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अपने को अभागा मानने का आनंद

नेता को शिकायत रहती है कि उसे उसकी काबिलियत के मुताबिक सम्मान नहीं मिला। भले ही वह प्रधानमंत्री हो जाए
देश के एक अरब से ज्यादा हिंदुओं को यह सुनना बड़ा अच्छा लगता है कि उनका धर्म खतरे में है

हर आदमी चाहता है, वह किस्मतवाला हो। लेकिन उसे यह सोचना अच्छा लगता है कि किस्मत ने उसके साथ न्याय नहीं किया। किसी पांच-दस हजार करोड़ वाले व्यापारी से भी बात करें तो वह कहेगा, “उससे ज्यादा किस्मतवाला तो सामने फुटपाथ पर बैठा पानवाला है, जिसे टैक्स नहीं देना पड़ता।” बहुत हुआ तो वह यह मान लेगा कि उसकी किस्मत तो अच्छी है लेकिन उसकी काबिलियत के मुकाबले उसकी किस्मत अच्छी नहीं है। उससे यह कहने का कोई मतलब नहीं है, “अबे बासी समोसे, अगर तेरी किस्मत अच्छी न होती तो तू किसी ओवरब्रिज के नीचे अंधेरे में बैठा सट्टे की पर्चियां काट रहा होता। तुझसे बहुत ज्यादा काबिल लोग यह कर रहे हैं।”

नेता को शिकायत रहती है कि उसे उसकी काबिलियत के मुताबिक सम्मान नहीं मिला। भले ही वह प्रधानमंत्री हो जाए। वह शिकायत करता रहता है कि उसके विरोधी कैसे उसे नीचे गिराने की कोशिश कर रहे हैं। इसी तरह किसी लेखक को नोबेल पुरस्कार भी मिल जाए तो भी उसे शिकायत रहती ही है कि उसकी प्रतिभा का सही मूल्यांकन नहीं हुआ। कुल जमा हर व्यक्ति को यह सोचने में बड़ा सुख मिलता है कि उसके साथ अन्याय हुआ है। इसलिए इंसान के दिल में जगह बनाने के लिए पहला वाक्य यही होता है कि “आप जितने अच्छे हैं उसके मुकाबले आपको श्रेय नहीं मिला। भलाई का जमाना ही नहीं है।” जैसे पहले कभी था। अपने को अभागा मानने का शौक खुजली की तरह होता है, जिसे खुजाने में पीड़ा और खुशी दोनों मिलती है।

चतुर राजनेता इस ट्रिक का इस्तेमाल सत्ता पाने के लिए करते हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने नारा दिया, ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन।’ इसका मतलब है कि अमेरिका कभी ग्रेट था, अब नहीं है। ट्रंप के समर्थकों ने यह मान लिया कि सही बात है उनके साथ बड़ा अन्याय हो रहा है। उनका देश बहुत ग्रेट था, विदेशियों के षड्यंत्र की वजह से वह ग्रेट नहीं रहा। उनकी बुद्धि में यह बात नहीं आई कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, अमेरिकी डॉलर से दुनिया भर का व्यापार चलता है, अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी सामरिक ताकत है, अमेरिकी संस्कृति का दुनिया भर में डंका बजता है। अब इसके आगे और क्या ग्रेट होना है, क्या बच्चे की जान लोगे। लेकिन अमेरिकियों को यह आइडिया भा गया कि उनके साथ ज्यादती हुई है और उन्होंने यह कहने के लिए ट्रंप को राष्ट्रपति बना दिया।

अपने यहां भी यह ट्रिक खूब चली है। देश के एक अरब से ज्यादा हिंदुओं को यह सुनना बड़ा अच्छा लगता है कि उनका धर्म खतरे में है  और खतरे की वजह यह है कि हिंदू स्वभाव से शांतिप्रिय, उदार और सहिष्णु हैं। अस्सी प्रतिशत हिंदुओं की आबादी वाले देश में जहां बाबा रामदेव से लेकर जग्गी वासुदेव तक का टर्नओवर अरबों में है, जहां मोहल्ला लेवल के बाबा भी करोड़ों में खेलते हैं, यदि वहां हिंदू धर्म खतरे में है तो फिर नेप्च्यून पर भी सुरक्षित नहीं हो सकता। इसी तरह अचानक देश को पता चला कि वह खतरे में है। सत्तर साल से देश खतरे में नहीं था, अब पांच साल में अचानक क्या हो गया। भारतीयों ने मान लिया कि देश संकट में है और इसे बचाना पहला आपातकालीन कर्तव्य है। नतीजा यानी आम चुनाव का नतीजा सामने है। पाकिस्तान में सत्तर साल से फौज और मुल्ला, “मुल्क और मजहब खतरे में है” कह कर राज कर रहे हैं। अपने यहां यह ट्रिक अब जाकर कारगर हुई। अब जनता भी खुश, सरकार भी खुश। अपने को, ‘बेचारा’, ‘किस्मत का मारा’ साबित करना किसको बुरा लगता है।

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