जीवों को डाला जाता है, जिनके अस्तित्व पर गंभीर संकट छा गया है। इसी तरह देश में नेवले का शिकार भी काफी तेजी से बढ़ा है। 2017 और 2018 में नेवले की तस्करी की बड़ी खेप चेन्नै से पकड़ी गई है, जिसे उत्तर प्रदेश के मेरठ, बिजनौर की फैक्ट्रियों में खास तौर से इस्तेमाल किया गया है। नेवले के बाल का इस्तेमाल ब्रश बनाने में किया जाता है। इनकी कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु में मांग है।
खास बात यह है कि चाहे देश के दूसरे क्षेत्रों में तस्करी की बात हो या फिर विदेश में अवैध रूप से वन्यजीवों की तस्करी, शिकारियों ने कई ऐसे तरीके निकाल लिए हैं जिनके जरिए उस पूरे अपराध को अंजाम दिया जा रहा है। देश में सबसे ज्यादा रेलवे, सड़क और पार्सल के जरिए अवैध रूप से इनकी तस्करी की जा रही है। वहीं, दूसरे देशों में पहुंचाने के लिए बंदरगाहों और एयरपोर्ट का सहारा लिया जा रहा है। जबकि चीन, नेपाल, म्यांमार आदि क्षेत्रों में तस्करी के लिए सड़क मार्ग और जंगलों का रास्ता शिकारी इस्तेमाल कर रहे हैं। लुका-छिपी के इस खेल में सिस्टम के चंगुल से बचने के लिए शिकारी भी हाईटेक हो रहे हैं। वह तस्करी के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का भी इस्तेमाल कर रहे हैं।
तिलोतमा के अनुसार, “ऑनलाइन प्लेटफार्म का इस्तेमाल भी बड़ी चालाकी से किया जा रहा है। तस्कर कई सारे प्रोडक्ट्स के बीच में जानवरों के अंगों को भी ऑनलाइन बिक्री के लिए डाल देते हैं। इसके अलावा कई अपराधी वाट्सऐप प्लेटफार्म का भी इस्तेमाल बिक्री के लिए कर रहे हैं। जो पूरी तरह अवैध रूप से किया जा रहा है। वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो ने इस संबंध में हाल ही में फ्लिपकार्ट, ओएलएक्स, अमेजन, ई-बे जैसी नौ कंपनियों के साथ मीटिंग भी की है। इसके जरिए उन्हें सतर्क किया गया है कि कैसे शिकारी प्लेटफार्म का इस्तेमाल कर रहे हैं। साथ ही उन्हें कहा गया है कि वह इसे रोकने के लिए तुरंत अपने प्लेटफार्म में जरूरी बदलाव करें।’
देश में जिस तरह से नए एयरपोर्ट और एयरलाइंस आ रही हैं, वह भी तस्करी के लिए मुफीद जगह बन रहे हैं। तिलोतमा के अनुसार, “शिकारी ऐसे जगहों को सॉफ्ट टारगेट मानते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वहां पर उस तरह की जागरूकता और सतर्कता नहीं रहती है। इसी का फायदा शिकारी उठाते हैं। हालांकि इसको रोकने के लिए अब न केवल एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के साथ प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। वहीं, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल को भी इस कार्यक्रम में शामिल किया गया है। साथ ही देश की सीमा से होने वाली तस्करी को रोकने के लिए सीमा सुरक्षा बल, भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस, सशस्त्र सुरक्षा बल, असम राइफल्स के साथ भी प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग बढ़ाने के लिए इंटरपोल की मदद ली जा रही है, जिसके जरिए पर्पल नोटिस से लेकर रेड कॉर्नर नोटिस भी जारी किए जा रहे हैं।’
