शिक्षा की बढ़ती जरूरत और मांग को पूरा करने के लिए दुनियाभर में उच्च शिक्षा व्यवस्था का तेजी से विस्तार हो रहा है। उच्च शिक्षा तक पहुंच बढ़ने से व्यक्तिगत अवसरों, देश के आर्थिक विकास और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा में भी इजाफा होता है। यही कारण है कि न सिर्फ कॉलेज और यूनिवर्सिटी जाने वाले छात्रों की संख्या अभूतपूर्व गति से बढ़ रही है, बल्कि दुनियाभर में सरकारी और निजी शिक्षा संस्थानों की संख्या में भी बढ़ोतरी हो रही है। इस बदलते परिदृश्य ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीति-निर्माताओं और शिक्षाविदों का ध्यान गुणवत्ता और जवाबदेही की ओर खींचा है। अनेक विकसित देशों में रैंकिंग, रेटिंग, राष्ट्रीय आकलन और मान्यता देने की व्यवस्था का उच्च शिक्षा संस्थानों के गवर्नेंस, प्रबंधन, संस्थानों और सरकार के बीच संबंधों तथा संस्थानों और संबंधित पक्षों के संबंधों पर महत्वपूर्ण असर होता है।
2020 में 34 साल बाद आई नई शिक्षा नीति 21वीं सदी की पहली नीति है। यह शिक्षा की संस्कृति के लिहाज से काफी अलग है। इसमें जीडीपी का छह फीसदी शिक्षा पर खर्च करने की बात कही गई है, जो अभूतपूर्व है। केंद्र सरकार की तरफ से जारी इस नीतिगत दस्तावेज का लक्ष्य स्कूली और उच्च शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव लाना है, ताकि भारत को वैश्विक नॉलेज सुपरपावर बनाया जा सके।
उत्कृष्टता की राह
विश्व यूनिवर्सिटी रैंकिंग में बीते एक दशक में ज्यादातर भारतीय संस्थानों की जगह हर साल लगभग एक जैसी रही है। ऐसा चीन, दक्षिण कोरिया, जापान, ताइवान, हांगकांग और सिंगापुर के बेहतर प्रदर्शन के कारण हुआ है, जहां के संस्थान शिक्षा और शोध की बेहतर क्वालिटी के साथ अंतरराष्ट्रीयकरण पर भी फोकस कर रहे हैं। यह जाहिर तथ्य है कि उच्च शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण का विचार छात्रों के एक जगह से दूसरी जगह जाने, फैकल्टी, पाठ्यक्रम और विभिन्न देशों के संस्थानों पर आधारित है।
लेकिन भारत में यह एकतरफा रहा है। हर साल पांच लाख से अधिक भारतीय छात्र विदेश जाते हैं, जबकि बीते तीन वर्षों में हर साल औसतन 40 हजार विदेशी छात्रों ने ही भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों में दाखिला लिया है। उनमें भी ज्यादातर दक्षिण एशियाई देशों के छात्र हैं। इसी तरह, 0.3 फीसदी से भी कम फैकल्टी दूसरे देशों की है। इस ट्रेंड का मुख्य कारण भारत की तुलना में दूसरे देशों के उच्च शिक्षा संस्थानों में शिक्षा की गुणवत्ता और बेहतर शोध सुविधाएं हैं। नई शिक्षा नीति में इन चुनौतियों पर विचार करते हुए भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों को विश्वस्तरीय बनाने का मार्ग बताया गया है।
पिछले दशक में सरकारी और निजी एजेंसियों की रैंकिंग और रेटिंग सुधारने के गंभीर प्रयासों के चलते संस्थानों को विश्वस्तरीय दर्जा हासिल करने का प्रोत्साहन मिला है। अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय मान्यता (एनएएसी, एनबीए, ईएमएफडी, एएमबीए वगैरह), रैंकिंग (क्यूएस, टीएचई, एआरडब्लूयू, एनआइआरएफ वगैरह) और रेटिंग (क्यूएस स्टार्स, आइकेयर, केसर्फ, जीसर्फ वगैरह) के मानकों ने नए पाठ्यक्रम, पठन-पाठन के गुणवत्तापूर्ण तरीकों, अच्छी फैकल्टी, विविधता, शोध एवं इनोवेशन, अकादमिक विकास और गवर्नेंस के बेहतर तरीकों पर फोकस किया है। आकलन के इन तरीकों से संस्थानों को बेहतर फैकल्टी-छात्र अनुपात, क्षमता विस्तार, फैकल्टी के निरंतर प्रोफेशनल विकास और छात्र-फैकल्टी एक्सचेंज प्रोग्राम के जरिए अंतरराष्ट्रीय एक्सपोजर में मदद मिली है।
आउटलुक-आइकेयरः देश के बेस्ट कॉलेज
