आप 23 मई के बाद किसकी जीत पर दांव लगा रहे हैं?
जनता ही जीतेगी। किसी और पर दांव लगाया ही नहीं जा सकता।
आपको पूरा यकीन है?
मेरा मानना है कि लोग समझदार हैं। वे चीजों को बारीकी से समझते हैं और जो फैसला करते हैं, सही होता है।
क्या जनता का फैसला 2014 में सही था?
देश की जनता हमेशा सही होती है। दरअसल, 2014 में कांग्रेस के पास देश के लिए वही मॉडल था, जिसका हमने 1990 के दशक में सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया। हमने इसमें बदलाव किया और 2004 में भी इसका सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया। 2012 में यह मॉडल बिखर गया। वह कारगर नहीं रहा, क्योंकि देश बदल गया था। लेकिन हम उसी मॉडल के साथ चुनाव में उतरे। यह तय था कि हम हार जाएंगे। हमने दूसरी गलतियां भी कीं। 10 साल तक सत्ता में रहने से हमारे नेताओं में कुछ अहंकार आ गया। खराब आर्थिक हालात ने भी असर डाला। देश में नाराजगी बढ़ रही थी, इसलिए लोगों ने नेतृत्व के लिए क्रोधी व्यक्ति को चुना। नरेंद्र मोदी के पास बड़ा अवसर था, लेकिन वे कोई बदलाव नहीं ला सके, जो प्रधानमंत्री के रूप में सफल होने के लिए जरूरी था।
देश की जनता ने मोदी को जो मौका दिया, उसका उन्होंने इस्तेमाल किया होता, लोगों का भरोसा बनाए रख पाते, खुद को बदलते और ज्यादा संवेदनशील बनते, सावधानी से सुनते और टीम के साथ काम करते, तो वे महान प्रधानमंत्री बन सकते थे। लेकिन मोदी वैसा नहीं कर पाए, जिसकी देश के लोगों ने अपेक्षा की थी। जिन लोगों ने उन्हें 2014 में समर्थन दिया, वे ही उनसे नाराज हैं।
क्या लोग 2019 में फिर से सही होंगे? इस बीच, क्या यह भी मुमकिन है कि उन्होंने खुद को ठगा महसूस किया?
मैं नहीं जानता कि लोग ठगे गए या मोदी में खुद को बदलने की ताकत नहीं थी। देश की जनता ने एक विचारशील व्यक्ति, सुनने वाले व्यक्ति, संवेदनशील व्यक्ति की अपेक्षा की थी। कोई ऐसा व्यक्ति जो भविष्य को देख सके। लेकिन उन्हें जल्दी ही पता चल गया कि नरेंद्र मोदी वैसे व्यक्ति नहीं हैं जैसा उनके बारे में उन्होंने सोचा था। बदतर यह रहा कि भारत के भविष्य के बारे में योजना बनाने में कोई मदद करने के बजाय वे अतीत में ही मजबूती से उलझे रहे।
पांच साल बाद आप खुद को मौजूदा व्यवस्था के विकल्प के रूप में स्थापित कर रहे हैं....
मसला यह है कि मैं खुद को स्थापित करना चाहता हूं या फिर नहीं। लोकतंत्र लोगों की व्यवस्था है। जनता समझदार है। स्थापित करने से लोगों को मूर्ख नहीं बनाया जा सकता है। वे खुद के लिए चुनाव करते हैं। और अगर वे खुद के लिए चुनाव कर रहे हैं तो वे कोई भी फैसला करते हैं, वह सही है।
पिछले पांच साल में कांग्रेस में क्या बदलाव आए? ज्यादातर वे नेता ही दिखते हैं जो 2014 में हार चुके हैं।
ऐसा बिलकुल नहीं है।
क्या बदला है?
