यह भारत में वाटरगेट कांड जैसी बड़ी घटना, बल्कि उससे भी बड़ी हो सकती है। धीरे-धीरे खुल रहे ‘पेगासस प्रोजेक्ट’ में एक हजार से ज्यादा फोन नंबर सामने आ चुके हैं। ये फोन नंबर इजराइली जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस के निशाने पर थे। पूर्व केंद्रीय मंत्री, सत्तारूढ़ और विपक्षी दल के नेता, एक्टीविस्ट, पत्रकार, न्यायाधीश और गैर-सरकारी संगठन, किसी को भी बख्शा नहीं गया। इसका दायरा बताता है कि मामला कितना बड़ा है। पिछले हफ्ते जब पहली बार यह खबर सामने आई कि पेगासस जासूसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल 40 पत्रकारों समेत तीन सौ भारतीयों और 10 देशों के अनेक एक्टीविस्टों के फोन की जासूसी के लिए किया गया तो वह सबके लिए चौंकाने वाला था। इस सॉफ्टवेयर को इजरायल के एनएसओ ग्रुप ने बनाया है और वह सिर्फ सरकारों को यह सॉफ्टवेयर बेचती है। हालांकि, भारत सरकार ने इस जासूसी में किसी भी भूमिका से इनकार किया है।
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर, पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा, कई केंद्रीय मंत्री और पूर्व प्रधान न्यायाधीश पर यौन प्रताड़ना का आरोप लगाने वाली महिला, ये सब एनएसओ ग्रुप की सर्विलांस के निशाने पर थे। फ्रांसीसी गैर-लाभकारी मीडिया संगठन फॉर्बिडन स्टोरीज ने लीक हुए डेटाबेस से ये फोन नंबर निकाले हैं। उसने पेगासस प्रोजेक्ट का हिस्सा रहे कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया समूहों को इसकी जानकारी दी। इनमें वाशिंगटन पोस्ट, द गार्डियन, द वायर भी शामिल हैं।
पेगासस जासूसी के खिलाफ दिल्ली में प्रदर्शन करते तृणमूल नेता
इस जासूसी विवाद ने संसद के मानसून सत्र को हंगामेदार बना दिया है। विपक्षी दलों ने भाजपा सरकार पर तथाकथित फोन हैकिंग का आरोप लगाते हुए हल्ला बोला है। इस जासूसी कांड के राजनीतिक निहितार्थ बड़े हो सकते हैं। पेगासस प्रोजेक्ट ने वाटरगेट स्कैंडल की याद दिला दी है। उस स्कैंडल ने अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया था। आरोप था कि उन्होंने 1972 के राष्ट्रपति चुनाव से पहले डेमोक्रेटिक पार्टी के ऑफिस की टैपिंग करवाई थी। ठीक उसी तरह, राहुल गांधी को टारगेट पर रखा गया था। राहुल 2019 के लोकसभा चुनाव में अध्यक्ष के तौर पर पार्टी का नेतृत्व कर रहे थे।
न्यूज वेबसाइट द वायर की रिपोर्ट के अनुसार 2018-19 में राहुल गांधी के फोन को दो बार टारगेट बनाया गया। उनके कम से कम पांच करीबियों और कांग्रेस पार्टी के कई कार्यकर्ताओं के फोन भी निशाने पर थे। राहुल गांधी अब वह पुराना फोन इस्तेमाल नहीं करते, इसलिए उसकी फॉरेंसिक जांच नहीं की गई। उनके दो करीबी अलंकार सवाई और सचिन राव भी लीक हुए फोन नंबरों की सूची में हैं।
सचिन राव अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में प्रशिक्षण प्रभारी हैं। आउटलुक से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि राहुल गांधी को इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि वे लगातार सरकार की आलोचना कर रहे हैं।’’ वे सवाल करते हैं, ‘‘यह प्रकरण दुनिया को क्या बताता है? कोई है जो 300 लोगों की जासूसी करने के लिए 300 करोड़ रुपये देने को तैयार है। हमारे लोकतंत्र पर यह कीमत का टैग लग गया है। हम सबको यह सवाल पूछना चाहिए कि लोकतंत्र पर कब्जा करने के लिए उनके पास पैसा कहां से आया।’’ राव कहते हैं कि पहले उन्हें कभी इस बात का एहसास नहीं हुआ कि उनके पीछे भेदिया लगा है।
