पंजाब में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव की तारीख करीब आ रही है, आम आदमी पार्टी (आप) की चिंता बढ़ती जा रही है। चुनावी तैयारियों में एकजुट होने के बजाय पार्टी के विधायक पलायन कर रहे हैं। इसके 20 में से सिर्फ 11 विधायक बच गए हैं। आप के पांच विधायक तो पिछले छह महीने के दौरान कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। चार और बागी विधायकों ने पार्टी छोड़ दी है। पार्टी से दूर जाते अपनों को देखते हुए पंजाब का मोर्चा आप के दिल्ली नेतृत्व ने खुद संभाल लिया है। आप के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दो महीने में छह बार प्रदेश का दौरा कर चुके हैं। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, पंजाब प्रभारी जरनैल सिंह और सह प्रभारी राघव चड्ढा के यहां पूरी तरह डटने से प्रदेश के नेता असहज हैं।
आप की रणनीति बगैर मुख्यमंत्री चेहरे के मैदान में उतरने की है, जबकि पंजाब के नेता चाहते हैं कि पार्टी सुप्रीमो केजरीवाल चुनाव से पहले मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करें। इसके लिए आप की पंजाब इकाई के अध्यक्ष और संगरूर से सांसद भगवंत मान ने अपने समर्थकों के जरिए केजरीवाल पर दबाव भी बनाया। मान काफी समय से खुद को पार्टी का चेहरा घोषित किए जाने का अरमान पाले बैठे हैं, लेकिन चुनाव करीब आने के बावजूद पार्टी ने अब तक इस मुद्दे पर कोई फैसला नहीं लिया है। भले ही पार्टी इसे रणनीति बता रही हो, पर एक के बाद एक कांग्रेस में शामिल होते आप विधायकों ने पार्टी आलाकमान पर दबाव बढ़ा दिया है। केजरीवाल की इस ‘रणनीति’ पर अपना पंजाब पार्टी के अध्यक्ष और आप की पंजाब इकाई के पूर्व संयोजक सुच्चा सिंह छोटेपुर ने आउटलुक से कहा, “केजरीवाल खुद पंजाब के मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं, इसलिए वे पंजाब के किसी नेता को पार्टी का चेहरा घोषित नहीं करना चाहते। केजरीवाल के इस रवैये से नाराज आप के और भी कई बड़े नेता पार्टी छोड़ने की तैयारी में हैं।” 2014 के लोकसभा चुनाव के समय पंजाब में आम आदमी पार्टी जितनी तेजी से ऊपर आई थी, सात साल में उतनी तेजी से ही इसका वोट शेयर गिरा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में 24 फीसदी वोट शेयर के साथ पंजाब से चार सांसदों को लोकसभा भेजने वाली आम आदमी पार्टी को 2017 के विधानसभा चुनाव में पंजाब की सत्ता के करीब माना जा रहा था। लेकिन 23.72 फीसदी वोट हासिल करने वाली आप 20 विधायकों के साथ विपक्ष की भूमिका में रह गई। चुनाव से ठीक पहले भगवंत सिंह मान, सुखपाल खैरा और सुच्चा सिंह छोटेपुर गुट की मुख्यमंत्री पद को लेकर अपनी-अपनी दावेदारी पेश करना पार्टी को भारी पड़ा। पार्टी से टूटते नेताओं के चलते 2019 के लोकसभा चुनाव में आप का वोट शेयर गिरकर 7.46 फीसदी रह गया और सांसद भी चार से घटकर एक रह गया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जिस तरह आप से विधायकों का पलायन जारी है, कोई बड़ी बात नहीं कि 2022 के विधानसभा चुनाव में आप की हालात 2019 के लोकसभा चुनाव से भी कमतर हो। पार्टी की सबसे बड़ी चुनौती अन्य दलों की तुलना में मुख्यमंत्री लायक कोई बड़ा चेहरा न होना है।
आम आदमी पार्टी के टिकट पर अगला चुनाव लड़ने से इनकार करने वाले आप के निलंबित विधायक और पूर्व पत्रकार कंवर संधू का कहना है, “पंजाब की सियासत दिल्ली से अलग है। पंजाब की जनता किसी बाहरी को मुख्यमंत्री के तौर पर कभी स्वीकार नहीं करेगी। इसलिए अरविंद केजरीवाल अब तक किसी भी बड़े नेता को अपने साथ लेकर चलने में नाकाम साबित हुए हैं।” संधू के अनुसार केजरीवाल अपने सामने अपनी ही पार्टी में किसी दूसरे नेता को उभरने नहीं देना चाहते। यही कारण है कि कुमार विश्वास, आशुतोष, प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव जैसे उनके सभी साथी एक-एक कर उनसे दूर होते चले गए। पंजाब में भी अब वही स्थिति आ गई है। इसलिए विधायकों ने उनका साथ छोड़ना शुरू कर दिया है।”