हर राज्य में युवा नेताओं की पंक्ति तैयार हुई है। कांग्रेस पार्टी में बदलाव हो रहा है। आप देख सकते हैं कि अशोक गहलोत हैं, तो उनके बाद आपको सचिन पायलट भी दिखाई देंगे। आपको अशोक चव्हाण के साथ राजीव सातव भी दिखाई देंगे। पी. चिदंबरम के साथ आपको वर्षा गायकवाड़ और चेल्ला कुमार भी दिखाई देंगे। इसी तरह भूपेश बघेल के साथ टी.एस. सिंहदेव और दिग्विजय सिंह के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया भी हैं। हर राज्य में आपको ऊर्जा से भरे युवा नेता दिखा देंगे। वे अपने अनुभवी नेताओं के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर खड़े हैं।
बहुत से लोग कहते हैं कि कांग्रेस भाजपा की अव्यवस्थित बी-टीम बन गई है। आप मुस्लिमों के बारे में बात नहीं करते हैं।
यह बकवास है! अल्पसंख्यकों और देश के प्रत्येक नागरिक के बारे में हमारी पार्टी का रुख एकदम साफ है। जाति, धर्म, लिंग, राज्य, भाषा के आधार पर कोई भेद किए बगैर प्रत्येक भारतीय की सुरक्षा की जाएगी। हर भारतीय को अपने विचार व्यक्त करने और सपना देखने का अधिकार है। सच्चाई यह है कि देश में आज सैद्धांतिक हमला हो रहा है।
आप हमें भाजपा की बी-टीम कहते हैं? अगर हम भाजपा की बी-टीम हैं तो मोदी 24 घंटे और सातों दिन कांग्रेस पर हमले क्यों करते हैं? कांग्रेस भाजपा और मोदी से प्रभावशाली तरीके से मुकाबला कर रही है। हमने उनके लिए सभी दरवाजे बंद कर दिए हैं। उन्होंने समझा कि वे भारत से बड़े हैं। हमने उन्हें दिखा दिया कि भारत की जनता उनसे बहुत बड़ी है।
हम जवाब की तलाश करते हैं और हम यह समझने की भूल नहीं करते हैं कि ये जवाब आसान हैं। गरीबों को सीधे वित्तीय मदद देने के लिए ‘न्याय’ योजना का विचार मोदी से ही मिला। 2014 में उन्होंने झूठ बोला और कहा कि वे प्रत्येक भारतीय को 15-15 लाख रुपये देंगे। हमने सच्चाई पता की। यह 15 लाख रुपये नहीं था। पांच साल में पांच करोड़ परिवारों को 3.6 लाख रुपये की मदद दी जा सकती है।
‘न्याय’ से न सिर्फ गरीबों को फायदा मिलेगा बल्कि इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को भी प्रोत्साहन मिलेगा। हम यह आपको इसलिए बता रहे हैं ताकि आप समझ सकें कि हम सुनते हैं, फिर सच्चाई के साथ काम करते हैं। हम अपने आंख और कान बंद करके झूठ के साथ काम नहीं करते हैं। इस वजह से हम निश्चित ही भाजपा की बी-टीम नहीं हैं!
लेकिन मुख्य मुद्दों जैसे सबरीमला पर आपने 180 डिग्री का टर्न लिया था। आपका रुख भाजपा जैसा ही है....
सबरीमला पर हमारा रुख एकदम साफ है। केरल के लोगों ने अपना नजरिया साफ कर दिया। हम मानते हैं कि जहां तक धर्म के मामले का सवाल है, लोगों को अपने विचार रखने की अनुमति दी जानी चाहिए। हमारी पूरी केरल इकाई ने कहा कि यह लोगों की इच्छा है। हम उनके विचारों का सम्मान करते हैं।
ऐसी स्थिति में अगर अयोध्या के लोग कहते हैं कि वे मंदिर चाहते हैं, तो मंदिर बनना चाहिए?
अयोध्या मुद्दा बिलकुल साफ है। यह विचाराधीन है। सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर फैसला लेने वाला है और हम उस फैसले का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। मैं किसी ऐसी चीज पर टिप्पणी नहीं करने जा रहा हूं, जो विचाराधीन है।
क्या आपको लगता है कि बतौर पार्टी अध्यक्ष आपने लिंचिंग के बारे में जोर-शोर से आवाज उठाई?
बिलकुल। मैंने लिंचिंग, आदिवासियों और दलितों पर हमले, महिलाओं के खिलाफ हिंसा सहित सभी प्रकार के अन्याय और हिंसा के खिलाफ आवाज उठाई है। मैं हमेशा अन्याय, हिंसा, दमन और भेदभाव के खिलाफ बोलूंगा।
क्या आपको लगता है कि भाजपा को रोकने के लिए विपक्ष एकजुट मोर्चा बनाने में नाकाम रहा? सभी सीटों पर भाजपा के खिलाफ एक संयुक्त उम्मीदवार क्या बेहतर नहीं रहता?
