कोविड-19 के खतरे को देखते हुए 25 मार्च को जब भारत में लॉकडाउन लगाया गया, उस वक्त संक्रमण के कुल 657 मामले सामने आए थे और 11 लोग जान गंवा चुके थे। उस समय सरकार अच्छी तरह से जानती थी कि उसने इस संकट से लड़ने के लिए अच्छा मौका गंवा दिया है। उसे मालूम था कि महामारी से लड़ने के लिए उसने समय रहते तैयारी नहीं की। उस वक्त केंद्र सरकार कोविड-19 के बदले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के लिए कहीं ज्यादा तैयार थी। हम कोविड-19 से लड़ने के लिए जरूरी स्वास्थ्य सुविधाओं की तैयारी नहीं कर पाए। आक्रामक टेस्टिंग, क्वारेंटाइन सुविधाएं जैसी तकनीकी और ढांचागत व्यवस्था भी नहीं कर पाए। इस कारण कोविड-19 से संक्रमित लोगों की पहचान और उनसे संपर्क करने में देरी हुई। इन परिस्थितियों में केवल एक ही चारा बचा था कि देश में लोगों के मूल अधिकारों को मुल्तवी कर कर्फ्यू जैसी स्थिति कर दी जाए।
प्रधानमंत्री ने जब 21 दिन के लॉकडाउन का ऐलान किया, उस वक्त उन्होंने कहा कि अगर हम इस बीमारी को नहीं रोक पाए तो भारत दशकों पीछे चला जाएगा। आर्थिक गतिविधियों को अचानक रोक देने से मौजूदा संकट कहीं अधिक बड़ा हो गया है। लॉकडाउन के कारण सभी तरह के बिजनेस की प्रोडक्शन लाइन ठहर गई। ट्रक और ट्रेन का परिचालन रुकने से आपूर्ति प्रणाली भी ठप पड़ गई है। इन परिस्थितियों में कारोबारी इसी उधेड़-बुन में फंस गए कि खत्म हो चुकी मांग से हो रहे नुकसान की भरपाई कैसे की जाए। वे आगे की आशंकाओं को देखते हुए अपने कर्मचारियों को निकालने पर मजबूर हो रहे हैं।
कड़वा सच यह है कि हमें इससे उबरने में 3-4 साल लग जाएंगे। इस बुरी स्थिति में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) ग्रोथ रेट 2020-21 में 3-4 फीसदी के निगेटिव स्तर पर पहुंचने की आशंका है। अर्थव्यवस्था का ऐसा बुरा हाल कोविड-19 संकट के पहले और बाद में उत्पन्न स्थिति की वजह से हुआ है। लॉकडाउन से भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रतिदिन आठ अरब डॉलर का नुकसान हो रहा है, जो 30 दिन के लॉकडाउन के आधार पर ही जीडीपी (2019 के स्तर पर) का करीब आठ फीसदी है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही पूरी तरह से बर्बाद हो गई है।
खाद्य सुरक्षा इस समय सबसे बड़ा मुद्दा है। रबी का मौसम हमारे कुल खाद्यान्न उत्पादन का 50 फीसदी पैदावार देता है। फसलें इस समय कटाई के लिए खेतों में तैयार खड़ी हैं। अगर हम खाद्य संकट में नहीं पड़ना चाहते हैं तो आपूर्ति शृंखला को तुरंत शुरू कर देना चाहिए। दूसरी बात यह है कि फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में तुरंत बड़े पैमाने पर बढ़ोतरी करनी चाहिए। ऐसा करने से शहरी इलाके में आपूर्ति तेजी से बढ़ेगी, इसका फायदा यह मिलेगा की महंगाई पर नियंत्रण किया जा सकेगा। वरना वह बहुत जल्द 20 फीसदी के स्तर तक जा सकती है। खरीद से ग्रामीण इलाकों में भी लोगों के पास पैसा पहुंचेगा।