पंजाब में आप की स्थिति मजबूत होने का दावा करते हुए विधानसभा में विपक्ष के नेता हरपाल सिंह चीमा का कहना है, “केजरीवाल ने पंजाब में दिल्ली मॉडल पेश करने का वादा करके प्रदेशवासियों में उम्मीदें जगा दी हैं। 24 घंटे आपूर्ति के बीच 300 यूनिट मुफ्त बिजली, 18 वर्ष और इससे अधिक आयु की महिलाओं को 1000 रुपये प्रति माह भत्ता और किसानों के लिए कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा ने पार्टी की स्थिति मजबूत कर दी है।” चीमा के मुताबिक पार्टी की पंजाब में मजबूत स्थिति को देखते हुए ही यहां दावेदारों की संख्या बढ़ने लगी है। सही समय पर पार्टी एक मजबूत चेहरे को सामने रख चुनाव लड़ेगी और जीतेगी।
लेकिन जीत अभी बहुत दूर लग रही है। 2017 के विधानसभा चुनाव में 20 विधायकों के साथ विपक्ष की भूमिका में आई आप, अगला चुनाव आते-आते शिरोमणि अकाली दल के बाद तीसरे नंबर की पार्टी हो गई है। चुनाव से ठीक पहले विधायकों के पार्टी छोड़ने से 2022 के विधानसभा चुनाव में आप की राह मुश्किल हो सकती है। पार्टी ने 11 बचे विधायकों में से 10 को उनकी पुरानी सीट से ही चुनाव लड़ने का मौका दिया है। इनमें विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हरपाल सिंह चीमा को दिबड़ा, सरबजीत कौर मानुके को जगरांव, जयकिशन रोड़ी को गढ़शंकर, मनजीत बिलासपुर को निहाल सिंह वाला, कुलतार सिंह संधवां को कोटकपूरा, बलजिंदर कौर को तलवंडी साबो, बुधराम को बुढलाडा, अमन अरोड़ा को सुनाम, गुरमीत सिंह को बरनाला और कुलवंत पंडोरी को महिलकलां से मैदान में उतारा है।
पार्टी में उभरे इस संकट से पार पाने के लिए केजरीवाल ने अक्रामक रुख अपनाया है। वे पंजाब की जनता से वोट के बदले ‘गारंटीड वादे’ कर रहे हैं। उनका कहना है, “मैं पंजाब के लोगों को छह गारंटी देता हूं जो 2022 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने पर मुहैया करायी जाएंगी। इनमें 300 यूनिट मुफ्त बिजली के साथ 24 घंटे आपूर्ति, दिल्ली की तर्ज पर स्वास्थ्य सेवाएं, दिल्ली की तर्ज पर शिक्षा, 18 और उससे अधिक आयु की महिलाओं को 1000 रुपये महीना भत्ता, कारोबार को इंस्पेक्टर राज से मुक्ति और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार शामिल हैं।”
महिलाओं को 1000 रुपये प्रति माह भत्ते की घोषणा पर मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने सवाल उठाए हैं। इस पर आप के पंजाब सह प्रभारी राघव चड्डा ने कहा, “महिलाओं को इस मदद से राज्य का खजाना लुटने का अंदेशा जताने वाले मुख्यमंत्री रेत माफिया की लूट के बारे में बताएं। क्या इससे सरकार को कोई फर्क इसलिए नहीं पड़ता क्योंकि चन्नी के सरंक्षण में ही रेत की लूट जारी है?” चड्डा के अनुसार चन्नी ने कहा था कि रेत माफिया मेरे पास न आए, मैं रेत माफिया का मुख्यमंत्री नहीं हूं। लेकिन मुख्यमंत्री बनते ही अपने वादे से पलटे चन्नी ने रेत माफिया के साथ हाथ मिला लिया।
चड्डा का आरोप है कि चन्नी के विधानसभा क्षेत्र चमकौर साहिब के गांव जिंदापुर से ही प्रति दिन रेत माफिया 800 से 1000 ट्रक रेत का अवैध खनन कर रहा है। मुख्यमंत्री झूठ बोलते हैं कि पूरे पंजाब में पांच रुपये प्रति घन फुट की दर पर रेत मिलती है। रेत माफिया के कारण लोगों को आज भी 25 से 25 रुपये फुट के हिसाब से रेत खरीदनी पड़ रही है। राघव ने कहा कि पंजाब में सालाना 20 हजार करोड़ रुपये के अवैध रेत खनन को खत्म कर उनकी पार्टी महिलाओं को 1000 रुपये भत्ता, मुफ्त शिक्षा और चिकित्सा सेवा देगी।
लेकिन मौजूदा हालात में आप को इन वादों को पूरा करने का मौका मिलना मुश्किल लग रहा है। उसका संकट सिर्फ यह नहीं कि नौ विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं, बल्कि असली संकट सभी 117 सीटों पर जिताऊ चेहरा न मिलना और मुख्यमंत्री का चेहरा न होना है। जिन सीटों पर उसके मौजूदा विधायक पार्टी छोड़ आप के ही भावी उम्मीदवार को टक्कर देंगे, वहां भी उसकी स्थिति नाजुक रहेगी। ऐसे में ‘आप’ का झाड़ू कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल-बसपा गठबंधन और पंजाब लोक कांग्रेस-भाजपा-टकसाली अकाली गठजोड़ का कितना सफाया कर पाता है, यह मार्च 2022 के तीसरे हफ्ते तक साफ हो जाएगा।