मानो कोई छूत की बीमारी हो, या कहें कोई महामारी है, जिसका प्रकोप दिनोदिन फैलता ही जा रहा है। दशकों से जारी अहम प्रतियोगी प्रवेश परीक्षाओं में पर्चा लीक, नकल, ‘मुन्ना भाइयों’ के जोर-जुगाड़, धांधली का सिलसिला जैसे अब बुलंदी पर पहुंच चुका है। नौजवानों की निराशा-हताशा में खुदकुशी और गुस्सा भी रह-रह कर फूटता रहा है और हाल के कई जनादेशों में उसका असर भी दिखा है। फिर भी जैसे आश्वासनों के अलावा कुछ हासिल नहीं होता। हाल के बवंडर के उठने का वक्त तो मानो मौजूदा जनादेश के साथ जुड़ गया या जोड़ दिया गया। नीट-यूजी के नतीजे तय समय से दस दिन पहले उसी चार जून को जारी किए गए, जब जनादेश में राजनैतिक पार्टियों की संख्या का ग्राफ आकाश-पाताल का खेल खेल रहा था (परीक्षा नतीजों की तय अवधि 14 जून को थी)। शायद इसीलिए सड़क से संसद तक हर बार से कुछ ज्यादा हंगामा बरपा है। 18वीं संसद के पहले ही विशेष सत्र में विपक्ष हमलावर था और अपनी मजबूत ताकत के बल पर राष्ट्रपति अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव से पहले ही परीक्षा घोटालों पर चर्चा के लिए काम रोको प्रस्ताव ले आया। ऐसा पहली बार था। मौका नहीं मिला तो उसने सरकार को घेरने के लिए धन्यवाद प्रस्ताव को अपना औजार बनाया। सरकार ने हाल में लाए सख्त कानून की दुहाई दी, जिसमें पर्चा लीक और किसी भी तरह की धांधली के लिए उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है, मगर विपक्ष जवाबदेही और व्यवस्था परिवर्तन की मांग कर रहा था।
विरोध का तरीकाः एनटीए के मुख्यालय पर प्रदर्शनकारियों ने ताला जड़ा
जवाबदेही जरूरी लग सकती है, क्योंकि पिछले सात साल में ही करीब 70 बार परीक्षाओं में धांधली सुर्खियां बन चुकी है। इससे करीब दो करोड़ नौजवानों का भविष्य प्रभावित हुआ है। वैसे, यह सिलसिला तो उसके पहले भी चल रहा था। याद कीजिए, सिर चकरा देने वाला मध्य प्रदेश का व्यापम घोटाला और उसके पहले बिहार में चर्चित रंजित डॉन का मामला, जिसके ऊपर चर्चित फिल्म मुन्नाभाई एमबीबीएस बनी थी। आउटलुक लगातार ऐसी घटनाओं को विस्तार से कवर करता रहा है ताकि लोगों और सत्ता-प्रतिष्ठान के कान पर जूं रेंगे। हाल के दौर में 2022 और 2023 में भी आइआइटी और मेडिकल में भर्ती में धांधलियों पर हमारी आवरण कथा विस्तार से इस रोग के प्रति आगाह कर रही थी, मगर हर वक्त कुछ जांच-पड़ताल के आदेश और कभी-कभार तबादलों वगैरह से बात आगे नहीं बढ़ती। बेशक, इसका एहसास व्यवस्था में आमूल बदलाव जैसा होना लाजिमी है।
जवाबदेही की मांग इस बार कई संदेहों से भी जोर पकड़ी। दरअसल चार जून को जारी हुए नतीजों में राष्ट्रीय पात्रता और प्रवेश परीक्षा-स्नातक (नीट-यूजी) में टॉपरों की संख्या अचानक छलांग लगाकर 69 पर पहुंच गई, जो अमूमन दो-तीन ही हुआ करती थी। फिर प्रश्नपत्र लीक होने के आरोप लगने लगे। सिर्फ नीट सवालों में नहीं घिरा। उसके बाद विश्वविद्यालय अनुदान आयोग-राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (यूजीसी-नेट) पर भी काले साये मंडराये, जो कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर की असिस्टेंट प्रोफेसरशिप की पात्रता तय करती है और पास करने वालों को जूनियर रिसर्च फेलोशिप (जेआरएफ) प्रदान करती है। इसमें करीब 10 लाख आवेदक बैठने थे और 18 जून को परीक्षा होनी थी, लेकिन चौबीस घंटे पहले रद्द कर दी गई क्योंकि शक था कि उसका प्रश्नपत्र शायद डार्क वेब पर लीक हो गया और टेलीग्राम पर बेचा गया था। यही रोग एक और परीक्षा वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (सीएसआइआर-नेट) को भी लगा। यह विज्ञान और टेक्नोलॉजी में लेक्चररशिप और जेआरएफ के लिए होती है। यह परीक्षा 25 और 27 जून के बीच होनी थी और इसमें कोई 1,75,355 उम्मीदवार बैठने वाले थे। अब वे परीक्षा की अगली तारीखों का इंतजार कर रहे हैं।
बीच बहस में एनटीए
इस सब के केंद्र में राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) है। इस स्वायत्तशासी निकाय की स्थापना 2017 में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने भारी मांग वाली साझा प्रवेश परीक्षाओं के आयोजन के लिए की थी ताकि तमाम परीक्षाओं का एक मानक तैयार किया जाए और एक केंद्रीय निजाम के तहत लाया जाए। इसका गठन अमेरिका की एजुकेशनल टेस्टिंग सर्विस (ईटीएस) की तर्ज पर किया गया था, जिसके तहत स्कोलास्टिक असेसमेंट टेस्ट (एसएटी), अमेरिकन कॉलेज टेस्ट (एसीटी) और ग्रेजुएट रिकॉर्ड एग्जामिनेशन (जीआरई) जैसी परीक्षाएं आयोजित होती हैं। ईटीएस में 200 से अधिक स्थायी कर्मचारी हैं, लेकिन एनटीए का दिल्ली कार्यालय करीब दो दर्जन स्थायी कर्मचारियों पर ही निर्भर है। इसमें ज्यादातर अन्य सरकारी विभागों से प्रतिनियुक्ति पर आए अधिकारियों और ठेके पर अस्थायी कर्मचारी हैं। कर्मचारियों की कमी के कारण पर्चा बनाने, वितरण और डेटा सुरक्षा जैसे अहम काम निजी टेक्नोलॉजी एजेंसियों और अन्य बाहरी विशेषज्ञों को सौंपे जाते हैं। 2023 में एनटीए ने मैनपावर आउटसोर्स करने के लिए निविदा मंगाई थी।
एनटीए के तहत एमबीबीएस, बीडीएस और आयुष (बीएएमएस, बीयूएमएस, बीएचएमएस) पाठ्यक्रमों के लिए अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा नीट-यूजी; संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई)-मुख्य; साझा विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा (सीयूईटी); सामान्य प्रबंधन प्रवेश परीक्षा (सीएमएटी) वगैरह हैं। एनटीए साल में 15 प्रवेश और फेलोशिप परीक्षाएं आयोजित करती है। यह चीन के गाओकाओ के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा परीक्षा आयोजक निकाय है। 2023 में एनटीए के तहत आयोजित तमाम परीक्षाओं के लिए 1.23 करोड़ से ज्यादा आवेदक थे। जाहिर है, उसके अधिकार और कामकाज का पैमाना विशालकाय है। हाल के विवादों से एजेंसी की काबिलियत को लेकर गहरे शक पैदा हो गए हैं। इसका व्यापक और दूरगामी असर भी हुआ हो सकता है क्योंकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश में पोस्टग्रेजुएट चिकित्सा शिक्षा और परीक्षा को मानकीकृत करने के लिए 1975 में गठित राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड के तहत आयोजित नीट-यूजी की प्रवेश परीक्षा भी स्थगित कर दी।
