कश्मीर में सिनेमा की कहानी इस क्षेत्र के राजनीतिक इतिहास की तरह ही उथल-पुथल भरी है। इसने उम्मीद और निराशा के कई उतार-चढ़ाव भरे दौर देखे हैं। श्रीनगर के लाल चौक के बीचोबीच स्थित पैलेडियम सिनेमा अब खंडहर में तब्दील हो चुका है। इसके ऊपर लगे बोर्ड पर इलाके की पुनर्विकास योजना का विज्ञापन छपा हुआ है। पैलेडियम थिएटर खुद इस परियोजना का हिस्सा होगा या नहीं, यह साफ नहीं है। इसके उलट, श्रीनगर के उच्च सुरक्षा वाले शिवपुरा इलाके में तीन परदों वाला आइनॉक्स मल्टीप्लेक्स चालू है। इसमें 520 लोगों के बैठने की क्षमता है, लेकिन बीते 5 अप्रैल को यहां केवल तीन दर्शक पाए गए। इसमें पठान फिल्म चल रही थी, जिसका विशाल बिलबोर्ड अब भी थिएटर के बाहर टंगा हुआ है।
आइनॉक्स के मैनेजर को अब भी उन नौ हफ्तों की याद है जब पूरे उत्साह के साथ पठान का प्रदर्शन हुआ था। पूरे कश्मीर से फिल्म देखने के लिए आए लोग लंबी कतारों में अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। घाटी में पिछले 33 वर्षों के दौरान पठान पहली ऐसी फिल्म थी जिसके शो हाउसफुल रहे।
आइनॉक्स मल्टीप्लेक्स को पिछले साल सितंबर में खोला गया था। उम्मीद की गई थी कि यह भारी भीड़ खींचेगा। पठान ने इन उम्मीदों को कुछ हद तक पूरा भी किया।
आइनॉक्स के मालिक परिवार के विकास धर, आउटलुक से कहते हैं, “पठान की स्क्रीनिंग का अनुभव ओपनिंग के दिन से ही शानदार रहा।” उनका कहना है कि लोगों की भीड़ समय और रिलीज होने वाली फिल्म पर निर्भर करती है। पठान उनके लिए विशेष रूप से यादगार अनुभव था क्योंकि फिल्म के पहले तीन दिन हाउसफुल रहे। विकास बताते हैं, “जब शाहरुख खान स्क्रीन पर आए तो लोग खुशी के मारे चीखने चिल्लाने लगे।” उनके अनुसार कई लोग ऐसे थे जो कई बार यह फिल्म देखने आए। वह कहते हैं, “कश्मीरियों को सिनेमा का सुख लेते देखना वास्तव में यादगार अनुभव था।”
विकास का परिवार एक जमाने में श्रीनगर का प्रसिद्ध ब्रॉडवे सिनेमाघर चलाता था। जब घाटी में विद्रोह भड़का, तब 1989 में यह सिनेमाघर बंद हो गया। 1990 में जब कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ तब धर परिवार घाटी छोड़ कर चला गया। विजय धर 1992 में वापस आए। दिल्ली में उनकी मां बीमार हो गई थीं और उन्होंने घर लौटने की इच्छा जताई थी। उनकी वापसी फौजी वाहनों के सुरक्षा घेरे में हुई थी। तीन गाडि़यां आगे और तीन पीछे, बीच में एक गाड़ी में विजय। पांच हफ्ते बाद विजय धर लौट गए और दोबारा 1998 में कश्मीेर आए। 1999 में धर परिवार ने ब्रॉडवे थिएटर को फिर खोला लेकिन दर्शक न मिलने के कारण इसे बंद करना पड़ा। 2003 में विजय धर ने इस क्षेत्र में शिक्षा की गंभीर स्थिति को देखते हुए दिल्ली पब्लिक स्कूल, श्रीनगर की स्थापना का निर्णय लिया। आज यह स्कूल जम्मू और कश्मीर के शीर्ष स्कूलों में से एक है।
घाटी में आइनॉक्स थिएटर में पठान का जलवा
आइनॉक्स मल्टीप्लेक्स 30 सितंबर, 2022 को जनता के लिए खोला गया। जम्मू और कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने इसका उद्घाटन किया था। आम तौर से इसका आखिरी शो रात पौने दस बजे खत्म होता है, लेकिन आजकल रमजान के कारण अंतिम शो शाम 6 बजे तक ही चलता है। थिएटर प्रबंधक का कहना है कि रमजान के कारण लोग नहीं आ रहे हैं। उनका कहना है कि सप्ताहांत पर और शाम के शो कई बार अच्छे जाते हैं। वे ईद के बाद कारोबार की वापसी की उम्मीद कर रहे हैं। उनके मुताबिक कश्मीर में अन्य राज्यों से आने वाले पर्यटक और युवा भी अच्छी संख्या में थिएटर आते हैं।
