महामारी कोविड-19 का आतंक घटने का नाम नहीं ले रहा है। इस अदने-से वायरस के खिलाफ जितनी मोर्चेबंदी की जा रही है, वह उसी पैमाने पर नए-नए वेरिएंट की शक्ल में रोकथाम की सारी दीवारों को तोड़ डालता है। नया वेरिएंट ओमिक्रॉन टीकों और कोविड़ पीडि़तों से बनी सभी शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता को धता बताकर तेजी से संक्रमण फैला रहा है। ओमिक्रॉन देश में तीसरी लहर ले आया है और उतनी तेजी से समूचे देश में प्रकोप फैला रहा है, जितनी तेजी से इसके डेल्टा वेरिएंट की दूसरी लहर भी नहीं फैली थी, जिसने देश में त्राहि-त्राहि मचा दी थी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल अप्रैल-मई में ही 2,00,000 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। इसमें अस्पताल बिस्तरों की कमी और दवाइयों, ऑक्सीजन की किल्लत ने इजाफा किया था।
हालांकि महामारी के विरुद्ध सबसे प्रभावी हथियार माने जा रहे कोविड-19 रोधी टीकाकरण कार्यक्रम भी पिछले एक साल से जारी है। और अब इस नए हत्यारे के लिए बूस्टर डोज लगाने की शुरुआत भी हो चुकी है, लेकिन अभी तक प्राप्त जानकारियों के मुताबिक ओमिक्रॉन के प्रकोप में इससे कोई फर्क नहीं पड़ा है। गनीमत बस इतनी है कि हर रोज आ रहे 2.5 लाख से ज्यादा नए मामलों के बावजूद तीसरी लहर को ‘दूसरी लहर’ के मुकाबले कम खतरनाक माना जा रहा है। दिल्ली में एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया के मुताबिक, यह श्वसन तंत्र के ऊपरी हिस्से यानी गले के ऊपर ही आक्रमण करता है, जिससे निमोनिया होने का खतरा कम है। लेकिन उनकी चेतावनी यह भी है कि पहले से अस्थमा या दूसरी बीमारी से ग्रस्त लोगों के लिए यह खतरनाक हो सकता है, इसलिए पूरी तरह सावधानी बरतने की दरकार है।
दरअसल, ओमिक्रॉन संक्रमण के फैसने के मुकाबले मृत्युदर काफी कम है। बड़ी तादाद में लोगों को अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत भी नहीं पड़ रही है। बड़ी संख्या में मरीज ठीक होकर घर लौट रहे हैं। हालांकि यूएन की वर्ल्ड इकोनॉमिक सिचुएशन ऐंड प्रोसपेक्ट्स की रिपोर्ट चिंता बढ़ाने वाली है। यूएन की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में कोरोना की दूसरी लहर यानी डेल्टा वेरिएंट से बीते साल अप्रैल से जून के बीच में 2.4 लाख लोगों की मौत हुई और अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई। आने वाले समय में ऐसी स्थिति जल्द ही पैदा हो सकती है। नीति आयोग के सदस्य तथा कोरोना टास्क फोर्स से जुड़े हुए डॉ. वी.के. पॉल के मुताबिक, एक गणितीय मॉडल के अनुमान से फरवरी के मध्य तक संक्रमण पीक पर पहुंचेगा और मार्च से खत्म होना शुरू होगा।
हालांकि राजधानी दिल्ली स्थित लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल (एलएनजेपी) के एमडी डॉ. सुरेश कुमार आउटलुक से कहते हैं कि मौजूदा लहर जनवरी के आखिर तक पीक पर पहुंच सकती है। फिर धीरे-धीरे मामले कम होने लगेंगे। यूएन की रिपोर्ट पर कुमार का कहना है कि वह गणितीय मॉडल पर आधारित है, ऐसे अनुमान कई बार सही साबित नहीं होते, हालांकि आगे क्या होगा, इसे कोई नहीं जानता। लेकिन फिलहाल कोविड संक्रमित लोगों को अस्पताल में भर्ती करने की नौबत बेहद कम है, जो राहत की बात है। लेकिन वायरोलॉजिस्ट डॉ. गगनदीप कंग का कहना है कि ओमिक्रॉन के बारे में अभी बहुत कम जानकारी है, इसलिए किसी नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी।
दिल्ली में एम्स के कम्युनिटी मेडिसिन डिपार्टमेंट के प्रमुख डॉ. संजय राय आउटलुक से कहते हैं कि ओमिक्रॉन के अब तक के अनुभव से पता चलता है कि यह सीवियर नहीं है। उनके मुताबिक, घातक डेल्टा वेरिएंट से देश की ज्यादातर आबादी संक्रमित हो चुकी है और यह बात भारत के लिए वरदान है, क्योंकि लंबे समय तक कोरोना के अन्य वेरिएंट से यह लोगों की शारीरिक प्रतिरक्षा को मजबूत किए रहेगा।
