बाग हजारों
हजारीबाग नाम के पीछे कहानी यही बताई जाती है कि यहां हजारों बाग थे। कहा जाता है कि यहां जो एक बार आ गया वह यहीं का होकर रह जाता है। यह सही भी है। जो एक बार यहां रह लिया, वह इस शहर को छोड़ना नहीं चाहता। इसका कारण है कि यहां के मौसम की जोड़ का कोई दूसरा शहर आसपास है, तो वह सिर्फ रांची ही है। पूरा क्षेत्र जंगलों से घिरा हुआ है। हरियाली के कारण यहां का मौसम बहुत ही खुशनुमा होता है। यह समुद्र तल से 2,000 फुट की ऊंचाई पर है। आसपास के शहरों जैसे गया, डाल्टनगंज, जमशेदपुर वगैरह का मौसम बेहद गरम रहता है। ऐसे में इस शहर में आने के बाद जो सुकून मिलता है, वह अद्भुत है। एक बार बारिश हो जाने के बाद यहां उमस या गर्मी से छुटकारा मिल जाता है। वैसे आबादी, वाहनों और कल कारखानों के बढ़ने से अंतर जरूर आया है। यहां के मौसम का ही कमाल था कि बंगाल से पुराने रईस गरमी के दिनों में यहां रहने के लिए आते थे। आज भी उनके कई पुराने बंगलें यहां हैं। कई साहित्यकारों की रचना में हजारीबाग और छोटानागपुर के पठारों के रमणीक दृश्यों का वर्णन आया है।
कहानी पुराण से
कहा जाता है कि महाभारत काल में जरासंध का राज इस क्षेत्र में था। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन में रामगढ़ बटालियन ने अंग्रेजों के शासन का विरोध किया था। महात्मा गांधी ने इस क्षेत्र का दौरा 1925 में किया था। हजारीबाग राष्ट्रीय राजपथ 33 पर स्थित है। यहां उत्तरी छोटा नागपुर प्रमंडल तथा हजारीबाग जिला का मुख्यालय है। यहां कई दर्शनीय स्थल हैं। इस खूबसूरत शहर में एक कनहरी (कैनेरी) पहाड़ है। कहा जाता है कि इसे कैनेरी पक्षियों की बहुतायत के कारण इसे यह नाम मिला है। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि संथाली भाषा में कनहरी का अर्थ होता है तीर का नुकीला हिस्सा। पहाड़ की आकृति ऐसी होने के कारण ही इसे कनहरी कहा जाता है। चोटी तक पहुंचने के लिए सड़क भी बनी हुई है। ऊपर वन विभाग का गेस्ट हाउस भी है। ऊंचाई से घाटियों की हरियाली का नजारा बहुत ही खूबसूरत दिखता है। सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा बड़ा ही सुंदर होता है। यह शहर से सिर्फ तीन किलोमीटर की दूरी पर है।
झील और तालाब
यहां शहर के बीच में काफी सुंदर झील है। हालांकि पर्यावरण परिवर्तन का प्रभाव इस पर पड़ा है। अब गरमी के मौसम में इसमें उतना पानी नहीं रहता। लेकिन बाकी मौसम में यह पानी से भरी रहती है। इस झील के आसपास प्रशासनिक अधिकारियों के आवास हैं। अब इसके करीब स्वर्ण जयंती पार्क बन चुका है, जिसमें कैफेटेरिया भी है। झील के चारो ओर लोग पैदल टहलने का आनंद लेते हैं। इस झील में बोटिंग भी की जा सकती है।
शहर के ठीक बीचोबीच एक छठ तालाब है। लोगों की उदासीनता और प्रशासन की लापरवाही के कारण अब यह उतना आकर्षक नहीं रह गया है, लेकिन अभी भी इस तालाब में छठ पर्व पर सैकड़ों लोग उमड़ते हैं। आसपास कई डैम हैं, जिनमें एक है कोनार डैम। यह दामोदर घाटी निगम के बहु-उद्देश्यीय परियोजना के तहत बनाया गया है। जलापूर्ति, बाढ़ नियंत्रण, विद्युत उत्पादन और सिंचाई के लिए तो इसका उपयोग होता ही है, साथ ही यह पर्यटन स्थल भी है। यहां से आसपास के नजारे बहुत ही सुंदर दिखते हैं।
प्राकृतिक गरम जल कुंड
सूरजकुंड प्राकृतिक गरम जल का कुंड है। यह हजारीबाग शहर से कुछ दूर बरकट्ठा प्रखंड के बेलकापी गांव में है। हजारीबाग से बीस किलोमीटर की दूरी पर वन्यजीव अभयारण्य है। इसमें भालू, हिरण और हाथी पाए जाते हैं। शहर के बीच में पंचमंदिर है। शहर के आस-पास भद्रकाली मंदिर और मां छिन्नमस्तिका मंदिर और नरसिंह मंदिर काफी प्रसिद्ध हैं। भद्रकाली मंदिर हजारीबाग से लगभग सत्तर किलोमीटर दूर इटखोरी नामक स्थान पर है। छिन्नमस्तिका मंदिर हजारीबाग से सत्तर किलोमीटर दूर रजरप्पा नाम की जगह पर है। यह प्रसिद्ध तीर्थ स्थल दामोदर और भैरवी नदियों के संगम पर स्थित है। कहा जाता है कि यह मंदिर छह हजार साल पुराना है। यह मंदिर शक्तिपीठ के रूप में विख्यात है। इस मंदिर में बिना सिर वाली देवी मां की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस मंदिर में दर्शन से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्र को यहां बड़ी संख्या में भक्त आते हैं। नरसिंह मंदिर हजारीबाग से बड़कागांव रोड पर छह किलोमीटर की दूरी पर खपरियांवां गांव में है। माना जाता है कि नरसिंह भगवान का यह एकमात्र मंदिर है। यहां की ‘माता नरसिंहा चपिता नरसिंहा... आरती बहुत ही कर्णप्रिय है। कार्तिक पूर्णिमा को यहां मेला लगता है। यह मंदिर लगभग चार सौ वर्ष पुराना है। स्थानीय लोग इसे केतारी मेला (गन्नों का मेला) के रूप में भी जानते हैं। उस वक्त यहां गन्ने और गेंदा फूल काफी मात्रा में उपलब्ध होते हैं।
भगवान पारसनाथ
रामनवमी यहां के लिए बहुत महत्वपूर्ण पर्व है। यहां यह बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। दुर्गा पूजा, होली, दीपावली, छठ वगैरह भी काफी धूमधाम से मनाए जाते हैं। जैन धर्म का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पारसनाथ यहां से मात्र सौ किलोमीटर की दूरी पर है। यहीं तेइसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ को निर्वाण की प्राप्ति हुई थी। यहां का सेंट कोलंबस कॉलेज विख्यात है। यह अविभाजित बिहार के सबसे पुराने कॉलेजों में एक है। स्कूल की बात करें, तो माउंट कारमेल, डीएवी पब्लिक स्कूल, सेंट जेविएर्स स्कूल, कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय वगैरह प्रमुख विद्यालय हैं।
(भारतीय स्टेट बैंक के पूर्व प्रबंधक)