उत्तर-पश्चिमी सीमावर्ती कृषि प्रधान राज्य पंजाब का इतिहास गौरवशाली और त्रासद दोनों है। 1947 के विभाजन ने न सिर्फ वहां के लोगों को, बल्कि उनकी नदियों को भी बांट दिया। कभी खुशहाली का स्रोत रहीं ये नदियां अब उग्र हो गई हैं और बाढ़ की तबाही ला रही हैं। इन्हीं नदियों से बना यह इलाका अब ऐसी विनाश लीलाओं के साथ जीने और खुद को ढालने में लगा है। उत्तर भारत में 25 अगस्त से 3 सितंबर, 2025 के बीच बाढ़ और बादल फटने की ऐसी तबाही हुई, जो हाल के इतिहास में पहले कभी नहीं देखी गई। इसमें पंजाब में ही 40 से अधिक लोगों की जान चली गई, लगभग 2,000 गांव डूब गए, 3,50,000 से अधिक लोग प्रभावित हुए और 1.75 लाख हेक्टेयर फसल नष्ट हो गई।
ऐसी ही तबाही से गुजरे जम्मू-कश्मीर सहित दूसरे उत्तरी राज्य इन दिनों सरकारी मदद का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन पंजाब में माहौल कुछ अलग दिख रहा है। यहां यह माहौल सरकारी कार्यालयों से नहीं, बल्कि बाढ़ उतरने के बाद खेतों और गांवों की गलियों में लोगों की सक्रियता से बना है।
शुरुआती दिनों में सरकारी प्रतिक्रिया सुस्त थी। अभी कोई राहत शिविर नहीं बने थे, लोगों को अपनी जिंदगी खुद ही संभालनी थी। पंजाब के लोगों ने सदियों पुराने सिख सिद्धांतों, चढ़ दी कलां (निराशा में भी आशा) और सरबत दा भला (सबका भला हो) से प्रेरित होकर स्वतःस्फूर्त राहत प्रयास शुरू किए, जो मिसाल बन गया।

पीड़ितों के साथ मुख्यमंत्री मान
हालांकि, पंजाब में जिंदगी और खेती-किसानी को फिर से खड़ा करना लंबी प्रक्रिया होगी। शुरुआत बाढ़ के पानी और गाद को साफ करने से होगी और नुकसान के सटीक आकलन, पुनर्वास, उपजाऊ भूमि की बहाली, फॉगिंग अभियान और दीर्घकालिक बाढ़ रोकथाम रणनीतियों के जरिए पूरी होगी। बाढ़ का पानी उतरने के बाद हैजा, डेंगू वगैरह का प्रकोप बढ़ सकता है।
कृषि प्रधान क्षेत्र होने के बावजूद पंजाब में अभी भी व्यापक फसल बीमा योजना का अभाव है, जिससे किसान ऐसी आपदाओं का ज्यादा खामियाजा भुगतते हैं। फिलहाल सबसे बड़ी चुनौतियों में मृत पशुओं के शवों का सुरक्षित निपटान है, ताकि वह कोई स्वास्थ्य संकट न बने।
नौजवान राहत में आगे
बाढ़ में खेत, घर और सड़कें डूब गईं, तो पंजाब के नौजवान सबसे पहले राहत में उतरे। आम लोग और गैर-सरकारी संगठन तेजी से जुटे और अलग-अलग काम करने के बावजूद तालमेल बनाए रखा। किसान ट्रैक्टरों और ट्रॉलियों के जरिए कमर तक गहरे पानी में फंसे परिवारों को बचाने और रसद पहुंचाने में जुट गए। गैर-सरकारी संगठनों ने स्थानीय नौजवानों के साथ मिलकर चिकित्सा शिविर चलाए, नावों की व्यवस्था की और खाने का सामान बांटा। जहां सरकारी सहायता कम पड़ रही थी, वहां मदद की।
ग्लोबल सिख्स ने सांझ फाउंडेशन के साथ मिलकर तत्काल सहायता और दीर्घकालिक पुनर्वास का नेतृत्व किया। ग्लोबल सिख्स की दमनजीत कौर ने बताया, ‘‘पहले दिन से ही नौजवान सक्रिय थे, वे न सिर्फ बचाव और राहत में जुटे थे, बल्कि जलजनित बीमारियों की रोथाम के लिए तत्काल चिकित्सा आवश्यकताओं, खासकर महिलाओं के लिए सैनिटरी पैड और बच्चों के लिए दवाइयां उपलब्ध करा रहे थे।’’ उन्होंने आगे कहा, ‘‘शुरुआती राहत और बचाव कार्य आम लोगों ने किया, सरकारी मदद तो बहुत बाद में आई।’’