इस बीच भारत में ‘आर-वैल्यू’ सात जनवरी से 13 जनवरी के बीच 2.2 दर्ज की गई, जो पिछले दो हफ्तों से कम है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मद्रास के प्रारंभिक विश्लेषण में यह बात सामने आई है। ‘आर-वैल्यू’ से यह संकेत मिलता है कि संक्रमण कितनी तेजी से फैल रहा है। इस दौरान मुंबई की आर वैल्यू 1.3, दिल्ली की 2.5, चेन्नै की 2.4 और कोलकाता की 1.6 थी। यह 25 दिसंबर से 31 दिसंबर तक राष्ट्रीय स्तर पर 2.9 के करीब थी, जबकि एक जनवरी से छह जनवरी के बीच यह 4 थी। ‘आर-वैल्यू’ यह भी दर्शाती है कि एक संक्रमित व्यक्ति औसतन कितने लोगों को संक्रमित करता है। यह वैल्यू एक से नीचे चली जाती है तो महामारी को समाप्त माना जाता है। लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि दूसरी लहर के पीक पर भी आर-वैल्यू 1.9 ही रही थी। इससे ओमिक्रॉन संक्रमण फैलने की तेजी का अंदाजा लगता है।
बीते 16 जनवरी को कोविड-19 के खिलाफ देशव्यापी टीकाकरण अभियान का एक साल पूरा हो गया। सरकारी आंकड़ाें को मानें तो अब तक पूरे देश में टीकों की 156.76 करोड़ से अधिक खुराकें दी गईं। स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार 93 प्रतिशत से अधिक वयस्क आबादी को कम से कम एक खुराक मिली है, जबकि 69.8 फीसदी से ज्यादा को टीके की दोनों खुराकें लगाई जा चुकी हैं। पिछले साल 16 जनवरी को देश में कोविड रोधी टीकाकरण अभियान चलाया गया था।
कोविड को नियंत्रित करने में टीकाकरण कितना कारगर साबित हो रहा है, इस सवाल पर डॉ. सुरेश कुमार का दावा है, "दुनिया के सबसे सफल टीकाकरण कार्यक्रम की वजह से अब संक्रमितों को ऑक्सीजन, आइसीयू बिस्तर और अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत बहुत कम पड़ रही है। डेल्टा के मुकाबले इस समय मृत्युदर भी काफी कम है। यह कहा जा सकता है कि टीकाकरण का अच्छा प्रभाव दिख रहा है।"
हालांकि डॉ. संजय राय भी मानते हैं कि टीकाकरण का प्रभाव पड़ता है लेकिन मौजूदा लहर के लिए जिम्मेदार ओमिक्रॉन वेरिएंट खुद कमजोर हो गया है। वे कहते हैं, " जिन देशों में ज्यादातर आबादी का टीकाकरण नहीं हुआ है, वहां भी मृत्युदर काफी कम है।" वे जोर देकर कहते हैं कि लोगों को डेल्टा वेरिएंट से मिली नेचुरल इम्युनिटी भी आज फायदेमंद साबित हो रही है। उन्होंने कहा कि जिन्हें एक बार कोरोना हो गया है और वे ठीक हो गए हैं, वे सबसे ज्यादा सुरक्षित हैं, उन्हें वैक्सीन लगवाने वालों की तुलना में ज्यादा प्रोटेक्शन है।
दिल्ली के आनंद विहार रेलवे स्टेशन पर आने वाले यात्रियों का ओमिक्रॉन टेस्ट के लिए नमूना लेते स्वास्थ्यकर्मी
वैसे, केंद्र सरकार ने ऐहतियात बरतने की जिम्मेदारी राज्यों पर डाल दी है तो सरकारें चौकस हैं। राजधानी दिल्ली में रात के कर्फ्यू के बाद भी जब संक्रमण की रफ्तार नहीं घटी तो सप्ताहांत कर्फ्यू का फैसला किया गया। तमिलनाडु सरकार ने तो रविवार के लिए संपूर्ण लॉकडाउन लगा दिया। अन्य प्रदेशों में भी तीसरी लहर की एंट्री के बाद पाबंदियां और सख्ती बढ़ा दी गई हैं। राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, तमिलनाडु, कर्नाटक सहित कई राज्यों में संडे लॉकडाउन लगाया गया है। चुनावी राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा, मणिपुर में रैलियों पर पाबंदी लगा दी गई है। सिर्फ वर्चुअल रैलियों की इजाजत है।
जैसे-जैसे कोविड 19 के मामले बढ़ रहे हैं, वैसे ही यह सवाल भी तैरने लगा है कि देश में लॉकडाउन लगना चाहिए या नहीं? इस पर डॉ. सुरेश कुमार कहते हैं कि लॉकडाउन कोई समाधान नहीं है।
डॉ. संजय राय भी कहते हैं, "हर चीज का वैज्ञानिक आधार होना चाहिए, आज साप्ताहिक लॉकडाउन की भी कोई जरूरत नहीं है। सामुदायिक प्रसार होने के बाद इसका कोई मतलब नहीं है। इससे सिर्फ ऑनलाइन व्यापार करने वालों को मुनाफा होता है। लॉकडाउन लगने से दूसरे स्वास्थ्य कार्यक्रम बुरी तरह प्रभावित होते हैं। जब देश में मरीजों को अस्पताल में भर्ती होने की नौबत नहीं आ रही है, मृत्युदर कम है, तब लॉकडाउन के बारे में सोचना भी अवैज्ञानिक है।"
शीर्ष विशेषज्ञों का कहना है कि तीसरी लहर से घबराने की जरूरत नहीं है। बल्कि सतर्क रहकर सामान्य जन-जीवन बहाल करने की जरूरत है। हालांकि डॉ. सुरेश कुमार कहते हैं कि लोगों को लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए, मास्क, सेनेटाइजर, सुरक्षित दूरी का पालन करना चाहिए। वहीं डॉ. संजय राय कहते हैं, "इस संक्रमण को लेकर और समझ विकसित करने की आवश्यकता है।" डॉ. कंग की चेतावनी है कि अभी और लहरें आ सकती हैं और कई घातक भी हो सकती हैं इसलिए लापरवाही घातक हो सकती है। सबसे जरूरी है कि सरकारी लापरवाहियां दूसरी लहर जैसी न हों, वरना राम ही रखवाला है।