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5 जनवरी 2026 · JAN 05 , 2026

झारखंडः ‘सर’ का भ्रम और भय

एसआइआर जांच के बहाने, राज्य में 12 लाख मतदाताओं के नाम हटाए जाने के शोर-शराबे से दहशत और असमंजस का माहौल
पहचान पर प्रश्नः झारखंड में एसआइआर का विरोध करते इंडिया गठबंधन के सदस्य

झारखंड में मतदाता सूची के नामों को पुरानी पीढ़ी के मौजूद नामों के आधार पर जांचा-परखा जा रहा है। पैतृक पहचान बताने पर जोर के कारण मतदाताओं में असंतोष पैदा हो गया है। इसकी बड़ी वजह यह है कि 2024 की मतदाता सूची में शामिल कई मतदाताओं के नाम 2003 की सूची में नहीं मिल रहे हैं। नाम सत्यापन के लिए 2003 की सूची को महत्वपूर्ण मानदंड मानने के कारण कई लोगों पर सूची से बाहर होने का खतरा मंडरा रहा है। सऊद आलम खान भी ऐसे ही मतदाता हैं। उनका और न ही उनके परिवार के किसी सदस्य का नाम 2003 के एसआइआर (विशेष गहन पुनरीक्षण) रोल शामिल नहीं है। रांची के डोरंडा निवासी 35 वर्षीय आलम खान को डर है कि उनका और उनके परिवार का नाम मतदाता सूची से कट न जाए। वे कहते हैं, ‘‘हमने 2024 में वोट दिया था, अब बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) हमसे 2003 की सूची में नाम ढूंढने को कह रहे हैं। मैंने पूरी सूची देख ली, लेकिन हमें नाम कहीं नहीं मिले। बीएलओ कहते हैं कि हमें अपना नाम ‘ढूंढना ही होगा।’ मैं ऐसी चीज कहां से खोज लूं, जो है ही नहीं?’’ सऊद का दावा है कि चार पीढ़ियों से उनका परिवार झारखंड में ‘खतियानी’ परिवार है। फिर भी, 2003 की मतदाता सूची में उनका, उनके पिता मोहम्मद शमीम (65), मां शहनाज बेगम (55), चाचा मोहम्मद नेसार (62) और दूसरे 22 रिश्तेदारों का नाम भी सूची में नहीं हैं।

फिलहाल उनकी चिंता बंगाल में रह रही उनकी बहन है। उनके बहनोई उन्हें रोज फोन पर 2003 की एसआईआर सूची की प्रति मांग रहे हैं। इसी सूची में शामिल सऊद के माता-पिता के नाम, सीरियल नंबर और बूथ नंबर से ही सऊद की बहन का नाम बंगाल की मतदाता सूची में जुड़ पाएगा। सऊद का कहना है कि डोरंडा के कई घरों में यही समस्या है। यही वजह है कि वे और उनके दोस्त झारखंड चुनाव आयोग से संपर्क करने की योजना बना रहे हैं।

उनकी चिंता 3 दिसंबर की उस खबर के बाद और बढ़ गई है, जिसमें चुनाव आयोग के हवाले से कहा गया था कि पीढ़ियों की पहचान के लिए 2024 की मतदाता सूची का मिलान 2003 की सूची से किया जा रहा है। इस प्रक्रिया के दौरान, 12 लाख नामों की पहचान मृत, स्थानांतरित, अनुपस्थित या डुप्लिकेट प्रविष्टियों के रूप में की गई है।

झारखंड राज्य चुनाव आयोग का कहना है कि माता-पिता की पहचान के लिए 2024 की मतदाता सूची में दर्ज मतदाताओं का मिलान 2003 की मतदाता सूची से किया जा रहा है। मिलान में, राज्य के 2.65 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 12 लाख नाम ऐसे व्यक्तियों के हैं, जो जीवित नहीं हैं, उस जगह को छोड़कर राज्य में ही कहीं और चले गए हैं या राज्य से बाहर चले गए हैं या जिनके नाम एक से ज्यादा बूथों पर दर्ज हैं। आयोग ने स्पष्ट किया है कि केवल इन्हीं नामों को मतदाता सूची से हटाया जाएगा। इस पूरी कवायद से एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है, जिन लोगों के नाम 2024 की सूची में हैं, लेकिन 2003 की सूची में नहीं हैं, तब क्या उन्हें भी सूची से हटाए जाने का खतरा है?

