निराली प्राकृतिक छटा
उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल का प्रवेश द्वार है हल्द्वानी। यहां आप ‘कंकर कंकर शंकर’ के विचार को साक्षात महसूस कर सकते हैं। गार्गी नदी के किनारे बसा शहर योग और भोग का अद्भुत संतुलन बनाए हुए है। यहां एक तरफ अत्याधुनिक शॉपिंग मॉल हैं तो दूसरी ओर जंगल, पहाड़, नदी, जीव-जंतुओं, वनस्पति और जड़ी-बूटियों की बहुतायत है। प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज और अपराधमुक्त होने के कारण सेवानिवृत्त सैन्य और प्रशासनिक सेवा अधिकारियों की पहली पसंद है हल्द्वानी।
ब्रिटिश काल के पड़ाव
तकरीबन 250 वर्ष पहले तक हल्द्वानी घने जंगलों से घिरा हुआ गांव था। बाघ, तेंदुआ, गुलदार, हाथी आदि जानवरों के चलते लोग आने से डरते थे। पहाड़ में जब सर्दियों का मौसम आता तो हाड़ कंपाने वाली ठंड के बीच पहाड़ी पशुपालक अपने जानवरों के साथ हल्द्वानी में पड़ाव डालते। उनका उद्देश्य ठंड का समय बिताकर वापस पहाड़ पर लौटना होता था। यही कारण है कि हल्द्वानी और हल्द्वानी के निकट भोटिया पड़ाव, गोरा पड़ाव, बेरी पड़ाव जैसी जगहें हैं। 1850 आते-आते हल्द्वानी को व्यापारिक मंडी के रूप में विकसित करने की योजना बनाई गई। 1860 में ब्रिटिश कमिश्नर रैमजे ने हल्द्वानी को तहसील का दर्जा दिया, जिसके बाद व्यापारियों ने हल्द्वानी में बसना शुरू किया। 1884 में बरेली-काठगोदाम रेल लाइन बिछने के बाद हल्द्वानी देश के प्रमुख राज्यों और महानगरों से जुड़ गया। आने वाले वर्षों में जंगलों को काटा गया और इसे लोगों के रहने के लिए विकसित किया गया। इमारती लकड़ी हल्दू की बहुतायत के कारण हल्द्वानी नाम पड़ा।
ऋषि मार्कंडेय की तपस्थली
स्कंद पुराण के मानस खंड में इस भूभाग का वर्णन मिलता है। मानस खंड में हिमालय के इसी अंचल का वर्णन है, जो नेपाल के पश्चिम, केदार खंड के पूर्व और कैलाश के दक्षिण में स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह शिव भक्त और महामृत्युंजय मंत्र के रचयिता ऋषि मार्कंडेय की तपस्थली रही है। यहां चित्रशिला घाट पर हर वर्ष मकर संक्रांति पर्व और शिवरात्रि पर मेला लगता है, जिसमें श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता है। चित्रशिला घाट पर चित्रेश्वर महादेव मंदिर और शनिदेव मंदिर विशेष आस्था का केंद्र हैं। गार्गी नदी के मार्ग में विभिन्न रंगों के पत्थरों की शिला है, जिसे चित्रशिला कहा जाता है। इसके विषय में कहानी है कि कत्यूरी वंश की रानी जियारानी रूपवती स्त्री थीं। वे चित्रेश्वर महादेव मंदिर में पूजा-अर्चना करने आती थीं। यहीं रुहेला सरदार की नजर रानी पर पड़ी और वह रानी को हासिल करने की इच्छा अपने मन में पाल बैठा। एक दिन रुहेला सरदार ने रानी पर हमला किया तो रानी ने गार्गी नदी की शरण ली और वह शिला में तब्दील हो गईं। यही चित्रशिला है। हर वर्ष मकर संक्रांति के दिन कत्यूरी वंश के लोग रानी की याद में मेले का आयोजन करते हैं।
देवत्व का एहसास
हल्द्वानी पर प्रकृति की विशेष कृपा है। गार्गी नदी के किनारे बसा हल्द्वानी वन संपदा, जैव विविधता, वनस्पति और जड़ी-बूटियों के कारण सुरम्य वातावरण की रचना करता है। चारों ओर मौजूद पहाड़, जंगल, नदी, हरे-भरे वृक्ष देवत्व का एहसास कराते हैं। हल्द्वानी की सीमाएं जिम कार्बेट नेशनल पार्क, नंधौर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी से लगती हैं। इस कारण पक्षियों की कई प्रजातियां यहां आसानी से नजर आ जाती हैं। देश का पहला मॉस गार्डन हल्द्वानी के नैनीताल जिले में स्थित है। तितलियों की कई प्रजातियां भी यहां पाई जाती हैं। औषधीय गुणों से भरपूर फल और फूल यहां आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। हल्द्वानी के निकट पहाड़ी सोतों से जल धारा बहती दिखती है।
समृद्ध सांप्रदायिक सौहार्द और खानपान
सांप्रदायिक सौहार्द हल्द्वानी की ताकत है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, तिब्बती, जैन समाज प्रेम से हल्द्वानी में रहते हुए अपना जीवन यापन करते हैं। मूल रूप से लोग हिंदी भाषी हैं मगर विविधता के कारण पंजाबी, बंगाली भाषा भी सुनाई देती है। लोकभाषा कुमाऊंनी पिछले कुछ वर्षों में हाशिए पर चली गई थी लेकिन युवा पीढ़ी इसे फिर जीवित करने के प्रयास करती दिखाई देती है। खानपान में भी खूब विविधता है। कई दशकों से नानक स्वीट्स, स्नैक्स, शमा रेस्टोरेंट, शानदार कढ़ी चावल, राजमा चावल, समोसे, छोले भटूरे से लेकर जायकेदार काली मिर्च चिकन परोस रहे हैं। लोगों में पारंपरिक पहाड़ी भोजन जैसे भट्ट की दाल, मडुवे की रोटी, भांग की चटनी, आलू के गुटके, शिकार (मीट) चावल के प्रति विशेष अनुराग है। ककड़ी का रायता, मट्ठे की झोली, बुरांश का जूस आकर्षण का केंद्र हैं।
आधुनिकता में भी खरा
आधुनिकता की दौड़ में कदम मिलाकर चल रहे हल्द्वानी में रानीबाग में बंद हो गई एचएमटी घड़ी फैक्टरी के खंडहर नॉस्टाल्जिया पैदा करते हैं। आध्यात्मिक पर्यटन की दृष्टि से भी हल्द्वानी महत्वपूर्ण है। शिव उपासक हैड़ाखान बाबा के आश्रम, हनुमान भक्त नीब करौरी (नीम करोली) महाराज के विश्व प्रसिद्ध कैंची धाम, जागेश्वर धाम के लिए हल्द्वानी ही प्रवेश द्वार है। लोग मन की शांति के लिए, आध्यात्मिक विकास के लिए हल्द्वानी होते हुए पहाड़ों पर पहुंचते हैं।
(स्वतंत्र लेखन, गायन, समाजसेवा में सक्रिय)