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राजनीति: राहुलनामा

राहुल गांधी का चौतरफा समर्थन अपनी जगह, लेकिन वे जो कह और समझ रहे हैं क्या वह बात लोगों तक पहुंच पा रही है
राहुल गांधी

राहुल गांधी आपके दिमाग में है। मैंने मार दिया उसको। जिस व्यक्ति को आप देख रहे हो वो राहुल गांधी नहीं है। राहुल गांधी आपके दिमाग में है। राहुल गांधी बीजेपी के दिमाग में है।

गुजरात की एक अदालत से मानहानि के मामले में दो साल की सजा पाने के बाद संसद से अयोग्य ठहरा दिए गए कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने सबसे पहले यह बात नवंबर 2022 में कही थी। तब किसी ने इस पर कान नहीं दिया था। फिर भारत जोड़ो यात्रा के दौरान करनाल की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में 8 जनवरी, 2023 को जब उन्होंने यह दोहराया, तब लोगों ने उन्हें सुनकर भी अनसुना कर दिया। उनका मजाक बनाया गया। हाल में 23 मार्च को उन्हें जब दो साल की सजा सुनाई गई और उसके फौरन बाद संसद सदस्यता खत्म कर दी गई, तब भी उन्होंने 25 मार्च की प्रेस कॉन्फ्रेंस में तकरीबन यही बात दूसरे ढंग से कही थी कि उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे सांसद हैं या नहीं। उन्होंने बार-बार कहा कि उनका सवाल अदाणी पर है।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के बीच टकराव के केंद्र में राहुल गांधी द्वारा लगातार उठाए गए अदाणी समूह की कंपनियों के बारे में कुछ सवाल हैं, जिन पर संदिग्ध स्वामित्व पैटर्न और व्यावसायिक हेराफेरी का आरोप है। इस संदर्भ में बीते कुछ महीनों से दिल्ली में समानांतर चल रहीं दो कोशिशें काफी दिलचस्प हैं। एक तरफ राहुल गांधी अपने होने का ही निषेध कर रहे हैं। वे बार-बार बहस के केंद्र में कारोबारी गौतम अदाणी को खींच कर ला रहे हैं और इस बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनका रिश्ता पूछ रहे हैं। इसके ठीक उलट, केंद्र सरकार और उसके तमाम अंग राहुल गांधी को बहसों के केंद्र में बनाए रखने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। हो यह रहा है कि राहुल बहस का केंद्र बनने से खुद को जितना ज्यादा बचाना चाह रहे हैं, वे उतना ज्यादा बहसों का केंद्र बनते जा रहे हैं। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के तत्काल बाद के कुछ दिन छोड़ दें, तो भारत जोड़ो यात्रा में राहुल से मिलने वाली महिलाओं से लेकर विदेश में दिए उनके भाषण और जयराम रमेश के साथ की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस (जिसमें उन्होंने खुद को दुर्भाग्य से सांसद कहा था) तक तमाम सार्वजनिक विवाद राहुल-केंद्रित ही रहे हैं।

राहुल गांधी बार-बार अदाणी का नाम ले रहे हैं और पूछ रहे हैं कि 20,000 करोड़ रुपये की रकम उनकी कंपनी में कहां से आई और किसकी है। पलट कर उनसे जो सवाल पूछे जा रहे हैं, वे कभी ओबीसी समुदाय की मानहानि पर तो कभी विदेश में भारत के लोकतंत्र का अपमान करने पर केंद्रित हैं। कभी पूछा जा रहा है कि वे माफी मांगेंगे या नहीं, तो कभी यह कि वे ऊंची अदालत में जाएंगे या नहीं। उनकी सजा और निष्कासन का विरोध करने वाला नागरिक समाज का तबका मानहानि कानून की खामियों और सुनवाई प्रक्रिया पर बात कर रहा है। राहुल गांधी इन सभी सवालों को लगातार ‘डिस्ट्रैक्शन’ या भटकाव बता रहे हैं। वे अदाणी, उनके पास आए बीस हजार करोड़ रुपये और मोदी के उनके साथ रिश्तों पर खूंटा गाड़े हुए हैं। उन्होंने कहा है कि सरकार उनका अगला भाषण संसद में नहीं होने देना चाहती थी। दिलचस्प यह भी है कि वे जहां खूंटा गाड़े हुए हैं, उस पर दिल्ली की सत्ता, विपक्ष और नागरिक समाज में कोई बात ही नहीं कर रहा।