दरअसल एनटीए शुरू से ही सवालों में घिरने लगी। बिल्कुल पहले ही साल प्रश्नपत्र लीक होने के आरोपों को लेकर कर्नाटक में नीट-यूजी का कार्यक्रम बदलना पड़ा था। तकरीबन हर साल मेडिकल और इंजीनियरिंग दोनों की प्रवेश परीक्षाओं में कोई न कोई गड़बड़ी होती रही है। केंद्र में भाजपा की अगुआई वाली नई सरकार के लिए तो यह सिर मुंड़ाते ही ओले पड़ने जैसा था। कथित नीट धांधली और एनटीए के खिलाफ सड़कों पर प्रदर्शन और सोशल मीडिया गुस्से के इजहार से भर गईं। नाराज नौजवानों ने दिल्ली में एनटीए के दफ्तर पर ताला जड़ दिया और शिक्षा मंत्रालय पर भी प्रदर्शनों का सिलसिला भी चला। जंतर-मंतर तो गुलजार है ही। नीट रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं पहुंच गई हैं। एनटीए की बदइंतजामी के सवाल उठाए गए।
सरकार हालांकि शुरुआत में नीट में प्रश्नपत्र लीक होने के आरोपों को स्वीकार करने को तैयार नहीं थी। शिक्षा मंत्री ने पहले पर्चा लीक होने और किसी तरह की अनियमितता से इनकार किया, लेकिन जब बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई की रिपोर्ट में प्रश्नपत्र लीक होने की बात सामने आई तो केंद्र ने सीबीआइ जांच का आदेश दे दिया। बाद में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने गड़बड़ी को स्वीकार तो किया पर नीट परीक्षा रद्द करने से इनकार कर दिया। उनकी दलील थी कि भ्रष्टाचार की कुछ घटनाओं की वजह से सही तरीके से परीक्षा पास करने वाले लाखों छात्रों के करियर को खतरे में नहीं डाला जा सकता। हालांकि उन्होंने एनटीए की व्यवस्थागत नाकामी को स्वीकार किया और एजेंसी के कामकाज की समीक्षा और सुधार की सिफारिशों के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के पूर्व अध्यक्ष के. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय समिति की घोषणा की, जिससे दो महीने में रिपोर्ट पेश करने को कहा गया है। फिलहाल सरकार ने आइएएस सुबोध कुमार सिंह को एनटीए के डायरेक्टर जनरल के पद से हटा दिया है और उनकी जगह दूसरे आइएएस अफसर प्रदीप सिंह खरोला को लाया गया है। नीट और यूजीसी-नेट पर तमाम आरोपों की जांच सीबीआइ को सौंप दी गई है। प्रधान ने और राष्ट्रपति अभिभाषण के दौरान प्रधानमंत्री ने भी संसद में कहा, ‘‘किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा।’’ केंद्र सरकार ने हाल में सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम, 2024 पारित किया है जिसमें प्रश्नपत्र या उत्तर लीक करने सहित 15 कार्यों को गैर-कानूनी बताया गया है। अपराधियों को 10 साल तक की जेल और एक करोड़ रुपये का जुर्माना हो सकता है। नए कानून के नियम 21 जून को अधिसूचित किए गए।
विपक्ष के सवाल
