एक बार फिर राज्य के गिरिडीह जिले में प्राकृतिक छटा से भरा-पूरा पारसनाथ पर्वत और जैन धर्मावलंबियों का तीर्थ सम्मेद शिखर विवादों में घिर आया है। पहले राज्य में पूर्व भाजपा सरकार और केंद्र सरकार के पर्यटन विकास की छाया और सैर-सपाटा कारोबारियों की तिरछी नजर उस पर पड़ी थी। अब कुछ आदिवासी गुटों की नाराजगी की तीखी धूप पड़ने लगी है। बेशक, राजनीति तो हमेशा ही केंद्र में होती है। ताजा मुद्दा उठाया है सरना धर्म कोड को लेकर आदिवासियों में अभियान चलाने वाले तथा मरांग बुरू (पारसनाथ पहाड़) बचाओ आंदोलन चला रहे पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने। मुर्मू का दावा है कि आदिवासियों के लिए यह पहाड़ मरांग बुरू देव है जिस पर जैन धर्मावलंबियों ने अपना तीर्थ स्थापित कर लिया था। अब यह पहाड़ उन्हें वापस चाहिए। उन्होंने धमकी दी है कि सरकारों ने उनकी बात नहीं सुनी तो आंदोलन उग्र होगा। इससे जैन समाज भी आंदोलित हो रहा है। विश्व जैन संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय जैन ने दिल्ली में प्रेस वार्ता करके कहा कि सालखन ने पारसनाथ पर जमाने से बने जैन मंदिरों को ध्वस्त करने की धमकी दी है और यह दंडनीय अपराध है। उन्होंने भी धमकी दी है कि राज्य सरकार अविलंब सालखन के खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं करती तो जैन समाज आंदोलन के लिए बाध्य होगा।
मरांग बुरू (पारसनाथ पहाड़)
दूसरी तरफ आदिवासी गुटों ने 11 फरवरी को अनेक स्थानों पर ट्रेन रोकने की कोशिश की। माझी परगना महाल ने 17 फरवरी को पारसनाथ पहाड़ को अतिक्रमण मुक्त करने की मांग को लेकर जमशेदपुर में रैली निकाली। इसमें जुगसलाई तोरोप क्षेत्र के 80 गांवों के आदिवासी पारंपरिक वेशभूषा और हथियार के साथ शामिल हुए। उसमें गिरिडीह के मरांग बुरू, जुग जाहेर गाड़ और माझी थान को अतिक्रमण मुक्त करके संथाल आदिवासियों की धार्मिक परंपराओं की पवित्रता को बनाए रखने की मांग की गई।
दरअसल प्राकृतिक सौंदर्य से अच्छादित पारसनाथ पर्वत शृंखला पर सम्मेद शिखर जैन धर्मावलंबियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण धर्मस्थल है। उधर, आदिवासी समाज के लिए भी यह आस्था का केंद्र मरांग बुरू है। प्रकृति पूजक आदिवासी मरांग बुरू को अपना देवता मानते हैं। मरांग यानी सबसे बड़ा और बुरू यानी पहाड़। इसके पहले सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित कर दिया गया था। देश भर में जैन समाज के विरोध और राज्य की हेमंत सोरेन सरकार ने केंद्र को पत्र लिखा तो केंद्र ने पांच जनवरी को पारसनाथ की पहाड़ी पर पर्यटन गतिविधियों पर रोक का आदेश जारी किया, लेकिन दस जनवरी को मरांग बुरू का अस्तित्व बचाने के लिए मधुबन में ‘मरांग बुरू पारसनाथ बचाओ संघर्ष समिति’ के झंडे तले आदिवासी महाजुटान हुआ। उसमें झामुमो विधायक लोबिन हेम्ब्रम, आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह पूर्व सांसद सालखन मुर्मू, पूर्व मंत्री गीता उरांव सहित अनेक आदिवासी नेता शामिल हुए। इस जुटान में झारखंड के साथ छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और ओडिशा से भी लोग आए थे। नेताओं की नाराजगी थी कि पारसनाथ से जुड़े सरकारी आदेश में मरांग बुरू की चर्चा ही नहीं है जबकि पूर्व के गजट में ऐसा था। पहाड़ पर जैन समाज को कथित कब्जा दिलाने के खिलाफ आंदोलन का ऐलान हुआ। बिरसा मुंडा के गांव उलिहातु से लेकर विभिन्न आदिवासी महत्व के स्थानों पर सभा करने का फैसला हुआ।
पूर्व सांसद सालखन मुर्मू
जैन आचार्य प्रसन्न सागर जी ने कहा, ‘‘पारसनाथ भगवान का मंदिर है, किसी की बपौती नहीं। यह उसका है जो उसको पूजता है। मगर कुछ सिरफिरे धर्म का सहारा लेकर धर्म से खिलवाड़ कर रहे हैं। जैन समाज में भी कुछ ऐसे तत्व हैं जो अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए धर्म से खेल रहे हैं।’’