विरोध का रंग ः कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और अन्य

विरोध का रंग : कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और अन्य

राहुल गांधी को सजा सुनाए जाने और उनकी सांसदी जाने के बाद तकरीबन पूरा विपक्ष उनके समर्थन में उतर आया, हालांकि बीजद और वाइएसआरसीपी जैसे विपक्षी दलों ने इस मामले में खुद को अलग-थलग रखा है। आम तौर से कांग्रेस से सतर्क रहने वाली तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), आम आदमी पार्टी, भारत राष्ट्र समिति और समाजवादी पार्टी ने राहुल गांधी के निष्कासन की निंदा की है और इसे तानाशाही करार दिया है। इन दलों को संभवतः एहसास है कि भाजपा और केंद्रीय एजेंसियों का डर और उनकी आपसी प्रतिद्वंद्विता उन्हें हाशिये पर धकेल सकती है या इससे भी बदतर, और प्रतिशोध का शिकार बना सकती है। इनमें से 14 पार्टियों ने केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वे 42 प्रतिशत मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और एजेंसियों द्वारा दायर किए गए 95 प्रतिशत मामले विपक्षी नेताओं के खिलाफ हैं। जाहिर है, यह खुद को बचाने का एक कदम है।

इस बचाव में हालांकि एक और नुक्ता छुपा हुआ है। वह यह कि किसी भी विपक्षी दल ने राहुल गांधी के उठाए सवाल पर एक शब्द नहीं कहा है। ये पार्टियां अब भी कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर साझा दृष्टिकोण बनाने से बहुत दूर हैं, जिनमें आर्थिक और कॉरपोरेट भ्रष्टाचार का सवाल सबसे आम है। यानी राहुल गांधी के साथ हुई कार्रवाई के खिलाफ उनके इर्द-गिर्द जो समर्थन जुट रहा है उसके केंद्र में भी बदकिस्मती से राहुल ही हैं, उनका उठाया सवाल नहीं।

तो क्या राहुल गांधी वाकई भाजपा के, सरकार के, विपक्ष के और लोगों के दिमाग में हैं? या डाले जा रहे हैं? यदि हां, तो क्यों और किसकी कीमत पर? इसका जवाब खुद राहुल गांधी ने 25 मार्च को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिया, “आप लोकतंत्र को समझिए। जनता के दिमाग में ये सवाल है कि अदाणी जैसे भ्रष्ट व्यक्ति को प्रधानमंत्री क्यों बचा रहा है।”   

क्या वाकई लोगों के दिमाग में यह सवाल है? या कुछ और सवाल हैं? हाल ही में दिल्ली में घटी कुछ घटनाओं को देखें, तो समझ आता है कि अलग-अलग सवालों पर लोग एक ही ढंग से भाजपा सरकार के खिलाफ प्रतिक्रिया दे रहे हैं। इन प्रतिक्रियाओं पर सरकार और पुलिस पलट कर वार कर रही है। दिल्ली की दीवारों पर चिपके ‘‘मोदी हटाओ, देश बचाओ’ के परचों पर दर्जनों एफआइआर और गिरफ्तारियां हुई हैं। विपक्ष के नेताओं के यहां प्रवर्तन निदेशालय और केंद्रीय जांच ब्यूरो के छापे पड़ते हैं। शायद इसीलिए दिल्ली यूनिवर्सिटी में बीबीसी की फिल्म दिखाए जाने पर एक शोध छात्र को प्रतिबंधित कर दिया जाता है तो प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज, सामाजिक कार्यकर्ता ऋचा सिंह आदि को मनरेगा पर परिसर में कार्यक्रम करने पर दिल्ली पुलिस रोक देती है। यहां तक कि पंजाब में अमृतपाल सिंह के खिलाफ पंजाब सरकार के साथ मिलकर केंद्रीय एजेंसियां जो अभियान चला रही हैं, उसमें असहमत पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई, उनका सोशल मीडिया खाता बंद किया जाना और पुलिसिया पूछताछ भी यही बता रही है।

