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गणित साफ पर रुझान अस्पष्ट

गठबंधनों और ‌जातिगत समीकरण तो साफ, मगर नए माहौल में हर पार्टी अपने-अपने दांव आजमा रही, लेकिन मतदाता अभी मौन
सियासी रंग ः 3 फरवरी को अमेठी में विकास परियोजना का उद्घाटन करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

लगातार बदलते माहौल में सपा-बसपा गठबंधन और प्रियंका गांधी की राजनीति में एंट्री से भाजपा के समीकरण भी तेजी से बदले हैं। इन सबके बीच बड़ा सवाल यह है कि क्या गोरखपुर, फूलपुर, कैराना उपचुनाव का प्रयोग दोबारा काम आएगा या फिर 2014 का नजारा दिखेगा? इन सवालों के बीच सपा-बसपा गठबंधन में सीटों के बंटवारे से क्या गणित उभर रहा है, यह देखना मौजू है। सीटों के इस बंटवारे ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। मसलन, लखनऊ की सीट सपा के खाते में आई है लेकिन पिछले चुनाव में यहां बसपा का वोट प्रतिशत सपा के मुकाबले अधिक था। इसी तरह हाथरस में आज तक सपा का खाता नहीं खुला। वहां भी पिछले चुनाव में सपा से ज्यादा बसपा का वोट प्रतिशत था, लेकिन गठबंधन में सपा को सीट मिली है। अमरोहा सीट बसपा को मिली है जबकि पिछले चुनावों में सपा का वोट प्रतिशत बसपा से दोगुने से ज्यादा था। फर्रुखाबाद सीट भी बसपा के खाते में है। यहां पिछली बार बसपा से दोगुने से ज्यादा वोटों के साथ सपा दूसरे नंबर पर थी। सपा ने रालोद को अपने कोटे से एक और सीट दी है, लेकिन इसका फायदा बसपा को ज्यादा होगा। इसका मुख्य कारण है कि पश्चिमी यूपी की ज्यादातर सीटें बसपा के खाते में हैं। माना जा रहा है कि सपा अपने खाते से निषाद पार्टी को एक सीट गोरखपुर और देगी। ऐसे में गठबंधन में मिलीं 38 सीटों में सपा की दो सीटें और कम हो गई हैं।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय ने बताया कि आज देश जाति की राजनीति करने वाले दलों से बहुत आगे निकल चुका है। गठबंधन दल जिस समाज को अपना मान रहे हैं, उनमें बड़ा तबका 2014 में हमारे साथ था। तब हमने 73 सीटों पर जीत दर्ज की थी। उस वक्त भी कुछ हद तक दलित और यादव समाज हमारे साथ था। नरेंद्र मोदी और योगी सरकार में गरीब कल्याण के जो काम हुए हैं, उनसे यही तबका बड़ी संख्या में हमारे साथ आ रहा है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का कहना है कि ये दल और कोई काम नहीं कर रहे हैं, केवल जातियों का हिसाब बैठा रहे हैं और पिछले चुनाव में पड़े वोटों में जातिगत गणित के आधार पर ड्रॉइंग रूम में बैठ कर गुणा-भाग कर रहे हैं। सपा मुखिया अखिलेश यादव के बयान, “भाजपा जाति की राजनीति करती है, हम नहीं” के बारे में उन्होंने कहा कि यह उनके दोहरे चरित्र को बतलाता है। उसी जाति की राजनीति के लिए वे अपने पिता को अपमानित करने वाली पार्टी की गोद में जाकर गिर पड़े हैं।

