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20 जनवरी 2025 · JAN 20 , 2025

शहरनामाः दरभंगा

मैथिली संस्कृति का पावन केंद्र
यादों में शहर

द्वार बंग

मैथिली संस्कृति का यह पावन केंद्र है। बिहार के उत्तर में स्थित भारत के प्राचीनतम शहरों में से एक यह शहर मिथिलांचल की शाश्वत राजधानी है। बागमती नदी, शहर के पांच बड़े तालाब इसे पूर्ण बनाते हैं। इसे बंग यानी बंगाल का द्वार भी कहा जाता था। जो बाद में होते-होते, दरभंगा हो गया। नाम के पीछे एक और कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि मुगल काल में एक श्रोत्रिय ब्राह्मण ने इस शहर की स्थापना की थी। बाद में उन्हें खां की उपाधि दी गई। कुछ लोगों का मानना है कि उन्हीं दरभंगी खां के नाम शहर का नाम दरभंगा हुआ।

सीता प्रदेश

यह राजा जनक के शासन और माता सीता के जन्म और युवावस्था का साक्षी रहा है। मौर्य, शुंग, कण्व और गुप्त वंशों का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। बाद में ओईनवार राजाओं ने इसे कला, साहित्य और सांस्कृतिक रूप से धनी बनाने में कोई कमी नहीं रखी। ओईनवार राजा कामेश्वर सिंह काल में यह विकास में अग्रणी था। दरभंगा राज की किलेबंदी और महल निर्माण की आज भी उसकी अमिट छाप है।

अलौकिक धार्मिकता

मंदिरों से सजे इस शहर की धार्मिकता भी अलौकिक है। महाराजा कामेश्वर सिंह के काल में यहां खूब मंदिर बनवाए गए। श्री रामेश्वरी श्यामा बहुत ख्यात है। यहां महाकाली की मूर्ति को एक महाराजा के अवशेष पर स्थापित किया गया है। मनोकामना मंदिर, कंकाली मंदिर, राम मंदिर, शनि मंदिर शहर की धार्मिक भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। हजरत मखदूम भीखा शाह सैलानी का दरगाह अपने भीतर चार सौ साल का इतिहास समेटे है। 

भारती मंडन और शंकराचार्य

अद्वैत वेदांत के जनक शंकराचार्य का किस्सा सुना होगा कि कैसे उन्हें दार्शनिक मंडन मिश्र की पत्नी के आगे शास्त्रार्थ में पराजय स्वीकार करनी पड़ी थी। संस्कृति और ऐतिहासिकता के साथ मिथिला विद्वानों की भूमि भी रही है। मिथिलांचल में कुमारिल भट्ट, मंडन मिश्र, गदाधर पंडित, शंकर, वाचास्पति मिश्र, विद्यापति, नागार्जुन, चन्द्र मोहन पोद्दार जैसे महान विद्वानों ने ख्याति में वृद्धि की है।

लकीरों की कला

मात्र लकीरों से अलग पहचान स्थापित करने वाली मिथिला पेंटिंग की अलग पहचान है। इसकी बारीकी ही इसकी खासियत है और खूबसूरती भी। मिथिला पेंटिंग के साथ यह जगह गायन की खास शैली के लिए भी जानी जाती है। ध्रुपद गायन की गया शैली का अविर्भाव मिथिला में हुआ। 

खान-पान और मखान

नाश्ता करना हो, तो दही-चूड़ा हाजिर है। अरीकंचन के पत्तों की तरकारी, तिलकोर के तरुए और रसदार मछली किसकी भूख नहीं जगा देगी। जिस तरह खाना मशहूर है, वैसे ही यहां का मखाना प्रसिद्ध है। यहां के पोखरों में उपजाया जाने वाले मखाने को मखान कहा जाता है। कुछ मीठा हो जाए कहने भर की देर है, यहां के मालपुए हाजिर हैं। मटन भी यहां कई प्रकार से पकाया जाता है। मिथिला का खानपान पूरे बिहार में प्रसिद्ध है।

सामा और चकेवा

लोक आस्था का पर्व छठ वैसे तो पूरे बिहार का त्योहार है। लेकिन इस शहर में पोखर और तालाब होने से यहां की छटा ही निराली होती है। यह त्योहार हर घर को एक सूत्र में बांधता है। छठ के बाद सामा और चकेवा घर के आंगनों में खेले जाते हैं। ये सिर्फ नृत्य और गायन ही नहीं बल्कि त्योहार की गरिमा को भी दर्शाते हैं।

अहिल्या स्थान

यहां अब भी भव्य एवं योजनाबद्ध तरीके से बने महलों, मंदिरों और पुराने प्रतीकों को देखा जा सकता है। नरगौना महल, आनंदबाग महल और बेला महल की बात ही निराली है। यहां का संग्रहालय अपने 11 कक्षों वाली संग्रहित वस्तुओं के लिए बहुत प्रसिद्ध है। हाल में बनाया गया तारा मंडल ने शहर को आधुनिक तोहफा दिया है। यहां का कुशेश्वर स्थान शिव मंदिर का संबंध रामायणकाल से है। ‘बर्ड वॉचिंग’ में रुचि हो, तो पक्षी विहार है। यहां अफगानिस्तान से तक प्रवासी पक्षी आते हैं। यहीं पर वह जगह है, जहां श्रीराम ने शिला में बदल गई अहिल्या को श्राप से मुक्त किया था। गौतम ऋषि का आश्रम, देवकुली धाम, नेवारी राजा लोरिक का प्राचीन कला स्थल धर्मप्राण जनता के लिए खास महत्व रखते हैं।

मिठाई सी मैथिली

यह शहर न केवल बिहार बल्कि पूरे भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण केंद्र है। इसकी स्थापना से लेकर आधुनिक युग तक दरभंगा ने शिक्षा, साहित्य, कला, संगीत और धार्मिक आस्था के क्षेत्र में गहरा योगदान दिया है। मिथिला संस्कृति की पहचान और परंपराओं को संजोए, यह शहर अपने ऐतिहासिक स्थलों, मंदिरों, स्वादिष्ट व्यंजनों और त्योहारों के माध्यम से लोगों को आकर्षित करता है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता, बागमती नदी, तालाब और पोखर इसके नैसर्गिक वैभव को और बढ़ाते हैं। मैथिल भाषा की मिठास का प्रवाह यहां के गांवों से लेकर मुख्य शहर तक होता है। जिसे भारतीय संविधान की आंठवी अनुसूची में शामिल किया। मैथिल लोकगीतों ने देश से लेकर विदेशों तक अपनी पहचान बनाई है।

मनीषा मंजरी

(उपन्यासकार और कवयित्री)

 

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