राहुल का समर्थनः दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान

राहुल का समर्थनः दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान

केंद्र सरकार की इन कार्रवाइयों का विरोध जहां कहीं भी हो रहा है, वह सब लोकतंत्र को बचाने के नाम पर ही हो रहा है। राहुल गांधी भी कह रहे हैं कि वे लोकतंत्र को बचा रहे हैं। दोनों के बीच फर्क बस इतना है कि राहुल गांधी का सवाल एक कारोबारी और सरकार के साथ उसके रिश्ते पर आकर टिक गया है। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक और बात कही थी, “अदाणी और मोदी का रिश्ता लोकतंत्र पर हमले का मेकैनिज्म है। मैं अदाणी पर सवाल कर रहा हूं, मोदी पर नहीं।”

‘तानाशाही’ के विरोध और ‘लोकतंत्र’ की रक्षा का यही फर्क राहुल गांधी को दूसरों से अलग करता है और सरकार के खास निशाने पर भी रखे हुए है। 

हालांकि जिस लोकतंत्र को बचाने की बात राहुल कर रहे हैं, उसी लोकतंत्र में अदाणी जैसे कारोबारी निरंतर समृद्ध हो रहे हैं। उसी लोकतंत्र में ऐसा विपक्ष है जो राहुल के समर्थन में तो है पर अदाणी का नाम नहीं ले रहा। उसी लोकतंत्र की पैदाइश मौजूदा सरकार है जो लोकतंत्र की कसम खाकर हर काम कर रही है। इसी लोकतंत्र के तहत सरकार ने लॉकडाउन लगाया, नोटबंदी की, जीएसटी लगाया, विपक्ष के नेताओं के यहां ईडी-सीबीआइ को भेजा, कई सांसदों की सांसदी गई। इसी लोकतंत्र में इन सब कदमों को कानूनन सही ठहरा दिया गया। इसी लोकतंत्र के नाम पर मौजूदा संसद संत्र में बिना किसी चर्चा के 64 संशोधनों के साथ 2023 का वित्त विधेयक पारित कर दिया गया।

इस लोकतंत्र पर जब धनबल हावी हो जाता है तो व्यक्तियों या दलों को बदलने से लोकतांत्रिक गणराज्य पर कोई फर्क नहीं पड़ता। राहुल इसीलिए धनबल पर सवाल उठा रहे हैं, कवच को उससे बचाने को कह रहे हैं। राहुल गांधी को अपने नाम का कोई मुगालता नहीं है कि वे लोकतंत्र को बचाएंगे। लोकतंत्र की इस बीमारी का इलाज राहुल गांधी के पास नहीं है क्योंकि उनकी राजनीतिक दृष्टि भी इसी लोकतांत्रिक गणराज्य की चौहद्दी से सीमित है। उनके पास इससे आगे का कोई विजन शायद नहीं है। फिर भी वे अदाणी पर सवाल कर रहे हैं क्योंकि वे जानते हैं कि लोकतंत्र पर एक बार धनबल का कब्जा हो गया तो उसे हिलाना मुश्किल हो जाएगा। फिर राहुल गांधी देश को चलाएं, या कोई और।

तो राहुल गांधी छह महीने से जो खुद को ‘मार देने’ की बात कर रहे हैं, वह इस मायने में बहुत अहम है कि उनकी दिलचस्पी खुद सत्ता में आने में उतनी नहीं है जितनी किसी और के सत्ता में आने की पूर्व-स्थितियों और लोकतांत्रिक शर्तों को बचाए रखने में है। वे महज इस फर्क को बचाए रखने की कोशिश में हैं कि कारोबारी को कारोबार करना चाहिए और नेता को राजनीति। इसीलिए प्रेस कॉन्फ्रेंस को खत्म करते हुए उन्होंने एक और बात कही थी, “आप इसलिए अदाणी को प्रोटेक्ट कर रहे हो क्योंकि आप ही अदाणी हो।”  

यह बात अतिरंजना हो सकती है, फिर भी वे अपनी बात उन लोगों को नहीं समझा पा रहे हैं जो लोकतंत्र के हितैषी हैं। वे लोग पलट कर राहुल की ओर उम्मीद से देख रहे हैं जबकि राहुल इस लोकतंत्र में बदलाव की राजनीति की सीमाओं को बखूबी समझ रहे हैं। तो, क्या वे अपनी बात लोगों तक पहुंचा पाएंगे?

बीस हजार करोड़ की पहेली

राहुल गांधी ने लोकसभा की सांसदी के लिए खुद को अयोग्य ठहराये जाने के अगले दिन 25 मार्च की दोपहर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। अपने संक्षिप्त संबोधन में उन्होंने अदाणी की ऑफशोर कंपनियों के संदर्भ में दो बार ‘बीस हजार करोड़ रुपये’ का जिक्र किया, जिसके बारे में वे पहले संसद में बोल चुके थे। पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने बीस हजार करोड़ रुपये की बात पांच बार कही। उसी रात दिल्ली की सड़कों पर ‘अदाणी के 20,000 करोड़ रुपये किसके हैं?’ सवाल पूछते हुए बड़े-बड़े बैनर-होर्डिंग लग गए। आखिर इस भारी-भरकम रकम पर राहुल गांधी क्यों अटके हुए हैं? क्या है बीस हजार करोड़ की कहानी?

गौदम अदाणी

गौतम अदाणी

भारतीय रिजर्व बैंक के आधिकारिक आंकड़ों के आधार पर फाइनेंशियल टाइम्स ने एक लंबी रिपोर्ट मार्च में की है। रिपोर्ट का सार यह है कि अदाणी ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) में जो 5.7 अरब डॉलर से ज्यादा की रकम हासिल की, उसका तकरीबन आधा हिस्सा संदिग्ध विदेशी इकाइयों से आया है जो अदाणी से ही जुड़ी हुई हैं। भारत में आए एफडीआइ के आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर रिपोर्ट कहती है कि अदाणी को मिले कुल निवेश का आधा यानी 20,000 करोड़ रुपये (2.6 अरब डॉलर) के आसपास बनता है, जो अदाणी से जुड़ी ऑफशोर कंपनियों से संबंधित है जिसके स्रोत अपुष्ट हैं। 

यह रकम 2017 से 2022 के बीच अदाणी की कंपनियों में लगाई गई है। बीस हजार करोड़ रुपये न्यूनतम अनुमान है, रकम ज्यादा भी हो सकती है। सितंबर 2022 तक देश में आए कुल एफडीआइ का 6 प्रतिशत अकेले अदाणी को मिला। जिस बीस हजार करोड़ रुपये की बात हो रही है, उसमें 52.6 करोड़ डॉलर मॉरीशस की दो कंपनियों से आया जो अदाणी के परिवार से जुड़ी हुई हैं जबकि 2 अरब डॉलर अबू धाबी की एक होल्डिंग कंपनी से आया था। जानकार मॉरीशस से आए निवेश पर ज्यादा चिंता जता रहे हैं कि यह अदाणी की कंपनियों में कहीं ‘राउंड ट्रिपिंग’ यानी पैसे को घुमा-फिरा के अपने पास ही रखने का मामला न हो।

एफडीआइ के ये आंकड़े रिजर्व बैंक के हैं और राहुल गांधी इसी के स्रोत पर संसद में सवाल उठा रहे थे, तो केंद्र सरकार से उम्मीद करना जायज था कि वह इस बारे में संसद को बताएगी। सरकार ने संसद को बेशक जवाब दिया है, लेकिन न तो राहुल गांधी को और न ही लोकसभा में। ये जवाब चौंकाने वाले हैं।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के राज्यसभा सांसद डॉ. जॉन ब्रिटस ने केंद्रीय वित्त मंत्री से सदन में पांच सवाल लिखित में पूछे थे। पहला सवाल उन ऑफशोर शेल कंपनियों के विवरण पर था जिसके लाभार्थी और स्वामी (अल्टिमेट बेनेफिशरी ओनरशिप- यूबीओ) भारतीय नागरिक हों। दूसरा सवाल करमुक्त देशों में पंजीकृत ऐसी ऑफशोर कंपनियों के भारतीय मालिकान के बारे में विवरण जुटाने के लिए सरकारी कार्रवाई पर था। तीसरा सवाल पनामा पेपर्स, पैंडोरा पेपर्स, पैराडाइज पेपर्स और ऐसे ही खुलासों में सामने आए भारतीयों के ऊपर कार्रवाई के विवरण को लेकर था। चौथा सवाल उन देशों के बारे में था जिन्होंने भारत सरकार को भारतीय नागरिकों की ऑफशोर कंपनियों के बारे में सूचना साझा करने का प्रस्ताव दिया है। पांचवां सवाल साझा की गई सूचना के विवरण पर था। 

जवाब वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी की ओर से आए हैं। पहला ही जवाब बाकी सारे सवालों को अप्रासंगिक बना देता है। सरकार ने जवाब दिया है कि वित्त मंत्रालय के कानूनों में ऑफशोर कंपनियां परिभाषित ही नहीं हैं और भारतीय नागरिकों के स्वामित्व वाली ऑफशोर कंपनियों का कोई डेटा सरकार के पास उपलब्ध नहीं है। लिहाजा, इसके संदर्भ में कार्रवाई का सवाल ही नहीं उठता। इसके बावजूद सरकार ने कराधान और प्रवर्तन के संदर्भ में एक सूचना प्रणाली को सांसद से साझा किया है। इसके अलावा पनामा और पैराडाइज पेपर्स में लीक नामों के मामले में सरकार ने 31 दिसंबर 2022 तक 13,800 करोड़ रुपये की बेनामी आय को कर के दायरे में लाने की बात स्वीकारी है और पैंडोरा के मामले में ऐसी 250 इकाइयों का जिक्र किया है जिनके भारत से संबंध हैं।

राज्यसभा में सरकार द्वारा दिया गया यह जवाब अपने आप में विरोधाभासी है और काले धन को वापस लाने के सरकारी दावों पर नया सवाल खड़ा करता है।

अदाणी की कंपनियों में विदेशी निवेश

अदाणी से जुड़े हुई ऑफशोर कंपनियां

गार्डेनिया ट्रेड ऐंड इन्वेस्टमेंटः 78.2

इमर्जिंग मार्केट इन्वेस्टमेंट डीएमसीसीः 63.1

हार्मोनिया ट्रेड ऐंड इन्वेस्टमेंटः 50.1

यूनिवर्सल ट्रेड ऐंड इन्वेस्टमेंट्सः 26.9

एफ्रो एशिया ट्रेड ऐंड इन्वेस्टमेंट्सः 22.8

फ्लोरिशिंग ट्रेड ऐंड इन्वेस्टमेंटः 22.6

वर्ल्डवाइड इमर्जिंग मार्केट होल्डिंगः 17.9

अन्य ऑफशोर कंपनियां

ग्रीन एंटरप्राइजेज इन्वेस्टमेंट होल्डिंगः 99.6

ग्रीन एनर्जी इन्वेस्टमेंट होल्डिंगः 49.8

ग्रीन ट्रांसमिशन इन्वेस्टमेंट होल्डिंगः 49.8

कतर होल्डिंग्सः 15.9

विंडी लेकसाइड इन्वेस्टमेंटः 10.9

एजकनेक्स, यूरोपः 6.4

सभी आंकड़े करोड़ डॉलर में, स्रोत: भारतीय रिजर्व बैंक (फाइनेंशियल टाइम्स से उद्धृत)

 ममता बनर्जी

“मोदी के न्यू इंडिया में विपक्ष के नेताओं को भाजपा अपने खास निशाने पर ले रही है।” 

ममता बनर्जी, मुख्यमंत्री, पश्चिम बंगाल

गुलाम नबी आजाद

“मैं इसके खिलाफ हूं, चाहे राहुल गांधी हों या लालू प्रसाद यादव। इससे संसद खाली हो जाएगी”

गुलाम नबी आजाद, डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी

के. चंद्रशेखर राव

 

“यह कदम नरेंद्र मोदी की तानाशाही और आक्रामक प्रवृत्ति का चरम संकेत है”

के. चंद्रशेखर राव, मुख्यमंत्री, तेलंगाना

तेजस्वी यादव

“भाजपा घबराई हुई है क्योंकि उसकी जमीन जा रही है, अब विपक्ष को एक होना चाहिए”

तेजस्वी यादव, उप-मुख्यमंत्री, बिहार

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