सालखन मुर्मू कहते घूम रहे हैं कि झारखंड सरकार ने केंद्र को पत्र लिखकर इसे जैनियों के हवाले कर दिया है। सालखन के ही कॉल पर 11 फरवरी को मरांग बुरू (पारसनाथ पहाड़) को मुक्त कर आदिवासियों को सौंपने और सरना धर्म कोड लागू करने की मांग को लेकर पांच राज्यों में रेल-रोड जाम किया गया। उन्होंने 11 अप्रैल से बेमियादी रेल-रोड चक्का जाम का ऐलान किया है। सालखन ने इसके साथ सरना कोड का मुद्दा भी जोड़ लिया है। वे कहते हैं कि 2011 की जनगणना में 50 लाख से ज्यादा आदिवासियों ने सरना धर्म लिखाया था। सालखन सरना कोड पर आरएसएस प्रमुख के समक्ष अपना पक्ष रखना चाहते हैं। उन्होंने मोहन भागवत को पत्र भी लिखा है। वे महतो, कुर्मी या किसी अन्य जाति को आदिवासी का दर्जा दिये जाने के खिलाफ हैं। धर्मांतरित आदिवासियों को एसटी की सूची से बाहर करना भी उनके एजेंडे में है।
विश्व जैन संगठन के अध्यक्ष संजय जैन
हेमंत सरकार के महत्वपूर्ण एजेंडा 1932 के खतियान सहित अन्य मसलों पर पार्टी की नीति के खिलाफ आग उगलने वाले झामुमो के बोरियो विधायक लोबिन हेम्ब्रम अपनी ही सरकार की फजीहत करते रहते हैं। जैन संतों के प्रति भी उन्होंने कटु टिप्पणी की है। मरांग बुरू को स्थान नहीं मिलने पर हेमंत सरकार को ही उन्होंने चुनौती दे डाली। आउटलुक से लोबिन ने कहा मरांग बुरू पर जल्द ग्रामीणों के साथ बैठक कर आगे का निर्णय लिया जाएगा। उनका कहना है, 'हम चाहते हैं समाधान हो। पहले कोई विवाद नहीं था। पारसनाथ को केंद्र और राज्य ने जैनियों के लिए कर दिया। आदेश में हमारे मरांग बुरू की चर्चा तक नहीं है। समाधान यह है कि उनका भी पारसनाथ रहे और हमारा भी मरांग बुरू रहे। लिखित में हो और दोनों पहले की भांति अपनी परंपरा का पालन करते रहें।'
भाजपा के बड़े नेता इस विवाद पर बोलने से परहेज कर रहे हैं। जानकार मानते हैं कि आदिवासियों में पैठ रखने वाले तत्व जैनियों और आदिवासियों के बीच विवाद को हवा दे रहे हैं।
जोहार यात्रा में गिरिडीह पहुंचे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी इस विवादित मुद्दे पर बड़ा संयमित भाषण दिया। उन्होंने कहा, ‘‘यह मरांग बुरू था, है और रहेगा। पारसनाथ व मरांग बुरू को लेकर विपक्षी जहर घोलने का काम कर रहे हैं। जैन और आदिवासियों में पहले तल्खी नहीं थी। अब ऐसा हो रहा है तो यह किसी का हिडेन एजेंडा है। पहले पर्यटन और तीर्थाटन के नाम पर जैनियों को भड़काया, उसके बाद मरांग बुरू के नाम पर आदिवासियों को भड़काने की कोशिश की गई। पारसनाथ के प्रति जितनी आस्था जैन समुदाय की है, उतनी ही आदिवासियों की भी है। जिस तरह सैकड़ों साल से साथ निभाते रहे हैं उसे जारी रखें।’’
अगले साल लोकसभा के साथ विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। झारखंड की 81 सदस्यीय विधानसभा में 28 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। इनमें सिर्फ दो पर भाजपा का कब्जा है। 14 संसदीय सीटों में पांच जनजाति के लिए आरक्षित हैं। लोगों की नजर आदिवासी वोटों पर है। खनिज संपदा से लैस झारखंड में सत्ता की सीढ़ी आदिवासी वोटों से होकर ही गुजरती है। इसलिए सियासी गतिविधियां तेज हो गई हैं। आदिवासियों का दिल छूने वाले 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीयता नीति विधेयक को राज्यपाल ने वापस कर दिया मगर उसका श्रेय लेने के बहाने हेमंत सोरेन ‘जोहार खतियानी यात्रा’ के तीसरे चरण में जिलों का भ्रमण कर रहे हैं। लोबिन के अंदाज में झामुमो विधायक चमरा लिंडा ने भी 16 फरवरी को रांची में ‘आदिवासी अधिकार महारैली’ के नाम पर हजारों की भीड़ जुटाकर शक्ति प्रदर्शन किया और अपनी ही सरकार को निशाने पर लिया कि राज्य में कहने के लिए अपनी आदिवासियों की सरकार है मगर राज्य के आदिवासी हाशिये पर हैं।
कुर्मी महतो को आदिवासी का दर्जा नहीं दिए जाने का भी प्रस्ताव पारित किया गया। उसी दिन दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 दिनी ‘आदि महोत्सव’ का उद्घाटन किया और जनजाति कल्याण के काम और योजनाओं की घोषणा की। झामुमो के प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने तत्काल प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर कहा कि आदिवासियों के प्रति इतना ही दर्द है तो इसी बजट सत्र में सरना कोड पास कराएं और वन अधिकार अधिनियम 2006 मजबूती से लागू कराएं।
पारसनाथ के इर्द-गिर्द भी आदिवासी भावना उभारने की कोशिश चल रही है। जैनियों और आदिवासियों की आपसी निर्भरता की पुरानी परंपरा के हिसाब से आपसी समन्वय और सहजीवन ही समाधान है। टकराव बढ़ेगा तो नतीजे बेहद खराब होंगे। तराई में अनियमित तरीके से बने कई मंदिर भी जद में आयेंगे।