तबाहीः कीचड़ से भरे खेत में किसान
ग्लोबल सिख्स के संस्थापक अमरप्रीत सिंह और ट्रस्टी गगनदीप सिंह ने बताया कि गुरदासपुर में राहत का दूसरा चरण चल रहा है: रुके हुए पानी को पंप करना, मलबा हटाना, मवेशियों और पशुधन का वितरण, घरों का पुनर्निर्माण और कृषि सुधार में सहयोग। ग्रामीण पंजाब में मवेशी सिर्फ पशुधन नहीं, बल्कि परिवार, आजीविका, पहचान और सम्मान का प्रतीक है। अमरीक सिंह ने बाढ़ में अपना सब कुछ खो दिया, तो ग्लोबल सिख्स से दान में मिली गाय उनके लिए आशा का किरण बन गई है। अजनाला में परिवारों को अपने घर फिर से बनाने के लिए जरूरी घरेलू उपकरण मिल रहे हैं, जबकि फजिल्का में बाढ़ के बाद की बीमारियों की रोकथाम के लिए फॉगिंग अभियान जारी है।
ग्लोबल सिख्स ने अपनी रीबिल्ड पंजाब पहल के तहत तत्काल राहत से आगे बढ़कर दीर्घकालिक कामों की ओर कदम बढ़ाया है। उसने हर घर को मजबूत और सुरक्षित बनाने के लिए जानकारों, वास्तुकारों, इंजीनियरों और सामुदायिक विकास विशेषज्ञों का पैनल तैयार किया है। इस पैनल में यूनेस्को-पुरस्कार प्राप्त पर्यावरणविद् ए.आर. गुरमीत राय, संरचनात्मक इंजीनियर मेहुल शाह, आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ मनु गुप्ता, इतिहासकार और सामुदायिक विशेषज्ञ यामिनी मुबाई, पर्यावरण अनुकूल डिजाइनर एआर. अक्षय कौल और क्लीया चांदमल शामिल हैं।
प्रो. मनजीत सिंह के नेतृत्व में वॉटर वॉरियर्स पंजाब ने स्थानीय छात्रों और कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर सफाई अभियान चलाया। वॉटर वॉरियर्स की हरपुनीत कौर ने कहा, ‘‘लोग दुख-तकलीफ में हों तो मैं चुप नहीं रह सकती थी। हमने दूसरे छात्रों को जुटाकर फौरन एक राहत दल बनाया।’’
ऐसे अनगिनत स्थानीय संगठन हैं, जो जुटे हुए हैं। उनमें एक गुरदासपुर में कार्यरत लोक वेलफेयर है। खालसा एड, राउंड-ग्लास फाउंडेशन, यूनाइटेड सिख्स, वटरुख, इनिशिएटर्स ऑफ चेंज और हेमकुंट फउंडेशन सहित कई अन्य प्रमुख संगठन भी जुटे हैं। ये संगठन पंजाब में विश्व सेवा के मिशन के साथ स्थापित हुए थे और आज, ये इस कठिन समय में अपने लोगों को राहत और सहायता प्रदान करने के लिए अपनी शक्ति और करुणा का उपयोग करते हुए दृढ़ता से खड़े हैं।
कुछ बेमिसाल कहानियां
लुधियाना के पोलियो से पीड़ित 21 वर्षीय करनजोत सिंह राहत कार्यों में शामिल हुए और तटबंध बनाने में मदद की। अमृतसर के पास एक बुजुर्ग ने बचावकर्मियों को चाय पिलाई, जिनका घर डूबा हुआ था। राहत कार्यों का शायद सबसे प्रेरणादायक पहलू पंजाब की महिलाओं का निडर नेतृत्व है। घुटनों तक पानी में चलने से लेकर भारी रेत की बोरियां उठाने और आपातकालीन तटबंध बनाने तक उन्होंने राहत में आगे कदम बढ़ाया।
एकजुटता अद्भुत थी। कलाकार, व्यवसायी, किसान, सेना और स्थानीय अधिकारी भी जुट गए। कई लोग अपने परिवारों को छोड़कर आए। बाढ़ में फंसे जानवरों को भी देखभाल और आश्रय मिला। पंजाब की प्रतिक्रिया सिर्फ जीवित रहने तक सीमित नहीं है; यह दर्शाता है कि कैसे सहानुभूति, एकजुटता और सामूहिक कार्रवाई निराशा को आशा में बदल सकती है।
आपदा या गलत नीतियों का नतीजा?