खुद गफलत में बीएलओ

रांची के ही 43 वर्षीय मोहम्मद जावेद का पूरा परिवार 2003 की सूची से गायब है। फिर भी उन्हें कोई चिंता नहीं है। वे कहते हैं, ‘‘जब एसआईआर शुरू होगी, तो बीएलओ हमें बताएंगे कि क्या करना है। जावेद के माता-पिता, अय्यूब अंसारी (65) और जुबैदा खातून (58) का नाम भी 2003 की सूची में नहीं है। वे एसआइआर शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं।

ज्यादातर मतदाताओं को बस इतना पता है कि आधिकारिक तौर पर झारखंड में एसआइआर शुरू नहीं हुआ है। बीएलओ ने उन्हें अभी उन्हें सिर्फ इतना ही बताया है। अभी बीएलओ ने उन्हें 2003 की सूची में शामिल न होने वालों के लिए क्या प्रक्रिया होगी इस बारे में भी कुछ नहीं बताया है। मीडिया रिपोर्ट्स में भी कहा गया है कि झारखंड में अभी एसआइआर शुरू नहीं हुआ है।

एक बीएलओ ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘‘हमें यह नहीं बताया गया है कि ऐसे मामलों में क्या करना है, जहां नाम 2003 में नहीं है या केवल 2024 में ही मौजूद है। कुछ लोगों के नाम 2024 में हैं, लेकिन 2003 में नहीं हैं, कुछ के नाम 2003 में हैं, लेकिन 2024 में नहीं हैं।’’ बीएलओ ने बताया कि उनके अपने घर में तीन लोगों के नाम 2003 की सूची में नहीं हैं, जिसमें बहन भी शामिल है, जो खुद एक बीएलओ है।

पीढ़ी पड़ताल एसआइआर का हिस्सा है?

इस बारे में आउटलुक ने झारखंड के मुख्य निर्वाचन अधिकारी रवि कुमार से बात की। उन्होंने स्पष्ट किया कि एसआइआर में पीढ़ियों की पड़ताल की जा रही है। देखा जा रहा है कि पिता-दादा कहां के थे। इसमें भ्रम वाली कोई बात नहीं है। उन्होंने बताया कि एसआइआर के तीन चरण हैं। पहला, पूर्व-संशोधन गतिविधियां (जो फिलहाल झारखंड में चल रही है)। दूसरा, गणना चरण जिसमें बीएलओ घर-घर जाकर आंकड़े इकट्ठा करते हैं। तीसरा, दावे और आपत्ति, जो बिहार में पहले ही पूरा हो चुका है।

मैपिंग यानी पड़ताल के बारे में उन्होंने बताया, ‘‘अगर आपकी मैपिंग सफल होती है, तो इसका मतलब है कि आपका नाम 2003 की सूची में मौजूद था। यह स्व-सत्यापन के बराबर है। बच्चों के नाम उनके माता-पिता के माध्यम से मैप किए जाते हैं।’’

लेकिन उन लोगों का क्या जो 2024 में मतदाता हैं लेकिन 2003 में उन लोगों ने मतदान नहीं किया था? इस सवाल के जवाब में रवि कुमार कहते हैं, ‘‘जब दावे और आपत्तियों का चरण आएगा, तब ऐसे मतदाताओं से सूची में शामिल 12 में से एक किसी दस्तावेजों को जमा करने के लिए कहा जाएगा। ईआरओ मामले की सुनवाई करेगा और उसके अनुसार निर्णय लेगा।’’ उन्होंने आश्वासन दिया कि 18 वर्ष या उससे अधिक आयु का कोई भी भारतीय नागरिक अपने मताधिकार से वंचित नहीं रहेगा।

12 दस्तावेजों को लेकर विवाद

बिहार में एसआईआर प्रक्रिया के दौरान उन 12 दस्तावेजों को लेकर भारी विरोध प्रदर्शन हुए, जो सूची में शामिल थे। बीएलओ का तर्क था कि इनमें से कुछ ही सामान्य दस्तावेज हैं। राशन कार्ड इनमें शामिल नहीं था।

