पहले आम आदमी पार्टी (आप) और फिर शिरोमणि अकाली दल (शिअद) में टूट से पंजाब की सियासत में नए समीकरण उभर आए हैं। सांसद रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा की अगुआई में बनी शिरोमणि अकाली दल (टकसाली) ने धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी और बहबलकलां-बरगाड़ी गोली कांड की तपिश से उबरने की कोशिश कर रहे शिअद-भाजपा गठबंधन के लिए हालात 2017 के विधानसभा चुनाव से भी खराब कर दिए हैं। विधानसभा चुनावों में शिअद-भाजपा गठबंधन तीसरे नंबर पर रहा था। स्थानीय निकायों और पंचायत चुनाव में गठबंधन की करारी शिकस्त से भी जाहिर है कि दो साल में इनका जनाधार और कमजोर हुआ है। फिलहाल, पंजाब की 13 लोकसभा सीटों में से गठबंधन के पास पांच सीटें हैं। इनमें से भाजपा के खाते में तो केवल एक ही सीट है।
शिअद में सातवीं बार हुई टूट ने सियासी समीकरणों को पूरी तरह से बदल दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और उनके पुत्र सुखबीर बादल के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले ब्रह्मपुरा के साथ पूर्व मंत्री रतन सिंह अजनाला, सेवा सिंह सेखवां जैसे नेता हैं, जिनकी माझा क्षेत्र में अच्छी पैठ है। सांसद सुखदेव सिंह ढींढसा की नाराजगी शिअद-भाजपा गठबंधन को मालवा के इलाके में भारी पड़ सकती है। शिअद (टकसाली), आप से टूट कर सुखपाल खेहरा की अगुआई में बनी पंजाबी एकता पार्टी, बसपा और लोक इंसाफ पार्टी के बीच गठबंधन की संभावना भी जताई जा रही है। तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट से कांग्रेस को फायदा होने की उम्मीद है, जिसे 2014 के आम चुनाव में तीन सीट पर कामयाबी मिली थी। वैसे भी कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली दो साल पुरानी कांग्रेस सरकार को घेरने के लिए विपक्ष के पास कोई ठोस मुद्दा नहीं है।
शिअद अध्यक्ष सुखबीर बादल की कार्यशैली से नाराज होकर सक्रिय राजनीति से किनारा करने वाले ढींढसा ने आउटलुक से बातचीत में कहा, “परिवारवाद के कारण शिअद पंथक राजनीति से भटक चुका है। शिअद को बचाने के लिए सुखबीर को अध्यक्ष पद से हटाकर प्रकाश सिंह बादल को अध्यक्ष बनाने की सलाह वरिष्ठ नेताओं ने दी थी, जो नहीं मानी गई। इसका नुकसान गठबंधन को होना तय है।” उनका मानना है कि इस साल होने वाले आम चुनावों में पंजाब में शिअद-भाजपा गठबंधन के लिए खाता खोलना भी मुश्किल होगा।
शिअद की सहयोगी भाजपा की स्थिति में भी सुधार होता नहीं दिख रहा। विधानसभा चुनावों के बाद नगर निगम चुनावों में भी भाजपा बुरी तरह हारी है। विनोद खन्ना के निधन के कारण खाली हुई गुरदासपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भी उसे पराजय का सामना करना पड़ा। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपने हिस्से की तीन सीटों में से दो गुरदासपुर और होशियारपुर में जीत हासिल की थी। मोदी लहर के बावजूद अमृतसर सीट से अरुण जेटली हार गए थे। इससे पहले नवजोत सिंह सिद्धू की वजह से एक दशक तक इस सीट पर भाजपा का कब्जा रहा था। विधानसभा चुनाव से पहले सिद्धू के कांग्रेस में शामिल होने के कारण माझा के शहरी इलाकों में भाजपा कमजोर हो चुकी है।
