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कृषि आय वृद्धि का टेक्नो मंत्र

छोटे किसानों के हिसाब से तकनीक तय हो, तभी उसका व्यापक इस्तेमाल हो सकेगा
टेक्नोलॉजी सत्रः (बाएं से) भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत, एमसीएक्स के वीपी संजय गाखर, श्रीराम फार्म सॉल्यूशंस के प्रेसिडेंट संजय छाबड़ा, फूड पॉलिसी एक्सपर्ट विजय सरदाना, आइसीएआर के डीजी डॉ. त्रिलोचन महापात्र, कृषि मंत्रालय में

किसान टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से फसलों की गुणवत्ता बढ़ा सकते हैं, इससे उन्हें उपज की अच्छी कीमत भी मिलेगी। टेक्नोलॉजी का प्रयोग बढ़ती आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा में भी मददगार साबित होगा। आउटलुक एग्रीकल्चर कॉनक्लेव एंड स्वराज अवार्ड्स 2020 के दूसरे सत्र का यही सार था। इस सत्र का विषय था ‘आर्थिक विकास के लिए टिकाऊ खेती और स्मार्ट टेक्नोलॉजी’। सत्र की शुरुआत करते हुए इसके संचालक और फूड सिक्योरिटी एंड सस्टेनेबल एग्रीकल्चर फाउंडेशन के कन्वीनर विजय सरदाना ने कहा कि सस्टेनेबल खेती का महत्व तभी है, जब आमदनी, बाजार और पर्यावरण भी सस्टेनेबल होंगे। स्मार्टफोन आने के बाद से जैसे आम लोगों के काम के तरीके में बदलाव आया है, उसी तरह किसानों को भी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना चाहिए। देश की आबादी 140 करोड़ को पार कर रही है, इसलिए टेक्नोलॉजी का सही इस्तेमाल करके ही हम उसके भरण-पोषण की समुचित व्यवस्था कर सकते हैं। देश की खाद्य सुरक्षा बढ़ाने के लिए भी टेक्नोलॉजी की जरूरत है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्र तो यहां तक मानते हैं कि टेक्नोलॉजी ने ही कृषि क्षेत्र में देश को यहां तक पहुंचाया है। उन्होंने कहा कि टिकाऊ खेती के लिए जमीन, पानी, पर्यावरण सबका अनुकूल होना जरूरी है। उन्होंने टेक्नोलॉजी के विकास के साथ ही उपलब्ध तकनीक के सही इस्तेमाल पर जोर दिया। जैसे, फसल में कितनी खाद और कितना पानी चाहिए, इसे समझना हर किसान के लिए आवश्यक है। इसके लिए उन्होंने किसानों को इंटीग्रेटेड खेती की सलाह दी।

टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल छोटे किसानों के लिए महंगा हो सकता है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय की विशेष सचिव वसुधा मिश्रा के अनुसार, छोटे किसानों को मिलकर खेती करनी होगी। टिकाऊ खेती के लिए यह जरूरी है। उन्होंने कहा कि देश का 86 फीसदी किसान दो हेक्टेयर या इससे कम जोतवाला है। सरकार जोत के हिसाब से किसानों का डाटा बेस तैयार कर रही है। उन्होंने सरकार की तरफ से उठाए जा रहे अन्य कदमों की भी जानकारी दी। दस हजार एफपीओ बनाने का लक्ष्य है, जिससे किसानों की पहुंच बड़े स्तर पर बाजार तक बनेगी। सरकार ऐसा पोर्टल बना रही है, जो बागवानी को बढ़ावा देगा और किसानों को बाजार तक पहुंचाएगा। सरकार की यह भी कोशिश है कि उसे जानकारी हो कि किसान क्या बो रहा है और क्या बोना चाहिए, इससे फसल की बर्बादी रुकेगी।

किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा, हमें तकनीक से कोई परहेज नहीं है। आप किसानों को उसकी उपज का सही दाम दिला दें, बाकी टेक्नोलॉजी वह खुद देख लेगा। उन्होंने कहा कि किसान अपने आप में वैज्ञानिक भी है। उसे पता है कि खेत की कब जुताई करनी है, कब उसमें खाद देना है। हालांकि उन्होंने माना कि टेक्नोलॉजी का प्रयोग बढ़ने से लेबर की समस्या कम हुई है। भाजपा किसान मोर्चा के उपाध्यक्ष नरेश सिरोही के अनुसार, हमें तय करना होगा कि जाना कहां है। 50 के दशक में हम अपनी जरूरत का ज्यादातर खाद्यान्न आयात करते थे। 1967 के आस-पास टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से पैदावार बढ़ गई, लेकिन खेत, पर्यावरण, स्वास्थ्य चला गया। हमें टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल इस तरह करना होगा कि कृषि में पूरी तरह आत्मनिर्भर बन सकें। टेक्नोलॉजी छोटी काश्त के हिसाब से तय हो, तभी खेती और आम किसान का हित होगा।

