एक दिन देखा, मंदिर जाती कुछ लड़कियां गाते हुए जा रही हैं, "राजा दशरथ जइसन ससुर मांगिले रानी कौसल्या जइसन सास। बाबू लक्ष्मण जइसन देवर मांगिलें, पुरुष मांगिले श्रीराम!" हे मां! तुमसे राजा दशरथ जैसा ससुर, कौशल्या जैसी सास, लक्ष्मण जैसा देवर और श्रीराम जैसा वर मांगती हूं। इच्छा पूरी करो मां... यदि भौतिक दृष्टि से देखें तो विवाह के बाद सिया का जीवन बहुत सुखमय नहीं रहा। परिवारिक षड्यंत्र झेलने पड़े, चौदह वर्ष का वनवास भोगना पड़ा, हरण हुआ और वर्ष भर रावण के यहां बंदी बन कर रहना पड़ा। फिर भी युगों-युगों से हमारी बेटियां राम जैसा वर मांगती रही हैं! और वह भी मिथिला से सटे क्षेत्र में! क्यों? क्योंकि राम को जिस दृष्टि से मिथिला ने देखा, उस दृष्टि से संसार नहीं देख सका। राम संसार के लिए कुछ और हैं, पर मिथिला के लिए कुछ और! मिथिला ने उन्हें इतना प्रेम किया कि बेटी के जीवन का सारा संघर्ष भूल गए। संसार का राम जी से धर्म का नाता है, अयोध्या का राम से जन्म का नाता है, पर मिथिला का राम से प्रेम का नाता है। सबने उनकी भक्ति की पर मिथिला ने भक्ति के साथ प्रेम किया है।
वे समूचे संसार के लिए देवता हैं, जगतपिता हैं, मर्यादापुरुषोत्तम हैं, पर मिथिलांचल के लिए अब भी अपने सबसे प्रिय पाहुन हैं। त्रेता युग में जब वे सिया को ब्याह कर ले जाने आए थे, तब से अब तक हम वहीं खड़े हैं। कुछ नहीं बदला हमारे लिए...
मिथिला की बूढ़ी स्त्रियां आज भी राम को उसी दृष्टि से देखती हैं जिस दृष्टि से धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाते उस सुदर्शन युवक को पहली बार माता सुनयना ने देखा था। छोह से आंखें तब भी भरी हुई थीं, नेह से आंखें अब भी भर आती हैं। उनके लिए वे अब भी पुत्र हैं, दामाद हैं।
उनको देख कर मिथिला की बेटियां पूरे अधिकार से साथ उसी तरह खिलखिला सकती हैं जैसे रंगमंडप में क्रोध से तमतमाए लक्ष्मण को देख कर तब की मैथिल लड़कियां हंस पड़ी थीं। उनके लिए वे अब भी पाहुन हैं।
मानस में राम विवाह का वर्णन करते हुए बाबा तुलसी लिखते हैं, "जेंवत देहि मधुर धुनि गारी, लै लै नाम पुरुष अरु नारी!" जनक के आंगन में भोजन करने बैठे महाराज दशरथ के कुल के पुरुषों और स्त्रियों का नाम ले-ले कर मिथिला की स्त्रियां गाली गा रही हैं। यह लोक का सौंदर्य है, सहजता है, कि चक्रवर्ती सम्राट महाराज दशरथ को मिथिला की सामान्य स्त्रियां गाली दे रही हैं और वे सुन कर मुस्कुरा रहे हैं। अद्भुत है न? पर जनकपुर के लिए वे सम्राट नहीं, समधी थे। युगों-युगों की यात्रा के पश्चात संसार की सबसे प्राचीन और पवित्र संस्कृति ने यह सहजता प्राप्त की है कि एक विशेष समय कोई दासी भी राजा को गाली दे तो राजा उसकी गालियों का भी सम्मान करे और मुस्कुरा कर इस परिहास का आनन्द ले। यह संसार की किसी अन्य सभ्यता में संभव नहीं।
