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13 मई 2024 · MAY 13 , 2024

शहरनामा: देहरादून

डेरा दून से बन गया देहरादून
यादों में शहर

गुरु राम राय का आगमन

आबादी के लिहाज से उत्तराखंड का सबसे बड़ा नगर और राज्य की अस्थाई राजधानी है देहरादून। देश के अनेक प्रतिष्ठित केंद्रीय संस्थानों की मौजूदगी इस शहर को खास बनाती है। लगभग 350 साल का प्रामाणिक इतिहास इस शहर के साथ जुड़ा हुआ है। 17वीं शताब्दी के आखिर में गुरु राम राय के आगमन के बाद देहरादून ने आकार ग्रहण किया। सिख धर्म की मर्यादा के विपरीत औरंगजेब के दरबार में चमत्कार दिखाने के आरोप में सिख धर्म से बहिष्कृत किए गए गुरु राम राय ने देहरादून को अपनी धार्मिक गतिविधियों का केंद्र बनाया। तब औरंगजेब ने गुरु राम राय महाराज को मौजूदा देहरादून का ज्यादातर हिस्सा दान में दिया। ये ही डेरा दून और बाद में देहरादून हो गया। पौराणिक संदर्भ में गुरु द्रोणाचार्य का नाम भी इसके साथ जोड़ा जाता है।

लुटा फिर बसा

स्थापना के बाद के डेढ़ सौ साल के अंतराल में इसे मुगलों, गुर्जरों, रोहिल्लाओं, अफगानों, सिखों, गोरखाओं ने जीता और लूटा। अब से करीब दो शताब्दी पहले 1815 में यहां अंग्रेज आए और इसके बाद शहर ने नया चरित्र हासिल किया। तब इसे समृद्ध और रिटायर्ड लोगों का शहर कहा जाने लगा। 25 साल पहले उत्तराखंड की राजधानी बनने के बाद शहर की सुस्ती टूटी और वह दौर खत्म हो गया जब यहां रविवार को मोची से लेकर सब्जी वाले तक छुट्टी पर रहते थे।

बीटल्स का डून डून

देहरादून की खूबसूरती से बीटल्स भी प्रभावित थे। 1968 में यहां आए जॉर्ज हैरिसन ने देहरादून पर एक बहुत खूबसूरत गीत डून डून डेराडून (दून दून देहरादून) लिखा और गाया। यह गीत 52 साल बाद 2020 में सामने आया। ये निर्वासित तिब्बतियों का घर है, यहां एंग्लो इंडियन रहते हैं, कई इलाके जौनसारियों के हैं, गढ़वाली बहुसंख्या में हैं लेकिन कुमाऊंनी भी मिल जाएंगे। मैदानी लोगों के लिए ‘देसी' संबोधन भी सुनाई देगा। इंडियन मिलिट्री अकादमी, फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट, ओएनजीसी, सर्वे ऑफ इंडिया जैसे संस्थानों की मौजूदगी शहर को अखिल भारतीय बनाती है। इस विविधता का परिणाम है कि देहरादून में 100 से अधिक बोलियां और भाषाएं बोली जाती हैं, जो उत्तर भारत में दिल्ली के बाद सर्वाधिक हैं।

आखिर, कितने ‘वाला’

देहरादून में जगह के नाम के साथ जुड़ने वाला ‘वाला’ लोगों को आश्चर्यचकित करता है। जिधर भी जाएं ‘वाला’ ही दिखाई देता है, मातावाला, आमवाला, अनारवाला, जीवनवाला, मोहब्बेवाला, डालनवाला, लच्छीवाला, डोईवाला, भनियावाला, जोगीवाला, मियावाला, हर्रावाला, रायवाला, डाटवाला और भी न जाने कितने वाला हैं।

मंडोलिन मॉनेस्ट्री द्वारा संचालित बुद्ध टेंपल दुनिया भर के लोगों के आकर्षण का केंद्र है। तमसा नदी के किनारे गुफा के भीतर बना टपकेश्वर मंदिर अलग ही दुनिया में लेकर जाता है। जिनकी रुचि नेचर ब्यूटी में है, उन्हें रोबर्स केव, दो हजार एकड़ में फैला फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट और सहस्रधारा का नेचुरल वॉटर पार्क अपनी ओर आकर्षित करेगा।

उजड़े लोगों का अपना घर

पलटन बाजार और फालतू लेन के बिना इस शहर की कहानी पूरी नहीं होती। जब यह शहर अंग्रेजों के नियंत्रण में आया, तो यहां फौज का बड़ा अड्डा बनाया गया। इसलिए शहर के भीतर दो कैंट एरिया हैं और शहर के केंद्र में पलटन यानी फौज के लिए बाजार बसाया गया। इसके साथ ही फालतू लेन निर्धारित की गई, जहां ऐसे फौजियों को रखा जाता था, जिनका कोई उपयोग नहीं रह गया था। राजपुर और जाखन रिटायर्ड अफसरों की रिहायश है, जबकि टिहरी बांध के कारण उजड़े लोगों की अलग कॉलोनियां है। गुरु राम राय दरबार, जिसे झंडा साहब भी कहा जाता है, उसके आसपास का इलाका पुराना देहरादून है जो अपनी तंग गलियों और मुगल-कांगड़ा शैली के भवनों के लिए जाना जाता है। इस शहर ने अपने हमलावरों को भी रिहाइश दी है और तिब्बत के उन लोगों को भी जिन्हें अपनी धरती से उजाड़ दिया गया।

नेहरू से रिश्ता

देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ भी इस शहर का गहरा रिश्ता रहा है। उन्हें 1932 से 1941 तक के दौर में चार बार कैदी बनाकर यहां रखा गया। पुरानी जेल में उनकी कैद अवधि की स्मृतियां अब भी मौजूद हैं। पंडित नेहरू ने यहीं से इंदिरा गांधी के नाम पत्र लिखा और ‘भारत एक खोज’ का भी बड़ा हिस्सा देहरादून में ही तैयार किया।

खुशबू का जादू

देहरादून अपनी खुशबू के लिए भी जाना जाता है। यह खुशबू है- लीची की, बासमती की, चाय की और बेकरी उत्पादों की। शहर के विस्तार के साथ लीची के बगीचे और बासमती के खेत सिमट गए हैं। चाय बागान अब स्मृति भर हैं, लेकिन बेकरी उत्पादों का विस्तार हुआ है। शहर को इन खुशबुओं के साथ-साथ उसकी एजुकेशनल और एकेडमिक क्वालिटी की वजह से भी जाना जाता है। आठ लाख की आबादी वाले देहरादून शहर में डेढ़ दर्जन यूनिवर्सिटी और 200 से अधिक अन्य उच्च शिक्षा संस्थान हैं। दून घाटी अनेक रूपों में अपना जादू फैलाती है और इसी जादू में यह शहर लिपटा हुआ है।

डॉ. सुशील उपाध्याय

(लेखक और शिक्षाविद)

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