सपा के राष्ट्रीय सचिव राजेंद्र चौधरी का कहना है कि भाजपा केबिन की राजनीति करती है। सपा-बसपा सामाजिक धरातल पर हैं। हमारा एक सामाजिक आधार है। चौधरी आरोप लगाते हैं कि भाजपा केवल 15 फीसदी वोट का ही प्रतिनिधित्व करती है। 85 फीसदी वोट से उसका कोई वास्ता नहीं है। सपा के जनता से संपर्क में नहीं होने के आरोप पर उन्होंने कहा कि जनता सब देख रही है। भाजपा पांच साल से केंद्र और दो साल से प्रदेश सरकार में है, तब भी तो फूलपुर, गोरखपुर और कैराना हार गए। यही समीकरण लोकसभा चुनाव और 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी लागू होगा। कांग्रेस के विधानमंडल दल के नेता अजय कुमार उर्फ लल्लू ने बताया कि फिलहाल देश में संवैधानिक संकट की स्थिति पैदा हो गई है। वे आरोप लगाते हैं, “भाजपा धार्मिक उन्माद और देशभक्ति के नाम पर लोगों की भावनाओं को कुरेदने का प्रयास कर रही है। इसे देखते हुए जनता ने मन बना लिया है कि अब वह भाजपा के विकल्प के रूप में कांग्रेस को ही चुनेगी।”

क्या ट्रांसफर होगा सपा-बसपा का वोट?

गाजीपुर सीट से 2014 में भाजपा प्रत्याशी रहे मनोज सिन्हा को तीन लाख छह हजार 929 वोट मिले थे और उन्होंने जीत दर्ज की थी। दूसरे नंबर पर सपा के शिवकन्या कुशवाहा को दो लाख 74 हजार 477 और बसपा के कैलाश नाथ सिंह यादव को दो लाख 41 हजार 645 वोट मिले थे। गठबंधन में यह सीट बसपा को गई है और बसपा प्रत्याशी के रूप में मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी फिर मैदान में ताल ठोक सकते हैं। गाजीपुर जिले के यूसुफपुर मोहम्मदाबाद निवासी राजू गुप्ता ने बताया कि सपा-बसपा गठबंधन से बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि यहां सपा के कई दावेदार थे। यह सीट बसपा के खाते में जाने से काफी लोग नाराज भी हैं। अगर यादव बिरादरी बसपा को वोट देती है तो भाजपा को सीट निकालना मुश्किल हो जाएगा।

आजमगढ़ सीट से 2014 में सपा के मुलायम सिंह यादव ने जीत दर्ज की थी। उन्हें तीन लाख 40 हजार 306 वोट मिले थे। निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के रमाकांत यादव को दो लाख 77 हजार 102 वोट मिले थे। तीसरे नंबर पर बसपा के शाह आलम को दो लाख 66 हजार 528 वोट मिले थे। इस बार यह सीट गठबंधन में सपा के कोटे में गई है। यहां से अब सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव के चुनाव लड़ने के कयास लगाए जा रहे हैं। आजमगढ़ निवासी मनोज ने बताया कि बसपा का करीब 75 फीसदी वोट सपा को ट्रांसफर हो जाएगा। यहां मुख्य लड़ाई सपा और भाजपा के बीच में ही होगी।

फूलपुर सीट से 2014 में भाजपा के टिकट से केशव प्रसाद मौर्य चुनाव लड़े थे और उन्हें पांच लाख तीन हजार 564 वोट मिले थे। सपा के धर्मराज सिंह पटेल को एक लाख 95 हजार 256 वोट मिले थे। तीसरे पायदान पर रहे बसपा के कपिल मुनि करवरिया को एक लाख 63 हजार 710 वोट मिले थे। प्रदेश सरकार में केशव प्रसाद मौर्य के उप-मुख्यमंत्री बनने के बाद उपचुनाव में सपा प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी। अब यह सीट सपा के पास है। सोरांव तहसील निवासी वागीश मिश्रा ने बताया कि जातिगत आधार पर ज्यादातर वोट बसपा का ट्रांसफर होगा। हालांकि, प्रयागराज जिले में भाजपा ने काम बहुत कराया है। इसलिए भाजपा प्रत्याशी को हराना सपा के लिए आसान नहीं होगा।