कृषि टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में कॉरपोरेट के स्तर पर भी कार्य हो रहे हैं। महिंद्रा एंड महिंद्रा लिमिटेड के स्वराज डिवीजन के सेल्स एंड मार्केटिंग हेड राजीव रेलन ने कहा, “हमारी कोशिश है कि किसान अपने ज्यादा काम तकनीक के जरिए कर सकें। स्वराज ऐसी तकनीक विकसित कर रहा है जिसमें ट्रैक्टर खुद बताएंगे कि किसान को क्या करना है। कंपनी किसानों के लिए वह सबकुछ करना चाहती है जिससे उसकी फसल सुरक्षित रहे।” डीसीएम श्रीराम लिमिटेड के श्रीराम फार्म सॉल्यूशंस के प्रेसिडेंट एवं बिजनेस हेड संजय छाबड़ा ने कहा कि कृषि की हालत पहले से बेहतर हुई है। पहले हम आयात करते थे, लेकिन आज हम बड़ी मात्रा में निर्यात कर रहे हैं। देश में खाद्यान्न सरप्लस है। तकनीक के आधे इस्तेमाल से ही हमने इतनी सफलता हासिल की है। छाबड़ा के अनुसार, आज की सबसे बड़ी चुनौती पर्यावरण है। तापमान बढ़ने से फसल सात से आठ फीसदी कम हुई। धान की खेती में कई तरह की परेशानियां देखने को मिल रही हैं। उन्होंने ऐसे ऐप की जरूरत बताई जिससे किसान को मालूम हो सके कि कौन सी फसल कब बोनी चाहिए और उसे बेचने का सही समय और तरीका क्या हो।

नायरा एनर्जी के सीएफओ अनूप विकल ने बताया कि उनकी कंपनी ने आस-पास के 15 गांवों के 50,000 लोगों को सुखी, संपन्न, शिक्षित करने का संकल्प लिया है। कंपनी के जल संरक्षण का लाभ 1,200 परिवारों को मिल रहा है। किसानों का स्वायल हेल्थ कार्ड भी बनवाया गया है। कंपनी के प्रयासों से खेती लायक जमीन तो बढ़ी ही, खेती की लागत भी करीब 35 फीसदी कम हुई। कंपनी ने महिला सशक्तीकरण पर बल दिया और उन्हें पशु सखी, कृषि सखी के रूप में जोड़ा।

माइक्रोसॉफ्ट के डायरेक्टर (कस्टमर एंड पार्टनरशिप इंगेजमेंट्स) विनीत दुर्रानी ने डाटा की जरूरत का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा, “मुख्य यह है कि हम डाटा का उपयोग कैसे करते हैं। हमें रडार और ऑप्टिकल दोनों तरह के डाटा का संयुक्त उपयोग सीखना होगा। नासा हमें यह मुफ्त में दे रहा है। इससे हम बिना खेत में गए पता लगा सकेंगे कि फसल का कौन-सा हिस्सा पका है और कौन-सा पकने में समय लगेगा।”

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नीतियां नाकाफी, मुद्दों की पहचान जरूरी

किसानों के वास्तविक मुद्दों की पहचान और उन पर गंभीरता से ध्यान देना जरूरी, केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर काम करना होगा

आर.एस. राणा

किसानों के लिए घोषणाएं तो बहुत होती हैं, लेकिन क्या वास्तव में किसानों का जीवन बदल पाया है? सरकार फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करती है, फिर भी किसान एमएसपी से कम दाम पर उपज बेचने को क्यों मजबूर हैं? जब किसान को दाम ही नहीं मिलेंगे तो कृषि सुधार की बात कितनी सार्थक होगी? आउटलुक एग्रीकल्चर कॉनक्लेव एंड स्वराज अवार्ड्स 2020 के तीसरे सत्र में इन्हीं सवालों के इर्द-गिर्द चर्चा हुई। इस सत्र का विषय था ‘आर्थिक विकास में कृषि आय का योगदान’। सत्र के संचालक और सहकार भारती के नेशनल वाइस प्रेसीडेंट डॉ. डी.एन. ठाकुर ने कहा कि देश के आर्थिक विकास में कृषि का योगदाम अहम है, क्योंकि अर्थव्यवस्था काफी हद तक कृषि पर आधारित है।