पूर्व प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ यौन प्रताड़ना का आरोप लगाने वाली महिला के फोन की जासूसी की बात उजागर होने से राव अचंभित हैं। उस महिला के साथ उनके कई रिश्तेदारों के फोन भी सर्विलांस पर थे। राव कहते हैं, ‘‘राजनीति में इतने वर्षों तक रहने के बाद मेरे लिए यह झटका देने वाला है। मैं दिल से उस परिवार के साथ हूं।’’
एक और चौंकाने वाला खुलासा यह है कि चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के फोन को भी पेगासस जासूसी सॉफ्टवेयर का निशाना बनाया गया था। फॉरेंसिक जांच से पता चला है कि हाल में 13 जुलाई को भी उनके फोन की जासूसी की जा रही थी। उस दिन उन्होंने दिल्ली में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से मुलाकात की थी। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रशांत किशोर के फोन की जासूसी इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि अगले साल की शुरुआत में होने वाले कई विधानसभा चुनाव और 2024 के आम चुनाव में वे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। द वायर की रिपोर्ट के अनुसार प्रशांत किशोर के फोन की जासूसी 28 अप्रैल को भी हुई थी। वह पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के आखिरी चरण के मतदान से एक दिन पहले की तारीख थी। प्रशांत उस चुनाव में ममता बनर्जी के रणनीतिकार थे। हैक किए गए फोन नंबरों की सूची में ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी का भी नाम है।
कांग्रेस के खिलाफ एक और साजिश का खुलासा तब हुआ जब पेगासस प्रोजेक्ट में कर्नाटक के जनता दल सेकुलर और कांग्रेस सरकार के नेताओं के फोन नंबर सामने आए। इनके फोन नंबर 2019 में सर्विलांस पर लिए गए थे। वह समय इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि तब सत्तारूढ़ गठबंधन की सरकार गिरी थी और बी.एस. येदियुरप्पा के नेतृत्व में भाजपा ने सरकार बनाई थी। कांग्रेस का आरोप है कि जासूसी के जरिए उनकी सरकार गिराई गई। हालांकि इस दावे की पुष्टि के लिए कोई फॉरेंसिक जांच नहीं हुई है।
कांग्रेस नेता सुष्मिता देव कहती हैं, "सरकार को पेगासस विवाद में अपना रुख साफ करना चाहिए। जिन लोगों की जासूसी की गई उनकी प्रोफाइल और जासूसी पर खर्च किए गए पैसे को देखें तो उसमें राजनीतिक ताकत के शामिल होने की बात स्पष्ट होती है।"
सूची में पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा का भी नाम है। 2019 के चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ एक मामले में लवासा एकमात्र आयुक्त थे जिन्होंने मोदी के बयान को आचार संहिता का उल्लंघन माना था। बाकी दो आयुक्तों को ऐसा नहीं लगा और फैसला बहुमत से हुआ था।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के सह संस्थापक जगदीप छोकर का फोन भी सर्विलांस पर था। उनका फोन भी 2019 के आम चुनाव से कुछ दिनों पहले निशाना बनाया गया था। आउटलुक से बातचीत में वे कहते हैं, "हम 20 साल से ऐसे काम कर रहे हैं जिनसे चुनावी प्रक्रिया में सुधार के जरिए लोकतंत्र को बेहतर बनाया जा सके। क्या यह सरकार के खिलाफ है? मेरा काम सार्वजनिक है। इसलिए मुझ पर निगरानी के लिए पैसा खर्च करना व्यर्थ है।"