नहीं, योजना भाजपा के खिलाफ एकजुट विपक्ष खड़ा करने की थी और हमने वह किया। हम तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक, झारखंड, जम्मू-कश्मीर, केरल और बिहार में गठबंधन करने में सफल रहे। बंगाल और उत्तर प्रदेश में धर्मनिरपेक्ष मोर्चा चुनाव जीतेगा और दोनों राज्यों में भाजपा का पतन होने वाला है। मुझे पता है कि पत्रकारों को एक नैरेटिव बनाना होता है। आपको अखबारों और पत्रिकाओं को बेचना है, और मुझे यह समझ में आता है। लेकिन सच्चाई यह है कि विपक्ष पूरी तरह से एकजुट है। भाजपा और प्रधानमंत्री पर ऐसा आघात लगा है कि वे अब भ्रम में हैं कि रडार कैसे काम करता है! मैंने उस वीडियो को देखा, जिसमें वे कह रहे हैं कि वे 1987 में इंटरनेट का उपयोग कर रहे थे? उनकी याददाश्त जवाब देने लगी है। नरेंद्र मोदी को ख्वाब आता है कि नेता एक सफेद घोड़े पर आएगा और देश को ठीक कर देगा। नरेंद्र मोदी का वह सपना टूट चुका है।
क्या आपको लगता है कि यूपी और दिल्ली में गठबंधन भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए बेहतर होता?
देखिए, हम वास्तविकता में जीते हैं। हकीकत यह है कि यूपी में औपचारिक गठबंधन के बिना भी जिन सीटों पर संभावना है, उस पर जीत के लिए मेहनत करेंगे। मैंने प्रियंका और ज्योतिरादित्य सिंधिया से कहा, जिन सीटों पर हम रेस में हैं, वहां जीत के लिए जितना हो सके उतना कठिन संघर्ष करो। यूपी में विपक्ष की ऊर्जा एकजुट है और आप नतीजे देख सकते हैं। भाजपा को यूपी में 10 से अधिक सीटें नहीं मिल रही हैं।
दिल्ली में?
हम आप के साथ गठबंधन चाहते थे। विपक्ष के साथ एक बैठक हुई और केजरीवाल वहां मौजूद थे। उन्होंने मुझसे कहा कि हमें दिल्ली में गठबंधन करना चाहिए। इसलिए मैं उनके प्रस्ताव पर आप को चार और कांग्रेस को तीन सीट पर तैयार हो गया। लेकिन केजरीवाल फिर पलट गए और गठबंधन में हरियाणा और पंजाब को जोड़ने के लिए कहा।
त्रिशंकु संसद की स्थिति में क्या आप ममता बनर्जी, मायावती, नवीन पटनायक, जगन मोहन रेड्डी और केसीआर जैसे सभी विपक्षी नेताओं के साथ काम कर पाएंगे?
23 तारीख को देश की जनता तय करेगी कि क्या होने वाला है। और, जो भी फैसला होगा, उसे स्वीकार करने के लिए विपक्ष पर्याप्त रूप से परिपक्व है। हमारा रुख लचीला है। हम लोगों को मजबूत सरकार देंगे।
आप अपने लिए क्या भूमिका देखते हैं?
जनता जो भी भूमिका तय करेगी।
आपने एक बार कहा था कि सत्ता जहर है, क्या आपने अपना रुख बदल लिया है?
सत्ता जहर है, लेकिन आप इससे दूर नहीं भाग सकते।
24 मई की सुबह, यदि कोई स्थिति बनती है और देश की जनता आपको पीएम के रूप में देखना चाहती है, तो आप पीछे नहीं हटेंगे?
मैंने कहा कि मैं पहले से ही जज नहीं करने जा रहा हूं। मैं इतना अभिमानी नहीं हूं कि लोग अपना फैसला करें, उससे पहले कहने लगें कि राहुल गांधी ने अपनी राय बना ली है। भारत के लोगों को फैसला लेने दें और उसके बाद इसका जवाब दिया जाएगा।
अगर गैर-कांग्रेसी दल एक साथ आते हैं और उन्हें बाहर से कांग्रेस के समर्थन की जरूरत पड़ती है, तो ऐसी स्थिति में क्या होगा?
मैं कुछ भी पहले से जज नहीं करने वाला हूं। मेरा लक्ष्य अभी मोदी और भाजपा को हराना है। मुझे पता है कि आप बातचीत को उससे दूर करना चाहते हैं, मुझे पता है कि आप इसे मोड़ना चाहते हैं कि क्या विपक्ष एकजुट है या एक दूसरे से लड़ रहा है? लेकिन मैं उस जाल में नहीं फंसने वाला हूं।
तो कुछ भी संभव है?
