कामदारनगर में एक ऑटो वाले से मैंने पूछा, “क्या ये एसपी बालासुब्रमण्यम सर का घर है।” उसने हामी भरी। मुझे आश्चर्य हुआ कि ऐसा कैसे हो सकता है। न कोई शोर-शराबा, न कोई हलचल, न सिक्योरिटी की परेशानी। मैं सीधे मुलाकातियों वाले कमरे में पहुंच गई और मुलाकात के लिए खुद को लंबे इंतजार के लिए तैयार कर लिया। लेकिन ये क्या, तुरंत मेरा बुलावा आ गया। जैसे ही मैं उस बड़े कमरे में दाखिल हुई, आदर और श्रद्धा से मैं भाव-विभोर हो गई। कमरे में मेरे आदर्श बैठे थे। संगीत की दुनिया के मेरे नायक। महान एस.पी. बालासुब्रह्मण्यम। एक स्कूली छात्रा की तरह मैंने बचकानी बात शुरू की, सर मैं आपकी बहुत बड़ी प्रशंसक हूं। फिर मन ही मन खुद को डपटा, कौन नहीं है? लेकिन उनका जवाब आया, “मैं तुम्हारे शो देखता हूं। तुम्हारा काम बहुत अच्छा है। ईश्वर की कृपा बनी रहे बेटा।”
यह 1996 की बात है। जब मैं चाहती थी कि वह ‘सप्तस्वरंगल’ (टीवी पर संगीत आधारित एक रियलिटी शो) की मेजबानी करें। उन्होंने बड़ी विनम्रता से कहा, “मुझे नहीं लगता, तमिल गानों और उन पर बात करने में मैं उतना अच्छा हूं। तुम्हें मुझसे अच्छे लोग मिल जाएंगे।” उनकी उदारता और अविश्वसनीय विनम्रता का तो यह सिर्फ एक नमूना है कि वह कितने अच्छे व्यक्ति थे। कई बरस गुजर गए लेकिन उनकी यह याद वैसी ही रह गई। हजारों की संख्या में उनके दीवाने, प्यार करने वाले इतने लोग, एक सप्ताह में एक पुरस्कार, कोई भी बात उन्हें नहीं बदल पाई। तड़क-भड़क वाली दुनिया में वे सबसे शांत व्यक्ति थे।
70 के दशक में तमिल फिल्म का संगीत उनकी शानदार युवा आवाज से डूबा हुआ था। एक पंक्ति पर गौर कीजिए, ‘नालिले नाल नाल (मद्धमो आवानी), या फिर ‘संसारम अन्बधु वेनई’ के एक नोट पर ध्यान दीजिए, ‘मननम, गुणम, ओंद्रन्ना मुल्लई’ या ‘पद्मपुथु नान’ से ‘इदहलिल तेनई कुडिथु...’ सूची बनाना मुश्किल है कि कौन से गाने में हम अपनी सुधबुध खो बैठे थे और सबकुछ भूल गए थे। यह था उनकी आवाज का जादू।
यह भी कमाल है कि 80 के दशक में उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनकी आवाज और जवां होती गई। उनकी आवाज में कमल हासन की शरारत थी, मोहन का युवापन था और रजनी का रोमांस था। कमल हासन और एसपीबी के साथ मैंने एक शो किया था, तब कमल हासन ने कहा था, “कोई और मुझसे मेरी तेलुगु फिल्मों के बारे में बात करे, तो मुझे लगता है कि मैंने अपना आधा हिस्सा खो दिया है। हम दो जिस्म एक जान थे।” सच में वे ऐसे ही थे। एसपीबी जानते थे कि कमल कहां हंसेगे, कहां रोएंगे। एसपीबी गाने में अपनी आवाज में ऐसा कर लेते थे। परदे पर होंठों को हिलाने के बावजूद ‘माइक’ मोहन (तमिल फिल्मों में किसी भी अन्य अभिनेता के मुकाबले एसपीबी ने उनके लिए सबसे ज्यादा गुनगुनाया है) ने एसपीबी के गायक रूप को उतनी ही खूबसूरती से परदे पर उतारा। वे कहते हैं, “मैं उनकी तरह गाने की कोशिश करता था, क्योंकि लोग उनकी आवाज को जीते थे। मैं खराब एक्टिंग कर उनके सपनों को बिगाड़ नहीं सकता था। मेरे भावों को उनकी गायिका से मेल खाना ही चाहिए।”
कोई भी गायक होता, तो वोकल कॉर्ड में गांठ की सर्जरी कराने से साफ इनकार कर देता। लेकिन एसपीबी ने बिना चिंता ऐसा किया, क्योंकि वे जानते थे कि संगीत उन्हें कभी धोखा नहीं देगा। आखिर क्यों संगीत अपने अच्छे बच्चे को नुकसान पहुंचाएगा? अभिनय, डबिंग, परफॉर्म वे एक ही वक्त में सब कर सकते थे- उन्होंने किसी चीज को नहीं छोड़ा। और हर क्षेत्र में उन्होंने श्रेष्ठ प्रदर्शन किया। उनकी आवाज सही मायनों में पीढ़ियों तक पहुंची जब उन्होंने पिता-पुत्र जैसे, एनटीआर और बालकृष्ण, नागेश्वर राव और नागार्जुन, शिवाजी गणेशन और प्रभु, मुतुरामन और कार्तिक और शिवकुमार और सूर्या के लिए गाया। लोगों को उनकी विनम्रता अविश्वसनीय लगती थी। सफलता, पुरस्कार और उपलब्धियों में उनका ग्राफ इतना ऊंचा था कि हमें लग सकता था कि वे हमारी पहुंच से बाहर हैं। लेकिन उन्होंने कभी कठोर शब्दों का या दूसरों को नीचा दिखाने वाला व्यवहार नहीं किया। क्या कभी एसपीबी ने किसी के साथ लड़ाई की? ओह मेरी इच्छा है कि मैं कम से कम एक बार यह चुटकुला सुनूं।
किसी भी गायक के लिए 50,000 गाने गाना असंभव है। 70 साल की उम्र में भी वे ‘ओरुवन ओरुवन मुधोलाई’ जैसे गाने गा रहे थे, उसी जोश और उमंग के साथ जिसमें वे दो दशक पहले गाया करते थे। वास्तव में उन्होंने फिल्म संगीत के सुनहरे अध्याय का प्रतिनिधित्व किया है। पिछले पचास साल से उनकी आवाज हमारे लिए ऑक्सीजन की तरह रही है। उनका संगीत हमारे लिए जुनून की तरह है। हम सब उनकी आवाज के साथ एक आनंददायी यात्रा पर निकल पड़ते हैं।
(लेखिका स्टेज और टेलिविजन के म्यूजिकल शो की प्रोड्यूसर हैं)