सूची में जिन 40 पत्रकारों के नंबर हैं। उनमें कुछ के फोन की फॉरेंसिक जांच में यह बात साबित हुई कि फोन हैक किया गया था। इनमें ज्यादातर पत्रकार अंग्रेजी भाषा के हैं। लेकिन झारखंड के हिंदी पत्रकार रूपेश कुमार सिंह और एक पंजाबी दैनिक के संपादक जसपाल सिंह हेरन भी उनमें शामिल हैं।
हिंदी प्रकाशनों के लिए फ्रीलांसिंग करने वाले रूपेश कुमार सिंह आउटलुक से कहते हैं कि पेगासस की सूची में अपना नाम देखकर मुझे जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ। वे बताते हैं, ‘‘झारखंड में अक्सर सरकार विदेशियों अथवा कॉरपोरेट के साथ गठजोड़ करके आदिवासियों की जमीन उन्हें दे देती है। वे आदिवासी जब आवाज उठाते हैं तो उन्हें माओवादी करार दे दिया जाता है या फर्जी एनकाउंटर में मार दिया जाता है। मैं ऐसी घटनाओं की ही रिपोर्टिंग करता रहा हूं।’’
सिंह कहते हैं, ‘‘मुझे पता था कि मेरा फोन रिकॉर्ड किया जा रहा है, लेकिन मुझे लगा कि यह जिले की पुलिस कर रही है। मेरी जासूसी किस हद तक की जा रही है और इसमें केंद्र सरकार की भूमिका है, यह नहीं पता था। हालांकि केंद्र सरकार भूमिका से इनकार कर रही है, लेकिन एनएसओ ग्रुप ने साफ किया है कि वह जासूसी सॉफ्टवेयर केवल सरकारों को ही बेचता है। साफ है कि जिन लोगों ने मौजूदा शासन के खिलाफ आवाज उठाई है और उसके कामकाज को उजागर किया है, उनकी आवाज दबाने और उनमें डर पैदा करने के लिए उन्हें निशाना बनाया गया है।’’
जासूसी की सूची में शामिल रोजाना पहरेदार के संपादक जसपाल सिंह हेरन आउटलुक को बताते हैं कि वे निडर पत्रकारिता करते रहेंगे। वे कहते हैं, ‘‘मुझे लगता है कि यह पूरा प्रकरण हमारी स्वतंत्रता पर हमला है। अगर यह सब सरकार ने किया है, तो फिर लोकतंत्र एक छलावा ही है। हम तानाशाही में जी रहे हैं। अगर कोई आवाज उठाता है तो उसे लाठी-पत्थर का सामना करना पड़ता है, तो हम लोकतंत्र कैसे हैं?’’
विशेषज्ञों का कहना है कि 2019 में कुछ ऐसे संकेत मिले थे, जिन पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। 2019 में व्हाट्सऐप ने 20 देशों में अपने लगभग 1,400 यूजर्स के बारे में खुलासा किया था, जिनकी उस साल मई में पेगासस के जरिए निगरानी हो रही थी। इस सूची में भारतीय पत्रकार और एक्टीविस्ट भी शामिल थे। व्हाट्सऐप ने सरकार को आगाह किया था कि 121 फोन में भेदिया यंत्र डाला गया है। हालांकि उस पर कोई उचित कार्रवाई नहीं की गई।
