आखिर 9 अक्टूबर को चुनाव आयोग ने पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव का ऐलान करके कई कयासों को विराम दिया और अगले साल 2024 में लोकसभा चुनावों के महाभारत के पहले कई मुद्दों की आजमाइश की पहली लड़ाई का इंतजार खत्म कर दिया। इन राज्यों में कई मुद्दे ऐसी कसौटी पर हैं जो केंद्र की कुर्सी की जंग की पृष्ठभूमि तैयार कर सकते हैं। ऐसे में मतदान की तारीखें गौरतलब हैं। मतदान का आगाज 7 नवंबर को होगा और उसी दिन मिजोरम (40 सीटें) का एक चरण में और छत्तीसगढ़ के दो चरणों का पहला मतदान होगा। छत्तीसगढ़ में दूसरे चरण का मतदान लंबे अंतराल के बाद नवंबर 17 को होगा। बड़े राज्यों मध्य प्रदेश (17 नवंबर), राजस्थान (23 नवंबर), तेलंगाना (30 नवंबर) के मतदान एक ही चरण में कराए जाएंगे। इससे कई लोग चकित भी हो सकते हैं और कयास भी लग सकते हैं।
पहला सवाल तो यही घूमेगा कि बड़े राज्यों (मध्य प्रदेश 224 सीट, राजस्थान 200 सीट, तेलंगाना 119 सीट) में एक चरण में ईवीएम के बटन दबेंगे लेकिन छत्तीसगढ़ (90 सीटें) में दो चरण के मतदान की औपचारिक वजह खासकर आदिवासी पट्टी में हिंसक घटनाओं की आशंका हो। इसके सियासी मायने भी निकाले जा सकते हैं। दरअसल, खासकर हिंदी पट्टी के तीन राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में मुख्य लड़ाई भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के बीच होनी है। इन दोनों के बीच केंद्र में भी मुख्य मुकाबला होना है। मध्य प्रदेश की कुर्सी भाजपा को और राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ की कांग्रेस को बचानी है। इनमें छत्तीसगढ़ की अहमियत प्राकृतिक संसाधनों के मद्देनजर खास है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल की एक रैली में कहा, “यह एटीएम बना हुआ है।” छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक रैली में कहा, “भाजपा बहुत कुछ निजीकरण करना चाहती है लेकिन हम रुकावट बने हुए हैं।”
हाल के कई चुनावी सर्वेक्षणों में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को बढ़त बताई जा रही है जबकि राजस्थान में कांटे की टक्कर बताई जा रही है। जिन चुनावी मुद्दों की परीक्षा होनी है, उनमें शायद सबसे बड़ा जातिवार जनगणना का मुद्दा है। शायद चुनावी घोषणा का कुछ अंदाजा रहा होगा कि बिहार के जातिवार सर्वेक्षण के प्राथमिक नतीजे महात्मा गांधी की जयंती 2 अक्टूबर को जारी कर दिए गए। इन नतीजों में ओबीसी जातियों (करीब 63 फीसदी), अनुसूचित जातियों (करीब 20 फीसदी) के आंकड़े जाहिर होते ही राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सरकारों ने भी जातिवार जनगणना कराने का ऐलान कर दिया। मध्य प्रदेश में कांग्रेस यह वादा कर ही चुकी है। इसके उलट प्रधानमंत्री मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की रैलियों में बिहार के जातिवार सर्वेक्षण और 'जितनी आबादी, उतना हक' के कांग्रेस के नारे पर बरसे। तो, ये चुनाव इस मुद्दे के आगे तक जाने की परीक्षा जैसे हो सकते हैं।
इसी तरह इन तीनों राज्यों में कल्याणकारी कार्यक्रमों के चुनावी अहमियत की भी परीक्षा होनी है। हाल में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दनादन कई योजनाओं का ऐलान किया। उसी तरह राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी कई योजनाओं का ऐलान किया, स्वास्थ्य योजना का खूब प्रचार किया और सामाजिक सुरक्षा के उपक्रम किए। छत्तीसगढ़ में बघेल सरकार ने कल्याणकारी योजनाओं और धर्माधारित कार्यक्रमों को खूब प्रचारित किया है।
तीसरे, तीनों राज्यों में भाजपा और कांग्रेस की सांगठनिक एकजुटता की भी परीक्षा होनी है। राजस्थान में सचिन पायलट से गहलोत की तनातनी भले खुलकर न दिख रही हो, मगर पायलट अपने टोंक क्षेत्र के आसपास के इलाकों से कम ही निकल रहे हैं। भाजपा में वसुंधरा राजे का मामला सुलटता नहीं लग रहा है। मध्य प्रदेश में भाजपा कई खेमों में बंटी है और कई सांसदों, केंद्रीय मंत्रियों को चुनाव लड़ाने की मजबूरी से भी जूझ रही है। कांग्रेस एकजुट तो दिख रही है लेकिन वहां भी कई खेमे सक्रिय हैं। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का कुनबा कुछ सुधरा दिखता है तो भाजपा बेचेहरा दिखती है। तेलंगाना में मुख्य मुकाबला बीआरएस और कांग्रेस के बीच बताया जा रहा है। भाजपा लड़ाई में खास मजबूत नहीं दिख रही है। मिजोरम में कांग्रेस और क्षेत्रीय दल के बीच मुकाबला है, जिसके साथ भाजपा का गठजोड़ है। कुल मिलाकर यह, कि जनादेश किसे मिलता है यह 3 दिसंबर को पता चलेगा और उसी से लोकसभा चुनावों का अफसाना भी तैयार होगा।