मध्यम वर्ग भी इस समय नौकरी की असुरक्षा के संकट से जूझ रहा है। सरकार को ऐसे कदम उठाने चाहिए, जिससे अगले छह महीने तक किसी भी व्यक्ति की नौकरी न जाए। पिछले छह साल में सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर अनगिनत बार उत्पाद शुल्क बढ़ाकर 13 लाख करोड़ रुपये कमाए हैं। जब अर्थव्यवस्था इतने गहरे संकट में फंस गई है, सरकार को बीमा कंपनियों, म्युचुअल फंड, जमा नहीं लेने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां को राहत पैकेज देकर मजबूत करना चाहिए, जिससे छोटे और मझोले उद्योगों को आसानी से कर्ज मिल सके। इस समय एक ऐसी नीति की बेहद जरूरत है जिससे छोटे और मझोले कारोबारी अपनी जरूरतों को पूरा कर सकें। ऐसा केवल नकदी की उपलब्धता बढ़ाकर ही किया जा सकता है। सरकार को 2020-21 के लिए सभी तरह के कैपिटल गुड्स और वाणिज्यिक वाहनों पर एक बार 75 फीसदी डेप्रिशिएशन का लाभ देना चाहिए, जिसे 2021-22 में 50 फीसदी के स्तर तक देना चाहिए। वहीं, कृषि क्षेत्र से जुड़ी संपत्तियां, जो खेती से जुड़ी गतिविधियों के लिए किराए पर दी जाती हैं, उन्हें भी 100 फीसदी डेप्रिशिएशन का लाभ मिलना चाहिए। ऐसा करने से किसानों को सस्ते दर पर कृषि उपकरण मिल पाएंगे।
सरकार को तुरंत भारतीय रिजर्व बैंक से ज्यादा से ज्यादा कर्ज लेना चाहिए। सारा पैसा नीतिगत स्तर पर गुणात्मक कदमों और रुपये की अधिक छपाई के जरिए जुटाया जा सकता है। ऐसा करने से निश्चित तौर पर राजकोषीय घाटा बढ़ेगा, जो 2.2 फीसदी तक बढ़ सकता है। लेकिन अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए यह समय की मांग है। भारतीय अर्थव्यवस्था पहले से ही दो बड़े झटकों का सामना कर रही थी, अब शताब्दी की सबसे बड़ी महामारी इसे 30 साल पीछे धकेल सकती है।
सरकार को पिछले छह साल की दुविधाभरी नीतियों को त्यागकर, भरोसा बढ़ाने लायक कदम उठाने चाहिए। अर्थव्यवस्था को कम से कम छह लाख करोड़ रुपये पूंजी की जरूरत है। आरबीआइ को भी ऐसे कदम उठाने चाहिए जो न केवल फाइनेंशियल सेक्टर का भरोसा वापस लौटा सकें बल्कि कंपनियों की बैलेंसशीट को भी सुरक्षा की गारंटी दे सकें। आरबीआइ को गैर-निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) के लिए दो तरह का वर्गीकरण करना चाहिए। एक, कोविड के पहले के एनपीए नियम और दूसरे, कोविड के बाद एनपीए नियम। इसके तहत मार्च 2020 के पहले लिए गए सभी कर्ज को कोविड के पहले के वर्ग में रखना चाहिए। उसके बाद के कर्ज को कोविड के बाद के वर्ग में रखना चाहिए। नए एनपीए नियमों में राहत देकर उसमें 18 महीने तक की छूट देनी चाहिए। वरना मार्च 2021 तक एनपीए दोगुना होने की आशंका है।
अर्थव्यवस्था को अगर राहत पैकेज और दूसरे नीतिगत सहयोग मिलते हैं तो वह जल्द ही पटरी पर आ जाएगी। इसके लिए आज दृढ़ इच्छाशक्ति और हकीकत के मद्देनजर नीतियां बनाने की जरूरत है।
(लेखक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)
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अर्थव्यवस्था को प्रतिदिन आठ अरब डॉलर का नुकसान हो रहा है। 30 दिनों में यह जीडीपी के आठ फीसदी के बराबर पहुंच गया है, जो भयावह स्थिति है