नील नितिन मुकेश, अभिनेता
पुत्र: गायक नितिन मुकेश
आम तौर पर लड़के अपनी मां के करीब होते हैं मगर मैं यह कह सकता हूं कि मैं पापा का बेटा हूं। उम्र के इस पड़ाव पर भी, जब मैं एक बेटी का पिता बन गया हूं, मैं छोटी से छोटी परेशानी में पिता के पास जाता हूं और उनसे सलाह लेता हूं। मेरे पिता हमेशा आदर्श की तरह मेरे साथ रहे हैं। उन्होंने अपने पिता से जो सीखा, वह हमको सिखाया है। आज मैं जिस भी तरह का इंसान हूं, उसमें सारा योगदान पिता का है।
मैं बचपन में दिल्ली गया था अपने मामाजी की शादी में। चूंकि मैं स्वभाव से चंचल था तो शादी के माहौल में मुझे बड़ा मजा आ रहा था। नाचना, गाना, उछलना, कूदना मुझे रोमांचित कर रहा था। इसी दौरान मैं होटल की लिफ्ट में जाकर मामी के कमरे में पहुंच गया। मेरे पिताजी और परिवार के लोगों ने जब मुझे आसपास नहीं देखा तो बहुत चिंतित हुए। पूरे होटल में मेरी खोज शुरू हुई और मैं मामी के कमरे में मिला। उस समय जो डर, फिक्र मैंने पिताजी के चेहरे पर देखी, उससे मुझे एहसास हुआ कि पिताजी मुझसे कितना प्यार करते हैं। पिताजी हमेशा ही स्टेज शो करते थे। उन्हें लाइव प्रस्तुति देने में अलग ही आनंद मिलता था। इस कारण वह अलग-अलग शहर और देशों में जाते थे, मगर इसके बावजूद वह पूरा ध्यान देते थे कि उनका समय मुझे मिले। मेरी हर छोटी उपलब्धि में वह हौसला बढ़ाते थे।
पिताजी जब भी पास होते तो बातचीत के दौरान कुछ ऐसा कह जाते जो मेरे मन में बैठ जाता। उनकी बातों को सुनकर ही मैंने जीने का सलीका सीखा है। पिताजी ने मुझे सभी सुख और सुविधाएं उपलब्ध कराईं। उन्होंने बचपन में ही मेरी प्रतिभा पहचान ली और कभी डॉक्टर, वकील, इंजीनियर बनने का दबाव नहीं बनाया। उन्हें नजर आ गया था कि मैं कलाकार बनने के लिए बना हूं, मगर उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि वह अपने पिता का नाम या अपना नाम इस्तेमाल कर के मेरे लिए काम तलाशेंगे। उन्होंने हमेशा यही कहा कि यदि मुझे अभिनेता बनना है तो मुझे स्वयं मेहनत कर के अवसर बनाने होंगे। इस एक बात ने मुझे कम उम्र में ही जिम्मेदार और आत्मनिर्भर बना दिया।
पिताजी ने मुझसे हमेशा कुछ बेहद महत्वपूर्ण बातें कहीं, जिन्हें मैं बताना चाहता हूं। पिताजी ने हमेशा मेहनत करने पर जोर दिया। उनका कहना था कि यदि मुझे अभिनेता बनना है तो निर्देशकों, निर्माताओं तक अपनी प्रतिभा पहुंचानी होगी। घर बैठकर कोई नहीं जान सकेगा कि मैं कितना गुणवान हूं। पिताजी हमेशा कहते थे और आज भी कहते हैं कि मेहनत का कोई विकल्प नहीं है। मेहनत से योग्यता का विकास संभव है। मेरे पिताजी ने अपने पिताजी से सादगी, ईमानदारी और सरलता सीखी। सादगी, सरलता और विनम्रता की सीख उन्होंने मुझे भी दी। उनका हमेशा कहना था कि इंसान को फलदार वृक्ष की तरह होना चाहिए। एक अहम बात जो पिताजी हमेशा कहते थे कि जीवन में दौलत, शोहरत, इज्जत, लोकप्रियता परिवार और स्वास्थ्य की कीमत पर अर्जित नहीं करनी चाहिए। यदि आपके पास परिवार के लिए समय नहीं तो फिर आपका शोहरत और दौलत के लिए दौड़ना भागना व्यर्थ है। पिताजी ने हमेशा सिखाया कि सरलता में शर्म नहीं होनी चाहिए। आप ऑटो या टैक्सी में यात्रा करने से छोटे नहीं हो जाते हैं। यह भावना हमेशा खुद से दूर रखनी चाहिए।
(मनीष पाण्डेय से हुई बातचीत पर आधारित)