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ओलंपिक/विश्व विजय की तैयारी

विश्व में अव्वल स्थान वाले छह और शीर्ष 10 में स्थान वाले कई एथलीट भारतीय दल में शामिल, भारत की ओलंपिक टीम पहले कभी इतनी मजबूत नहीं दिखी
ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों पर नजर

यह एक अद्भुत अवसर है। ओलंपिक खेलों से पहले आम तौर पर दिखने वाली गूंज और उत्तेजना इस बार नहीं है। जहां ये खेल होने हैं वहां भी कोई शोर-शराबा नहीं है। अभी जो थोड़ी उत्तेजना है वह उन अलग-अलग जगहों पर है जहां से खिलाड़ी टोक्यो के लिए रवाना हुए हैं। हर चार साल में होने वाले इस आयोजन के लिए वे अपनी तैयारियों को अंतिम रूप दे चुके हैं। एक नया, उत्साही भारतीय दल 32वें ओलंपिक खेलों में भाग लेने जा रहा है। यह आयोजन इस लिहाज से अलग है कि एक तो पूरी दुनिया पर महामारी का असर दिख रहा है, और दूसरे, पहली बार ओलंपिक खेलों को देखने के लिए दर्शक नहीं होंगे। टोक्यो के ओलंपिक स्टेडियम में 23 जुलाई को बॉक्सिंग लीजेंड मेरी कॉम और हॉकी टीम के कप्तान मनप्रीत सिंह 119 सदस्यों वाले भारतीय दल का नेतृत्व करेंगे। यह दल ऐसी साहसी पीढ़ी का है जो बेहद प्रतिस्पर्धी है और पदक के लिए एक इंच भी पीछे हटने को तैयार नहीं।

इस बार भारतीय दल में अलग-अलग खेलों के ऐसे एथलीट हैं जो दुनिया में शीर्ष स्थान रखते हैं। इनके अलावा कई एथलीट शीर्ष 10 में शुमार हैं। ओलंपिक में भारतीय टीम इतनी मजबूत पहले कभी नहीं दिखी। भारत साल 1900 में पेरिस ओलंपिक से इन खेलों में भाग लेता आ रहा है। 1920 से भारत ने प्रत्येक समर ओलंपिक में हिस्सा लिया है। इसके बावजूद भारत के नाम अभी तक सिर्फ 28 मेडल हैं। इनमें भी रिकॉर्ड आठ स्वर्ण हॉकी में और एक स्वर्ण शूटिंग में है। इस बार यह सब बदल सकता है।

अगर भारतीय शूटर और तीरंदाज टोक्यो में अपने मौजूदा फॉर्म को बरकरार रखते हैं और अत्यधिक दबाव के क्षणों में अपने आप को नियंत्रित रखने में सफल होते हैं, तो हमारे पदकों का आंकड़ा दहाई अंकों में जा सकता है। भारत के लिए अभी तक सबसे अच्छा लंदन ओलंपिक 2012 रहा है, जब हमने दो रजत और चार कांस्य पदक जीते थे। रियो ओलंपिक 2016 में प्रदर्शन उतना उम्दा नहीं था और हमें बैडमिंटन में एक रजत और कुश्ती में एक कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा। रियो ओलंपिक ने दिखाया कि भारतीय एथलीट में स्टेज का भय है। वह विजन और जवाबदेही से दूर पूरे खेल इकोसिस्टम की भी नाकामी थी।

रियो के बाद चार साल में भारत ने कई खेलों में महत्वपूर्ण सुधार किया है। पिछले 12 महीने में शूटिंग, बॉक्सिंग और कुश्ती में भारतीय खिलाड़ियों ने विश्वस्तरीय प्रतिस्पर्धाओं में शीर्ष स्थान हासिल किया है। तीरंदाज दीपिका कुमारी, पहलवान विनेश फोगाट, बॉक्सर विकास कृष्ण, शूटर अपूर्वी चंदेला, मेराज अहमद खान और संजीव राजपूत न सिर्फ अनुभवी हैं बल्कि उनमें आत्मविश्वास भी है। उनके साथ अनेक खिलाड़ी पहली बार ओलंपिक के अखाड़े में उतरेंगे।

पदक की आसः (बाएं से) बॉक्सर अमित पंघाल, पुरुष हॉकी टीम, बॉक्सर मेरी कॉम और सिमरनजीत कौर

पदक की आसः (बाएं से) बॉक्सर अमित पंघाल, पुरुष हॉकी टीम, बॉक्सर मेरी कॉम और सिमरनजीत कौर

यह सच है कि अनुभव का अलग फायदा होता है, फिर भी किशोरवय मनु भाकर, सौरभ चौधरी और पहलवान अंशु तथा सोनम मलिक पर अपेक्षाकृत दबाव कम होगा। हालांकि ये एथलीट भी जानते हैं कि उनसे उम्मीदें बहुत ज्यादा हैं। सर्वश्रेष्ठ स्तर पर प्रशिक्षण पाने वाले नई पीढ़ी के ये एथलीट बिल्कुल अलग हैं। इनके साथ टीम में बॉक्सर अमित पंघाल, पहलवान बजरंग पुनिया और वर्ल्ड चैंपियन शूटर तेजस्विनी सावंत भी हैं।

इसलिए बीजिंग ओलंपिक 2008 में स्वर्ण पदक जीतने वाले अभिनव बिंद्रा ने कहा है, “ओलंपिक में हम कभी फेवरिट के तौर पर शामिल नहीं हुए। हमारे पास पहले कभी इतने एथलीट नहीं थे जिनसे वास्तव में स्वर्ण पदक की उम्मीद की जा सके। हमारी उम्मीदों में से अगर आधे ने भी लक्ष्य हासिल कर लिया तो टोक्यो में हमें कई ओलंपिक चैंपियन मिलेंगे। शूटिंग उन खेलों में है जिनमें हमें काफी ज्यादा उम्मीदें हैं।”