पैलेडियम की कथा कश्मीर में मुख्यधारा के सिनेमा के इतिहास के केंद्र में है। पैलेडियम सिनेमा उत्तर भारत का सबसे पुराना हॉल था और दिल्ली में रिलीज होने से पहले हॉलीवुड की फिल्में यहां प्रदर्शित होती थीं। कई पुराने लोगों का कहना है कि 1980 के दशक का श्रीनगर उत्तर भारत के किसी भी प्रमुख शहर से बहुत आगे था। तब यहां के सिनेमा हॉल हॉलीवुड की फिल्में चलाते थे और स्थानीय भाषा में फिल्मों के नाम का अनुवाद भी करते थे। हालांकि अनुवाद हमेशा उतना सटीक नहीं होता था। मसलन, द थ्री मस्कीटियर्स का अनुवाद तीन हरामजादे कर दिया गया था।
1947 की अशांत सर्दियों में पैलेडियम सिनेमा शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली कश्मीर की प्रमुख राष्ट्रवादी पार्टी का मुख्यालय बन गया था। लेखक एंड्रयू व्हाइटहेड लिखते हैं, “यह एक परिवर्तनकारी और धर्मनिरपेक्ष आंदोलन था, जिसका पाकिस्तान की मुस्लिम लीग की तुलना में भारत की कांग्रेस पार्टी से करीबी संबंध था।” नवंबर 1948 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जब श्रीनगर आए तो शेख अब्दुल्ला के साथ एक बड़ी सभा को उन्होंने संबोधित किया। सभा स्थल पैलेडियम सिनेमा ही था। यहीं पर नेहरू ने जम्मू-कश्मीर के लोगों से जनमत संग्रह कराने का वादा किया था और शेख अब्दुल्ला पर फख्र जताया था।
इतिहासकार खालिद बशीर के मुताबिक कश्मीर के पहले सिनेमाघर पैलेडियम का इतिहास 1932 में भाई अनंत सिंह गौरी तक जाता है। आज इस सिनेमा के खंडहर घंटाघर से महज 100 मीटर की दूरी पर लाल चौक में हैं। 1932 में इसकी शुरुआत कश्मीर टॉकीज के नाम से हुई थी। बाद में शायद रूस के सेंट पीट्सबर्ग स्थित पैलेडियम थिएटर के नाम पर इसका नाम बदला गया। 1940 के दशक में प्रतीकों और समतावादी आकांक्षाओं के मामले में कश्मीर पर साम्यवाद का गहरा प्रभाव हुआ करता था। इसका साक्ष्य है श्रीनगर के लाल चौक का नाम मास्को के रेड स्क्वायर के नाम पर रखा जाना।
पैलेडियम के बाद रीगल अगला थिएटर था जिसे लाल चौक में एक पंजाबी भाषी बल परिवार ने शुरू किया था। इसी परिवार के रोहित बल आज एक प्रमुख फैशन डिजाइनर हैं। 1990 के बाद यह लंबे समय तक बंद पड़ा रहा। आज यहां एक मॉल बनाया जा रहा है। 1964 तक कश्मीर में तीन सिनेमाघर लाल चौक में हुआ करते थे। फिर खानयार में शिराज सिनेमा हॉल खुला। बशीर के मुताबिक उसमें दिखाई गई पहली फिल्म थी राज कपूर की संगम, जिसने भारी भीड़ खींची थी।
पैलेडियम और आइनॉक्स मल्टीप्लेक्स के बीच की दूरी लगभग पांच किलोमीटर है। श्रीनगर के अन्य थिएटरों, जैसे नीलम, फिरदौस और शिराज की तरह पैलेडियम पर भी सीआरपीएफ का कब्जा है और कंटीली बाड़ से इसकी घेराबंदी की गई है। इसके ठीक बाहर लाल रंग का दोमंजिला बंकर है।
आइनॉक्स मल्टीप्लेक्स शिवपुरा में है। यह कश्मीर की सबसे कड़ी सुरक्षा वाले क्षेत्रों में से एक है, जहां भारतीय सेना की 15वीं कोर का मुख्यालय सड़क के उस पार स्थित है। इस सिनेमा में कई सुरक्षा चौकियां हैं। प्रवेश द्वार पर निजी सुरक्षा गार्ड जांच में तैनात है। सुरक्षा और निगरानी पुलिस और अर्धसैनिक बलों के जिम्मे है। पैलेडियम के खंडहरों और आइनॉक्स के बीच एक बात समान है, उनके चारों ओर कड़ी सुरक्षा का कवच। जिस दिन इसे हटा लिया गया, सिनेमा और कश्मीर दोनों की कहानी बदल जाएगी।