संस्कृति में बदलाव पीढ़ी दर पीढ़ी आता है। लोग जिस तरह इसे अपनाते हैं, उसी के अनुरूप यह ढल जाती है। कुछ रुचियां आपकी शिक्षा, आय और निवास स्थान से तय होती हैं। अगर आप भारतीय हैं और अमेरिका के न्यूजर्सी में रहते हैं तो आपकी पहुंच न्यूयॉर्क के थिएटर कल्चर तक होगी। अगर आप ज्यादा कमाते हैं तो जॉन एफ. कनेडी सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स में 125 डॉलर (9000 रुपये) का एक टिकट खरीद सकते हैं। अगर पसंद हो तो आप थिएटर और बैले देख सकते हैं। कुछ रुचियां एक्सपोजर से आती हैं। एक्सपोजर बढ़ने के साथ आपको ज्यादा आनंद मिलने लगता है और उसकी आदत बन जाती है। लोगों को एहसास भी नहीं होता और धुन, ताल और गीत बार-बार सुने जाने के कारण गाने हिट हो जाते हैं।
कोई गाना बार-बार सुना या देखा जाता है तो वह दिमाग में रच-बस जाता है। जब गाना याद आता है तो उससे जुड़ी अन्य स्मृतियां भी याद आने लगती हैं। सवाल यह है कि आप कोई गाना पसंद करते हैं इसलिए उसे बार-बार सुनते हैं, या बार-बार सुनने के कारण गाना आपको पसंद आने लगता है। म्यूजिक इंडस्ट्री मानती है कि कोई गाना जितना ज्यादा सुना जाएगा, उसके हिट होने की संभावना उतनी ज्यादा होगी। यही वजह है कि पुराने गानों की गूंज ज्यादा होती है क्योंकि वे बार-बार सुने गए हैं। नए गाने को स्थापित होने में समय लगता है। युवा नए गाने ज्यादा पसंद करते हैं।
भारतीय फिल्म निर्माता फिल्म रिलीज होने से काफी पहले आयटम सॉन्ग जारी कर देते हैं, ताकि वह ज्यादा से ज्यादा लोगों के मन में बस जाए। इसका अर्थ यह नहीं कि कोई गाना सिर्फ बार-बार सुने जाने से लोकप्रिय हो जाता है। हर गाने, बल्कि हर संगीत रचना का एक समय होता है, जिसे वैज्ञानिक पूर्वानुमान का दौर मानते हैं। अगर ध्वनि ज्यादा प्रत्याशित है तो बोरियत होती है और गाना बार-बार सुनने लायक नहीं रह जाता। गाना ऐसा होना चाहिए कि उसे जब भी सुना जाए, हर बार आनंद की अनुभूति हो। संगीतकार इसका ध्यान रखते हैं।
तकनीक ने यह काम बहुत आसान कर दिया है। मोबाइल फोन संगीत सुनने की पंसदीदा डिवाइस बन गई है। हेडफोन की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ है। फोन के स्पीकर से भी अच्छी क्वालिटी की आवाज निकलती है। पिछले दस वर्षों में मोबाइल फोन का ऑडियो फंक्शन तेजी से बदला है। स्पीकर का इस्तेमाल सिर्फ कॉल सुनने के लिए नहीं हो रहा है। मोबाइल फोन और सस्ती डाटा दरों ने संगीत के विशाल संसार को हर किसी तक पहुंचा दिया है। आसान पहुंच से भौगोलिक बंदिशें टूटी हैं। इससे संगीत की रुचि में एकरूपता आ सकती है। मोबाइल फोन और डाटा कनेक्शन से वैश्विक संगीत, खासकर अमेरिकी संगीत तक हर किसी की पहुंच हो गई है।
संगीत तक पहुंच की एक और बाधा तेजी से खत्म हो रही है। म्यूजिक सर्च करने के लिए कुछ टाइप करने की आवश्यकता नहीं है। वॉइस कमांड से इंटरनेट सर्च करना आसान हो गया है। खासकर गूगल असिस्टेंट के जरिए, जो भारतीयों के उच्चारण को अच्छी तरह समझता है। यह भी जरूरी नहीं कि आप गायक का नाम सही-सही लिखें या गाने के बोल याद रखें। अगर आप नाम बोल सकते हैं तो स्मार्टफोन सर्च करके गाना बजाने लगेगा।
नया संगीत तलाशना भी आसान है, क्योंकि अल्गोरिदम की प्रोग्रामिंग आपके लिए सबसे लोकप्रिय गाना बजाता है। रेडियो जॉकी के पास गानों की सीमा होती है। वह वही गाने बजाएगा, जो उसके पास उपलब्ध हैं और जो उसे पसंद हैं। अल्गोरिदम की पहुंच असंख्य गानों तक होती है। यह उन गानों को भी सुनाएगा जो चलन में ज्यादा हैं। इससे उन गानों के बारे में पता चलता है जो ट्रेंड में हैं, बजाय पुराने गाने के जिन्हें आप सुनने के आदी हैं। अगर स्मार्टफोन या अल्गोरिदम यह तय करे कि आपको कौन-सा गाना सुनना चाहिए, तो आपकी गाना सुनने की आदत बदल जाएगी। कोई गाना आप जितना ज्यादा सुनेंगे, उसे उतना ज्यादा पसंद करने लगेंगे। अगर अल्गोरिदम द्वारा तय गाने सुने जाने लगें, तो एकरूपता बनने लगेगी।
तो, क्या इससे संगीत में एकरूपता आएगी या बॉलीवुड का संगीत पूरी दुनिया में स्वीकार्य हो जाएगा? पहले अंग्रेजी संगीत का प्रभाव सिर्फ शहरों और अंग्रेजीदां उच्च वर्ग तक सीमित था। स्पॉटीफाइ और अमेजन म्यूजिक जैसे ग्लोबल प्लेटफॉर्म के पास काफी संसाधन हैं। क्या वे भारतीय संगीत को दुनियाभर में ले जाएंगे या भारतीय संगीत को वैश्विक जैसा बनाएंगे? तकनीक, स्मार्टफोन, सस्ते डाटा और ग्लोबल म्यूजिक प्लेटफॉर्म से संगीत की विविधता घटेगी या बढ़ेगी?
पॉप म्यूजिक के उभार पर यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के लेक्चरर मैथियाज मॉच ने एक अध्ययन किया। इसमें 1960 से 2010 के बीच के 17,094 गाने शामिल किए गए। इसके आंकड़े वैश्विक संगीत प्लेटफॉर्म ‘बिलबोर्ड हॉट 100’ से लिए गए। इस अध्ययन के अनुसार पॉप म्यूजिक की शैली में 1964, 1983 और 1991 में बदलाव हुए। पॉप के कई दौर थे जिनमें ड्रम और गिटार के साथ ऊर्जावान गायक उभरे। बॉलीवुड के संगीत पर पॉप म्यूजिक का काफी प्रभाव रहा। मैथियाज से पहले संगीत सुनने के जो अध्ययन हुए, उसके पक्ष में कोई आंकड़ा नहीं होता था, लेकिन बिलबोर्ड के पास अब काफी आंकड़े हैं। ये प्लेटफार्म ऐसे कॉन्टेंट (संगीत) भी तैयार कर रहे हैं जिन्हें दुनिया भर के श्रोता सुन सकें। क्या वे संगीत तैयार करने में टेक्नोलॉजी, डाटा प्रोसेसिंग और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल करेंगे, ताकि वह ज्यादा से ज्यादा लोगों को पसंद आए?
(नीति विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार)