हरियाणा के झज्जर जिले के बिरहोर गांव की मुकेश देवी लाखों भूमिहीन किसानों जैसी ही थीं। 2001 में उन्होंने रिश्तेदारों से पैसे उधार लेकर मधुमक्खियों के 30 बॉक्स खरीदे और मधुमक्खी पालन शुरू किया। आज वे उत्तर भारत की सबसे सफल मधुमक्खी पालक मानी जाती हैं। अपना कारोबार बढ़ाने के साथ उन्होंने दूसरी महिला किसानों की भी मदद की, और करीब दो सौ युवाओं को रोजगार भी दे रखा है। उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के किसान अब्दुल हादी खान ने खेत में आड़ी-टेढ़ी मेड़ बनाकर सिंचाई की नई पद्धति विकसित की, जिससे सिंचाई का खर्च 50 फीसदी कम हो गया। इंटरक्रॉपिंग यानी एक साथ कई फसलें उगाने से उन्हें गन्ना, मसूर और अरहर दाल की पैदावार बढ़ाने में उल्लेखनीय सफलता मिली। उनके प्रयोगों को करीब 100 दूसरे किसान भी अपना चुके हैं।
आउटलुक एग्रीकल्चर कॉनक्लेव एंड स्वराज अवार्ड्स 2020 में कामयाबी और इनोवेशन की कुछ ऐसी ही मिसालें देखने को मिलीं। यह कॉनक्लेव का तीसरा संस्करण था, जिसका आयोजन 24 फरवरी 2020 को हुआ। इसमें सात श्रेणियों में 14 अवार्ड दिए गए।
कॉनक्लेव की थीम थी- आर्थिक विकास में कृषि क्षेत्र का महत्व। कॉनक्लेव के पहले सत्र में राज्यों के कृषि मंत्रियों ने खेती की समस्याओं और उन्हें दूर करने के लिए किए जा रहे उपायों के बारे में बताया। दूसरा सत्र ‘आर्थिक विकास के लिए टिकाऊ खेती और स्मार्ट टेक्नोलॉजी’ विषय पर था। इसमें भाग लेने वाले पैनलिस्ट ने बताया कि कैसे टेक्नोलॉजी किसानों की आय बढ़ाने में मददगार हो सकती है। तीसरे सत्र का विषय था ‘आर्थिक विकास में कृषि आय का योगदान’, जिसके पैनलिस्ट इस बात पर सहमत दिखे कि देश की तरक्की के लिए किसान का समृद्ध होना जरूरी है। इन सत्रों में हरियाणा के कृषि मंत्री जयप्रकाश दलाल, मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री सचिन यादव और उत्तराखंड के कृषि मंत्री सुबोध उनियाल के अलावा केंद्रीय कृषि सचिव संजय अग्रवाल, विशेष सचिव वसुधा मिश्रा, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्र और कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के पूर्व चेयरमैन डॉ.टी. हक समेत कई विशेषज्ञों ने अपनी राय रखी।
कृषि मंत्रालय ने 2019-20 के लिए अपने दूसरे अग्रिम अनुमान में कहा है कि इस वर्ष खाद्यान्न का उत्पादन रिकॉर्ड 29.19 करोड़ रहने के आसार हैं। यह पिछले साल की तुलना में 2.3 फीसदी अधिक है। देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि का योगदान 17 फीसदी है और 54 फीसदी रोजगार यही सेक्टर उपलब्ध कराता है। इसके बावजूद इस सेक्टर की हालत लगातार खराब बनी हुई है। कभी खराब मौसम की मार तो कभी फसल की पूरी कीमत न मिलने जैसी मुश्किलें किसानों के सामने बनी ही रहती हैं। इस लिहाज से आउटलुक एग्रीकल्चर कॉनक्लेव एंड स्वराज अवार्ड्स 2020 बेहद महत्वपूर्ण कदम रहा।
देश भर से आए किसानों, कृषि विशेषज्ञों और अतिथियों के स्वागत में आउटलुक के संपादक हरवीर सिंह ने कहा कि हमारा इरादा इस कॉनक्लेव के जरिए ऐसा प्लेटफॉर्म तैयार करने का है, जो देश की समृद्धि, किसानों को हर स्तर पर प्रोत्साहन देने में सक्षम हो। महिंद्रा एंड महिंद्रा लिमिटेड के स्वराज डिवीजन के सीईओ हरीश चव्हाण के अनुसार, आर्थिक योजना को कृषि से जोड़ना जरूरी है, क्योंकि हमारी 50 फीसदी आबादी कृषि से जुड़ी है। भारत चावल, गेहूं और गन्ना के बड़े उत्पादकों में है, लेकिन उर्वरकों के ज्यादा प्रयोग से जमीन से पोषक तत्व घटते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि सस्टेनेबल खेती के लिए जागरूकता और सहायता स्वराज की प्राथमिकताओं में है।
छोटा प्रदेश होने के बावजूद राष्ट्रीय स्तर पर कृषि में हरियाणा का योगदान बड़ा है। इसके पास जोत लायक जमीन केवल 1.4 फीसदी है, लेकिन खाद्यान्न उत्पादन में यह राज्य छह फीसदी से ज्यादा का योगदान देता है। केंद्रीय पूल में योगदान 15 फीसदी से अधिक है। प्रदेश के कृषि मंत्री जयप्रकाश दलाल ने बताया कि राज्य सरकार जैविक उत्पादों की मंडी और एक मसाला मंडी भी बनाने जा रही है। इससे राज्य में रोजगार तो बढ़ेगा ही, किसानों की आय में भी बढ़ोतरी होगी। जैविक उत्पाद किसानों की आय बढ़ाने का अच्छा साधन बन रहे हैं।
मध्य प्रदेश में किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। प्रदेश के कृषि मंत्री सचिन यादव इसकी एक और वजह बताते हैं। वे कहते हैं, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग से खेती जहरीली होती जा रही है, जिसका सीधा असर किसान और अन्य लोगों की सेहत पर पड़ रहा है। यादव ने कहा कि हर दौर की चुनौतियां अलग होती हैं। आज की चुनौतियां पहले से हटकर हैं। पहले संसाधनों और सुविधाओं की कमी थी, आज की खेती पूरी तरह तकनीक पर आधारित है।
एक और चुनौती है जलवायु परिवर्तन। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव से किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ जाता है। किसानों की आय बढ़ाने में यह एक बड़ी बाधा है। इसलिए मध्य प्रदेश सरकार इस पर प्राथमिकता से काम कर रही है। दूसरी ओर, छोटे किसान महंगे कृषि उपकरणों के इस्तेमाल में सक्षम नहीं हैं। इसलिए उन्हें उनका लाभ नहीं मिल रहा है। जानकारी के अभाव में वे कीटनाशकों का बेहिसाब प्रयोग करते हैं। इससे उपजाऊ मिट्टी का भी लगातार क्षरण हो रहा है। मेकेनाइजेशन का भी छोटे किसान लाभ नहीं ले पाते। इसलिए सरकार किसानों को फसलों की प्लानिंग करके उपज लेने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। किसान की फसल को बर्बादी से बचाने के लिए सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। इसके तहत मंडी की ओर जाने वाले रास्ते पर 15 किलोमीटर की रेंज में भंडारण की व्यवस्था की जा रही है। यहां किसान चार-पांच महीने तक अपनी उपज रख सकेंगे।
किसान हित में दूसरे राज्यों में भी कदम उठाए जा रहे हैं। उत्तराखंड के कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने बताया कि प्रदेश की प्रमुख फसल मंडवा और चौलाई की खरीद मंडी परिषद सीधे किसान से करेगा। इसके लिए परिषद को रिवॉल्विंग फंड दिया गया है। एमएसपी निर्धारण के बाद जो मंडवा और चौलाई आम तौर पर 12 से 32 रुपये प्रति किलो बिकती थी, वह 54-60 रुपये में बिक रही है। नर्सरी एक्ट में संशोधन किया गया है, जिसके अनुसार किसान को खराब पौधे देने वाली नर्सरी की पहली गलती पर 50 हजार रुपये जुर्माना किया जाएगा और दूसरी बार ऐसा किया तो जेल भेजा जा सकता है।
भारत में इजरायल के राजदूत रोन माल्का ने भी इस कॉनक्लेव में शिरकत की। उन्होंने कृषि में टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल पर जोर दिया। उन्होंने कहा, इजरायल, भारत जितना बड़ा नहीं है, लेकिन इनोवेशन, टेक्नोलॉजी और लीक से हटकर सोच के कारण यह कृषि में अग्रणी बना है। इजरायल की 60 फीसदी जमीन खेती के लायक नहीं है। यहां बारिश कम होती है और प्राकृतिक संसाधन भी कम हैं। इन चुनौतियों पर विजय पाने के लिए हमने ऐसा ईकोसिस्टम तैयार किया जिससे किसानों, निजी क्षेत्र और रिसर्च एंड डेवलपमेंट करने वाली संस्थाओं के बीच सीधा संवाद हो सके। भारत में इजरायल ने हरियाणा, तेलंगाना, मध्य प्रदेश और आठ अन्य राज्यों में 28 सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित किए हैं। इनके जरिए किसानों को मदद की जाती है।
अवार्ड विजेताओं को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सम्मानित किया। इससे पहले उन्होंने कहा, “न तो किसान बेचारे हैं और न ही कृषि बेचारी है, ये दोनों देश के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर काम करें तो क्रांतिकारी परिवर्तन संभव है।” लेकिन आज किसान की बेचारगी दूर करना ही बड़ी चुनौती है।
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“डिफॉल्टर किसान भी कर्ज ले सकेंगे”
कृषि में कई कीर्तिमान स्थापित कर चुके हरियाणा में भी आज किसान घटती आमदनी से हलकान हैं। ऐसे दौर में 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का दावा करने वाली सरकार क्या कदम उठा रही है, राज्य के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री जयप्रकाश दलाल से हरीश मानव ने बातचीत की। प्रमुख अंश:
2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए सरकार क्या कर रही है?
गेहूं और धान जैसे परंपरागत फसली चक्र से हटकर किसानों को बागवानी, पोल्ट्री, फिशरीज और डेयरी फार्मिंग के लिए प्रेरित किया जा रहा है। किसानों को फल-सब्जियों के सही दाम मिलें, इसके लिए सोनीपत के गन्नौर में अंतरराष्ट्रीय टर्मिनस स्थापित किया जा रहा है। इसमें फिश मार्केट भी स्थापित करने की योजना है। देश-विदेश में यहां से फलों, सब्जियों और मछली की आपूर्ति हो सकेगी। भावान्तर भरपाई योजना में सब्जियों और फलों की दस फसलें शामिल की गई हैं। पहले यह आलू, प्याज, टमाटर और गोभी के लिए लागू थी, अब गाजर, शिमला मिर्च, बैंगन, अमरूद और किन्नू को शामिल किया गया है। फसलों की ऑनलाइन खरीद-बिक्री के लिए 54 मंडियों में ई-नाम लागू किया गया है। इन मंडियों में फसलों की गुणवत्ता की जांच के लिए प्रयोगशालाएं भी बनाई गई हैं।
किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिलता। कैसे आश्वस्त करेंगे कि किसानों को पैदावार के सही दाम मिलें?
फसल खरीद प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए ‘मेरी फसल मेरा ब्योरा’ पोर्टल लांच किया गया है। इस पर किसान अपनी फसल का विवरण ऑनलाइन दर्ज करा सकते हैं। इससे फसलों की खरीद हो सकेगी। किसानों को मंडियों में उपज लाने के लिए हरियाणा कृषि मार्केटिंग बोर्ड ने कृषक उपहार योजना शुरू की है।
सरकार में साझीदार जननायक जनता पार्टी ने किसान कर्जमाफी का वादा किया था, पर भाजपा के एजेंडे में यह नहीं है। कर्जमाफी की कोई योजना है?
दोनों दल साझा न्यूनतम कार्यक्रम पर काम कर रहे हैं। सहकारी बैंकों के फसली ऋणों के लिए एकमुश्त निपटान स्कीम लागू की गई। इसके तहत उन किसानों को दोबारा कर्ज मिल सकेगा, जिनके खाते एनपीए हो चुके हैं। तीन लाख 33 हजार 420 किसानों के 859 करोड़ रुपये के ब्याज माफ किए गए हैं।
राज्य में गिरता भूजल स्तर कृषि के लिए संकट का संकेत है। इस दिशा में सरकार क्या कर रही है?
डार्क जोन वाले 36 ब्लॉकों में भू-जल सुधार के लिए अटल भूजल योजना शुरू की गई है। इसके तहत केंद्र सरकार 712 करोड़ रुपये उपलब्ध कराएगी, जिसमें 150 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं। प्रदेश में ट्रीटेड वेस्ट वाटर पॉलिसी लागू करने का निर्णय लिया गया है। उपचारित जल का बागवानी और अन्य कार्यों में पुन: उपयोग हो सकेगा। केंद्र ने हल्की सिंचाई के 1,200 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट स्वीकृत किए हैं।
छह वर्ष पूर्व कांग्रेस की सरकार के समय कई प्रमुख हाइवे पर बड़े-बड़े एग्री-मॉल बनाए गए थे, जो अभी शुरू नहीं हो पाए हैं। इन्हें शुरू करने की कोई योजना है?
प्राइम लोकेशन पर बनाए गए इन एग्री-मॉल को सरकार बेचने की तैयारी में है। महज कृषि उपजों के दम पर ही ये मॉल तो नहीं चलाए जा सकते, कुछ और करना होगा।