इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस महासचिव, उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी की सक्रियता से लंबे अरसे बाद पार्टी राज्य में सुर्खियों में आई और लोगों के बीच चर्चा का विषय भी बनती गई है। पिछले कुछेक महीनों से चुनावों की खातिर अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के सक्रिय होने के पहले तक ऐसा लग रहा था कि विपक्ष की आवाज बुलंद करने वाली इकलौती प्रियंका और कांग्रेस ही है। राज्य में चाहे दलित उत्पीड़न की घटनाएं हों या स्त्रियों पर अत्याचारों की या फिर लखीमपुर खीरी में किसानों को कुचल डालने की घटना, प्रियंका और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार सिंह लल्लू तथा पार्टी के नेता-कार्यकर्ता विरोध का झंडा बुलंद करने में आगे रहे। हाल में प्रियंका राज्य भर में जगह-जगह स्त्री सम्मेलन कर रही हैं और 40 प्रतिशत पार्टी टिकट महिलाओं को देने का ऐलान किया है। उनका यह नारा भी लोकप्रिय हो रहा है कि ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं।’ लेकिन सवाल यही है कि क्या इन आयोजनों में जुट रही भीड़ कांग्रेस के लिए वोटों में तब्दील हो पाएगी? क्या कांग्रेस की वोट हिस्सेदारी 6-7 फीसदी से ऊपर जा पाएगी?
यही यक्ष सवाल है। फिलहाल कांग्रेस का राज्य में किसी के साथ चुनावी तालमेल नहीं है और चुनाव अब सिर पर हैं। ऐसे में अकेले कांग्रेस क्या ऐसा करिश्मा दिखा पाएगी कि उसकी सीटों का आंकड़ा दहाई में पहुंच जाए? शायद संभव है, बशर्ते महिलाओं, दलितों, मुसलमानों और ब्राह्मणों में उसका पारंपरिक जनाधार का ठीक-ठाक हिस्सा लौट आए। फिलहाल तो यह मुश्किल लगता है, लेकिन चुनाव अनिश्चितता का खेल है।
दरअसल उत्तर प्रदेश में कांग्रेस बीते तीन दशक से हाशिये पर है। उस पर भी बुरी स्थिति यह कि 2019 में अमेठी से राहुल गांधी को हार का सामना करना पड़ा। उसका वोट प्रतिशत इकाई में पहुंच गया। फिर भी कांग्रेस ने राज्य में योगी सरकार को घेरने का एक भी मौका नहीं छोड़ा है। जब से यूपी कांग्रेस की कमान प्रियंका के हाथों में आई है, तब से कांग्रेस का रंग-ढंग बदल गया है। प्रियंका ने सबसे पहला जो बदलाव किया, वह संगठन पर पकड़ रखने वाले तथा लगातार दो बार से विधायक अजय कुमार सिंह लल्लू को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। प्रदेश में कांग्रेस के सांगठनिक रूप से कमजोर होने के बावजूद जमीनी पकड़ रखने वाले लल्लू ने अपने जुझारू तेवर की बदौलत कांग्रेस को चर्चा में ला दिया है।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष लल्लू का कहना है कि कांग्रेस में बूथ और सेक्टर स्तर पर और फ्रंटल संगठनों को सक्रिय किया गया है
प्रियंका और लल्लू की जोड़ी ने आरामतलब कांग्रेसियों को सड़क पर उतारा, मठाधीशी करने वाले वरिष्ठ कांग्रेसियों को संगठन से बाहर का रास्ता दिखाया और नए चेहरों के जरिए सड़क की राजनीति शुरू की। कोरोना काल में बस भेजने का मामला रहा हो या फिर हाथरस और लखीमपुर कांड, प्रियंका और कांग्रेस ने हर मोर्चे पर योगी की सरकार की मजबूत घेरेबंदी की। कांग्रेस के प्रदेश मुख्यालय में प्रियंका ने मैराथन बैठकें करके संगठन की व्यापक समीक्षा के साथ-साथ जमीनी रुझानों से चुनावी रणनीति तैयार की। पश्चिमी यूपी, रूहेलखंड एवं मध्य यूपी के जनपदों की ब्लॉक एवं न्याय पंचायतवार समीक्षा की। प्रियंका का कहना था कि संगठन का काम अब आखिरी चरण में पहुंच चुका है तथा आगामी चुनाव में टिकट बंटवारे में संगठन की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी।