केंद्रीय मंत्री विजय सांपला की जगह राज्यसभा सांसद श्वेत मलिक को सूबे की कमान सौंपे जाने के बावजूद भाजपा में भितरघात कम नहीं हुई है। पार्टी के पंजाब लोकसभा चुनाव प्रभारी एवं हरियाणा के वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु ने शिअद से सीटों की अदला-बदली से इनकार करते हुए कहा है कि पार्टी इस बार भी अपनी पुरानी तीनों सीटों पर ही चुनाव लड़ेगी। लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री मोदी की देश भर में होने वाली 100 रैलियों में से पहली रैली तीन जनवरी को गुरदासपुर में होने से यह तो स्पष्ट है कि करतारपुर कॉरिडोर और 1984 के सिख दंगों पर फैसले को भाजपा पंजाब में बड़ा मुद्दा बनाएगी। शिअद प्रवक्ता डॉ. दलजीत सिंह चीमा ने बताया कि यह गठबंधन का साझा मुद्दा है। मोदी मैजिक के भरोसे केंद्रीय बजट में पांच लाख रुपये तक की आय पर जीरो टैक्स और छोटे किसानों को सालाना छह हजार रुपये मुआवजा को भुनाने की कोशिश भी गठबंधन करेगा।
बीते लोकसभा चुनाव में राज्य की चार और विधानसभा चुनाव में 20 सीटें जीत कर विपक्ष की भूमिका निभा रही आप की चुनावी संभावनाएं भी स्थानीय निकाय और पंचायत चुनावों में हार के कारण धुंधली दिख रही हैं। आप भले ही पंजाब में खुद को कांग्रेस और शिअद-भाजपा गठबंधन का विकल्प बता रही हो, लेकिन राज्य में उसके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। भगवंत मान के पास बागडोर होने के बावजूद राजनीतिक दिशा-निर्देश के अभाव में पार्टी कार्यकर्ता दुविधा में हैं। दो साल में ही पार्टी तीन बार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बदल चुकी है।
आप से इस्तीफा देने वाले सुखपाल खैहरा पंजाबी एकता पार्टी का गठन कर चुके हैं। वे टकसाली नेताओं के साथ मिलकर महागठबंधन की तैयारी कर रहे हैं। आप विधायक मास्टर बलदेव सिंह भी खैहरा की पार्टी में शामिल हो गए हैं। खैहरा के साथ आप के छह और विधायक भी हैं। राज्य से आने वाले दो सांसद ही पार्टी के साथ हैं। पटियाला के सांसद धर्मवीर गांधी और फतेहगढ़ के सांसद हरिंदर खालसा को आप ने 2015 में ही निलंबित कर दिया था। दोनों ही तीसरा मोर्चा खड़ा करने की कोशिशों में जुटे हैं।
दूसरी ओर, राज्य में सरकार बनने के बाद से कांग्रेस ने गुरदासपुर लोकसभा उपचुनाव से लेकर नगर निगम, नगर काउंसिल, पंचायत चुनावों में बड़ी जीत हासिल की है। लेकिन, नए सियासी समीकरणों और मुद्दों के चलते लोकसभा चुनाव उसके लिए भी बड़ी चुनौती है। यह अलग बात है कि स्थानीय चुनावों के नतीजों से उत्साहित मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह राज्य की सभी लोकसभा सीटों पर जीत का दावा कर रहे हैं। पार्टी को सभी सीटों के लिए उम्मीदवार तय करने में काफी जद्दोजहद का सामना करना पड़ेगा। कांग्रेस को छह नए चेहरे लोकसभा चुनाव में उतारने होंगे, क्योंकि 2014 में लोकसभा चुनाव लड़ चुके उम्मीदवार या तो विधायक हैं या फिर कैबिनेट रैंक के मंत्री।
विधानसभा चुनाव से पहले सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने गुटका साहिब की सौगंध खाकर कहा था कि वह पंजाब से चार हफ्तों में नशा खत्म कर देंगे। लेकिन, कांग्रेस के ही विधायक कुलबीर सिंह जीरा पुलिस के आला-अफसरों पर नशे के सौदागरों के साथ मिले होने का आरोप लगा चुके हैं। इसके बाद पार्टी ने उन्हें सस्पेंड कर दिया। आंशिक कर्जमाफी की वजह से किसान भी नाराज हैं। दो साल के कार्यकाल में 900 से अधिक किसान कर्ज की वजह से आत्महत्या कर चुके हैं। धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी और बहबलकलां में युवकों की मौत के मामले में कांग्रेस सरकार भी कठघरे में है।