गोरखपुर सीट से 2014 में भाजपा सांसद बने योगी आदित्यनाथ को तीन लाख 12 हजार 783 वोट मिले थे। दूसरे नंबर पर सपा से राजमति निषाद रहीं। 2017 में सांसद योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद हुए उपचुनाव में सपा ने निषाद पार्टी के डॉ. प्रवीण निषाद को मैदान में उतारा और जीत दर्ज की। निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने बताया कि डॉ. प्रवीण निषाद यहां से फिर चुनाव लड़ेंगे। इस सीट पर पूर्व मंत्री रहे जमुना निषाद की पत्नी पूर्व विधायक राजमति निषाद के बेटे और सपा नेता अमरेंद्र निषाद ने बगावत कर दी है। उन्होंने तय किया है कि वे गोरखपुर सदर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। कैंपियरगंज तहसील के कल्याणपुर ग्राम प्रधान प्रमोद यादव ने बताया कि सपा-बसपा का वोट गठबंधन उम्मीदवार को काफी हद तक ट्रांसफर होगा। अमरेंद्र की जगह उनकी मां राजमति को लड़ाया जाता है, तो उनके जीत की संभावना बन सकती है।

लखनऊ सीट से 2014 में भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने जीत दर्ज की थी। उन्हें कुल पांच लाख 61 हजार 106 वोट मिले थे। कांग्रेस से रीता बहुगुणा जोशी दूसरे नंबर पर थीं और उन्हें दो लाख 88 हजार 357 वोट मिले थे। बसपा के नकुल दुबे तीसरे पायदान पर रहे। इस बार गठबंधन के तहत यह सीट सपा के पास है। खुर्रमनगर निवासी चिकन कारोबारी हयात उमर ने बताया कि बसपा का वोट सपा को कुछ फीसदी ट्रांसफर हो जाए, तो कहा नहीं जा सकता। मोहनलालगंज और लखनऊ सीट पर भाजपा मजबूत है।

कानपुर सीट से भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी ने जीत दर्ज की। उन्हें चार लाख 74 हजार सात सौ 12 वोट मिले थे। उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के श्रीप्रकाश जायसवाल को दो लाख 51 हजार 766 वोट मिले थे। बसपा के सलीम अहमद को 53 हजार 218 और सपा के सुरेंद्र मोहन अग्रवाल को 25 हजार 723 वोट मिले थे। अब यह सीट सपा के पास है। कानपुर के साकेत नगर निवासी भूपेश अवस्थी ने बताया कि बसपा का अधिकांश वोट सपा को ट्रांसफर होगा। इसके बावजूद वह जीतने की स्थिति में नहीं होगी। कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। उसके साथ अब ब्राह्मण वोट बहुत कम है। मुस्लिम भी सपा-बसपा के साथ है। भाजपा सांसद मुरली मनोहर जोशी से लोग बहुत ज्यादा नाराज हैं।

बरेली सीट से 2014 में भाजपा के संतोष कुमार गंगवार को पांच लाख 18 हजार 258 वोट मिले थे। दूसरे नंबर पर रहीं उनकी निकटतम प्रतिद्वंद्वी सपा के आयशा इस्लाम को दो लाख 77 हजार 573 वोट मिले थे। बसपा के उमेश गौतम को एक लाख छह हजार 49 वोट मिले थे। गठबंधन से फिर सपा उम्मीदवार यहां से चुनाव लड़ेगा। बरेली कॉलेज के पूर्व प्राचार्य सोमेश यादव ने बताया कि सपा-बसपा ने कैडर के दबाव में गठबंधन किया है। इसलिए बसपा का वोट सपा को ट्रांसफर होगा। कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार प्रवीन सिंह ऐरन जितना मजबूत लड़ेंगे, भाजपा को नुकसान होगा।