विधानसभा चुनाव के मद्देनजर जोनवार पदाधिकारियों से चर्चा कर चुनाव के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार किया गया। इसके लिए दो दिन तक चलने वाली मैराथन बैठकों में प्रदेश के आठों जोन के पदाधिकारियों ने अपनी राय रखी और जिला एवं शहर अध्यक्ष, प्रदेश सचिव, महासचिव और प्रदेश उपाध्यक्षों से एक-एक करके रिपोर्ट ली गई। प्रदेश के 831 ब्लाकों, 2614 वार्डों और 8134 न्याय पंचायत की रिपोर्ट पर व्यापक विचार-विमर्श व समीक्षा हुई। पश्चिमी जोन के अन्तर्गत आने वाले 96 ब्लाकों के 874 न्यायपंचायतों पर बात हुई तथा किसान आंदोलन से जुड़े तमाम मुद्दों पर पदाधिकारियों की चर्चा हुई। रूहेलखंड जोन के 85 ब्लाकों के 830 न्याय पंचायतों की रिपोर्ट प्राप्त कर गहन समीक्षा की गई। पूर्वांचल के 97 ब्लाकों की 975 न्याय पंचायतों तथा अवध के 133 ब्लाकों और 1330 न्याय पंचायतों की रिपोर्ट पर चर्चा की गई। हर स्तर के पदाधिकारियों का जिलेवार प्रशिक्षण कराया गया। 'प्रशिक्षण से पराक्रम' महाभियान में 700 ट्रेनिंग कैंप लगाए गए। इसमें दो लाख पदाधिकारियों को प्रशिक्षित करने का अभियान चलाया गया। टिकट बंटवारे पर उम्मीदवारों के नाम तय करने की प्रक्रिया में संगठन के पदाधिकारियों की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी।
लगभग तीन दशक से सोई हुई कांग्रेस में दम भरने के लिए हर गांव में अभियान चला कर कांग्रेस कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को घर-घर भेजा गया। इस महाअभियान को पार्टी के पुराने पदाधिकारियों ने सराहा भी। प्रदेश भर में 'दलित स्वाभिमान यात्रा' निकाली गई।
सत्ता से 32 साल बाहर रहने की वजह से कांग्रेस के समक्ष कई चुनौतियां हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षक कांग्रेस को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। उनका मानना है कि इस बार विधानसभा चुनाव में भाजपा का सीधा मुकाबला समाजवादी पार्टी से होगा। कांग्रेस का मूल वोटर मुसलमान, दलित तथा ब्राह्मण कई दलों के बीच बंट चुका है। कांग्रेस के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि वह पिछले कई विधानसभा चुनाव गठबंधन के सहारे लड़ती आई है, लिहाजा सभी जिलों में उसका संगठन मजबूत नहीं है।
प्रतिज्ञा रैलियों में जुट रही भीड़ कांग्रेस के लिए उत्साहजनक है, लेकिन भीड़ को वोट में बदलने के लिए जमीनी स्तर पर संगठन नहीं है। कांग्रेस ने भले ही 40 फीसदी महिलाओं को टिकट देने का ऐलान किया हो, लेकिन पार्टी के पास महिला तो महिला, जिताऊ पुरुष उम्मीदवारों का भी टोटा है। लड़कियों को स्कूटी और आगंनवाड़ी कार्यकर्ताओं के मानदेय में वृद्धि का भी वादा भी कांग्रेस कर रही है, लेकिन बड़ा सवाल है कि इसके जरिये कांग्रेस कितना फीसदी वोट बढ़ा पाएगी! सत्ता हासिल करने के लिए कांग्रेस को अपने वोट प्रतिशत को वर्तमान से कम से पांच गुना तक ले जाना होगा। वर्ष 2017 के चुनाव में समाजवादी पार्टी से गठबंधन के बावजूद कांग्रेस को सिर्फ छह फीसदी वोट मिले थे। अपनी स्थिति मजबूत बनाने के लिए कांग्रेस को अपना वोट प्रतिशत छह फीसदी से बढ़ाकर 30 प्रतिशत तक पहुंचाना होगा, जो आसान नहीं है।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष लल्लू का कहना है कि कांग्रेस में बूथ और सेक्टर स्तर पर और फ्रंटल संगठनों को सक्रिय किया गया है। योजनाबद्ध तरीके से जनता के साथ गांवों, कस्बों, शहरों में युद्धस्तर पर सम्पर्क किया जा रहा है। इस समय कांग्रेस बदलाव की ओर है। पार्टी को नुकसान पहुंचा रहे कुछ अनुशासनहीन पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को निष्कासित और निलम्बित भी किया गया। वर्षों से जो अच्छे कार्यकर्ता निष्क्रिय हो गए थे उन्हें कर्मठ कार्यकर्ताओं के जरिए सक्रिय कर महत्वपूर्ण जिम्मदारी दी गई। "लड़की हूं लड़ सकती हूं" नारे और 40 फीसदी महिलाओं को टिकट देने की बात से हर जिले में भीड़ आ रही है।
प्रियंका की सक्रियता के बाद से कांग्रेस का जनाधार कितना बढ़ा है, यह तो आने वाले चुनाव बताएंगे। इसमें दो राय नहीं कि विपक्ष में होने के नाते जनता के मुद्दों को लेकर पिछले 10 साल में सड़क से लेकर सदन तक प्रदेशाध्यक्ष अजय कुमार लल्लू जितने आक्रामक दिखे, उतनी आक्रामकता विपक्ष के दूसरे दलों में नहीं दिखी। देखना यह है कि इतना सब कुछ होने के बाद कांग्रेस जनता के बीच अपनी कितनी स्वीकार्यता और विश्वसनीयता बना पाई है।