यह सहजता इस संस्कृति के मूल में है। तब की घटना के युगों बाद पिछले दिनों जब अयोध्या से संत रामभद्राचार्य जी महाराज जनकपुर आए, तो जनकपुर की स्त्रियों ने उसी भाव के साथ उन्हें गालियां सुनाईं जिस भाव से कभी महाराज दशरथ को सुनाई थीं। जन्म से वैरागी वह संत भी कुछ पल तक गृहस्थ भाव से मुस्करा कर गालियां सुनता रहा। रामजी के नाते गालियां सुनना भी सौभाग्य ही है। रामजी के कुल और नगर को गाली दे सकने का यह अधिकार केवल मिथिला के पास है।
अभी कुछ वर्ष पूर्व तक मिथिला के पुरनिये अयोध्या क्षेत्र में पानी नहीं पीते थे। आज भी असंख्य मिथिलावासी अयोध्या का जल नहीं पीते। लोक परंपरा है कि बेटी के गांव में पानी नहीं पीते हैं। फिर सिया तो राज्य की सबसे दुलारी बेटी हैं, उनके गांव में पानी कैसे पिएं? सिया के जाने के बाद हजारों-लाखों पीढ़ियां आईं और मर खप गईं, पर सिया सबके लिए बेटी ही रहीं। सबने मन से यह नाता निभाया और आज भी निभाया जा रहा है। राजा जनक को राम जी सहज ही प्राप्त हो गए थे। पुत्री का कन्यादान करते ही जगतनियन्ता उनके पुत्र हो गए। यह सौभाग्य का चरम था। जनक ने इस सौभाग्य को स्वयं तक नहीं रखा, बल्कि समूचे जनकपुर को बांट दिया। तभी तो वे सबके पाहुन हैं।
कोई भी मनुष्य सबसे अधिक सुंदर अपने विवाह के समय दिखता है। भगवान राम का सबसे सुंदर स्वरूप मिथिला ने देखा था, जब वे वर बने थे। वह स्वरूप जिसे देखने के लिए इंद्र ने अपने हजार नेत्र खोल लिए थे, जिसे देखने के लिए सूर्य ठहर गए थे, जिसे देखने के लिए स्वयं महादेव आ गए और माता पार्वती के साथ वह मनोरम छवि देख कर बार-बार भावविह्वल हो रहे थे। राम का वह अद्भुत रूप सहज ही मिथिला के बच्चे-बच्चे ने देखा। यह अयोध्या का दुर्भाग्य था कि वहां से राम के वनवास का षड्यंत्र रचा गया, पर मिथिला ने सदैव राम को अपनी आंखों में रखा था।
संसार रामजी से अपने लिए अन्न-धन, सौभाग्य मांगता है। मिथिला वाले नहीं मांगते। पाहुन को तो दिया जाता है, उनसे कुछ ले कैसे सकते हैं? यहां के भजनों, गीतों में राम जी को मिथिला में रोक कर रखने के लिए लोभ दिखाया जाता है, "रोज सबेरे उबटन मल के ईत्तर से नहवाईब! एक महीना के भीतर करिया से गोर बनाइब!" ए पाहुन! यहीं मिथिला में ही रह जाओ न! रोज उबटन मल-मल कर नहलाएंगे, तो महीने भर में ही सांवले से गोरे हो जाओगे...।"
जो जगदीश्वर हैं, संसार के नियंता हैं, उन्हें नन्ही बेटियां कह रही हैं कि यहीं रुको तुम्हे गोरा बना देंगे। क्यों? उनसे मजाक का रिश्ता भी है। वे हमें देवता से अधिक परिवार का हिस्सा लगते हैं। वे उनसे मजाक कर सकती हैं, झिड़की दे सकती हैं, मीठी गाली भी सुना सकती हैं। यह मिथिला का एकाधिकार है।
राम मिथिला की हर लोक कला के केंद्र में हैं। मैथिल लोकगीत हों या प्रसिद्ध मिथिला पेंटिंग, सबके केंद्र में राम-सिया हैं। राम तो समस्त संसार के हैं, पर उन्हें सबसे अधिक प्रेम मिथिला ने ही किया है।
(परत और पुण्यपथ उपन्यासों के लेखक)