देखते हैं! प्राथमिक लक्ष्य इस देश के संविधान और संस्थाओं को बचाना है। हर कोई चट्टान की तरह एकजुट होकर खड़ा है और कह रहा है कि किसी भी परिस्थिति में भारत का संविधान और इसके संस्थानों को चोट नहीं पहुंचाई जा सकती।
क्या आपको नहीं लगता कि चुनावी बयानबाजी और व्यक्तिगत हमलों के जरिए मोदी एक हद तक वास्तविक मुद्दों से ध्यान हटाने में सफल रहे हैं?
पहला मुद्दा रोजगार है, दूसरा किसान, तीसरा अर्थव्यवस्था और चौथा भ्रष्टाचार है। यह चुनाव के दौरान बदला नहीं है। हालांकि, क्या बदला है, यह मैं आपको बताता हूं। जब हमने चुनाव अभियान शुरू किया, तो 27 फीसदी लोगों ने राफेल के बारे में सुना था और मानते थे कि मोदी भ्रष्ट हैं। अब, देश में 68 फीसदी लोग मानते हैं कि मोदी ने राफेल में भ्रष्टाचार किया है। मोदी जी घबरा रहे हैं। पहले उन्होंने ‘फिर से मोदी सरकार’ कहा, फिर उन्होंने ‘मुमकिन’ कहा, फिर ‘विकास’ और फिर उन्होंने ‘राष्ट्रवाद’ कहा, फिर वे ‘विकास’ पर लौट आए, अब ‘परिवार और वंशवाद’ पर आ गए हैं। लेकिन, उन्हें कुछ भी नहीं बचाने जा रहा है। हमने नरेंद्र मोदी की छवि तोड़ दी है।
आप राफेल की जांच के बारे में कहते हैं, तो आपका मतलब अनिल अंबानी की जांच करना है या आप नरेंद्र मोदी की भी जांच कराएंगे?
जब आपको पता चलता है कि कानून तोड़ा गया तो आप किसी व्यक्ति की जांच नहीं करते हैं। अगर कानून तोड़ा गया, तो आप उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करते हैं, जिन्होंने इसे तोड़ा। राफेल डील की जांच की जाएगी। हम तथ्यपरक जांच करेंगे, न कि राजनीतिक बदले के लिए। यह संदिग्धों की खोज के लिए नहीं होगी। जांच पूरी होने के बाद ही इस बारे में फैसला लिया जाएगा कि डील रद्द हो या नहीं।
‘न्याय’ गेम चेंजर है लेकिन अभी भी इसको लेकर कुछ चिंता दिखाई देती है। आपके कुछ नेता कहते हैं कि यह टॉप-अप स्कीम है जबकि कुछ कह रहे हैं कि इसके कारण दूसरी तरह की सब्सिडी में कमी आएगी। वास्तविकता क्या है?
मोदी ने नोटबंदी लागू की जो बिलकुल पागलपन भरा कदम था। उन्होंने गरीब से, और यहां तक कि मध्यम वर्ग के हाथ से क्रयशक्ति छीन ली। नोटबंदी से हमारी अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर पड़ा। लेकिन मोदी यहीं नहीं रुके। उसके बाद उन्होंने गब्बर सिंह टैक्स (जीएसटी) लागू कर दिया! नोटबंदी और जीएसटी की दोहरी मार ने अर्थव्यवस्था के अनौपचारिक क्षेत्र की कमर ही तोड़कर रख दी और लाखों छोटे उद्योग बंद हो गए। इसका नतीजा है कि आज हम 45 साल की सबसे ऊंची दर की बेरोजगारी देख रहे हैं। आर्थिक संकट है, बेरोजगारी की समस्या है और कृषि क्षेत्र में स्थिति खराब है।
इसलिए ‘न्याय’ के दो उद्देश्य हैं। पहला, 25 करोड़ गरीबों को वित्तीय समर्थन दो और उन्हें हमेशा के लिए गरीबी से बाहर निकालो। दूसरा, अर्थव्यवस्था में परोक्ष तरीके से तुरंत पैसा पहुंचाओ। जैसे ही अर्थव्यवस्था में धन का प्रवाह बढ़ेगा, लोगों की आय बढ़ेगी और उनके क्रयशक्ति में इजाफा होगा। इससे रोजगार बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। इसलिए ‘न्याय’ अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने का प्रयास है, जिसे मोदी ने बर्बाद कर दिया।
आपको लगता है मायावती, अखिलेश, नवीन पटनायक, ममता बनर्जी जैसे सभी क्षेत्रीय नेता एक साथ काम करने के लिए तैयार हैं?
