इन दिनों मुंबई में प्रभा देवी स्थित महाराष्ट्र कांग्रेस के मुख्यालय और नरीमन प्वाइंट में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के पार्टी दफ्तर में खासी चहल-पहल है। दोनों दलों के वरिष्ठ नेता अपने घरों और क्षेत्रीय कार्यालयों में लगातार बैठकें कर रहे हैं, उनके फोन अल-सुबह से लेकर देर रात तक घनघनाते ही रहते हैं। उनके पास आने या फोन करने वालों में अरसे से असंतुष्ट चल रहे भाजपा तथा शिवसेना के नेता और कुछ अन्य विरोधी दलों के नेता शामिल हैं। टिकट पक्का होने पर ये नेता निष्ठा बदलने को तैयार बैठे हैं।
तीन प्रमुख हिंदी भाषी प्रदेशों में भाजपा की पराजय और कृषि, अर्थव्यवस्था तथा रोजगार के मोर्चे पर मोदी सरकार के बेहद निराशाजनक प्रदर्शन से कुछ हद तक कांग्रेस और अन्य धर्मनिरपेक्ष दलों की तरफ पलड़ा झुका नजर आ रहा है। एनडीए छोड़ने की शिवसेना की लगातार धमकियों से भी भाजपा विरोधी खेमे को फायदा हुआ है। हालांकि अब शिवसेना और भाजपा ने मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
ऐसे माहौल में राहुल गांधी की अगुआई वाली कांग्रेस और शरद पवार की राकांपा के लिए महाराष्ट्र में दांव ऊंचे हैं। निकाय चुनाव में प्रदर्शन से पूर्व के दोनों गठबंधन सहयोगी दिखा चुके हैं कि 2014 की मोदी लहर अब बीत चुकी है। कई राजनीतिक पंडितों का मानना है कि अप्रैल-मई में संभावित आम चुनाव में यदि ये दोनों दल साथ मिलकर लड़ते हैं तो भाजपा-शिवसेना सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को भुनाकर जीत हासिल करने में कामयाब रहेंगे। हालांकि, कांग्रेस और राकांपा ने आधिकारिक तौर पर अभी गठबंधन का ऐलान नहीं किया है। शीर्ष नेताओं के बीच कई दौर की बातचीत के बाद कहा जा रहा है कि दोनों दल 24-24 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। राज्य में लोकसभा की 48 सीटें हैं। सूत्रों का कहना है कि 40 सीटों पर बातचीत फाइनल हो चुकी है। बाकी बची आठ सीटों पर चर्चा चल रही है। इसके कारण छोटे दलों और पाला बदलने वालों के लिए भी साथ आने की गुंजाइश बनी हुई है।
2014 के आम चुनावों में कांग्रेस लोकसभा की 26 और राकांपा 21 सीटों पर लड़ी थी। कांग्रेस केवल दो सीट जीत पाई, जबकि राकांपा को चार सीटों पर सफलता मिली थी। भाजपा को 23 और शिवसेना को 18 सीटें मिली थीं। एक सीट से स्वाभिमानी शेतकरी संघटना (एसएसएस) के फायरब्रांड किसान नेता राजू शेट्टी ने जीत हासिल की थी।
गठबंधन की मजबूरियां
कांग्रेस-राकांपा का 15 साल का साथ 2014 के विधानसभा चुनाव के दौरान छूट गया था। इस चुनाव में विधानसभा की 288 सीटों में से 42 पर कांग्रेस और 41 पर राकांपा को कामयाबी मिली थी। गठबंधन टूटने का बड़ा फायदा शिवसेना और भाजपा को मिला और बाद में दोनों ने मिलकर सरकार बना ली। यही कारण है कि अक्टूबर 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस-राकांपा के बीच दूरियां कम होने लगीं। निकायों और विधान परिषद चुनावों के दौरान भी दोनों दलों के बीच सहमति दिखी। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण कहते हैं, “हमारा गठबंधन भाजपा-शिवसेना को बड़े अंतर से परास्त करने जा रहा है। कृषि संकट, कुशासन और बेरोजगारी के कारण इस सरकार के राज में राज्य की हालत खस्ता हो चुकी है।”