पेगासस सॉफ्टवेयर मूल रूप से फोन में घुसपैठ करके उसके टेक्स्ट मैसेज, कैमरा फीड और माइक्रोफोन की खुफियागीरी बिना कोई सबूत छोड़े करता है। इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक अपार गुप्ता का आउटलुक से कहना है कि सरकार को इस घोटाले की उच्चस्तरीय स्वतंत्र जांच करानी चाहिए। वे कहते हैं, ‘‘राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे के संबंध में लगाए जा रहे आरोप वाजिब हैं, क्योंकि सार्वजनिक शख्सियतों या फिर उच्च पदों पर बैठे लोगों को निशाना बनाया गया है। सरकार ने साफ-साफ इनकार नहीं किया है, इससे आशंका बन गई है कि विदेशी सरकारें पेगासस का इस्तेमाल भारतीयों पर नजर रखने के लिए कर रही हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा में सेंध की आशंका को दूर करने और कुछ हद तक विश्वास बहाली के लिए सरकार को संसदीय समिति से जांच करवानी चाहिए।’’
भले ही सूचना-प्रोद्यौगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने अवैध जासूसी से इनकार किया है और कहा कि एजेंसियां इंटरसेप्शन पर अच्छी तरह से स्थापित प्रोटोकॉल का पालन करती हैं। लेकिन विशेषज्ञ मौजूदा कानूनों में कमियों की ओर इशारा करते हैं। सेंटर फॉर इंटरनेट ऐंड सोसाइटी के सह-संस्थापक प्रणेश प्रकाश ने कहा, ‘‘इंटरसेप्शन को नियंत्रित करने वाले कानून हैं लेकिन उन कानूनों का पालन नहीं किया जाता है। खुफिया एजेंसियों के संबंध में तो कोई नियम ही नहीं हैं। गैर-खुफिया एजेंसियां भी जासूसी कर रही हैं।’’
भीमा कोरेगांव मामले से जुड़ा
लीक हुए डेटाबेस से यह भी पता चलता है कि कम से कम नौ फोन नंबर भीमा कोरेगांव में एलगार परिषद मामले में गिरफ्तार किए गए प्रतिष्ठित कार्यकर्ताओं, वकीलों और शिक्षाविदों के थे। मामले में अब तक 16 लोग गिरफ्तार हुए हैं। हनी बाबू की पत्नी जेनी रोवेना, जिनका फोन नंबर सूची में शामिल है, के अनुसार यह खुलासा इस दलील की पुष्टि करता है कि इलेक्ट्रॉनिक डेटा एकमात्र सबूत नहीं हो सकता है। ‘‘अमेरिका स्थित आर्सेनल ने पाया था कि आरोपियों के दो कंप्यूटरों से छेड़छाड़ की गई है और उनमें मैलवेयर लगाया गया। इसने केवल हमारे रुख को सही ठहराया है।’’
गिरफ्तार सुरेंद्र गाडलिंग की पत्नी मीनल गाडलिंग का कहना है कि 2019 से उनके फोन से छेड़छाड़ की गई थी और सिटीजन लैब ने उन्हें भी इसकी जानकारी दी थी। ‘‘मैंने कोई सावधानी बरतने के बारे में नहीं सोचा क्योंकि मेरे पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है। मैंने केवल यह तय किया कि मैं अपना सिम किसी और के फोन में न डालूं।’’ उनका फोन नंबर फिर से पेगासस लिस्ट में आ गया है तो मीनल का कहना है कि यह निजता में दखल का गंभीर मामला है। वे कहती हैं, ‘‘मेरी और मेरे पति की निजता का उल्लंघन किया गया लेकिन अब वे मेरे परिवार के सदस्यों को निशाना बनाने की हद तक चले गए। हमारे संदेश, तस्वीरें और स्थान, दुनिया को इनके बारे में क्यों पता होना चाहिए?’’
अपार गुप्ता को यहां भी एक कनेक्शन दिखता है। वे कहते हैं, ‘‘मुझे निश्चित रूप से लगता है कि पेगासस की पहली सूची में जिन लोगों की जासूसी की बात सामने आई है, उनमें से कई लोगों के संबंध 2019 की रिपोर्ट से भी थे। उसमें वे भी लोग शामिल थे जिन पर अब भीमा कोरेगांव मामले में मुकदमा चल रहा है। दो आरोपियों के बारे में आर्सेनल के फोरेंसिक विश्लेषण से पता चला है कि उनके उपकरणों के साथ छेड़छाड़ की गई है और उन्हें स्पाइवेयर के जरिए हैक किया गया है। दो और दो को एक साथ रखकर, एक बहुत ही मजबूत निष्कर्ष निकलता है जिसके आधार पर इस घटना की जांच आपराधिक षड्यंत्र के रूप में होनी चाहिए।’’