राज्यसभा में विपक्ष के नेता ने पर्चा लीक और अन्य धांधली की विस्तार से चर्चा करने के दौरान इस ओर भी ध्यान खींचा कि धर्मेंद्र प्रधान ने अधिसूचना का ऐलान 20 जून को ही कर दिया था। शायद उनका इशारा यह था कि सरकार की मंशा लीपापोती भर की है। यह आरोप कुछ साफ शब्दों में लोकसभा में समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने लगाया। उन्होंने कहा, “ऐसा लगता है कि सरकार खुद ही पर्चा लीक कराती है, ताकि नौकरियां न देनी पड़ें और लैटरल इंट्री के जरिये अपने लोगों की भर्ती की जा सके। यह चुनाव के ठीक पहले उत्तर प्रदेश में पुलिस भर्ती की परीक्षा में देखा गया, जिसमें लाखों नौजवान हाथ मलते रह गए। यह आरक्षित पदों पर योग्य उम्मीदवार न मिलने के बहाने भी किया गया।” लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इसकी व्याख्या अमीर-गरीब के संदर्भ में की। उन्होंने कहा, “यह खास व्यवस्था इसलिए बनाई गई है ताकि अमीरों का दबदबा कायम रहे और गरीबों के बच्चे ऊपर न जा सकें। यह सरकार सिर्फ अमीरों के लिए सोचती है और उसी के अनुकूल व्यवस्था बनाती है।”
नीट की गड़बड़ियां
दरअसल इन आरोपों को बल नीट में कथित अनियमितताओं से मिला। नीट-2024 में सबसे पहले तो रजिस्ट्रेशन विंडो को बढ़ाया गया। एक महीने तक चली पंजीकरण प्रक्रिया बंद होने के बाद उसे दो बार बढ़ाया गया। इससे कुछ छात्रों को अनुचित लाभ मिलने की आशंका जताई गई है। दरअसल, ‘टॉपरों’ ने इसी बढ़ी हुई अवधि के दौरान अपना पंजीकरण कराया था। फिर अचानक 14 जून के बजाय 4 जून को ही नतीजे घोषित कर दिए गए, जिस दिन आम चुनाव के नतीजे भी आए थे। इस पर कई हलकों में संदेह जताया गया कि नतीजों के ऐलान की तारीख प्रवेश परीक्षा की अनियमितताओं से ध्यान भटकाने के लिए चुनी गई। टॉपरों की संख्या भी काफी ज्यादा हो गई, जिनमें छह की सीट संख्या एक ही क्रम में थी और उन्होंने हरियाणा के बहादुरगढ़ स्थित एक विशेष परीक्षा केंद्र पर परीक्षा दी थी। फिर, एक स्थानीय भाजपा युवा इकाई प्रमुख की पत्नी इस केंद्र की संचालक निकली। वहां परीक्षा के दिन काफी गुलगपाड़ा हुआ और गलत प्रश्नपत्र बंटने की वजह से परीक्षा शुरू होने में काफी देरी हुई। यह भी उजागर हुआ कि परीक्षा में टॉप करने वाले कुछ छात्रों ने बोर्ड परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था। इससे नीट में उनके अच्छे नंबर आने पर शक पैदा हुआ। यही नहीं, एनटीए ने कुछ छात्रों को मनमाने ढंग से ग्रेस मार्क दिए तो सवाल और गंभीर हो गए। कुल 1,563 छात्रों को इस आधार पर अतिरिक्त नंबर दिए गए कि विभिन्न कारणों से परीक्षा के दौरान उनका समय बर्बाद हुआ था या फिर पाठ्यपुस्तक के पुराने संस्करण में छपाई की गलती की वजह से उन्होंने गलत उत्तर लिखे थे। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई तो एनटीए ने ग्रेस मार्क रद्द कर दिए और 1,563 छात्रों के लिए दोबारा परीक्षा आयोजित की, लेकिन दोबारा परीक्षा के लिए इनमें से सिर्फ 52 फीसद छात्र ही पहुंचे। अब उसके नतीजे आए तो उनकी रैंक कुछ घट गई है।
शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की दलील थी कि सही तरीके से पास करने वाले लाखों छात्रों को खतरे में नहीं डाला जा सकता
