वर्तमान समय में कोई भी क्षेत्र आधुनिकता और तकनीक से अछूता नहीं है। सूचना एवं प्रौद्योगिकी क्रांति हर क्षेत्र को अपनी गिरफ्त में ले चुकी है। उर्दू शायरी भी तकनीकी संपन्नता से बहुत प्रभावित हुई है। एक जमाने में, जब मैंने उर्दू शायरी की दुनिया में कदम रखा था तो बहुत मुश्किल से किताबें उपलब्ध होती थीं या उर्दू ग़ज़ल का व्याकरण सिखाने वाले उस्ताद मिलते थे। आज तकनीकी रूप से हम इतने सक्षम हो गए हैं कि एक क्लिक पर उर्दू शायरी और गजल का व्याकरण उपलब्ध है। इंसान को कहीं भी जाने, भाग-दौड़ करने की जरूरत नहीं है। इस तरह आप कह सकते हैं कि उर्दू भाषा और शायरी का प्रसार हुआ है।
सोशल मीडिया ने उर्दू शायरी और शायरों को बहुत फायदा पहुंचाया है। यदि मैं अपनी ही बात कहूं तो जिस ग़ज़ल को मैं बीस साल से कवि सम्मेलन और मुशायरे के मंच पर सुना रही हूं, उसे दुनिया भर में मशहूर होने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेना पड़ा। फेसबुक, इंस्टाग्राम ने मेरी गजल ‘खामोश लब हैं’ को दुनिया भर में पहुंचा दिया है। इस सम्मान, इस प्रेम के लिए मैं सोशल मीडिया के मंच की आभारी हूं। लेकिन जैसे हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, वैसे ही सोशल मीडिया पर वायरल शायरी के भी दो पहलू हैं।
यह बात तो सुंदर है कि सोशल मीडिया के कारण अब हर लेखक, शायर को मंच मिल रहा है। प्रतिभा का सम्मान हो रहा है। लिखने वाले सामने आ रहे हैं। मगर उनके लेखन में गुणवत्ता है या नहीं, यह बड़ा सवाल है। मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि आज उर्दू शायरी के नाम पर जो सोशल मीडिया पर लिखा जा रहा है उसका उर्दू शायरी से कोई लेना-देना नहीं है। अव्वल तो यह है कि वह शायरी ही नहीं है। सोशल मीडिया पर फैले अधिकतर कंटेंट में न व्याकरण का ध्यान रखा जाता है और न अन्य बिंदुओं का। सब खुद के लिखे को महान समझते हैं। कोई किसी से सलाह नहीं लेना चाहता। जिसकी पोस्ट पर ज्यादा लाइक और कमेंट आ गए, वह सोचता है कि मुझसे बड़ा शायर जमाने में कोई है ही नहीं। इससे हो ये रहा है कि उर्दू भाषा तो फैल रही है मगर उर्दू शायरी की गुणवत्ता खत्म हो रही है।
इसी तरह से सोशल मीडिया के कारण कंटेंट कॉपी होना भी बढ़ गया है। आज कोई भी आपकी शायरी को आपको क्रेडिट दिए बिना आपसे इजाजत लिए बिना गाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर देता है और वायरल हो जाता है। उसे कार्यक्रम मिलने लगते हैं, मीडिया कवरेज मिलती है और वह पैसा कमाने लगता है। इस पूरी यात्रा में जिस शायर या शायरा ने रात भर जागकर शायरी लिखी होती है, उसके हिस्से में कुछ नहीं आता। कहीं उसका जिक्र भी नहीं होता कि यह शायरी जो इतनी लोकप्रिय हो रही है, वह लिखी किसने है।
सोशल मीडिया पर शायरों के वायरल होने से कुछ फायदे भी हुए हैं तो कुछ नुकसान भी देखने को मिले हैं। बात अगर फायदे की करें तो महिला शायर अब अधिक मजबूती से अपनी बात रख पाती हैं। पहले महिला और पुरुष शायर की पेमेंट में भयंकर असमानता होती थी। यह हर क्षेत्र में देखा गया है। महिला शायर को अधिक तवज्जो नहीं दी जाती थी। उन्हें मनोरंजन की तरह देखा जाता था। यह धारणा थी कि कवि सम्मेलन और मुशायरे तो केवल पुरुष शायरों के कारण हिट होते हैं। मगर जैसे ही महिला शायर की शायरी सोशल मीडिया पर वायरल होनी शुरू हुई, यह संदेश जाने लगा कि महिला शायर किसी मामले में पुरुष शायर से कम नहीं हैं। इस तरह इतना जरूर हुआ कि महिला शायर को पहले की तुलना में पेमेंट भी अधिक मिलने लगी और उसका जायज सम्मान भी किया जाने लगा। मगर इस वायरल होने का एक बड़ा दुष्परिणाम भी सामने आया।
ऐसा बार-बार देखने को मिल रहा है कि आज उन्हीं शायरों को अच्छा माना जा रहा है जिनका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। आयोजक उन्हीं शायरों को अपने मंच पर बुला रहे हैं जिनके शायरी के वीडियो पर मिलियन व्यूज आ रहे हैं। इसका नुकसान यह हुआ है कि जो भी वायरल नहीं हो रहा, वह नकार दिया जा रहा है। वायरल होने के पीछे कई कारण हैं। सोशल मीडिया पर इश्किया, मजाकिया शायरी वायरल होती है। देशभक्ति गीत वायरल होते हैं। लेकिन जीवन के फलसफे को समझाने वाली संजीदा शायरी कई बार उतनी वायरल नहीं हो पाती। जबसे गुणवत्ता का पैमाना व्यूज बनने लगे हैं, तब से संजीदा शायरी करने वाले शायरों पर दबाव है। जो वायरल हो रहे हैं, वे महीने में 30 कार्यक्रम कर रहे हैं और जो वायरल नहीं हो रहे, वे कार्यक्रम में नहीं बुलाए जा रहे। युवाओं पर उर्दू शायरी के प्रभाव में दोनों पक्ष समझने की जरूरत है।
(लेखिका गजलगो हैं। मनीष पांडेय से बातचीत पर आधारित)