पहले उत्तराखंड के हरिद्वार में, और फिर छत्तीसगढ़ के रायपुर में नफरती आयोजनों, वह भी तथाकथित धर्म के चोले में, का आखिर मकसद क्या हो सकता है? फिर सवाल यह भी है कि ऐसे तत्वों को इस तरह की बोली मंच लगाकर बोलने की हिम्मत कहां से आ जाती है, जिससे धर्म, समाज, देश सब शर्मसार हो उठते हैं? बेशक, वे आरोप बेदम नहीं कहे जा सकते कि चुनावों में भावनाएं भड़काना इसका बड़ा मकसद हो सकता है क्योंकि उत्तराखंड में तो चुनाव है ही, सबसे अहम चुनाव उसके पड़ोस उत्तर प्रदेश में है, जिस पर काफी कुछ दांव पर लगा है। छत्तीसगढ़ भी ऐसा हिंदी प्रदेश है, जिसका असर उत्तर प्रदेश तक बरबस जाता है। लेकिन दूसरा सवाल अहम खासकर इसलिए भी है कि उत्तराखंड के आयोजकों और जहरीले बोल वालों पर किसी तरह की कार्रवाई का अभी इंतजार ही है, बल्कि रिपोर्ट दर्ज करने वाले पुलिसवालों से संबंधित लोगों की बातचीत का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल है, जिसमें वे हंसते और ‘हमारी तरफ’ वाले बताते नजर आते हैं। छत्तीसगढ़ में कार्रवाई शायद इसलिए हो पाई कि वहां कांग्रेस की सरकार है, जो कम से कम महात्मा गांधी को गाली सुनकर चुप नहीं रह सकती थी।
हरिद्वार में जहां एक वर्ग विशेष के ‘नरसंहार’ समेत ऐसी आपत्तिजनक बातें कही गईं कि देश के साथ-साथ सरहद पार से भी उसके खिलाफ कड़ी प्रतिक्रियाएं आईं। उसके फौरन बाद रायपुर के आयोजन में एक भगवाधारी शख्स ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को ही गाली दे डाली और उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमामंडन किया। इन घटनाओं से देश ही नहीं, विदेश में भी हैरानी जताई गई और नाराज प्रतिक्रियाएं उभरीं। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं, जो सोशल मीडिया पर आरोपियों के समर्थन में सक्रिय हैं। यही नहीं, छत्तीसगढ़ पुलिस ने महात्मा गांधी के खिलाफ असभ्य बोल निकालने वाले कालीचरण महाराज को मध्य प्रदेश में धर दबोचा तो कुछ भाजपा नेताओं की भी भौंहें तन गईं। लेकिन दूसरी तरफ सवाल यह भी उठ रहा है कि ऐसे आयोजनों की इजाजत कैसे सरकारें दे देती हैं। एक तो यही है कि इनका आयोजन धर्म की आड़ में किया जाता है।
उत्तराखंड के हरिद्वार में पिछले साल 17-19 दिसंबर तक तथाकथित ‘धर्म संसद’ का आयोजन किया गया। वहां उपस्थित लोगों के ‘विवादित भाषणों’ के वीडियो सोशल मीडिया पर देखे जा सकते हैं। इसमें कई वक्ता कथित ‘धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र उठाने, 2029 तक मुस्लिम प्रधानमंत्री न बनने देने, मुस्लिम आबादी न बढ़ने देने’ जैसी बातें करते दिखाई दे रहे हैं। इस बीच उत्तराखंड की भाजपा सरकार पर इस मामले में कार्रवाई को लेकर उदासीन रवैया अपनाने के आरोप भी लग रहे हैं। हालांकि इसे लेकर जब पुष्कर सिंह धामी सरकार की चौतरफा आलोचना हुई तब तब घटना के लगभग दो सप्ताह बाद नए साल, 2 जनवरी को मामले की जांच के लिए पांच सदस्यीय विशेष जांच दल (एसआइटी) गठित करने की घोषणा की गई है। मामले में पांच लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जा चुकी है, जिसमें उसके आयोजक और गाजियाबाद के डासना मंदिर के प्रधान पुजारी यति नरसिंहानंद, वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र नारायण त्यागी, साध्वी अन्नपूर्णा, धर्मदास, सिंधु सागर शामिल हैं। एफआइआर में धारा 153 ए (धर्म, नस्ल, जन्मस्थान, आवास, भाषा के आधार पर विभिन्न समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाना) के अलावा भारतीय दंड संहिता की धारा 295 (पूजा स्थल या किसी पवित्र वस्तु को नुकसान पहुंचाना) भी जोड़ी गयी है। जानकारों का कहना है कि इस मामले की गंभीरता को देखते हुए गिरफ्तारियां भी तुरंत ही होनी चाहिए थी। हालांकि उत्तराखंड सरकार के प्रवक्ता सुबोध उनियाल का कहना है कि हरिद्वार के सम्मलेन में जो कुछ हुआ वो गलत था और उसमें शामिल सभी लोगों पर कार्रवाई की जाएगी।
