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हॉकी : वे वाकई डीप डिफेंडर

पटनायक ने इस खेल के प्रति अपने लगाव को कभी सार्वजनिक रूप से जाहिर नहीं किया, लेकिन कभी गर्त में पहुंच गई भारतीय हॉकी आज दुनिया के सामने बेहतरीन प्रदर्शन कर रही है तो उसका बड़ा श्रेय ओडिशा और उसके मुख्यमंत्री को जाता है।
प्रेरणा पुरुषः बड़े आयोजन का आगाज  करते नवीन पटनायक

ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक जब देहरादून के दून स्कूल में पढ़ते थे, तब वे वहां की हॉकी टीम का हिस्सा हुआ करते थे। वे टीम में बतौर गोलकीपर खेलते थे, जो इस तेज रफ्तार वाले खेल में आखिरी डिफेंडर होता है। पटनायक आज भी भारतीय हॉकी के डिफेंडर हैं। इस राष्ट्रीय खेल ने कभी हमें ओलंपिक में आठ स्वर्ण पदक दिलाए थे, और देश को ध्यानचंद जैसा लीजेंड खिलाड़ी दिया। पटनायक ने इस खेल के प्रति अपने लगाव को कभी सार्वजनिक रूप से जाहिर नहीं किया, लेकिन कभी गर्त में पहुंच गई भारतीय हॉकी आज दुनिया के सामने बेहतरीन प्रदर्शन कर रही है तो उसका बड़ा श्रेय ओडिशा और उसके मुख्यमंत्री को जाता है। जब भारतीय हॉकी टीम के आधिकारिक प्रायोजक सहारा ने हाथ खींचे, तब पटनायक ने ही हाथ बढ़ाकर भारतीय हॉकी को सहारा दिया। ओडिशा ने 2018 में भुवनेश्वर में विश्व कप हॉकी प्रतियोगिता आयोजित की थी, और तब से आर्थिक रूप से संपन्न न होने के बावजूद यह राज्य देश की जूनियर, पुरुष और महिला राष्ट्रीय हॉकी टीमों का आधिकारिक प्रायोजक बना हुआ है।

आखिर जो राज्य पहले ही आर्थिक तंगी से जूझ रहा हो, वह एक नहीं बल्कि तीन राष्ट्रीय टीमों का प्रायोजक कैसे बन सकता है। दरअसल, मुख्यमंत्री ने इसके लिए ओडिशा माइनिंग कॉरपोरेशन (ओएमसी) को माध्यम बनाया। राज्य सरकार की इस कंपनी में कैश फ्लो नियमित रूप से होता रहता है। हर साल राज्य सरकार हॉकी पर 20 करोड़ रुपये के आसपास खर्च करती है। यह कोई बड़ी, आंखों को चौंधियाने वाली रकम तो नहीं है, लेकिन पर्याप्त कही जा सकती है। विश्व कप 2018 के बाद 2019 के ओलंपिक क्वालिफायर मैच भुवनेश्वर में ही आयोजित किए गए। यह एक बड़ी उपलब्धि थी, क्योंकि इस आयोजन से कुछ ही हफ्ते पहले राज्य और कलिंग स्टेडियम में फनी चक्रवाती तूफान ने तबाही मचाई थी। क्वालिफायर मैच कलिंग स्टेडियम में ही खेले गए थे। अधिकारियों ने दिन-रात लगकर स्टेडियम को ठीक किया, ताकि बिना किसी परेशानी के वहां मैच खेले जा सकें।

मुख्यमंत्री के इन प्रयासों के नतीजे टोक्यो ओलंपिक में दिख रहे हैं। पुरुषों की टीम 1972 में म्यूनिख ओलंपिक के 49 वर्षों के बाद सेमीफाइनल में पहुंची। भारत ने पिछला ओलंपिक स्वर्ण पदक मॉस्को में 1980 में जीता था। लेकिन तब भारत को सेमीफाइनल नहीं खेलना पड़ा था क्योंकि फॉर्मेट अलग होने के कारण भारत को फाइनल में जगह मिल गई थी।

टोक्यो में पुरुषों की टीम सेमीफाइनल में हार जरूर गई, लेकिन आखिरी चार टीमों में जगह बनाना भी कोई कम बड़ी बात नहीं। महिला हॉकी टीम ने टोक्यो में अभी तक जो हासिल किया है, वह ज्यादा प्रशंसनीय है। इस टीम ने तुलनात्मक रूप से काफी मजबूत समझी जाने वाली ऑस्ट्रेलियाई टीम को हराकर ओलंपिक इतिहास में पहली बार सेमीफाइनल में जगह बनाई है। अफसोस! सेमिफाइनल में बड़े दमखम के साथ खेलकर भी अर्जेंटीना से 2-1 से हार गई। लेकिन खिलाड़ियों का हौसला काबिले तारीफ है, जिससे आगे की प्रचूर संभावनाएं खुलती हैं।

इस संभावना को जगाने में ओडिशा का खास स्‍थान है। वहांं हॉकी विरासती खेल समझा जाता है और पटनायक यह भली-भांति जानते हैं। उनके मुख्यमंत्री बनने से पहले भी ओडिशा के लोगों में हॉकी प्रेम काफी था। वहां के आदिवासियों का यह सबसे प्रिय खेल है। सुंदरगढ़ जैसे पश्चिमी जिले हॉकी का ‘पालना’ कहे जाते हैं। यहां से लैजरस बार्ला और दिलीप तिर्की जैसे बड़े खिलाड़ी हुए हैं। सिंथेटिक टर्फ के कारण विश्व हॉकी मानचित्र से भारत के गायब हो जाने से पहले तक तटीय ओडिशा में भी हॉकी लोगों का पैशन हुआ करती थी। सौभाग्यवश स्कूल जमाने का एक पुराना गोलकीपर इस खेल को बचाने के लिए आगे आया है। उनकी सरपरस्ती ने लोगों में हॉकी के प्रति फिर वही पुराना जोश भर दिया है। पटनायक इस जोश को और आगे ले जाना चाहते हैं। 2023 का विश्व कप हॉकी आयोजन भुवनेश्वर में ही होने जा रहा है- पेरिस में होने वाले अगले ओलंपिक खेलों से ठीक एक साल पहले।

 

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