साढ़े तीन साल पहले आरक्षण के नाम पर जातिगत टकराव की घटनाओं से हरियाणा की कानून-व्यवस्था को गंभीर चुनौती मिली थी। सामाजिक सौहार्द टूटने के कगार पर था। लेकिन इसके बाद दो साल में ‘राहगीरी’ और ‘मैराथन’ जैसी जनता से जुड़ाव की नई पहल से न केवल सौहार्द बहाल करने में मदद मिली है, बल्कि इसका सियासी लाभ भी मिला। राजनीति से इतर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने ‘राहगीरी’ की ऐसी राह पकड़ी कि तीन साल पहले उन्हें कोसने वाले प्रतिद्वंद्वी आज राजनीतिक पटल से कोसों दूर हो गए हैं। सियासी समीकरणों के बीच बिखरे विपक्ष का फायदा अलग से मिला।
‘एकता, जागृति, संस्कृति’ की व्यावहारिकता को आत्मसात करती इन कोशिशों को प्रदेश के लोगों का समर्थन मिला। मेरिट पर सरकारी नौकरी के साथ राहगीरी और मैराथन जैसे गैर-सियासी संवाद से माहौल सकारात्मक बना। प्रशासनिक कुशलता से इतर रचनात्मक और युवा-केंद्रित जन-मुहिम एक तरह से समय की मांग है। यहां 70 प्रतिशत आबादी 35 साल से कम उम्र वाली पीढ़ी की है, जो इंटरनेट और सोशल मीडिया से जुड़ी है।
अप्रैल 2017 में ‘कुरुक्षेत्र राहगीरी’ में वर्ल्ड हैप्पीनेस-डे के अवसर पर मुख्यमंत्री खट्टर ने देश के ‘हैप्पीनेस इंडेक्स’ को दुरुस्त करने की बात कर एक राष्ट्रव्यापी बहस की शुरुआत की। अच्छी सेहत और कला-संस्कृति के जरिए खुशी और सौहार्द की अलग पहल हुई। जींद में उन्होंने व्यापक होती मानसिक बीमारी पर चिंता व्यक्त की। फतेहाबाद में शारीरिक निष्क्रियता से होने वाली बीमारियों के प्रति लोगों को आगाह किया। गुरुग्राम में पौधरोपण पर जोर डाला। अप्रैल 2018 से जून 2019 तक आयोजित 329 राहगीरी कार्यक्रमों में 10 लाख से भी अधिक लोगों ने भाग लिया। इससे भी दोगुने लोग सरकार के आयोजनों, 400 से ज्यादा अंतर-ग्राम दौड़ और 10 जिला मैराथन के माध्यम से जुड़े। हर कार्यक्रम के आयोजन की थीम उस रोज पड़ने वाले विशेष दिन पर केंद्रित होती है।
जानकार लोग इसे जनजागरण का नया प्रयोग मानते हैं। उनका कहना है कि वो दिन गए जब लोग कोसों चलकर सुनने के लिए आते थे, बड़े आयोजनों में जगह घेरने मात्र को सौभाग्य मानते थे। अब वे तमाशबीन तक सीमित नहीं रहना चाहते। उन्हें सरकार में सक्रिय भागीदारी चाहिए। इस पहल से जुड़े हरियाणा सरकार के एक बड़े अधिकारी ने आउटलुक को बताया कि राहगीरी का उद्देश्य लोगों को खुशनुमा और दोस्ताना माहौल में एक-दूसरे से मिलने का अवसर देना, उन्हें सक्रिय जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करना, सरकार के आला अफसरों को लोगों से रूबरू कराना और प्रतिभाशाली खिलाड़ियों और कलाकारों को सार्वजनिक मंच देना है। सरकारी अफसर रूखे व्यवहार के लिए बदनाम हैं। राहगीरी उनके लिए सॉफ्ट-स्किल सीखने का अवसर भी है। राहगीरी से एक बात और सामने आई कि जनसंपर्क अब सिर्फ राजनीतिक दलों की दरकार नहीं रह गई है। बदले हालात में लोग सरकार को ‘माई-बाप’ नहीं मानते। अब जरूरत इस बात की हो गई है कि सरकारी अफसर और कर्मचारी आम लोगों से मिलें, उन्हें बताएं कि वे क्या कर रहे हैं और क्यों। सोशल मीडिया पर भड़ास निकालती युवा पीढ़ी के साथ अब इस तरह का सरोकार निहायत जरूरी हो गया है।
मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के काम पर नजर रखने वालों का कहना है कि सरकारी नौकरियों में भर्तियों को लेकर पिछले मुख्यमंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, वहीं ‘बिन पर्ची-बिन खर्ची’ के मिली करीब 90 हजार नौकरियों ने खट्टर की अलग छवि बनाई है। मुख्यमंत्री खट्टर का कहना है कि सरकार का काम सिर्फ जेल और अस्पताल बनाना नहीं। हम ऐसे हालात बनाना चाहते हैं जिससे आपसी सौहार्द बढ़े। लोग सक्रिय जीवनशैली अपना कर चुस्त-दुरुस्त रहें ताकि जेल और अस्पताल की जरूरत ही न पड़े।
हरियाणा की सियासत में गैर-चुनावी पृष्ठभूमि से आए, पहली बार के विधायक और मुख्यमंत्री बने खट्टर राजनीतिकों के लिए केस स्टडी हैं कि कैसे विपरीत हवा में नाव खेनी चाहिए, कैसे प्रशासनिक अनुभव के अभाव को प्रयोगधर्मिता से पाटना चाहिए।