“क्षेत्रीय नेता” कहना सही नहीं है। ये लोग इस देश की आवाज के प्रतिनिधि हैं। मायावती जी लोगों के एक खास समूह का प्रतिनिधित्व करती हैं, वैसे ही जैसे स्टालिन जी तमिल लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये लोग सिर्फ क्षेत्रीय नेता नहीं हैं, ये लोग भारत की आवाज हैं। कुल मिलाकर, उनके बिना, इन सभी आवाजों के बिना, भारत अधूरा है। यहां तक कि मोदी कुछ खास आवाजों का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनका सम्मान करना पड़ता है।
आपको लगता है कि कांग्रेस को मुसलमानों या दलितों को अधिक नेतृत्व देना चाहिए था?
हमारे पास कुछ बड़े नेता हैं। गुलाम नबी आज़ाद जी, पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं और वे अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं। पुनिया जी दलित हैं और उत्कृष्ट नेता हैं। हमारे पास कांग्रेस पार्टी में कई बड़े नेता हैं जो विभिन्न धर्मों, समुदायों और क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
आपको 2004 या शायद 2009 में भी सरकार में शामिल होना चाहिए था?
नहीं, मुझे ऐसा नहीं लगता। मैंने मनमोहन सिंह जी को वादा किया था कि वही सरकार चलाएंगे।
प्रधानमंत्री और भाजपा हद से आगे बढ़ गए, उन्होंने आपकी एक छवि गढ़ने की कोशिश की। उन्होंने आपको पप्पू कहा। लेकिन आपने इसे बहुत सामान्य तरीके से लिया....
नहीं, मैंने इसे वैसे नहीं लिया, क्योंकि इसकी जरूरत ही नहीं थी। मैंने इसे खुशी के साथ लिया। मैंने इसका आनंद उठाया। मेरी मूल प्रवृत्ति घृणा और क्रोध के बदले प्रेम लौटाना है।
आपने ऐसा कैसे किया?
मुझे अभी भी गुस्सा आता है, लेकिन मैं किसी से नफरत नहीं करता। मैं उन लोगों से नफरत नहीं करता, जिन्होंने मेरे पिता की हत्या की, उन लोगों से भी नहीं, जिन्होंने मेरी दादी की हत्या की। मैं मोदी या उन लोगों से भी नफरत नहीं करता, जिनके मन में मेरे प्रति गुस्सा है।
गांधी परिवार के होने से इस देश में बहुत फर्क पड़ता है। आप पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र और लोकतांत्रिक मापदंड की बात करते हैं? कैसे...
देखिए, गांधी परिवार होने के कुछ फायदे हैं तो नुकसान भी। आपको खुद इससे निपटना होता है।
आप आंतरिक लोकतंत्र की बात करते हैं, आपकी बहन राजनीति में आते ही सीधे पार्टी की जनरल सेक्रेटरी बन जाती हैं। जबकि लाखों कांग्रेस कार्यकर्ता हैं, जो इस स्थिति में आने के लिए निचले स्तर पर संघर्ष कर रहे हैं...
आप किसी भी कांग्रेस पार्टी सदस्य से पूछें कि क्या वे जनरल सेक्रेटरी के रूप में प्रियंका को चाहते थे या नहीं। आपको खुद ही इसका उत्तर मिल जाएगा।
लेकिन आपने अध्यादेश (जो दागी नेताओं की रक्षा के लिए थे) को फाड़ दिया। आपके नेतृत्व के बारे में या पार्टी के खिलाफ बोलने वाले किसी भी व्यक्ति को निलंबित या बाहर कर दिया जाएगा...
नहीं, बिलकुल नहीं। जाइए, जाकर सुनील जाखड़ से पूछिए। उन्होंने कहा, ‘मुझे भरोसा नहीं हो रहा कि आपने क्या किया है’, मैंने कहा, ‘मैंने क्या किया है?’ उन्होंने कहा कि ‘मैंने आपके खिलाफ बोला, फिर भी आपने मुझे पंजाब का अध्यक्ष बनाया? मैंने कहा, ‘आप इस ‘काम’ के लिए सही आदमी हैं!