कोचिंग कनेक्शन
कई राज्यों गुजरात, राजस्थान, बिहार से धांधली की खबरें आईं। गुजरात, बिहार और महाराष्ट्र में पर्चा लीक या अन्य धांधलियों के आरोप में करीब दो दर्जन लोगों को पकड़ा गया है। इस पूरे प्रकरण ने परीक्षाओं में धांधली कराने में देशभर के 58,000 करोड़ रुपये के कोचिंग उद्योग की संदिग्ध भूमिका पर भी संदेह खड़ा कर दिया है। कुछ आंकड़ाां के मुताबिक, 2018 में एनटीए के कामकाज संभालने के बाद तकरीबन 6,000 कोचिंग संस्थान उग आए हैं। दरअसल हरियाणा, बिहार, महाराष्ट्र, झारखंड और कर्नाटक के कई छात्र नीट परीक्षा देने के लिए दूर-दराज गोधरा के एक अनजाने से केंद्र में पहुंचे थे, जो मीलों दूर है। इस मामले में संदेह के घेरे में वडोदरा में परशुराम रॉय का कोचिंग संस्थान रॉय ओवरसीज, परीक्षा का केंद्र गोधरा स्थित जय जलाराम स्कूल के प्रिंसिपल पुरुषोत्तम शर्मा, और स्कूल में परीक्षा केंद्र के लिए तय प्रभारी शिक्षक तुषार भट्ट हैं। धांधली का तरीका यह था कि संबंधित छात्र ओएमआर शीट में वही जवाब लिखें जो उन्हें आते थे। बाकी सवालों के जवाब शिक्षक खुद भर लेते हैं। गुजरात पुलिस ने पाया कि देशभर के कम से कम 26 छात्रों ने नीट पास करने के लिए 10 लाख रुपये से लेकर 66 लाख रुपये तक दिए थे।
कमाई का भविष्य
नीट और जेईई-मेन की मेडिकल और इंजीनियरिंग डिग्री को देश में सुरक्षित आर्थिक भविष्य की चाबी माना जाता है। इंजीनियरिंग की डिग्री के मुकाबले एमबीबीएस सीट अधिक लुभावनी है क्योंकि नौकरी न मिले तब भी डॉक्टर अपनी प्रैक्टिस से कमाई का साधन पा लेते हैं, हालांकि देश में मेडिकल सीटों की संख्या सीमित हैं। इस साल ही 1,00,000 के करीब मेडिकल सीटों- जिनमें सिर्फ आधी सरकारी मेडिकल कॉलेजों में हैं- के लिए 23 लाख छात्रों ने परीक्षा दी। इसके उलट, देश में इंजीनियरिंग सीटों की संख्या दस लाख से ज्यादा है जो मेडिकल सीटों की तुलना में करीब 10 गुना अधिक है। नीट में टॉप रैंक के आधार पर ही छात्र सरकारी मेडिकल संस्थानों में दाखिला पाते हैं सकते हैं जहां निजी कॉलेजों से बेहद कम फीस होती है। सरकारी संस्थानों में सालाना फीस 1,500 से अधिकतम 25-30,000 रुपये होती है जबकि निजी कॉलेज में यह दो से दस लाख रुपये तक होती है।
कुछ लोगों का कहना है कि नीट में धांधली की आशंका शायद इसलिए भी ज्यादा रहती है क्योंकि यह परीक्षा कागज-कलम से होती है जबकि जेईई-मेन कंप्यूटर-आधारित परीक्षा है, हालांकि उसमें भी कई बार तकनीकी गड़बड़ियों और नकल की समस्या उठती है। एनटीए ने 2018 में ही नीट को कंप्यूटर मोड से करवाने का प्रस्ताव दिया था लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय ने आपत्ति जताई कि यह व्यावहारिक नहीं होगा। मंत्रालय की चिंता यह थी कि इससे ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों के लिए परीक्षा देना मुश्किल हो जाएगा जिनके पास कंप्यूटर और इंटरनेट तक पर्याप्त पहुंच नहीं है। जेईई में 14 लाख छात्र बैठते हैं और इसका आयोजन साल में दो बार होता है। एक सत्र में पांच-छह दिन तक परीक्षा चलती है।