झांसी सीट से 2014 में भाजपा प्रत्याशी उमा भारती ने जीत दर्ज की थी और उन्हें पांच लाख 75 हजार 889 वोट मिले थे। सपा से डॉ. चंद्रपाल सिंह यादव को तीन लाख 85 हजार 422 वोट मिले थे। बसपा प्रत्याशी अनुराधा शर्मा तीसरे नंबर पर थीं। यह सीट इस बार सपा के खाते में है। झांसी के टिपरी निवासी विकास शर्मा ने बताया कि बसपा का वोट यहां सपा को ट्रांसफर होने की कम उम्मीद है, क्योंकि सपा सरकार के दौरान दलितों का काफी उत्पीड़न हुआ था। उमा भारती को लेकर भी यहां रुझान बहुत अच्छा नहीं है।

रालोद का गढ़ कही जाने वाली बागपत सीट से 2014 लोकसभा चुनाव में मुंबई के पूर्व कमिश्नर और भाजपा प्रत्याशी सत्यपाल सिंह को चार लाख 23 हजार 475 वोट मिले। दूसरे पायदान पर सपा के गुलाम मोहम्मद को दो लाख 13 हजार 609 वोट मिले। जबकि, रालोद मुखिया अजित सिंह को एक लाख 99 हजार 516 वोट ही मिले। यहां से रालोद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयंत चौधरी के लड़ने के आसार हैं। बड़ौत के पट्टी चौधरान निवासी अजय जैन ने बताया कि भाजपा को रालोद से सीधी टक्कर मिलेगी। इस लोकसभा क्षेत्र में 18 फीसदी जाट हैं और इस बार जाट बिरादरी रालोद के साथ है। सपा-बसपा का वोट बैंक काफी हद तक रालोद को मिलेगा। ये प्रयोग कैराना में सफल हो चुका है।

मुजफ्फरनगर सीट से 2014 में भाजपा प्रत्याशी संजीव बालियान को छह लाख 53 हजार 391 वोट मिले। दूसरे पायदान पर बसपा के कादिर राणा को दो लाख 52 हजार 241 वोट मिले। तीसरे नंबर पर सपा के विरेंद्र सिंह थे। गठबंधन में यह सीट रालोद के हिस्से में है और यहां से रालोद मुखिया चौधरी अजित सिंह के लड़ने की संभावना है। दवा के थोक विक्रेता ओम दत्त आर्य ने बताया कि दंगों के बाद कैराना उपचुनाव में यह मिथक टूट गया कि जाट समुदाय मुस्लिम को वोट नहीं करेगा। चौधरी अजित सिंह के साथ जाट भावनात्मक रूप से जुड़े हैं। भीम आर्मी खुलकर बसपा के साथ है। इसलिए दलितों का वोट और मुसलमान समुदाय सपा में भरोसा रखता है, इसलिए दोनों समुदायों का वोट रालोद को मिलेगा।

आगरा से 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा से राम शंकर कठेरिया को पांच लाख 83 हजार 716 वोट मिले थे। उन्होंने बसपा प्रत्याशी नारायण सिंह सुमन को हराया था। तीसरे नंबर पर सपा प्रत्याशी महराज सिंह धनगर थे। इस सीट पर गठबंधन से बसपा उम्मीदवार चुनाव लड़ेगा। आगरा के कमलानगर निवासी दिनेश अग्रवाल ने बताया कि दलित वोट यहां काफी है और अगर बसपा का उम्मीदवार ठीक हुआ तो वह सीट निकाल लेगा। अभी जो परिस्थितियां हैं, उससे सपा का वोट बैंक बसपा को ट्रांसफर होगा। ऐसे में भाजपा को यहां से जीतना आसान नहीं होगा। रायबरेली और अमेठी सीटें सपा और बसपा ने कांग्रेस के लिए छोड़ दी हैं, लेकिन भाजपा यहां लगातार जोर लगा रही है और उद्घाटन-शिलान्यास का सिलसिला भी शुरू है। इसलिए उत्तर प्रदेश का सियासी मैदान अभी उलझा हुआ है।

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