मिला गुरः विशेषज्ञों के सुझावों पर आपस में चर्चा करते किसान

केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के सचिव संजय अग्रवाल ने किसानों के लिए उठाए गए सरकारी कदमों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि सरकार कृषि के उत्थान और प्रोत्साहन के लिए हर जरूरी कदम उठा रही है। किसान सम्मान और पेंशन सरीखी अनेक योजनाओं का जोर इस बात पर है कि किसान की फसल बर्बाद न होने पाए और वह अधिक से अधिक दाम पर बिके। किसानों की परेशानियों को देखते हुए पीएम किसान योजना का फॉर्म अब सिर्फ एक पन्ने का कर दिया गया है। एक जगह सारी सुविधाएं देने के लिए दस हजार एफपीओ बनवाने का लक्ष्य है।

कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के पूर्व चेयरमैन डॉ.टी. हक ने कहा, “सरकार की योजनाओं के बारे में सभी जानते हैं। सवाल यह है कि इन सबके बावजूद किसानों की आय क्यों नहीं बढ़ रही है। मौजूदा स्थितियों से तो लगता है कि प्रधानमंत्री की घोषणा के मुताबिक किसानों की आय दोगुनी नहीं हो पाएगी। प्रशासन की मंशा और योजनाओं में तालमेल ही नहीं दिखता। किसानों के वास्तविक मुद्दों पर जब तक गंभीरता से जमीनी स्तर पर ध्यान नहीं दिया जाएगा, तब तक किसान आर्थिक रूप से समृद्ध नहीं होगा।”

जाने-माने किसान नेता और देश के करीब ढाई सौ किसान संगठनों की अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक सरदार वी.एम. सिंह ने भी सरकारी दावों पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, सरकार किसानों को छह हजार रुपये (प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि) देकर कोई एहसान नहीं कर रही है। करीब 52 फीसदी किसानों को अभी तक इसकी एक भी किस्त नहीं मिली है। सिर्फ नीति से नहीं, नीयत बनाने से काम होगा। किसान को उसकी पैदावार का सही दाम ही नहीं मिलेगा तो अर्थव्यवस्था में सुधार की बात बेमानी होगी। किसान नेता ने कहा कि गन्ने का एमएसपी 435 रुपये और धान का 2,400 रुपये प्रति क्विंटल होना चाहिए। लेकिन उत्तर प्रदेश के किसान तो 1,200 रुपये के भाव पर धान बेचने को मजबूर हैं।

कृषि आय पर सत्रः (बाएं से) सहकार भारती के नेशनल वीपी डॉ. डी.एन ठाकुर, सीएसीपी के पूर्व चेयरमैन डॉ. टी. हक, कृषि सचिव संजय अग्रवाल, अमूल के सीनियर जीएम रवीन चौधरी और ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमेटी के राष्ट्रीय कन्वीनर वी.एम. सिंह

भारत में इजरायल के राजदूत रोन माल्का ने कृषि में टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल पर जोर देते हुए कहा, “इजरायल, भारत जितना बड़ा नहीं है, लेकिन इनोवेशन और टेक्नोलॉजी के कारण वह कृषि में अग्रणी बना है। इजरायल ने हरियाणा, तेलंगाना, मध्य प्रदेश और आठ अन्य राज्यों में 28 सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित किए हैं। इनके जरिए तकनीकी विकास का लाभ भारतीय किसानों तक पहुंचाया जा रहा है।” डेयरी किसान आधी सदी से भी ज्यादा समय से अमूल से लाभान्वित हो रहे हैं। अमूल के सीनियर जनरल मैनेजर (सेल्स) रवीन चौधरी ने कहा कि अमूल से जुड़े किसान लगातार समृद्ध हो रहे हैं। अमूल अपना मुनाफा कम से कम रखता है। वह उपभोक्ताओं से जो दाम वसूलता है, उसका 85 फीसदी तक किसानों को देता है। उन्होंने कहा, हम गाय और भैंस के बाद अब कैमल मिल्क का संग्रह, शोधन और बिक्री पर काम कर रहे हैं। हम किसानों को तो नस्ल और पशुपालन के तरीके की जानकारी देते ही हैं, उपभोक्ताओं को भी समय-समय पर जागरूक करते हैं।

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इजरायल, भारत जितना बड़ा नहीं, वहां की 60 फीसदी जमीन खेती के लायक नहीं है, लेकिन इनोवेशन, टेक्नोलॉजी और लीक से हटकर सोच के कारण यह कृषि में अग्रणी बना

 

रोन माल्का

भारत में इजरायल के राजदूत

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