मोह के दम पर सांस
‘दमयंती की न्यारी नगरी करे मान मनुहार,
मोहमयी निर्मल माटी पर चरण धरो सरकार’
मान्यता है कि हर शहर और ग्राम का अपना एक देवता होता है, उसी के हिसाब से वहां की तासीर और तबीयत तय होती है। दमोह शहर का देवता सब को मोहपाश में बांधने का हुनर जानता है, इसलिए मोह के दम पर सांस लेने वाले मध्य प्रदेश में रानी दमयंती के शहर को दमोह के नाम से जाना जाता है।
रानी दुर्गावती का आत्मबलिदान
ज्योतिर्लिंग जैसी महत्ता वाला दमोह का जागेश्वर धाम शिवमंदिर विख्यात है। कुंडलपुर स्थित बड़े बाबा का मंदिर जैन धर्मावलंबियों का प्रमुख तीर्थस्थान है। दसवीं शताब्दी के कलचुरी शासन की देन नोहलेश्वर का भव्य मंदिर भी दर्शनीय है। इसी भूमि पर सिंगौरगढ़ के किले के पास हुए भीषण संग्राम में रानी दुर्गावती ने मुगल फौज को हराया था। दोबारा आक्रमण होने पर रानी बुरी तरह घायल हुईं, तब उन्होंने सिपाही को आदेश दिया कि वे अपनी तलवार से उन्हें मार डाले। सैनिक हिम्मत न जुटा पाया तो रानी खुद ही सीने में कटार घोंपकर परलोक सिधार गईं। उन्होंने अपनी देह मुगलों के हाथ न लगने दी। उनका यह बलिदान रानी पद्मावती के जौहर से कम न था। यह शहर कभी राजा छत्रसाल के अधीन रहा, कभी रानी दुर्गावती के, कभी मराठों ने गढ़ बनाया तो कभी कलचुरी सत्ता ने, सभी की निशानियां अपनी माटी में समेटे यह शहर पर्वत-पठार, नदी-झरनों से सजी एक जीती-जागती कविता है।
स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान
दमोह अंग्रेजों के खिलाफ 1842 के हिरदेशाह और बुंदेला विद्रोह का केंद्र रहा और 1857 के संग्राम में अंग्रेजों की बर्बरता का साक्षी बना। यहां एक फंसिया नाला है, जहां अंग्रेजों ने छह माह के दुधमुंहे बच्चे सहित, डेढ़ दर्जन लोगों को फांसी पर लटकाया था, मगर ऐसी क्रूरता भी यहां के लोगों का हौसला नहीं तोड़ पाई थी। स्वतंत्रता संग्राम में इस छोटे से शहर ने भी योगदान दिया है। 1933 में महात्मा गांधी ने दमोह की यात्रा की थी, जो कई कारणों से महत्वपूर्ण थी। अव्वल तो झुन्नीलाल वर्मा के नेतृत्व में दमोह देश का पहला कस्बा बना जहां सामाजिक चेतना से नशाबंदी की गई थी। गांधी जी की सभा में पुरुषों के साथ महिलाओं तथा हरिजनों के बैठने की भी व्यवस्था की गई थी।
आल्हा गायन वाली सूरमाओं की धरती
सूरमाओं की धरती कहे जाने वाले दमोह की धरती पर ही जगनिक ने आल्हा गायन की रचना की थी। प्रसिद्ध है कि इसका गायन होने पर सूरमा जोश में आकर विरोधियों पर अपनी तलवारें खींच लेते थे। ‘एक टोकरी मिट्टी’ हिंदी की पहली कहानी कहलाती है, जिसके रचियता माधवराव सप्रे यहीं जन्मे थे। यहीं की मिट्टी में खेल कर विश्व प्रसिद्ध चित्रकार सैयद हैदर रजा ने अपने सपनों में रंग भरने शुरू किए थे। बकौल भवानीप्रसाद मिश्र, दमोह की साहित्यिक तिकड़ी दिनकर सोनवलकर, सत्यमोहन वर्मा और प्रो. नईम का हिंदी साहित्य में अप्रतिम योगदान रहा है, साथ ही आज के दौर के शीर्ष लेखकों में एक डॉ. श्यामसुंदर दुबे भी इसी माटी के लाल हैं। एम एेंंड टी स्टूडियो वाले हिंदी सिनेमा जगत के फिल्म निर्माता ज्वालाप्रसाद तिवारी, जिन्होंने देवानंद और मधुबाला के साथ अनेक चलचित्र बनाए, दमोह के ही थे। इसी धरा से अब्दुल गफूर निकले जिन्होंने हॉकी में भारत का प्रतिनिधित्व किया। नबी मुहम्मद भी यहीं पैदा हुए थे, जो बंटवारे के बाद पाकिस्तान की तरफ से हॉकी खेले।
अड्डेबाजी और यारबाशी
यह शहर अड्डेबाजी, यारबाशी के लिए भी चर्चित है। दमोह के बारे में कहा जाता है कि “दम हो तो दमोह में रहो।” ये दमोह में ही संभव है कि कई दफा उपचुनावों में, सरकार द्वारा पूरी ताकत झोंकने के बाद भी सरकार को ही पटकनी दे दी जाए। राजनैतिक रूप से संवेदनशील दमोह, सांप्रदायिक सद्भाव की भी मिसाल कायम करता आया है। यहां क्रिसमस पर चर्च में ईसाइयों के बराबर ही दूसरे धर्मों के लोग मिल जाते हैं या फिर राम दल के जुलूस की कमेंटरी करते खान बंधु मिल जाते हैं। दमोह बुंदेलखंड और महाकौशल के बीच की कड़ी है इसलिए इस शहर के लोग भी कॉकटेल की तरह ही हैं। कभी तो यहां सिर्फ घूर लेने पर ही लड़ बैठते हैं या फिदा हो जाएं तो जान निसार कर दें। यहां का जायका निराला है समोसे के साथ मट्ठा, भाजी बड़े के साथ कैथे (कबीट) की चटनी, खोए की जलेबी, चाट में पीले मटर या खुरचन, या फिर खालिस देशी बुंदेली बिजौरे, ठंडूला और बरेजों की भाजी। यहां का देसी पान, बड़ी दूर-दूर तक जाता है।
‘हओ’ और ‘काय’ का अपनत्व
ग्लोबलाइजेशन के दौर में भी अपनी ठेठ जीवनशैली और परंपराओं को कहीं न कहीं बचाए हुए, ‘हओ’ और ‘काय’ के बीच अपने संवादों को लपेटे हुए इस शहर में हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता के प्रमाण भी मिले हैं, वहीं इसने देश के सबसे गंदे शहर होने का दंश भी झेला है। बाद में रेल स्वच्छता सर्वे में सारे देश में नौवां स्थान पाया है। जीवन के हर खट्टे-मीठे अनुभव को अपनी धड़कनों में बसाए, अपने सीमित संसाधनों लेकिन दिल की गहराइयों के साथ यह शहर किसी भी परिस्थिति में आपका स्वागत करने को तत्पर है।
(‘बुंदेली सम्मान’ से सम्मानित युवा साहित्यकार )