राहुल रवैल को बतौर निर्देशक लव स्टोरी (1981), बेताब (1983), अर्जुन (1985), डकैत (1987), अंजाम (1994) और अर्जुन पंडित (1999) जैसी हिट फिल्मों के लिए जाना जाता है। रवैल को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए दो बार फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया है। रवैल ने अपनी फिल्मों के माध्यम से बॉलीवुड के कई अभिनेता और अभिनेत्रियों को लॉन्च किया है जो आगे चल कर बड़े स्टार बने। राहुल ने लव स्टोरी में कुमार गौरव और विजयता पंडित, बेताब में सनी देओल और अमृता सिंह, बेखुदी में काजोल (1992), और और प्यार हो गया (1997) में ऐश्वर्या राय को लॉन्च किया है। इन्होंने हाल ही में 'राज कपूर- द मास्टर ऐट वर्क' नामक एक किताब भी लिखी है। आउटलुक के लिए राजीव नयन चतुर्वेदी ने उनसे खास बातचीत की। संपादित अंशः
स्टार किड्स को कास्ट करने का सबसे बड़ा कारण क्या होता है?
सनी देओल इसलिए कास्ट हुए क्योंकि फिल्म उनके पिता धर्मेंद्र ने प्रोड्यूस की थी। वही मामला कुमार गौरव का भी है जिनकी पहली फिल्म उनके पिता राजेंद्र कुमार ने प्रोड्यूस की थी।
बॉलीवुड पर नेपोटिज्म का आरोप लगता रहा है। आप इस आरोप को कैसे देखते हैं?
मैं इस मामले में कुछ भी बोलना नहीं चाहता हूं। इस विषय पर बहुत कीचड़ उछाला जा चुका है।
ऐसा कहा जाता है कि स्टार किड बिना संघर्ष किए सफल हो जाते हैं, आपका इस पर क्या खयाल है?
मैं ऐसा नहीं मानता हूं क्योंकि किसी की सफलता के पीछे उसकी मेहनत और लगन मायने रखती है। सफल स्टार किड्स की तुलना में असफल ज्यादा हैं।
कई लोग कहते हैं कि एक बाहरी कलाकार का बॉलीवुड में एंट्री करना मुश्किल होता है।
यह बहुत साधारण सी बात है। अधिकतर मामलों में यह होता है कि किसी स्टार किड के माता-पिता फिल्मों में पैसे लगाए होते हैं या डायरेक्ट और प्रोड्यूस करते हैं। ऐसे में वे कहते हैं कि इस लड़के को आप फिल्म में रखिए, तो उनके लिए लॉन्च होना आसान हो जाता है।
किसी बाहरी कलाकार के साथ और स्टार किड्स के साथ काम करने में आप कैसा फर्क देखते हैं?
देखिए, मैं उन्हें स्टार किड्स नहीं बल्कि 'न्यूकमर्स' कहता हूं और उनके साथ काम करना चुनौतीपूर्ण होने के साथ-साथ इंटरेस्टिंग भी होता है। मैं इसका आनंद लेता हूं। बाकी मैं बता दूं कि चाहे कोई भी हो, सेट पर मैं सभी को एक बराबर ट्रीट करता हूं।
कुछ क्रिटिक कहते हैं कि स्टार किड्स को कास्ट इसलिए भी किया जाता है क्योंकि वे बनी-बनाई पहचान के साथ आते हैं।
यह तर्कपूर्ण नहीं है। स्टार किड्स पहले से ही बनी हुई पहचान के साथ कैसे आ सकते हैं? जो नए हैं, पहली बार यहां कदम रख रहे हैं, उनकी पहचान कैसे हो सकती है? पहचान खुद से, अपने काम के दम पर बनाई जाती है।
आज और पहले के कास्टिंग पैटर्न में आप कैसा बदलाव महसूस करते हैं?
मुझे लगता है कि पहले के जमाने में किसी को इसलिए लगातार फिल्में मिलती थीं क्योंकि वह पॉपुलर है, भले ही वह रोल के लिए फिट न बैठता हो। अब ऐसा नहीं है। किसी रोल को कौन बेहतर तरीके से सेट पर परफॉर्म कर सकता है, आजकल उसकी पूछ ज्यादा है।
आपने आखिरी फिल्म 2007 में डायरेक्ट की थी, इसके बाद आपने काम छोड़ दिया, क्या कारण है?
मैंने फिल्में बनाना इसलिए छोड़ दिया क्योंकि सारा सिस्टम ही चेंज हो गया है। अब एक्टर 'डिक्टेट' करने लगे हैं और यह मुझे पसंद नहीं है। अगर प्रोड्यूसर चाहेंगे तो मैं फिर से बड़े परदे या ओटीटी के लिए काम करना चाहूंगा।
राज कपूर के जीवन के ऊपर किताब लिखने का खयाल आपके मन में कैसे आया?
मैं एक जगह जूरी मेंबर बन कर गया था और वहां मैं लगातार राज कपूर के बारे में बात कर रहा था। यह सुनकर वहां कुछ लोगों ने मुझसे कहा कि आप राज कपूर के ऊपर कोई किताब क्यों नहीं लिखते। यहीं से असल मायने में उनके ऊपर किताब लिखने की नींव पड़ी।
इस किताब में क्या खास है?
राज कपूर साहब के कार्य करने की शैली के बारे में आज तक किसी ने नहीं लिखा है। राज कपूर कैसे कार्य करते थे, सेट पर उनका व्यवहार कैसा रहता था, एक डायरेक्टर के रूप में उन्हें कौन सी चीजें प्रेरित करती थीं, यह सभी बातें इस किताब में विस्तारपूर्वक लिखी गई हैं।
राज कपूर का प्रभाव आपके ऊपर कितना रहा है?
उनका प्रभाव मेरे ऊपर बहुत ज्यादा है। आज मैं जो कुछ भी हूं उनकी वजह से ही हूं। मैंने किताब में लिखा भी है कि कैसे अर्जुन, बेताब और डकैत जैसी मेरी फिल्मों में मेरे ऊपर पड़ा उनका प्रभाव देखा जा सकता है।