राकांपा नेता नवाब मलिक भी इसी तरह का दावा करते हैं, “फड़नवीस सरकार ने समृद्धि कॉरिडोर जैसी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर पानी की तरह पैसा बहाया है। इससे राज्य का कर्ज 2.5 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर पांच लाख करोड़ रुपये हो गया है। आय के साधन कम हो गए हैं और निवेश के दावे खोखले साबित हुए हैं। किसान और युवा जीवन के सबसे कठिन समय से गुजर रहे हैं। लोग केंद्र और महाराष्ट्र दोनों जगह की भाजपा सरकार के खिलाफ वोट डालने के मौके का इंतजार कर रहे हैं।”
मतों का विभाजन रोकने और विपक्षी आधार को मजबूत करने के लिए कांग्रेस तथा राकांपा “समान विचारधारा” वाले अन्य दलों को साथ लाकर महागठबंधन बनाने की कोशिश में है। समाजवादी पार्टी (सपा), राजू शेट्टी के नेतृत्व वाली स्वाभिमानी शेतकरी संघटना (एसएसएस), राजेंद्र गवई की अगुआई वाली रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आरपीआइ), हितेंद्र ठाकुर की बहुजन विकास अघाड़ी (बीवीए), प्रकाश आंबेडकर के नेतृत्व वाली भारिप बहुजन महासंघ (बीबीएम) और पीजेंट्स ऐंड वर्कर्स पार्टी ऑफ इंडिया (पीडब्ल्यूपी) को साथ जोड़ने के लिए दोनों दल उत्सुक हैं।
राकांपा प्रवक्ता नवाब मलिक ने आउटलुक को बताया, “इनमें से कुछ सीट नहीं चाहते, वे बस भाजपा को हराने के लिए साथ आना चाहते हैं। कुछ मसलन, राजू शेट्टी तीन और प्रकाश आंबेडकर 12 सीटें चाहते हैं। यहां तक कि सपा भी मुंबई की एक सीट से चुनाव लड़ना चाहती है। इन सभी के साथ बातचीत चल रही है।” कांग्रेस और राकांपा नेताओं का दावा है कि इन दलों की मांग का हकीकत से कोई वास्ता नहीं है। बीएमएम को दो तथा एसएसएस एवं बीवीए को एक-एक सीट दी जा सकती है।
छोटे दलों की राज्य के कुछ इलाकों में मजबूत पैठ है। इनमें कुछ भले सीट जीतने का माद्दा न रखते हों, लेकिन अकेले लड़कर या किसी के साथ जुड़कर चुनावी नतीजों को प्रभावित करने का दमखम रखते हैं। मसलन, हातकणंगले (कोल्हापुर) में एसएसएस की पकड़ है, जहां से शेट्टी खुद सांसद हैं। वे हातकणंगले, बुलढाणा और वर्धा की सीट मांग रहे हैं और तीनों सीट नहीं मिलने पर कांग्रेस-राकांपा को अकेले चुनाव लड़ने की धमकी दे चुके हैं। पर्यवेक्षक इसे दबाव की रणनीति बताते हैं। किसानों के मुद्दे पर मोदी सरकार का विरोध कर एनडीए से अलग होने वाले शेट्टी पहले नेता थे। वे कहते हैं, “केवल एक सीट के लिए कांग्रेस-राकांपा से हाथ मिलाने का कोई तुक नहीं बनता है।”
संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर के पौत्र प्रकाश आंबेडकर ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुसलमीन (एआइएमआइएम) के साथ मिलकर राज्य की सभी 48 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं। कांग्रेस ने उनसे अपने पाले में आने की आस लगा रखी है। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने आउटलुक को बताया, “हम शेतकरी स्वाभिमानी संघटना को एक और बीएमएम को दो सीटें देंगे। फिलवक्त, इन शर्तों पर उनके साथ आने की उम्मीद नहीं है। हालांकि, हमें उम्मीद है कि बीवीए साथ आएगा और पालघर सीट से चुनाव लड़ेगा।”
सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर और बैंकर मीरा सान्याल जैसे बड़े नाम को मैदान में उतारने के बावजूद 2014 के चुनावों में बुरी तरह विफल रही आप भी विदर्भ की करीब दस और मुंबई की छह लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। कुछ सामाजिक संगठनों को साथ लेकर पार्टी राज्य में अपने पैर जमाने की कोशिश में लगी है। आप के राज्य प्रमुख ब्रिगेडियर (रिटायर्ड) सुधीर सावंत ने आउटलुक को बताया, “पिछली बार मोदी लहर ने बड़ी पार्टियों को भी नुकसान पहुंचाया था। फिर भी हमारे दस उम्मीदवारों ने 50 हजार से ज्यादा वोट हासिल किए थे। इस बार हमें न केवल भाजपा के वोट बैंक को तोड़ने, बल्कि कांग्रेस के मतदाताओं को आकर्षित करने का भी पूरा यकीन है।”
यह भी कहा जा रहा कि अतीत में मोदी के मुरीद रहे महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के मुखिया राज ठाकरे भी कांग्रेस-राकांपा गठबंधन में शामिल होना चाहते हैं। राकांपा नेता अजीत पवार और राज ठाकरे के बीच 13 फरवरी को हुई मुलाकात को इसी से जोड़कर देखा जा रहा। हालांकि सूत्र बताते हैं कि एमएनएस को लेकर कांग्रेस-राकांपा की प्रतिक्रिया ठंडी रही है। इसका कारण उत्तर भारतीयों को लेकर एमएनएस का आक्रामक रुख है। जाहिर है, सीटों को लेकर बातचीत उलझी हुई है और तस्वीर साफ होने में वक्त लगेगा। नेताओं का कहना है कि भाजपा-शिवसेना के मिलकर चुनाव लड़ने और आम चुनावों के साथ ही विधानसभा चुनाव होने की सूरत पर काफी कुछ निर्भर करता है।
पर्यवेक्षकों का मानना है कि केंद्र और महाराष्ट्र दोनों जगह भाजपा सरकारों के कमतर प्रदर्शन से राज्य में सत्ता विरोधी रुझान है। आधे हकदार किसानों को कर्जमाफी का फायदा नहीं मिलने से ग्रामीण और बेरोजगारी बढ़ने से शहरी मतदाता प्रभावित हैं। राजनीतिक विश्लेषक सुरेंद्र जोंधाले ने बताया, “लगातार दो साल तक मराठवाड़ा में सूखे ने कृषि संकट को गहरा दिया है। अक्टूबर से इलाके में पानी का संकट है। गर्मियों में स्थिति और बदतर होगी, जिससे सत्ताधारी दल के खिलाफ नाराजगी बढ़ेगी और उसी वक्त देश में आम चुनाव हो रहे होंगे।” जोंधाले की मानें तो चुनावी नतीजे उम्मीदवारों के चयन और कांग्रेस-राकांपा का गठबंधन कितना व्यापक हो पाता है इस पर निर्भर करेगा।
राजनीतिक विश्लेषक और एक अग्रणी मराठी चैनल के एडिटर इन चीफ डॉ. उदय निदगुदकर कहते हैं, “फड़नवीस सरकार ने बुनियादी ढांचे के विकास, वित्त और ऊर्जा के क्षेत्र में अच्छा काम किया है। लेकिन, किसानों की समस्या के निदान में विफल रहने, बेरोजगारी बढ़ने और सुशासन की कमी के कारण उनकी उपलब्धि बेमानी है।” उन्होंने बताया, “लोगों की नाराजगी को एकजुट होकर विपक्ष भुना सकता है। लेकिन, एसएसएस, एआइएमआइएम, बीएमएम अभी तक गठबंधन के साथ नहीं हैं। इस कारण अभी कुछ अनुमान नहीं लगाया जा सकता। कहा जा रहा है कि शरद पवार (राकांपा प्रमुख जिन्होंने 2014 का चुनाव नहीं लड़ा था), सुशील कुमार शिंदे (कांग्रेस नेता और पूर्व गृह मंत्री जो 2014 का चुनाव हार गए थे) जैसे दिग्गज और पुराने दिग्गजों के परिजन मसलन, राधा कृष्ण विखे पाटिल के बेटे के मैदान में उतरने की चर्चा है, से मुकाबला और दिलचस्प हो जाएगा।”