चुनाव आयोग ने जो सूची दी है उनमें शामिल हैं, 1987 से पहले जारी किए गए सरकारी पहचान पत्र, जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, शैक्षणिक प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र (अनुसूचित/अनुसूचित/अन्य पिछड़ा वर्ग), निवास प्रमाण पत्र, वन अधिकार प्रमाण पत्र, भूमि/मकान के रिकॉर्ड, परिवार रजिस्टर और एनआरसी। इनमें से एनआरसी दस्तावेज बिहार में लागू नहीं है।

बिहार से सबक

शुरुआत में बिहार में, सूची में से कम से कम एक दस्तावेज अनिवार्य था। आधार कार्ड और राशन कार्ड जैसे सामान्य पहचान पत्रों को सूची से बाहर रखा गया था। लेकिन फिर लोगों की भारी नाराजगी के चलते बाद में, बीएलओ ने दस्तावेज़ों के बिना भी फॉर्म स्वीकार करना शुरू कर दिया। दबाव के चलते कई बीएलओ ने घरों का दौरा किए बिना ही फॉर्म भर दिए। कई नाम बिना सत्यापन के ही हटा दिए गए। कई बीएलओ ने स्वीकार किया कि उन्हें जल्द से जल्द ज्यादा संख्या पूरी करने का आदेश दिया गया था।

ठीक यही स्थिति झारखंड में भी देखने को मिल रही है। साहिबगंज के एक बीएलओ कहते हैं, ‘‘2003 की सूची में कई नाम गलत हैं या गायब हैं। वरिष्ठ अधिकारी हमें ऐसे मामलों को ज्यों का त्यों ही रहने देने को कहते हैं। यानी वे कहते हैं कि इन मतदाताओं की जांच-पड़ताल ही न करें।

घुसपैठियों का वहम

मतदाता सूचियों को लेकर भाजपा ने संथाल परगना, विशेषकर साहिबगंज और पाकुर में कथित बांग्लादेशी घुसपैठ पर बार-बार चिंता जताई है। साहिबगंज की सीमा पश्चिम बंगाल से लगती है। इसी कारण यहां मतदाता जांच को लेकर चिंताएं और भी बढ़ जाती हैं।

स्थानीय पंचायत प्रमुख इश्तियाक मतदाताओं को वर्गीकृत करने के बारे में बताते हैं, कि ‘‘श्रेणी ए यानी नाम 2003 की मतदाता सूची से मेल खाते हों। श्रेणी सी और डी यानी युवा मतदाता (18-35) जो 2003 की मतदाता सूची में शामिल नहीं हैं, लेकिन जिनके माता-पिता उस सूची में शामिल हैं। श्रेणी बी जिसमें, 40 वर्ष से अधिक आयु के लोग, जो 2003 की मतदाता सूची में शामिल होने चाहिए थे लेकिन नहीं हैं और इसी श्रेणी या कहें समूह में सबसे ज्यादा दिक्कतें हैं।’’ वे आगे जोड़ते हैं कि कई भूमिहीन लोग हैं, जिनके पास आयोग के बताए दस्तावेज हैं ही नहीं।

बिहार में, एसआइआर का कड़ा विरोध करने वाले भाकपा (माले) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य, कहते हैं, ‘‘सुप्रीम कोर्ट में बिहार एसआइआर पर बहस के बावजूद, राज्य बिहार के आधे-अधूरे त्रुटिपूर्ण मॉडल को आंख मूंदकर दोहरा रहे हैं। बीएलओ काम नहीं कर पा रहे हैं, कई बीएलओ आत्महत्या कर रहे हैं। ऐसा लगता है कुछ खास समूहों के मतदाताओं को हटाने के लिए यह प्रक्रिया बनाई गई है।’’

झारखंड में भी एसआइआर जांच हूबहू बिहार के अनुभव की तर्ज पर हो रही है। वही भ्रम, भय और प्रशासनिक अराजकता की स्थिति यहां भी है। यहां भी हजारों वैध मतदाता 2003 का अपना रिकॉर्ड नहीं खोज पा रहे हैं। यहां भी बीएलओ को पता नहीं है कि आगे क्या होगा।

रवि कुमार

मैपिंग सफल होती है, तो इसका मतलब है कि आपका नाम 2003 की सूची में मौजूद था। यह स्व-सत्यापन के बराबर है। बच्चों के नाम उनके माता-पिता के माध्यम से मैप किए जाते हैं।

रवि कुमार, मुख्य निर्वाचन अधिकारी, झारखंड

 

 

 

 

 

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