आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर देश जब अमृत महोत्सव मना रहा है, स्वतंत्रता सेनानियों की स्मृति बरबस हमारे दिलोदिमाग पर छाने लगती है। आखिर हमें आजाद देश मुहैया कराने के लिए उनका योगदान क्या रहा है? आजादी की लड़ाई के दौरान उन्होंने देश के लिए जो सपने देखे, आज उन पर हम कितना खरा उतर पाए? उस दौर के महानायकों और महापुरुषों के बीच संबंध कैसे थे? आज की युवा पीढ़ी उनसे कैसी और कितनी प्रेरणा पाती है? उनकी स्मृतियों को प्रेरक बनाने में हमारी फिल्मों का क्या योगदान रहा? किस फिल्म ने ज्यादा प्रभावित किया? ये सवाल खासकर 21वीं सदी की नई पीढ़ी के लिए बेहद जरूरी हो गए हैं। यही ध्यान में रखकर आउटलुक ने तय किया कि इन सवालों पर देश की युवा पीढ़ी की राय जानी जाए। पत्रिका ने देश के युवाओं का मन टटोलने के लिए उपभोक्ता और मार्केट रिसर्च कंपनी टोलुना के साथ करार किया।
इस जनमत सर्वेक्षण से चौंकाने वाले नतीजे सामने आए। 18-35 वर्ष आयुवर्ग में 64 प्रतिशत युवाओं को मानना था कि आजादी के आंदोलन की प्रेरणा के मामले में सिनेमा ने बड़ी सकारात्मक भूमिका निभाई। लगभग इतने ही लोगों का मानना था कि फिल्मों में आंदोलन को अच्छे और वास्तविक ढंग से पेश किया गया। इससे भी चौंकाने वाला यह था कि 30 प्रतिशत युवाओं के मुताबिक, हिंदी फिल्मों में लिजेंड ऑफ भगत सिंह (2002) स्वतंत्रता आंदोलन पर श्रेष्ठ फिल्म थी, जबकि 22 प्रतिशत इस मामले में गांधी (1982) को बेहतरीन फिल्म मानते हैं। आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर लोग जिनकी बॉयोपिक को देखना चाहते हैं, उनमें 29 प्रतिशत महात्मा गांधी, 20 प्रतिशत नेताजी सुभाषचंद्र बोस, और 20 प्रतिशत बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर को देखना पसंद करेंगे। महापुरुषों के बीच रिश्तों पर आधारित फिल्मों में 36 प्रतिशत गांधी-नेहरू संबंधों के बारे में देखना चाहते हैं तो 19 प्रतिशत गांधी-आंबेडकर के रिश्तों की टोह लेना चाहते हैं। जाहिर है, सर्वेक्षण के नतीजे आज के दौरे के अफसाने और युवा पीढ़ी की जिज्ञासा का अंदाजा देते हैं। बेशक, इससे आज के देश और समाज को समझने की नई दिशा मिलती है।