साइबर अपराध अब महज तकनीकी चुनौती नहीं, बल्कि संगठित अपराध का रूप ले चुका है। हर दिन हजारों लोग ऑनलाइन ठगी, डेटा चोरी और डिजिटल ब्लैकमेलिंग के शिकार हो रहे हैं। समय के साथ ठगी के तरीकों में भी बदलाव आ रहा है। अपराधी हर नए ट्रेंड का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस विषय पर आउटलुक के राजीव नयन चतुर्वेदी ने साइबर क्राइम एक्सपर्ट और राजस्थान पुलिस के साइबर सेल सलाहकार मुकेश चौधरी से बातचीत की। अंश:
साइबर अपराध की कानूनी परिभाषा क्या है?
कंप्यूटर, इंटरनेट और मोबाइल के इस्तेमाल से किया जाने वाला अपराध। इसमें डेटा चोरी, ऑनलाइन धोखाधड़ी, हैकिंग, साइबर धमकी, डिजिटल जासूसी और वित्तीय अपराध वगैरह आते हैं। मकसद व्यक्ति, संगठन या सरकार को नुकसान पहुंचाना, उनकी गोपनीय जानकारी चुराना या आर्थिक ठगी होता है।
समय के साथ इसमें क्या बदलाव आए?
शुरुआत में यह सीमित स्तर पर था और मुख्य रूप से वायरस, स्पैम ईमेल और डेटा चोरी जैसे मामलों तक ही केंद्रित था। 2014 के बाद इसका स्वरूप पूरी तरह से बदल गया। अब यह अपराध मुख्य रूप से वित्तीय धोखाधड़ी से जुड़ा हुआ है। 2014 से पहले ऐसा नहीं था। पहले यह ‘कॉम्बिनेशन ऑफ क्राइम’ हुआ करता था, लेकिन आज 98 फीसदी मामलों में वित्तीय धोखाधड़ी ही देखने को मिलती है।
‘कॉम्बिनेशन ऑफ क्राइम’ को समझाएं?
2014 से पहले तक यह सिर्फ डिजिटल ठगी तक सीमित नहीं था, बल्कि डिजिटल माध्यम का इस्तेमाल आम अपराधों के लिए किया जाता था। उस दौर में लॉटरी स्कैम, इंश्योरेंस फ्रॉड और नकली कस्टम क्लीयरेंस जैसे अपराध आम थे। 2014 के बाद यह बदला है। इंटरनेट और मोबाइल की पहुंच लोगों तक बढ़ी तो इसके पैटर्न बदले।
अब पैटर्न में क्या बदलाव आया?
पहले साइबर अपराध कई तरीकों से किए जाते थे, लेकिन अब इनका मुख्य फोकस वित्तीय धोखाधड़ी पर है। पहले यह हाइ-टेक नहीं था, लेकिन डिजिटल तकनीक के विस्तार के साथ साइबर अपराधी अधिक चालाकी भरे तरीके अपनाने लगे हैं। इसमें डीपफेक, एआइ-जनरेटेड वॉयस कॉल और रिमोट ऐक्सेस टूल्स शामिल हैं जिससे आम लोगों के लिए जोखिम और बढ़ गया है।
देश में साइबर अपराध में विदेशी गिरोहों की कितनी भूमिका है?
पहले ऐसे अपराध में मुख्य रूप से नाइजीरियाई और पूर्वी यूरोप के गिरोह शामिल हुआ करते थे। ये विदेश में रहकर वहीं से अपराध को अंजाम देते थे। अब स्थानीय अपराधियों के साथ उनकी साठगांठ हो गई है। ये लोग भारतीय सिम कार्ड और बैंक खातों का इस्तेमाल करते हैं। इसमें गुर्गे यहां के होते हैं, लेकिन मास्टरमाइंड विदेश में बैठा होता है।
पहले और अब के फ्रॉड के कुछ उदाहरण।
साइबर अपराध की शुरुआत विदेशी गिरोहों से हुई थी, जो भारतीयों को फर्जी ईमेल और मैसेज के जरिये ठगते थे। उस समय नाइजीरिया 419 स्कैम काफी फेमस था। धीरे-धीरे यह अपराध भारत में भी यूपी, बिहार, राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों में पनपने लगा। शुरुआती दौर में अपराधी फर्जी लिंक भेजकर लोगों को क्लिक करने के लिए उकसाते थे और उनकी जानकारी चुराते थे। इसके बाद ओएलएक्स और अन्य ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर सस्ते आइफोन और गाड़ियां बेचने के नाम पर ठगी शुरू हुई। डिजिटल लेन-देन बढ़ने के साथ ओटीपी और यूपीआइ फ्रॉड आम हो गए। कोविड के बाद वर्क फ्रॉम होम फ्रॉड सामने आया। फिर, टेक्नोलॉजी के विकास के साथ एआइ और डीपफेक का इस्तेमाल बढ़ा, जिससे वॉयस क्लोनिंग, फिशिंग, सेक्सटॉर्शन, डिजिटल अरेस्ट, क्रिप्टो स्कैम और इन्वेस्टमेंट फ्रॉड जैसी नई तरह की धोखाधड़ी सामने आई।
अमूमन इस तरह के अपराधियों की शैक्षणिक पृष्ठभूमि क्या होती है?
पहले इसमें कम पढ़े-लिखे लोग जुड़ते थे, लेकिन अब अपराधियों के पास तकनीक और डिजिटल फाइनेंस की गहरी समझ होती है। अब यह भी देखने में आ रहा है कि जो खुद जानकार नहीं है, वह हैकर और साइबर एक्सपर्ट्स को मोटी सैलरी पर हायर कर रहे हैं। इंजीनियर, बैंकिंग प्रोफेशनल, आइटी एक्सपर्ट, डेटा एनालिस्ट और क्रिप्टोकरंसी विशेषज्ञों का इस तरह की आपराधिक गतिविधियों से जुड़ना आम बात हो गई है। अपराधी अब डार्क वेब, एआइ और बिग डेटा एनालिटिक्स का इस्तेमाल कर लोगों को ठग रहे हैं। अब यह साइबर सिंडिकेट में तब्दील हो चुका है।
साइबर क्राइम लगातार बढ़ रहा है, लेकिन शिकायत दर्ज कराने वाले लोगों को अक्सर महीनों तक जवाब नहीं मिलता। पुलिस क्या साइबर क्राइम को प्राथमिकता से नहीं देखती?
इसमें पुलिस का दोष नहीं है। पुलिस को किसी केस की जांच-पड़ताल करने के लिए सुविधाएं और संसाधन मिलें, तो वह बेहतर तरीके से काम करेगी। पुलिस के पास पहले से ही बहुत मामले होते हैं। इसलिए साइबर क्राइम के मामलों पर ध्यान देने का समय कम मिलता है। दूसरी बात, साइबर क्राइम के मामलों में अपराधियों का नेटवर्क कई राज्यों में फैला होता है। जांच के लिए कई बार दो से चार राज्यों की पुलिस को साथ काम करना पड़ता है। इसमें समय ज्यादा लगता है। पुलिस को जांच के लिए दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है। इसमें पैसा खर्च होता है, जिसका बजट बहुत ज्यादा नहीं होता।
इसका उपाय क्या है?
जहां भी साइबर क्राइम के हॉटस्पॉट हैं, वहां संयुक्त साइबर क्राइम टीमें बनानी होंगी। इससे पुलिस का काम आसान होगा, अपराधियों को पकड़ने में मदद तुरंत मिलेगी और लोगों को जल्दी न्याय मिलेगा।