नीलकंठ की नगरी
काशी, अनादि और अनंत काल का प्रतीक रही है। कथाएं प्रचलित हैं कि पिनाकधारी, नीलकंठ शिव को यह नगरी अतिप्रिय है। मान्यता है कि यहां मां पार्वती संग शिव रमण और विहार किया करते हैं। काशी का बाशिंदा हो या यहां आने वाला भक्त, हर सनातनी जीवन में एक बार काशी की भूमि को स्पर्श करना चाहता है।
जाग्रत शहर
काशी प्राचीन नगर है। वाराणसी और बनारस के साथ आनंदवन नाम से प्रसिद्ध यह नगर आध्यात्मिक धरातल पर सबसे उच्च शिखर पर स्थित है। काशी का अर्थ ही है, जाग्रत यानी प्रकाशित। इसका प्रकाश यहां आकर महसूस किया जा सकता है। गंगा जी के किनारे बसे इस शहर का प्रचलित नाम पास की ही दो नदियों, अस्सी और वारण की उपस्थिति के कारण वाराणसी हुआ। दोनों नदिया गंगा जी में विलीन हो जाती हैं।
घाट-घाट की कहानी
काशी को घाटों का शहर भी कहा जा सकता है। यहां के घाटों का जैसा वैभव, जैसा ठाठ और नाम है, शायद किसी दूसरी नदियों पर बने घाटों का नहीं है। गंगा जी पर हर दौर में घाट बने। काशी आए प्रख्यात महानुभावों ने समय-समय पर उन्हें बनवाया। काशी आकर अस्सी, दशाश्वमेध, मणिकर्णिका न देखा तो क्या देखा। पंचगंगा, बिन्दू माधव, केशव, अहिल्या, चेत सिंह, केदार, रीवा, तुलसी, आनंदमई, हनुमान, हरिश्चंद्र जैसे लगभग 90 घाट काशी नगर की अनमोल धरोहर हैं। मोटरबोट पर सवार होकर इन घाटों की अनुपम शृंखला को देखा जा सकता है। नाव से जाएं, तो केवट जीवंत कहानी कहते चलते हैं।
गंगा आरती
केदार घाट से नौका विहार आरंभ कर पुण्य सलिला गंगा जी की संध्या आरती के अनुपम दर्शन मनोहारी होते हैं। दशाश्वमेध घाट और राजेंद्र प्रसाद घाट आसपास ही हैं। यहां गंगाजी की आरती सांय 6 बजे से शुरू होती है। आरती के वक्त अलौकिक वातावरण उत्पन्न हो जाता है। घाट पर बिछे तख्तों से श्लोकों का ओजमायी उद्घोष श्रद्धालुओं के मन में उत्साह और शरीर में रोंगटे खड़े कर देता है।
बाबा विश्वनाथ
काशी की स्थापत्य शैली किसी को भी आश्चर्य में डालने के लिए काफी है। यहां मंदिरों का स्वरूप ही अलग है। यहीं बारह ज्योतिर्लिंग में से एक, भगवान भोलेनाथ के ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ यहां की प्राचीन धरोहर है। मंदिर परिसर से गंगा-किनारे तक नव-निर्मित कॉरिडोर बना है। कॉरिडोर की नवीन अवधारणा में आधुनिक ऑडियो-विजुअल प्रस्तुति भक्तों को अलग ही अनुभव देती है। मुख्य मंदिर से 2 किलोमीटर दूर स्थित है, काशी नगरी के रक्षक कोतवाल श्री काल भैरव। इनके दर्शन अनिवार्य माने जाते हैं।
सहज बनारसी
संकरी गालियां और उस पर मोटरसाइकलों की रेलमपेल, गली के दोनों ओर दुकानें, चाट-पकौड़ी की रेहड़ियां, पान की गुमटियों के बीच पैदल चलते लोग। कहीं कोई विवाद नहीं, सभी सहिष्णुता से अपने काम में लगे हैं। भीड़ है, तो बच कर निकल रहे हैं, लेकिन शिकायत नहीं। विश्वनाथ मंदिर के दर्शन कर बाहर निकल रहे बाहरी लोग इस दृश्य को देख चकित हो सकते हैं, लेकिन यही ठेठ बनारस की पहचान है। कथा है कि इन्हीं गलियों में लगभग 1,200 बरस पहले आदि शंकराचार्य का चांडाल रूप में भगवान महादेव से साक्षात्कार हुआ था, जहां महादेव ने अंतर्मन की यात्रा का मर्म शंकराचार्य को बताया था।
स्वाद के पारखी
काशी अपने भोजन के लिए भी प्रसिद्ध है। काशी चाट, पहलवान लस्सी, बनारसी पान, और विभिन्न व्यंजन यहां की पहचान हैं। स्वाद के पारखी यहां आएं और कुछ न खाएं, ऐसा हो नहीं सकता। काशी का रस अलौकिक है। यह सिर्फ जिह्वा पर नहीं बल्कि मानस पर आलोकित होता है। खा-पीकर मुंह में घुलने वाला बनारसी पान, मन को तृप्त कर देता है।
काशी करवट
काशी अद्वितीय है, जो श्मशान घाट पर गए बिना भी घूमते हुए किसी के मन में श्मशान वैराग्य पैदा कर देती है। किसी भी सनातनी का स्वप्न होता है कि वह काशी में देह त्यागे और मणिकर्णिका घाट पर उसका नश्वर शरीर पंचतत्व में विलीन हो जाए। घाट पर श्मशान की अवधारणा त्रेतायुग में अयोध्या के सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के काल से चली आ रही है।
अलौकिक, आध्यात्मिक
पंचकोशी, विनायक और आदित्य यात्राएं, काशी विश्वनाथ की लोक परंपरा का अभिन्न हिस्सा है, जो ज्योतिर्लिंग को केंद्र मानकर भक्तों द्वारा विभिन्न दूरियों और मंदिरों की रचना के इर्द गिर्द संपन्न होती है। काशी की यात्रा अनुपम है, चाहे वह परिवार और मित्रों के संग हो या निपट अकेले। इसके अद्भुत होने, अलौकिक, आध्यात्मिक और धार्मिक होने में साथ का कोई फर्क नहीं पड़ता।
(लेखक)