2014 में कांग्रेस 26 और राकांपा 21 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। इस बार दोनों दल बराबर-बराबर सीटों पर लड़ना चाहते हैं। राकांपा नेताओं का कहना है कि 48 में से कम से कम 40 सीटों पर कांग्रेस से बातचीत फाइनल हो चुकी है और आधिकारिक ऐलान बाकी बची सीटों पर चीजें फाइनल होने के बाद जल्द होने की उम्मीद है। आठ सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस और राकांपा दोनों अपने उम्मीदवार उतारना चाहते हैं। ये सीटें हैं-पुणे, अहमदनगर, जालना, रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग, औरंगाबाद, यवतमाल, रावेर और नंदूरबार।
2014 में भाजपा और शिवसेना ने आम चुनाव मिलकर लड़ा था। भाजपा-शिवसेना ने 48.4 फीसदी वोटों के साथ 41 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस-राकांपा 34.4 फीसदी वोटों के साथ छह सीटों पर सिमट गई। लेकिन, आम चुनावों के छह महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में चारों पार्टियां अलग-अलग लड़ी थीं। भाजपा को 28.1 और शिवसेना को 19.5 फीसदी वोट मिले। कांग्रेस और राकांपा को करीब-करीब बराबर क्रमशः 18.1 फीसदी और 17.4 फीसदी वोट मिले थे।
यदि शिवसेना आम चुनावों में अकेले लड़ती तो विधानसभा चुनावों में मिले वोट शेयर के आधार पर वह अपनी 18 सीटों में से कम से कम 15 सीटें कांग्रेस-राकांपा के हाथों गंवा सकती थी। ऐसे में कांग्रेस-राकांपा गठबंधन की सीटें छह से बढ़कर 23 होने की संभावना थी। दूसरी ओर भाजपा, आराम से अपनी सीटें बचाने में कामयाब रहती और 2014 की तरह 23 सीटें उसे मिलती। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने आउटलुक को बताया, “2014 विधानसभा चुनावों के वोट शेयर के आधार पर मौजूदा छह सीटों (बारामती, हिंगोली, कोल्हापुर, माढा, नांदेड और सतारा) के अलावा औरंगाबाद, बुलढाणा, धुले, डिंडोरी, हातकणंगले, जालना, लातूर, मुंबई साउथ सेंट्रल, नंदूरबार, उस्मानाबाद, पालघर, परभणी, रायगढ़, सांगली, शिरडी, शिरूर और यवतमाल-वाशिम में भाजपा-शिवसेना पर कांग्रेस-राकांपा भारी पड़ सकती है।” लेकिन, भाजपा-शिवसेना के साथ चुनाव लड़ने पर विधानसभा चुनावों के वोट आधार पर एनडीए की 41 सीटें बरकरार रह सकती हैं।
भाजपा-शिवसेना गठबंधन का गणित
स्वाभिमानी शेतकरी संघटना जैसे भाजपा के कई सहयोगी दल बीते चार साल में एनडीए छोड़ चुके हैं। दूसरी साझीदार शिवसेना 2019 लोकसभा चुनाव के लिए बेहतर सौदेबाजी में जुटी थी, लेकिन मौजूदा हालात में महाराष्ट्र में त्रिकोणीय लड़ाई भाजपा से ज्यादा शिवसेना के लिए नुकसानदेह साबित होती दिख रही थी। फिर, नए माहौल में भाजपा ने भी झुकने के संकेत दिए। मुंबई में 18 फरवरी को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की मौजूदगी में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने देशहित और हिंदुत्व का हवाला देते हुए कहा कि दोनों दलों ने लोकसभा और विधानसभा का चुनाव मिलकर लड़ने का फैसला किया है। भाजपा राज्य की 25 और शिवसेना 23 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