‘नीट’ की 5 मई को हुई परीक्षा से कुछेक दिन पहले एक वीडियो में एक नकाबपोश व्यक्ति ने दावा किया था कि प्रश्नपत्र प्रिंटिंग प्रेस से लीक हुए हैं, मगर ज्यादातर की राय है कि पर्चा लीक विभिन्न केंद्रों तक उसे पहुंचाने और उत्तर-शीट वापस एनटीए तक पहुंचाने के बीच होता है। 2024 में पर्चा 4,750 केंद्रों तक पहुंचाया जाना था। पर्चा लीक होने की दूसरी जगह परीक्षा केंद्र हो सकते हैं। इस साल ‘नीट’ की परीक्षा के दिन थर्ड पार्टी की निगरानी में कई केंद्रों पर कई तरह की खामियां पाई गईं। 399 परीक्षा केंद्रों में 186 में हर परीक्षा कक्ष में दो सीसीटीवी कैमरे नहीं लगे थे, जो अनिवार्य है। इन कैमरों से लाइव फीड नई दिल्ली में एनटीए मुख्यालय के केंद्रीय नियंत्रण प्रकोष्ठ में पहुंचनी चाहिए, जिसकी निगरानी विशेषज्ञों की एक टीम करती है। 68 परीक्षा केंद्रों पर स्ट्रांग रूम बिना ‘किसी गार्ड’ के था। 83 केंद्रों पर स्टाफ का बॉयोमेट्रिक डेटा संबंधित केंद्रों के लिए तय कर्मचारियों से मेल नहीं खाता था। यह भी कहा जा रहा है कि एजेंसी के सुरक्षा प्रोटोकॉल पर संगठित साइबर हमले का संदेह है और हैकरों की पहुंच ‘ब्लैक बॉक्स’ तक हो सकती है, जहां प्रश्नपत्र रखे जाते हैं।
संघीय व्यवस्था के खिलाफ नीट
एनटीए से पहले देश में मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाएं केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) आयोजित करता था। राष्ट्रीय स्तर की मेडिकल प्रवेश परीक्षा के साथ-साथ राज्यों की मेडिकल प्रवेश परीक्षाएं हुआ करती थीं। एआइपीएमटी पास करने वाला छात्र केंद्र सरकार के तहत मेडिकल कॉलेजों में सीधे प्रवेश ले सकता था और हर राज्य के मेडिकल कॉलेज में अनिवासी छात्रों के लिए 15 फीसद का कोटा हुआ करता था। समय के साथ इस प्रणाली में कई विसंगतियां सामने आईं, जिन्हें दूर करने के लिए ‘नीट’ के बारे में सोचा गया। कई हलकों में इसे देश के संघीय ढांचे को कमजोर करने वाला माना गया। तमिलनाडु ने ‘नीट’ का लगातार विरोध किया और हाइस्कूल के अंकों के आधार पर मेडिकल कॉलेज में प्रवेश की नीति की हिमायत की। न्यायमूर्ति ए.के. राजन की अगुआई वाली एक विशेषज्ञ समिति ने पाया कि ग्रामीण छात्रों और तमिल-माध्यम स्कूलों के छात्रों को ‘नीट’ के तहत भारी नुकसान उठाना पड़ा। 2017 से 2021 तक मेडिकल कॉलेजों में तमिल-माध्यम के छात्रों की प्रवेश दर 15 फीसद से घटकर मात्र 1.6 फीसद रह गई, जबकि ग्रामीण छात्रों का प्रवेश 62 फीसद से घटकर 50 फीसद हो गया। तमिलनाडु ने पाया कि इससे उसकी सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था पर काफी बुरा असर पड़ा, हालांकि केंद्र सरकार इसे खारिज करती है।
इन सवालों से ज्यादा अहम यह है कि परीक्षाओं की पवित्रता अगर बहाल नहीं हुई तो गरीब और निम्न मध्यवर्ग के छात्रों के लिए आर्थिक स्थिति बेहतर करने के मार्ग बाधित हो जाएंगे। सामाजिक न्याय की अवधारणा को यह ऐसे दौर में बेमानी बना सकता है जब अमीर-गरीब की खाई चौड़ी होती जा रही है।