छत्तीसगढ़ के रायुपर में 25-26 दिसंबर को दो दिवसीय तथाकथित धर्म संसद का आयोजन किया गया। यहां भी सनातनी हिंदुओं से हिंदू राष्ट्र की स्थापना के लिए तैयारियां करने को कहा गया। इस आयोजन में भाजपा के कई नेता शामिल हुए ही, जबकि सत्तारूढ़ कांग्रेस के भी कई वरिष्ठ नेताओं ने इसमें हिस्सा लिया। इस धर्म संसद के संरक्षक कांग्रेस पार्टी के पूर्व विधायक और रायपुर के दूधाधारी मठ के महंत राम सुंदर दास थे। यहां विवाद तब पैदा हुआ जब महाराष्ट्र के कथित संत कालीचरण उर्फ अभिजीत धनंजय सराग ने महात्मा गांधी को अपशब्द कहा और उनकी हत्या के लिए उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे की प्रशंसा की। उसके बाद इसी धर्म संसद के दौरान वहां मौजूद महंत रामसुंदर दास ने कालीचरण महाराज के अपशब्दों पर नाराजगी जताई और खुद को धर्म संसद से अलग करने की घोषणा की। घटना के बाद रायपुर के पूर्व मेयर और कांग्रेस नेता प्रमोद दुबे की शिकायत पर पुलिस ने कालीचरण के विरुद्ध अपराध दर्ज किया गया था। कालीचरण को रायपुर जिला पुलिस ने 30 दिसंबर को तड़के मध्य प्रदेश के खजुराहो शहर से लगभग 25 किलोमीटर दूर बागेश्वर धाम के पास किराए के मकान से गिरफ्तार किया और उसी दिन शाम को रायपुर की अदालत में पेश किया था।
घटना के तुरंत बाद मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘बापू को गाली देकर, समाज मे विष वमन करके अगर किसी पाखंडी को लगता है कि वह अपने मंसूबों में कामयाब हो जाएगा, तो यह उनका भ्रम है। उनके आका भी सुन लें..भारत और सनातन संस्कृति दोनों की आत्मा पर चोट करने की जो भी कोशिश करेगा... न संविधान उसे बख्शेगा, न जनता उन्हें स्वीकार करेगी।’’
हालांकि छत्तीसगढ़ कांग्रेस के संचार प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला आउटलुक से कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में हुई धर्म संसद बाकी धर्म संसदों से अलग थी। यहां मुख्य आयोजनकर्ता आरएसएस के नेता नहीं थे। इसमें भाजपा, कांग्रेस समेत सभी दलों के नेताओं को बुलाया गया था। उन्होंने बताया कि आयोजनकर्ताओं ने इसमें सिर्फ सनातन संस्कृति पर बातचीत होने की बात कही थी। कांग्रेस के नेता धोखे में आकर यहां गए और संरक्षक बने। लेकिन जब यहां आपत्तिजनक बातें हुईं तब मंच पर भी इन नेताओं ने विरोध किया और एक कांग्रेस नेता ने ही प्राथमिकी दर्ज कराई। उन्होंने कहा, "हमें किसी धर्म संसद को लेकर कोई आपत्ति नहीं है बस वहां सद्भावना को बिगाड़ने वाली बातें न हो।"
ऐसे तो अधिकतर भाजपा और आरएसएस से जुड़े नेता इस मसले पर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं। हालांकि कुछ नेताओं ने गांधी पर आपत्तिजनक टिप्पणी को तो गलत ठहराया लेकिन वे कालीचरण की गिरफ्तारी को भी अनुचित बताने से नहीं चूक रहे हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता और छत्तीसगढ़ सरकार के पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने तो सोशल मीडिया पर 'रिलीज कालीचरण' महाराज नाम से मुहिम तक छेड़ दी है।
इसके अलावा कालीचरण महाराज की गिरफ्तारी को लेकर छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश सरकार में भी ठन गई है। छत्तीसगढ़ पुलिस की कार्रवाई पर मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने सवाल उठाए हैं। मिश्रा का आरोप है कि बिना एमपी पुलिस को इसकी सूचना दिए कालीचरण की गिरफ्तारी हुई है जो संघीय ढांचे के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि यह अंतरराज्यीय प्रोटोकॉल का उल्लंघन है और छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार को ऐसा नहीं करना चाहिए था।
सरहद पार भी चिंता जाहिर की गई। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने भारतीय दूतावास के सबसे वरिष्ठ राजनयिक एम. सुरेश कुमार को अपनी चिंताओं से अवगत कराया। देश में तीन पूर्व सेना प्रमुखों समेत 100 से ज्यादा अन्य लोगों ने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखकर मामले का संज्ञान लेने की अपील की है। चिट्ठी पर दस्तखत करने वालों में नौसेना के पूर्व प्रमुखों एल. रामदास, विष्णु भागवत, अरुण प्रकाश, आरके धवन और पूर्व वायु सेना प्रमुख एसपी त्यागी शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट के 76 वकीलों ने प्रधान न्यायाधीश एनवी रमन को चिट्ठी लिखकर मामले में स्वत: संज्ञान लेने की अपील की है।
जाने-माने इतिहासकार और लेखक एस. इरफान हबीब का कहना है कि यह स्थिति देश और समाज के लिए बेहद खतरनाक है। वे आउटलुक से कहते हैं, ‘‘हिन्दू और मुसलमानों दोनों ही वर्गों में कुछ ऐसे लोग हैं जो इस तरह की नफरती सोच रखते हैं। लेकिन अगर सरकार चाह ले तो ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगा सकती है।’’