भाजपा-शिवसेना के साथ आने के बाद अब कांग्रेस-राकांपा को भी नए सिरे से रणनीति बनानी होगी। शिवसेना के अकेले चुनाव लड़ने की स्थिति में कांग्रेस-राकांपा ने सीटों की संख्या छह से बढ़कर 24 होने की उम्मीद लगा रखी थी। इनमें ज्यादातर सीटें शिवसेना की थी। शिवसेना से जुड़े एक व्यक्ति ने बताया, “शिवसेना अकेले चुनाव लड़ती तो उसकी सीटें 18 से घटकर चार हो सकती थी, क्योंकि लोकसभा चुनाव में मतदाता अमूमन क्षेत्रीय पार्टी को वरीयता नहीं देते।” पिछले चुनाव में मिले वोट के आधार पर भी त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति में कांग्रेस-राकांपा के लिए संभावना ज्यादा बेहतर रहती। पिछले वोट प्रतिशत के मुताबिक शिवसेना और भाजपा के साथ मिलकर लड़ने पर पिछली बार से सीटों में बड़ा बदलाव होने की संभावना नहीं दिखती।
हालांकि, कांग्रेस-राकांपा के नेता इससे इत्तेफाक नहीं रखते। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है, “12 सीटों पर कांग्रेस मजबूत है और 8-10 सीटों पर राकांपा तथा एक सीट पर बीवीए जीत सकती है।” कांग्रेस और राकांपा ने विरोधी खेमे के असंतुष्टों के लिए भी दरवाजे खोल रखे हैं। सूत्रों का कहना है कि इसके कारण उम्मीदवारों की फाइनल सूची नामांकन के वक्त ही घोषित होने की उम्मीद है। कुछ सशक्त दावेदारों की पहचान भी की जा चुकी है। इनमें फड़नवीस सरकार में मंत्री रह चुके शिवसेना के अर्जुन खोटकर और भाजपा के एकनाथ खडसे का नाम प्रमुख है। वरिष्ठ पत्रकार अमेय तिरोदकर ने बताया, “खोटकर जालना से चुनाव लड़ने की इच्छा जता चुके हैं, जहां से फिलहाल भाजपा के महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष राव साहेब दानवे सांसद हैं। जालना से टिकट नहीं मिलने पर खोटकर कांग्रेस-राकांपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। जमीन घोटाले में कथित संलिप्तता को लेकर किनारे किए गए खडसे पहले से ही फड़नवीस से खार खाए बैठे हैं। कांग्रेस-राकांपा का टिकट मिलने पर वे अपनी निष्ठा बदल सकते हैं।”
खडसे की बहू रक्षा खडसे रावेर से भाजपा की सांसद हैं। उन्हें दोबारा टिकट नहीं मिलने की अटकलें हैं। जानकारों का कहना है कि एक साल पहले अपनी पार्टी बनाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे जिनके अभी भाजपा से करीबी संबंध हैं, बेटे को रत्नागिरी सीट से टिकट नहीं मिलने पर कांग्रेस-राकांपा के खेमे में लौट सकते हैं। पूर्व आइएएस अधिकारी प्रभाकर देशमुख और पुणे के पूर्व पुलिस आयुक्त गुलाबराव पोल के राकांपा के बैनर तले राजनीति में कदम रखने की अटकलें हैं। सूत्रों ने बताया, “फड़नवीस सरकार की महत्वाकांक्षी जलायुक्त योजना प्रभाकर देशमुख के दिमाग की उपज मानी जाती है। वे माढा से, तो पोल कोल्हापुर से चुनाव लड़ सकते हैं।” कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण का मानना है कि आम चुनाव और विधानसभा चुनाव साथ-साथ होने पर सारे समीकरण पूरी तरह से बदल जाएंगे। वे कहते हैं, “तब लड़ाई और जटिल हो जाएगी, क्योंकि सारा ध्यान विधानसभा चुनावों पर केंद्रित हो जाएगा।”