कठघरे में एनटीए
2020
संयुक्त इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा (जेईई) मेन: असम से अव्वल आने वाले परीक्षार्थी ने किसी और से अपना परचा हल करवाया था। इस मामले में सात लोगों की गिरफ्तारी हुई।
नीट यूजी: एनटीए ने मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा की एक परीक्षार्थी के 6 अंक घोषित किए जो बाद की जांच में गलत निकला। इस मामले में छात्रा ने खुदकशी कर ली थी। उसे वास्तव में 590 अंक प्राप्त हुए थे। इसी परीक्षा में एनटीए ने एक और छात्र- जो एसटी श्रेणी में ऑल इंडिया टॉपर था- उसे फेल घोषित कर दिया था।
2022
जेईई मेन: एनटीए के ऊपर इस परीक्षा को संचालित करने में अनियमितता के आरोप लगे। कई परीक्षार्थियों को तकनीकी दिक्कतें आईं जिससे उनके अंक कम हो गए।
2024
जेईई मेन: एनटीए के ऊपर इस परीक्षा में परचे की बनावट को लेकर आरोप लगे, जिसके कारण परीक्षार्थियों के कम अंक आए। जनवरी में हुई पहली परीक्षा में दस पारियों में परीक्षार्थियों का बंटवारा अटपटे ढंग से हुआ जिसके कारण शुरुआती दो दिनों के दौरान परीक्षार्थियों की भारी संख्या केंद्रों पर उमड़ी। कटऑफ में भी उछाल देखने को मिला। सूचना के अधिकार के तहत कई आवेदन किए गए, लेकिन एनटीए द्वारा जारी डेटा में ऐसी कोई अनियमितता नहीं पाई गई। अप्रैल में हुई दूसरी परीक्षा में परीक्षार्थी के बदले किसी और के बैठने का एक मामला और नकल के नौ मामले एनटीए ने सामने लाए। कुल 39 अभ्यर्थियों को तीन साल की अवधि के लिए अयोग्य घोषित किया गया।
नीट यूजी परीक्षा: 5 मई, 2024 को पटना में परचा लीक हुआ। परचे 30 लाख से 50 लाख रुपये के बीच बेचे गए थे। परीक्षा परिणाम नियत तारीख से दस दिन पहले आया। मेरिट सूची में 69 परीक्षार्थियों को पहला स्थान मिला। मामला सुप्रीम कोर्ट में गया और संसद में भी उठा। 18 जून को एनटीए ने यूजीसी नेट की परीक्षा रद्द कर दी। एनटीए के महानिदेशक को हटाया गया। केंद्र सरकार ने 22 जून को सात सदस्यीय उच्चाधिकार प्राप्त कमेटी के हवाले परीक्षा सुधार और डेटा सुरक्षा का काम सौंप दिया। जांच और गिरफ्तारियां जारी हैं।
कौन हैं जोशी
एनटीए के अध्यक्ष डॉ. प्रदीप जोशी मूल रूप से उत्तराखंड के अल्मोड़ा के रहने वाले हैं और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े रहे हैं। उन्होंने बरेली कॉलेज के वाणिज्य विभाग में 21 साल तक पढ़ाया है। इस दौरान वे संघ और भाजपा के साथ अपनी निकटता के चलते कई प्रशासनिक पदों पर भी रहे। यह इत्तेफाक नहीं है कि नीट परचा लीक कांड से परदा प्रदीप जोशी के कार्यकाल में ही उठा जब केंद्र और मध्य प्रदेश दोनों में भाजपा की सरकारें हैं। प्रदीप जोशी का मुरली मनोहर जोशी और भाजपा के कई दिग्गज नेताओं से पुराना संबंध रहा है। यह बात आरटीआइ और खुफिया रिपोर्ट में सामने आ चुकी है।
पिछले एक दशक में भाजपा की केंद्र सरकार के दौरान जोशी 12 मई 2015 को यूपीएससी के सदस्य बनाए गए, फिर 7 अगस्त 2020 को यूपीएससी का उन्हें अध्यक्ष बनाया गया। इससे पहले वे छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग और मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में भी काम कर चुके हैं। उस वक्त दोनों सूबों में भाजपा की सरकार थी।