विनाशकारी बाढ़ प्राकृतिक नहीं थी; बिना सोची-समझी नीतियों और लापरवाहियों ने संकट को और बढ़ा दिया। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग और भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड द्वारा सामान्य से अधिक वर्षा और बांध के बढ़ते जलस्तर के बारे में चेतावनियों के बावजूद महत्वपूर्ण कार्रवाई में देरी की गई। भाखड़ा बांध जुलाई के अंत तक 70 प्रतिशत से अधिक क्षमता तक पहुंच गया था, नियंत्रित तरीके से पानी छोड़ने के बजाय पानी जमा होता रहा। स्पिलवे गेट 19 अगस्त को ही खोले गए, जिससे निचले इलाकों में बाढ़ भयावह हो गई। इससे पता चलता है कि पारदर्शी निर्णय प्रक्रिया, समय पर कार्रवाई और सामुदायिक भागीदारी जरूरी है।
जलवायु संकट भी आपदाएं बढ़ा रहा है। पंजाब का अनुभव शहरी नियोजन, कृषि और नदी प्रबंधन में जलवायु जोखिम को ध्यान में रखना, दलदली भूमि को बहाल करना, जलग्रहण क्षेत्रों में वनरोपण करना, वृक्ष संरक्षण अधिनियम को लागू करना और सामुदायिक स्तर की तैयारियों को मजबूत करना बेहद जरूरी बना रहा है। क्या इस ओर सरकार और नीति-निर्माताओं का ध्यान जाएगा, यही सवाल सबसे बड़ा है।
जलवायु संकट का सबक
पंजाब की मौजूदा कहानी जलवायु संकट से त्रस्त दुनिया के लिए मिसाल पेश करती है। इससे साबित होता है कि सरकारी और तमाम संस्थाएं लड़खड़ाने लगें, तो एकजुटता, सहानुभूति और स्थानीय ज्ञान पर आधारित साझा जिम्मेदारी ही रक्षा की पहली पंक्ति बन जाती है।
दक्षिण-पूर्व एशिया में बाढ़ से लेकर अमेरिका में तूफान तक, सरकारें अक्सर फौरी उपायों में ही जूझती रहती हैं। पंजाब साबित करता है कि समाज को सशक्त बनाने और स्वयंसेवी नेटवर्क को विकसित करने से न केवल लोगों की जान बच सकती है, बल्कि दीर्घकालिक विनाश को भी कम किया जा सकता है। आइए, हम दुनिया भर के नीति-निर्माताओं और लोगों को अगली आपदा आने से पहले, स्थानीय उपायों और समाज स्तर की तैयारियों पर फोकस करने को कहें।
जैसे-जैसे जलवायु संकट गहराता जा रहा है और हिमालय की नाजुक पारिस्थितिकी टूट रही है, दुनिया को पंजाब के उदाहरण पर ध्यान देना चाहिए: जलवायु संकट में स्थायी लोगों, स्थानीय ज्ञान, सामाजिक एकजुटता और सक्रिय नीति पर अमल करें।
(कंवल सिंह जम्मू-कश्मीर के नीति विश्लेषक और स्तंभकार हैं)