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24 जून 2024 · JUN 24 , 2024

जनादेश ’24 /जम्मू-कश्मीर: दोहरी विरासत का पतन

घाटी ने इस बार दो दिग्गजों को दिखाया बाहर का रास्ता
उमर अब्दुल्ला और मेहबूबा मुफ्ती

आम चुनावों की मतगणना शुरू होते ही उत्तरी कश्मीर की बारामूला लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी इंजीनियर राशिद पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला को पीछे छोड़ कर आगे बढ़ते दिखे। राशिद फिलहाल दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं। शुरू में तो अब्दुल्ला इस बात से बेफिक्र दिखे। वे उस वक्त श्रीनगर के रॉयल स्प्रिंग्स गोल्फ कोर्स में वर्जिश कर रहे थे। उन्होंने संवाददाताओं से अगले दौर की गिनती तक इंतजार करने को कहा। दिन चढ़ता गया, राशिद की जीत का अंतर बढ़ता गया। उमर हार गए।

मतगणना की दोपहर अब्दुल्ला ने एक्स पर लिखा, ‘‘मुझे लगता है अपरिहार्य को स्वीकार करने का वक्त आ गया है। इंजीनियर राशिद को उत्तरी कश्मीर की जीत के लिए मुबारकबाद।’’ जब वे यह लिख रहे थे, उस वक्त तक गिनती खत्म भी नहीं हुई थी।

उत्तरी कश्मीर के बारामूला में शुरुआती मुकाबला उमर अब्दुल्ला और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के नेता सज्जाद गनी लोन के बीच था, हालांकि एक नाटकीय मोड़ में जेल में बंद नेता इंजीनियर राशिद की पार्टी ने उनकी तरफ से नामांकन भर दिया और पूरे प्रचार को भावनात्मक बना डाला।

इंजीनियर राशिद कुपवाड़ा की लंगाटे विधानसभा से दो बार के विधायक रहे हैं। पिछले पांच साल से वे गैर-कानूनी गतिविधि निरोधक कानून (यूएपीए) के तहत आतंकियों को फंडिंग के आरोप में कैद हैं। उन्हें  4,724,81 वोट मिले। अब्दुल्ला उनसे 2,04,142 वोट से हार गए। सज्जाद लोन को 1,73,239 वोट मिले।

लोग राशिद की जीत को लंबी कैद की रोशनी में देख रहे हैं। उनका मानना है कि यह उत्पीडि़तों की राजनीतिक जीत का प्रतीक है, जो कश्मीर में अहम होता जा रहा है।

कश्मीर में हिस्सेदारी

इंजीनियर राशिद के लिए प्रचार की कमान उनके 23 वर्षीय बेटे अबरार ने संभाली। उनका नारा था,‘जेल का बदला वोट से, तिहाड़ का बदला वोट से।’ अबरार ने युवाओं की सुरक्षा और आत्मसम्मान पर अपने प्रचार अभियान में बातें कहीं। राजनीतिक जानकारों की मानें तो राशिद की जीत दिखाती है कि ‘दिल्ली का वफादार होने से ज्यादा मायने कश्मीरियों के प्रति वफादारी रखती है।’

विरासत की राजनीति का संकट

उत्तरी कश्मीर में उमर अब्दुल्ला और दक्षिणी कश्मीर में पीडीपी की महबूबा मुफ्ती की हार सूबे के राजनीतिक परिदृश्य में बड़ा बदलाव है। भाजपा लंबे समय से दोनों परिवारों की विरासत पर चोट कर रही थी, इन्हें परिवारवादी कह रही थी और दोनों परिवारों से कश्मीर को ‘मुक्ति’ दिलवाने की बात कर रही थी। कश्मीर के भीतरी समीकरण कुछ ऐसे बने कि आखिरकार दोनों पूर्व मुख्यमंत्री हार गए।

