बौद्ध नगरी
आप केसरिया की यात्रा कई उद्देश्यों से कर सकते है। इतिहास प्रेमी हैं और प्राचीन स्थलों की सैर करना पसंद करते हैं, तो आपको यहां जरूर आना चाहिए। बौद्ध धर्म में रुचि रखने वाले पर्यटक इस स्थल की सैर कर सकते हैं। यहां आप विश्व के सबसे बड़े बौद्ध स्तूप को करीब से देख पाएंगे। केसरिया की यात्रा उन पर्यटकों के लिए भी खास है, जो बिहार के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को समझना चाहते हैं। कुछ नया जानने वाले जिज्ञासुओं के लिए भी यह शानदार जगह है। केसरिया बिहार में बापूधाम मोतिहारी से लगभग 40 किलोमीटर दूर है। इसका इतिहास काफी पुराना और समृद्ध है और बौद्ध तीर्थ स्थलों में इसे महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
लिच्छवियों से विदाई
महात्मा बुद्ध ने वैशाली से कुशीनगर जाने के क्रम में एक रात केसरिया में बिताई थी। कहा जाता है कि जब भगवान बुद्ध यहां से जाने लगे तो लिच्छवियों ने उन्हें रोकने का काफी प्रयास किया। लेकिन लिच्छवि नहीं माने तो भगवान बुद्ध ने उन्हें रोकने के लिए नदी में कृत्रिम बाढ़ पैदा की। उसके बाद ही भगवान बुद्ध यहां से जा पाने में सफल हो सके थे। सम्राट अशोक ने यहां एक स्तूप का निर्माण करवाया था जिसे विश्व का सबसे बड़ा स्तूप माना जाता है। स्तूप को देखने का सबसे आदर्श समय अक्टूबर से लेकर फरवरी तक का है, इस दौरान यहां का मौसम अनकूल बना रहता है।
बोरोबुदुर से बड़ा स्तूप
बौद्ध स्तूप दुनिया का सबसे लंबा और सबसे बड़ा स्तूप है। 104 फुट ऊंचाई वाला ये स्तूप जावा में स्थित प्रसिद्ध बोरोबुदुर स्तूप की तुलना में एक फुट लंबा है, जिसे यूनेस्को ने दुनिया के सबसे ऊंचे बौद्ध स्मारक के रूप में मान्यता दी थी। बिहार में 1934 के भूकंप से पहले केसरिया स्तूप 123 फुट लंबा था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के मुताबिक, जब भारत में बौद्ध धर्म पनप रहा था, केसरिया स्तूप 150 फुट और बोरोबुदुर स्तूप 138 फुट ऊंचा था। लेकिन वर्तमान में केसरिया की ऊंचाई 104 फुट और बोरोबुदुर की ऊंचाई 103 फुट रह गई है। जो विश्व धरोहर स्मारक में शामिल सांची स्तूप की ऊंचाई मात्र 77.50 फुट है। अलेक्जेंडर कनिंघम की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस प्राचीन स्मारक को यहां के स्थानीय लोग ‘राजा बेन का देवरा’ कहते हैं। यह माना जाता है कि महात्मा बुद्ध ने यहां अपने अंतिम दिनों में अपनी भीख मांगने वाला कटोरा दान किया था।
अग्नि पुराण वाला शिवलिंग
केसरनाथ मंदिर का शिवलिंग कई मायनों में काफी महत्वपूर्ण और अनोखा है। केसरनाथ शिवलिंग का पत्थर और आकार, लिंग के चारों तरफ बना अर्घा आदि देख कर ऐसा लगता है कि शिवलिंग काफी पुराना है। यूं तो इस मंदिर का ज्ञात इतिहास बहुत लंबा नहीं है। यह शिवलिंग वर्ष 1968-69 ईस्वी में केसरिया माइनर नहर की खुदाई के दौरान निकला था। नहर की खुदाई के दौरान मंदिर के भग्नावशेष मिले। जब उसकी साफ-सफाई कराई गई तब एक विशाल शिवलिंग मिला। काले चमकीले पत्थर से सामान्य आकार से बड़ा यह शिवलिंग बरबस लोगों को आकर्षित करता है। उसी के बाद यहां मंदिर बना और शिवलिंग की पूजा शुरू हुई। वर्तमान में केसरनाथ और बटुकेश्वर नाथ के नाम से प्रसिद्ध यह शिवलिंग लगभग डेढ़ फुट ऊंचा और पैंतीस इंच गोलाई वाला है। लोगों का अनुमान है कि शिवलिंग की चमक से लगता है कि यह बहुमूल्य पत्थर हो सकता है। बताया जाता है कि जब इस शिवलिंग पर जलाभिषेक किया जाता है तब जल की धार से शिवलिंग के पत्थर पर चन्द्राकार आकृति बनती है। शिवलिंग के आधार पर बना अर्घा अष्टभुजाकार जमीन में करीब डेढ़ फुट तक की गहराई में हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह शिवलिंग ठीक उसी प्रकार का है, जिस प्रकार का जिक्र अग्नि पुराण में मिलता है। श्रावण मास में प्रत्येक सोमवार को मुजफ्फरपुर, बेतिया, उत्तर प्रदेश, नेपाल आदि से यहां आकर श्रद्धालु दर्शन-पूजन करते हैं।
गांधी पुस्तकालय
यहां एक समृद्ध कर्मवीर गांधी पुस्तकालय है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी 1917 में नील की खेती के विरोध में सत्याग्रह करने के लिए आए थे, उसी क्रम में केसरिया के पुस्तकालय की नींव रखी थी। उस समय गांधी जी ने केसरिया में सत्याग्रह किया, जिससे समूचे देश में क्रांतिकारी लहर दौड़ गई थी।
चंपारण मटन की खुशबू
केसरिया आएं तो चंपारण मटन जरूर खाएं। चंपारण मटन को यह नाम चंपारण जिले से मिला है। इस मटन का मूल स्थान भी यही है। चंपारण मटन को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है। कुछ लोग इसे ‘आहुना मटन’ कहते हैं, जबकि कुछ इसे ‘मटका गोश्त’ कहते हैं। यह ‘चंपारण मटन हांडी’के नाम से भी जाना जाता है। आज चंपारण मीट की खुशबू देश के हर कोने में पहुंच गई है।
(युवा लेखक)