मार्केट रिसर्च फर्म नीलसन की कंपनी गेम्स बाय ग्रेसनोट ने आयोजन से 100 दिन पहले पदक तालिका का एक अनुमान जारी किया था। उसने बताया कि टोक्यो 2020 में भारत 17 पदक जीतेगा- चार स्वर्ण, पांच रजत और आठ कांस्य पदक। तालिका में भारत का स्थान 19वां होगा। महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों में खिलाड़ियों के प्रदर्शन के आधार पर यह तालिका बनाई गई है। अमेरिका (114 पदक), चीन (85), रूस (73) और जापान (59) पहले चार स्थान पर होंगे।

हाल ही आयोजित तीरंदाजी और शूटिंग विश्व कप में भारत के प्रदर्शन को देखते हुए ग्रेसनोट का अनुमान काफी हद तक सही लगता है। जून के अंत में पेरिस विश्व कप में दीपिका कुमारी ने स्वर्ण पदकों की हैट ट्रिक जीती। दीपिका इस समय विश्व में नंबर एक हैं और 2012 से नौ विश्वकप जीत चुकी हैं। हालांकि 27 साल की इस तीरंदाज को ओलंपिक में अभी तक सफलता नहीं मिली है। इस बार मिश्रित वर्ग में उनके स्वर्ण जीतने की उम्मीद काफी अधिक है, जहां उनके पति और ओलंपियन तीरंदाज अतनु दास उनके जोड़ीदार होंगे। दोनों ने पेरिस में भी स्वर्ण जीता है, लेकिन टोक्यो में उनका मुकाबला दक्षिण कोरिया और चीन जैसी मजबूत टीमों से होगा।

पूर्व ओलंपिक तीरंदाज डोला बनर्जी कहती हैं, दीपिका के लिए यह सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने का समय है। उन्हें इस साल की शुरुआत में टेस्ट इवेंट के दौरान टोक्यो स्थित यूमेनोशिमा पार्क आर्चरी फील्ड का अनुभव है। डोला के अनुसार हवा का रुख और उसकी गति से सावधान रहना पड़ेगा। ओलंपिक डॉट कॉम से बातचीत में उन्होंने कहा, “आपको अपनी हृदय गति पर नियंत्रण रखना पड़ेगा। अगर आपकी धड़कनें ज्यादा तेज हुईं तो तीर पर आपका नियंत्रण नहीं रहेगा। आपके तीर निशाने पर लगने के बजाए इधर-उधर चले जाएंगे।”

शूटिंग में तीन भारतीय, विश्व में शीर्ष वरीयता रखने वाले हैं। इस खेल में हार या जीत दशमलव अंकों से तय होती है। लेकिन 15 सदस्यों वाले भारतीय दल में हर एक शूटर से पदक की उम्मीद है। यह दल दो महीने से क्रोएशिया में प्रशिक्षण ले रहा था। हालांकि क्रोएशिया के ओसिजेक में आयोजित विश्व कप में इनका प्रदर्शन औसत दर्जे का था, लेकिन टोक्यो के लिए इनकी तैयारी मजबूत दिखती है। तीरंदाजी की तरह इसमें भी बहुत कुछ खिलाड़ियों के धैर्य पर निर्भर करेगा।

भारतीय दल से इतनी उम्मीदें हैं तो इसके लिए सरकार की भूमिका की भी प्रशंसा होनी चाहिए। ओलंपिक में जाने वाले सभी खिलाड़ियों पर केंद्रीय खेल मंत्रालय ने खुलकर खर्च किया है। शूटर और बॉक्सर ने इटली में, पहलवान और एथलीट ने यूरोप में प्रशिक्षण हासिल किया है। एकमात्र वेटलिफ्टर मीराबाई चानू ने भी अपने व्यक्तिगत कोच के साथ विदेश जाकर प्रशिक्षण लिया है। मंत्रालय ने सितंबर 2014 में टारगेट ओलिंपिक पोडियम स्कीम (टॉप्स) नाम से फ्लैगशिप प्रोजेक्ट लांच किया था। इसके तहत 2016 से 2021 के दरम्यान 18 ओलंपिक खेलों और पैरा स्पोर्ट्स पर करीब 78 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। सरकारी रवैये का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब बैडमिंटन विश्व चैंपियन पी.वी. सिंधु ने एडवांस रिकवरी सिस्टम की मांग की तो खेल मंत्रालय ने 24 घंटे से भी कम समय में उसके लिए फंड की मंजूरी दे दी। एडवांस रिकवरी सिस्टम एथलीट के पैरों, बांहों, पीठ और कंधों के ऊपर खास तरह के यंत्र के जरिए बर्फीले पानी का प्रवाह करता है। इससे दर्द, अकड़न और सूजन से जल्दी राहत मिलती है और रक्त में ऑक्सीजन का प्रवाह बढ़ता है। इस इसकी कीमत करीब 7.5 लाख रुपये है।

प्रेम की तरह ओलंपिक पदक भी पैसे से नहीं खरीदे जा सकते। लेकिन भारतीय खिलाड़ियों की नई नस्ल ओलिंपिक का इतिहास नए सिरे से लिखने को बेताब दिखती है। ओलंपिक आयोजन भले ही खेल भावना का प्रतीक हो, लेकिन खिलाड़ियों के बीच एक दूसरे को पछाड़ने की तीव्र उत्कंठा भी होती है। इस प्रतिस्पर्धी भावना के साथ भारतीय दल भी नया मुकाम हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध है।

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