उन्होंने राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन संस्थान (एनआइईपीए), मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार के निदेशक के रूप में भी काम किया। भारत सरकार के अधीन विभिन्न राष्ट्रीय और राज्यस्तरीय समितियों के वे सदस्य भी रहे। भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तहत शिक्षा में सुधार के लिए संचालन समिति आयोग के वे पूर्व सदस्य रहे। 2023 में उन्हें एनटीए की जिम्मेदारी दे दी गई। लगभग चार महीने पहले छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने छत्तीसगढ़ के लोक सेवा आयोग में सुधार के लिए एक आयोग का गठन किया और जोशी को इसका अध्यक्ष बनाया।
बरेली से निकलकर मध्य प्रदेश आते ही विवादों का साया उनके साथ जो चिपका तो आज तक जुदा नहीं हुआ। जोशी के जीवन की पहली बड़ी पोस्टिंग ही विवादों में घिर गई जब उन्हें जबलपुर के रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में 1997 में मास्टर ऑफ बिजनेस मैनेजमेंट विभाग का अध्यक्ष बनाया गया। उनकी इस पोस्टिंग का जमकर विरोध हुआ। विरोधरत छात्र संगठनों का आरोप था कि वाणिज्य का शिक्षक होते हुए जोशी को व्यापार प्रबंधन का विभागाध्यक्ष कैसे बना दिया गया।
पांच साल बाद 2002 में वे मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (एमपीपीएससी) के सदस्य बना दिए गए और कुछ ही दिनों में उन्हें आयोग का अध्यक्ष बना दिया गया। बताया जाता है भाजपा के कद्दावर नेता रहे डॉ. मुरली मनोहर जोशी और अटल बिहारी वाजपेयी के साथ उनकी निकटता इसमें काम आई। आयोग का अध्यक्ष बनवाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक प्रचारक विनोदजी ने लिखित रूप से उनकी सिफारिश की थी। यह बात अजय दुबे की आरटीआइ में सामने आई थी।
इसीलिए उनके अध्यक्षीय कार्यकाल के दौरान भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के कई परिजन राज्य सेवा परीक्षा में चुने गए। उनके इस कार्यकाल में एमपीपीएससी ने उच्च शिक्षा में बहुत सारी ऐसी नियुक्तियां की थीं जिन्हें नियम-विरुद्ध बताया गया। इसके चलते उनका यह कार्यकाल लंबे समय तक सवालों के घेरे में रहा।
प्रोफेसर भर्ती परीक्षा 2009-10 के दौरान भी अयोग्य अभ्यर्थियों के चयन पर जोशी के ऊपर गंभीर आरोप लगे। इस दौरान संवाद क्रांति मंच के प्रमुख और विसिलब्लोअर पंकज प्रजापति ने हाइकोर्ट में जनहित याचिका दायर की। याचिका में मप्र शासन, पीएससी, तत्कालीन मंत्री अर्चना चिटणीस के साथ उन्होंने प्रदीप जोशी को भी पक्षकार बनाया। जोशी पर आरोप थे कि उन्होंने प्रोफेसर भर्ती के दौरान अपने पद का दुरुपयोग कर के 89 लोगों का गलत चयन किया। प्रोफेसर भर्ती को लेकर दो याचिकाएं लगी थीं। दोनों में जोशी को पक्षकार बनाया गया था। एक को हाइकोर्ट ने ख़ारिज कर दिया।
(साथ में अनूप दत्ता)