दक्षिण कश्मीर की अनंतनाग-राजौरी सीट पर महबूबा मुफ्ती को नेशनल कॉनफ्रेंस के प्रत्याशी मियां अलताफ से कड़ी टक्कर मिली। कठिन चुनाव प्रचार के बावजूद महबूबा की पार्टी का संगठनात्मक ढांचा नेशनल कॉन्फ्रेंस के जैसा मजबूत नहीं था। मियां अलताफ गुर्जर आध्यात्मिक नेता हैं। उन्हें राजौरी और पूंछ के गुर्जरों का और कश्मीर घाटी के तीन जिलों में अपनी पार्टी, कांग्रेस और सीपीएम के मतदाताओं का समर्थन भी मिला। इसी आधार पर वे जीत गए।

अनंतनाग-राजौरी सीट पर मियां अलताफ को 5,21,836 वोट मिले जबकि महबूबा को केवल 2,400,42 वोट मिले। उनके बाद तीसरे स्‍थान पर भाजपा के समर्थन वाले जफर इकबाल खान मिन्हास रहे, जिन्हें 1,42,195 वोट मिले।

हार के बाद एक ओर उमर अब्दुल्ला को इंजीनियर राशिद के बढ़ते प्रभाव से उभरती हुई राजनीतिक परिस्थिति का सामना करना है, तो दूसरी ओर महबूबा को वापसी के लिए नई रणनीति बनानी है।

बारामूला से तीसरे नंबर पर रहे पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के सज्जाद लोन नेशनल कॉन्फ्रेंस का अपना सीधा प्रतिद्वंद्वी मान रहे थे, लेकिन अपनी ही सीट पर हुई हार को पचा पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है। खासकर इसलिए कि चुनाव प्रचार के दौरान वे अकसर ही उमर अब्दुल्ला को सैलानी कह कर बुलाते थे। उमर अब्दुल्ला की हार से हो सकता है उन्हें थोड़ी राहत मिली हो लेकिन इससे यह तथ्य नहीं मिट जाता कि खुद उनकी पीपुल्स कॉन्फ्रेंस उत्तरी कश्मीर में तीसरे नंबर पर रही।  

आगा रुहुल्ला और वहीद पारा: सज्जनता की होड़

नेशनल कॉन्फ्रेंस की नुमाइंदगी कर रहे आगा सैयद रुहुल्ला मेहदी श्रीनगर की सीट पर 3,56,866 वोट लेकर कामयाब रहे। उन्होंने पीडीपी के वहीद-उर-रहमान पारा को 1,88,416 के अंतर से हरा दिया। दोनों प्रत्याशियों ने जीत-हार के इस खेल में संयम और सम्मान का प्रदर्शन किया और पूरे प्रचार अभियान में कभी भी व्यक्तिगत आरोप नहीं लगाए। मेहदी 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 हटाए जाने और जम्मू और कश्मीर के दो टुकड़े किए जाने के खिलाफ अपनी जीत को श्रेय देते हैं।

मेहदी ने कहा, ‘‘श्रीनगर, पुलवामा, गांदरबल, शोपियां और बडगाम के लोगों का शुक्रिया कि उन्होंने मुझ पर भरोसा जताकर यह जनादेश दिया। मैं उनका आभारी हूं और इस जनादेश से मिली जिम्मेदारी का मुझे अहसास है। आप सब ने 5 अगस्त, 2019 के फैसले के खिलाफ अपनी आवाज खुलकर उठाई है। आगे यह मेरी जिम्मेेदारी है कि मैं आपकी आवाज संसद और बाकी भारत तक ले जाऊं। मैं सबकी प्रतिष्ठा और अधिकारों की वापसी की नुमाइंदगी पूरी शिद्दत से करूंगा।’’

हारे हुए पीडीपी के प्रत्याशी वहीद-उर-रहमान पारा ने कहा कि बरसों की चुप्पी के बाद कश्मीरियों ने पूरे साहस के साथ वोट के माध्यम से पहली बार अपनी आवाज उठाई है और उनका उद्देश्य चुप्पी के इस कुचक्र को तोड़ना है। उन्होंने रुहुल्ला, इंजीनियर राशिद और मियां अलताफ को जीत के लिए मुबारकबाद दी।

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