वन्यजीव अपराध के तहत देश में तीन साल से सात साल तक की सजा का प्रावधान है। इसके बावजूद देश में ऐसे कई समूह हैं जो कि बार-बार पकड़े जाने के बाद भी इस अपराध में लिप्त रहते हैं। बावरिया और पारधी जातियां इस अपराध में प्रमुख रूप से लगी हुई हैं। इनका प्रमुख रूप से निशाना टाइगर होते हैं, जिनको बंगाल के मध्यस्थ लोगों से मदद मिलती है। इसी को देखते हुए अब स्थानीय पुलिस के साथ बेहतर समन्वय बनाने के भी प्रयास शुरू किए गए हैं।
सूत्रों के अनुसार, अभी राज्य स्तर पर रिकॉर्ड को अपडेट करने में काफी खामियां हैं। राज्य स्तर पर पुलिस और प्रशासन की तरफ से रिकॉर्ड अपडेशन में ढिलाई है। इसकी वजह से रियल टाइम डाटा का विश्लेषण नहीं हो पा रहा है। इसका फायदा शिकारी उठाते हैं। वन्य जीवों पर काम करने वाली प्रेरणा बिंद्रा के अनुसार, वन्यजीव अपराध एक संगठित अपराध बन गया है। अभी इसे लेकर गंभीरता बेहद कम है। साथ ही हमारे देश में वन्यजीव अपराधियों को सजा मिलने की दर भी बहुत कम है। अपराध पर लगाम कसने वाली एजेंसियां भी कई सारी चुनौतियों से निपट रही हैं। एजेंसियों के पास 30-40 फीसदी फ्रंटलाइन कर्मचारियों की कमी है। उनमें प्रशिक्षण की कमी है और संसाधनों का भी अभाव है। हमें यह समझना होगा कि जब जंगल स्वस्थ होंगे तभी हम भी स्वस्थ होंगे। उसके लिए हमारे वन्य जीव-जंतुओं का बना रहना बेहद जरूरी है। हमें जंगल और जानवरों की जरूरत है। उनके बिना हमारे लिए जीवन संभव नहीं होगा।
ज्योति रंधावा
ज्योति रंधावा (बाएं से चौथे) एक समय दुनिया के टॉप-100 गोल्फर में शामिल थे। बीते साल 26 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के दुधवा रेंज के कतर्नियाघाट सेंक्चुरी इलाके में वन्यजीवों के शिकार के आरोप में गिरफ्तार किया गया। उसके पास से सांभर की खाल और दूसरे मरे हुए जंगली जानवर प्राप्त हुए। साथ ही प्रतिबंधित .22 बोर की टेलीस्कोप लगी राइफल भी प्राप्त हुई। ऐसा आरोप है कि जिस राइफल के जरिए शिकार किया गया वह गुजरात के निशानेबाज दिलीप.एच.अयाची की है
प्रशांत बिश्नोई
जून 2017 में राष्ट्रीय स्तर के निशानेबाज प्रशांत बिश्नोई को डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस ने अवैध शिकार और वन्यजीवों की तस्करी के आरोप में गिरफ्तार किया था। उसके मेरठ स्थित घर से सैकड़ों की संख्या में अवैध हथियार, 117 किलो नीलगाय का मांस, तेंदुए और बारह सिंघा की खाल आदि प्राप्त हुई थी।
गुरबीर सिंह संधू
अर्जुन पुरस्कार विजेता निशानेबाज गुरबीर सिंह संधू के चंडीगढ़ स्थित किराए के घऱ से 2006 में सांभर की सींग, जंगली सुअर के 33 दांत सहित कई फोटोग्राफ और वीडियो कैसेट जब्त किए गए थे, जिसके आधार पर दिसंबर 2009 में सीबीआइ ने उनके ऊपर मामला दर्ज किया था। मई 2017 में सीबीआइ कोर्ट ने उन्हें वन्यजीव अपराध नियंत्रण कानून के आधार पर दोषी पाया था। इसके तहत उन्हें 20 हजार रुपये के जुर्माने और एक लाख रुपये के बांड पर एक साल के लिए प्रोबेशन पर रिहा कर दिया था।