नरगिस बेगम के चेहरे से खून टपक रहा था। उनकी 21 साल की बेटी सनम बशीर ने उन्हें अपनी बाहों में भरे उनकी नब्ज पर हाथ रखा और राहत महसूस की, लेकिन ज्यादा देर तक नहीं। जल्द ही 45 वर्षीय नरगिस ने दम तोड़ दिया। उन्हें पाकिस्तानी मोर्टार शेल के छर्रे लगे थे, जो 8 मई की रात को जम्मू-कश्मीर की उड़ी तहसील में राजरवानी के उनके घर से बाहर निकलते ही उनके पास फटा था। नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पार से तोपखाने की गोलाबारी में ग्रामीणों के घर निशाना बनाए गए थे।
गोलाबारी शुरू हुई तो 8 मई की रात गांव के गांव खाली हो गए। लोग जान बचाने के लिए घरों को छोड़ सुरक्षित जगह की ओर जा रहे थे। नरगिस के रिश्तेदार अल्ताफ हुसैन खान बताते हैं, “रात करीब 8.30 बजे गोलाबारी शुरू हुई और एक गोला उस वाहन के पिछले हिस्से पर लगा जिसमें नरगिस अपने रिश्तेदारों के साथ बारामूला जा रही थीं।” उनके पति बशीर अहमद खान तबसे सदमे में हैं।
पाकिस्तान की गोलाबारी से अब तक नरगिस और कम से कम 22 दूसरे लोगों की मौत हो चुकी है। उनमें भारतीय सेना का एक जवान और सीमावर्ती शहर पुंछ में एक अतिरिक्त जिला विकास आयुक्त भी हैं। वहां सैन्य ठिकानों पर मिसाइल और ड्रोन हमलों की बौछार भी हुई।
उड़ी के सलामाबाद में क्षतिग्रस्त घर
दो दिन बाद, 10 मई की शाम को संघर्ष विराम का ऐलान सनम के परिवार जैसों के लिए राहत की तरह आया, जो एलओसी या अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास रहते हैं। पुंछ के मेंढर शहर के हबीबुल्लाह खान कहते हैं, “हमारे इलाके में भारी मोर्टार गोलाबारी से जानमाल का नुकसान सबसे ज्यादा हुआ। सुबह गोलाबारी बंद हो गई, लेकिन हमें डर था कि शाम को फिर से शुरू हो जाएगी। जंगबंदी राहत लेकर आई है।” उन्हें उम्मीद है कि यह टिकाऊ होगी।
सनम के पिता बशीर चुपचाप पत्नी के अंतिम संस्कार के लिए ताबूत तैयार होते देख रहे थे। उनकी पत्नी बगल के स्कूल में रसोइए के तौर पर काम करती थीं और उनके कुछ हजार रुपये की कमाई से घर चलता था। उन्होंने अपनी बेटी की शादी के लिए कर्ज लिया था। छर्रे सनम की मौसी हफीजा बेगम को भी लगे, जो उनके गाड़ी में साथ थीं। हफीजा उड़ी में जख्मी दर्जनों लोगों में एक हैं। एलओसी के पास पहाड़ियों के पीछे से की गई गोलाबारी से कई घर क्षतिग्रस्त हो गए। एलओसी के पास तनाव बढ़ने से उत्तरी कश्मीर में गोले बरसना और लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भागने के लिए मजबूर होना आम बात है। इसका असर केंद्र शासित प्रदेश की दोनों राजधानियों में भी महसूस किया गया। श्रीनगर में 6-7 मई की दरमियानी रात को शहर के बाहरी इलाके वुयान में नींद में लिपटे गांव के एक स्कूल की इमारत में आग की लपटें उठीं, तो वहां के लोगों ने एक विमान के मलबे की तस्वीरें लीं। 8 मई से शुरू हुई दो रातें जम्मू के लोगों ने मिसाइल और ड्रोन हमलों को नाकाम किए जाते देखते बिताई। जम्मू के उस्ताद मोहल्ला के निवासी वकील शेख शकील कहते हैं, “हमने पूरी तरह ब्लैकआउट में आसमान में कुछ लाल वस्तुएं उड़ती देखीं।” गांधी नगर के एक निवासी का कहना है कि कई धमाके सुने गए। शहर भर के लोग दहशत में हैं। कुछ घर क्षतिग्रस्त हो गए। लोगों की जान दांव पर है।’’ सेना ने कहा कि जम्मू, पठानकोट और उधमपुर में सैन्य ठिकानों को ड्रोन और मिसाइलों से निशाना बनाया गया था, जिन्हें नाकाम किया गया।
जले हुए घर में बिखरा सामान
अधिकारियों ने पाकिस्तान के इस दावे की पुष्टि नहीं की कि भारतीय वायु सेना के पांच विमानों को मार गिराया गया है। वायु सेना के प्रवक्ता ने कहा कि वह श्रीनगर में दुर्घटनाग्रस्त हुए विमान के बारे में कोई टिप्पणी करने की स्थिति में नहीं हैं। श्रीनगर में दुर्घटना स्थल से 100 किलोमीटर दूर उड़ी के सलामाबाद इलाके में एक पहाड़ी पर पाकिस्तान के गोलों से घर क्षतिग्रस्त हो गए हैं। गोलाबारी के लगभग 18 घंटे बाद, घरों के जले हुए अवशेषों से धुएं का गुबार उठ रहा है और 100 से अधिक घर खाली हैं। उड़ी शहर का मुख्य बाजार बंद रहा। क्षतिग्रस्त घरों में से एक में एक आदमी टूटी खिड़कियों और दरवाजों को ठीक करने की कोशिश कर रहा था।