पढ़ाई के लिए कॉलेज या यूनिवर्सिटी का चयन जीवन का एक बड़ा निर्णय होता है। लेकिन अगर यह निर्णय आपको अकेले लेना हो, तो वह और मुश्किल हो जाता है। आउटलुक-आइकेयरः देश के सर्वश्रेष्ठ कॉलेज की रैंकिंग 2021 से रिसर्च और चयन का तनाव कम करने और छात्रों को पसंद का कॉलेज चुनने में मदद मिलेगी। हमारी रैंकिंग में हर कॉलेज में अकादमिक गुणवत्ता के विभिन्न आयाम को परखने के लिए कई तरीके अपनाए गए। इन आयाम को पांच हिस्से में विभाजित किया जा सकता है- अकादमिक और अनुसंधान उत्कृष्टता, उद्योग से जुड़ाव और प्लेसमेंट, इन्फ्रास्ट्रक्चर और सुविधाएं, गवर्नेंस और दाखिला तथा विविधता और आउटरीच शामिल हैं। इन पांच प्रमुख मानकों को उप-मानकों/पैमानों में बांटा गया है। इन सबको अलग-अलग वेटेज दिया गया और कुल वेटेज 1000 है। पैमानों का चयन बड़ी सावधानी से किया गया है। इसमें छात्रों, फैकल्टी और संसाधनों की गुणवत्ता जैसे पैमानों के साथ इनके नतीजों को भी शामिल किया गया है। हर पैमाने के लिए अलग अंक रखे गए और उन्हें मिलाकर अंतिम अंक निकाला गया।
देश में 900 से अधिक यूनिवर्सिटी, 45 हजार से अधिक कॉलेज और छह हजार से अधिक बिजनेस स्कूल हैं। ऐसे में किसी खास कोर्स के लिए एक संस्थान का चयन करना वाकई मुश्किल काम है। लेकिन ‘आउटलुक-आइकेयरः भारत के सर्वश्रेष्ठ कॉलेज की रैंकिंग 2021’ से इसमें मदद मिल सकती है, जिसे भारत के शिक्षण संस्थानों की लिस्टिंग में प्रख्याति हासिल है। हमारे इस नए संस्करण में डिग्री प्रदान करने वाले 1,000 से अधिक संस्थानों का अकादमिक गुणवत्ता के 50 से अधिक पैमाने पर आकलन किया गया है। यह रैंकिंग अपनी जरूरत और पसंद के संस्थानों को छांटने के साथ नए विकल्प तलाशने में भी मदद करती है।
रैंकिंग की पद्धति
हालांकि पद्धति वर्षों के शोध का परिणाम है, फिर भी यूजर के फीडबैक, जाने-माने अकादमिक और उच्च शिक्षा विशेषज्ञों के साथ चर्चा, समीक्षा, हमारे अपने आंकड़ों के ट्रेंड, नए आंकड़े, उच्च शिक्षा सम्मेलनों में डीन तथा शोधकर्ताओं और सरकार के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा के आधार पर हम निरंतर इसे बेहतर बनाते रहते हैं। हमारी पारदर्शी पद्धति से कॉलेजों और शिक्षाविदों को तो मदद मिलती ही है, हमें लगता है कि अगर छात्रों को यह जानकारी हो कि रैंकिंग में किन बातों पर गौर किया गया है, तो उनके लिए यह ज्यादा उपयोगी होगी।
हमारे सर्वे के जांचे-परखे अकादमिक आंकड़ों और भरोसेमंद थर्ड पार्टी स्रोतों के आधार पर ही रैंकिंग के हर पैमाने की गणना की गई। हमने न तो गैर-अकादमिक तत्वों पर गौर किया, न ही गणना के लिए अवैज्ञानिक सर्वे किए। बिजनेस हितों के लिए कॉलेज रैंकिंग का मैनिपुलेशन भी नहीं किया गया। इस रैंकिंग में अकादमिक वर्ष 2015-2020 के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है। इसलिए स्कूलों ने जो आंकड़े हमें उपलब्ध कराए, उन पर कोविड-19 महामारी का असर नहीं है। फिर भी उच्च शिक्षा पर महामारी के असर को देखने के लिए हमने संस्थानों को अलग-अलग फॉर्मेट में आंकड़े मुहैया कराने की अनुमति दी। ज्यादा भागीदारी और आंकड़े मुहैया कराने में आसानी के लिए हमने जो फॉर्मेट अपनाया था, यह उससे अलग था।
हमने कॉलेजों को दो प्रमुख श्रेणी में बांटा है- सरकारी और निजी। हर श्रेणी में अकादमिक गुणवत्ता के पांचों मानकों के वेटेड आंकड़ों से हर संस्थान के स्कोर का पता चलता है, जिसके आधार पर उनकी रैंकिंग तय की गई है।
आंकड़ों के स्रोत
ज्यादातर कॉलेजों ने सीधे हमें आंकड़े उपलब्ध कराए। कुछ मामलों में हमें एआइएसएचई, एनआइआरएफ जैसे स्रोतों के आंकड़ों पर भरोसा करना पड़ा। गुणवत्ता को बरकरार रखने के लिए संस्थानों की तरफ से उपलब्ध कराए गए आंकड़ों का पिछले साल के आंकड़ों का मिलान किया गया, ताकि उनमें जानबूझ कर किए गए किसी तरह के हेर-फेर को पकड़ा जा सके। जहां भी आंकड़ों पर संदेह हुआ, संस्थानों से उनकी समीक्षा और संशोधित करने को कहा गया। आंकड़ों की सत्यता बनाए रखने के लिए सभी संस्थानों के एक शीर्ष अकादमिक अधिकारी से उन पर हस्ताक्षर भी करवाया गया।