कश्मीर के कुपवाड़ा, बारामुला तथा उड़ी के इलाकों तथा जम्मू के पुंछ, मेंढर और राजौरी सेक्टरों में नियंत्रण रेखा के पास रिहायशी इलाकों और सैन्य ठिकानों के पास गोले गिरे। 7 मई से एलओसी के पास के इलाकों में सब कुछ ठप हो गया था। सलामाबाद में 15 वर्षीय इरफान अहमद कहते हैं, ‘‘पाकिस्तानी गोलाबारी की वजह से मैं रात भर जागता रहा।’’ वह अपने दोस्त तौफीक अहमद (14 वर्ष) के साथ खेतों में टहलकर घरों को हुए नुकसान को देखने गया था।
पहाड़ों की दरारों से होकर बहने वाली नदी के पास धुंध में ढके रहने वाले गांव गिंगल में एक दुकान की शटर पर छर्रे लगे, एक घर की खिड़की टूट गई और सड़क भी टूट गई। 70 वर्षीय शमशाद बेगम कहती हैं, ‘‘सभी लोग चले गए हैं और मैं अपनी बहू के साथ अकेली हूं।’’ पड़ोसी गांव की ओर जाने वाली सड़क का एक हिस्सा गोलाबारी में टूट गया है और एक घर भी ढह गया है। मकबूल कहते हैं, ‘‘यहां कभी इतना बुरा नहीं हुआ था। गोले घरों के बीच गिर रहे थे। लगभग सभी घर छोड़कर चले गए हैं। 1990 के दशक में ही हमने सीमा पार से ऐसी गोलाबारी देखी थी।’’
9 मई को सीमापार गोलीबारी में राजरवानी में मारी गई नरगिस बेगम की बेटी सनम बशीर
गिंगल में ज्यादातर बुजुर्ग ही थे, जिन्होंने यहीं रहना चुना था। गांव को उड़ी से जोड़ने वाली सड़क पर बंदूक थामे सेना के जवान गश्त कर रहे थे। उड़ी में कई मील लंबी सड़क के दोनों ओर कंटीले तार की बाडबंदी है। जगह-जगह लोग इक्कट्ठा थे। वे अपने रिश्तेदारों के आने का इंतजार कर रहे थे, ताकि वे बारामुला शहर या सुरक्षित ऊपरी इलाकों में जा सकें।
शॉल में लिपटे बच्चे के साथ 20 वर्षीय सीमा अपने रिश्तेदारों के आने का इंतजार कर रही थी ताकि उनके साथ पहाड़ी पर अपने ढोक (फूस के घर) तक जा सकें। अब्दुल रहीम तांत्रे कहते हैं, ‘‘हमें लगता है कि हम ऊपरी इलाकों में ढोक में ज्यादा महफूज रह सकते हैं।’’ 22 वर्षीय तारिक अहमद कहते हैं, ‘‘हमारे इलाके पर गोले बरस रहे थे। हमारी जिंदगी बिखर गई।’’
सरकारी मदद न मिलने की शिकायत वहां आम है। 50 वर्षीय गुलाम मोहम्मद भट के सलामाबाद में घर के पास दो घर जलकर राख हो गए। वे कहते हैं, ‘‘पुलिस यहां आई और हमें अपने घर छोड़कर महफूज जगह जाने को कहा। हमें नहीं मालूम कि कहां जाना है। कोई अफसर यहां नहीं आया। अब यहां रहना महफूज नहीं है। हमारे पास कोई सहारा नहीं है। यहां कोई बंकर नहीं है जो गोलाबारी से लोगों की जान बचा सके।’’
पुंछ में रिहायशी इलाकों को भी मोर्टार से निशाना बनाया गया। पुंछ के अधिकारियों ने बताया, ‘‘कई जगह लोगों के लिए राहत शिविर बनाए गए हैं। वहां रहने, खाने और इलाज की व्यवस्था है और सभी जरूरी सेवाएं हैं।’’ एक सरकारी प्रवक्ता के अनुसार, उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी गोलाबारी के बाद सीमावर्ती जिलों में स्थिति का जायजा लिया और राहत की व्यवस्था का वादा किया।
प्रवक्ता के मुताबिक, ‘‘मुख्यमंत्री ने हर सीमावर्ती जिले को 5 करोड़ रुपये और अन्य जिलों को 2 करोड़ रुपये की आकस्मिक निधि तत्काल जारी करने के निर्देश दिए हैं।’’ उन्होंने सीमा पार से गोलाबारी देखने वाले सीमावर्ती जिलों में एम्बुलेंस ले जाने का भी निर्देश दिया ताकि घायलों को अस्पतालों पहुंचाया जा सके।’’ हालांकि अपनी पार्टी के नेता राजा मंजूर ने कहा कि नियंत्रण रेखा के करीब के इलाकों में आपात स्थिति से निपटने के लिए बंकर या इलाज की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘‘कुपवाड़ा के करनाह, केरन, माछिल और नौगाम के इलाकों में निजी बंकरों की कमी है और सीमित सामुदायिक बंकर हैं। सरकार को पर्याप्त बंकर उपलब्ध कराने चाहिए।’’ वे पूछते हैं, ‘‘कुपवाड़ा के अस्पतालों, खासकर उप जिला अस्पताल में स्टाफ की कमी है। फिर हम इस स्थिति से कैसे निपट सकते हैं?’’
पूरे कश्मीर में सुरक्षा बढ़ा दी गई है, पुलिस ने नियंत्रण रेखा के पास के इलाकों में लोगों की आवाजाही पर रोक लगा दी है। वुयान में बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों के जवानों ने विमान दुर्घटना स्थल की ओर जाने वाली सड़क को घेर लिया है। उधर, सीमा पर संघर्ष विराम के बाद भी तनाव बना हुआ है।