लालित्य और शांति की नगरी
‘झांसी गले की फांसी, दतिया गले का हार, ललितपुर न छोड़ई, जब तक मिले उधार।’ ललितपुर के बारे में यह कहावत बहुत प्रचलित है। यही के रणबांकुरे सिर पर कफन बांध कर 1942 में मधुकर शाह के नेतृत्व में सुराज के लिए निकले थे। यही के महाराजा मर्दन सिंह रानी झांसी की एक पाती पर अपनी सेना उधार देने को तैयार हो गए थे। इसी वीरभूमि ललितपुर की माटी की बेटी सारंगा का पुत्र छत्रसाल महाप्रतापी राजा बन अपनी तलवार के दम पर अखंड बुंदेलखंड राज्य की स्थापना की थी। ललितपुर ‘ललित’ और ‘पुर’ जैसे दो शब्दों के योग से बना है। वास्तव में यह सौंदर्य का नगर है क्योंकि यहां प्रकृति की मनभावना घटाएं अनायास ही चित्त को आह्लादित कर देती हैं।
शहजाद नदी की याद
देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश के दक्षिणी-पश्चिमी कोने में है, बुंदेलखंड संभाग। यह जिला तीन तरफ से मध्य प्रदेश से घिरा हुआ है। जिला मुख्यालय ललितपुर जनपद आजादी के बाद झांसी जनपद का हिस्सा बन गया था। अर्द्ध-चंद्राकार में गुजरती बेतवा नदी, विशाल वर्षाकालीन वन और सौंदर्यपूर्ण मूर्ति शिल्प के पार्श्व में फिल्मी गीतों का फिल्मांकन बड़ी ही खूबसूरती से राजा बुंदेला ने फिल्म प्रथा में किया है। कवि हरिवंश राय बच्चन ने कैंब्रिज में शिक्षा ग्रहण करते समय ललितपुर शहर के बीचोबीच कल-कल निनाद करती शहजाद नदी को याद करते हुए कविता लिखी थी। यह उनकी आत्मकथा ‘क्या भूलूं क्या याद करूं’ में संकलित है। आदिम सभ्यता से लेकर आधुनिक काल तक कला, संस्कृति तथा धर्मस्थानों की नगरी में सर्वधर्म का सम्मान है। अमिताभ बच्चन के पर दादा ललितपुर जेल के जेलर रहे हैं।
मंदिरों का नगर
यहां का नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। काले पत्थर से निर्मित चंदेल कालीन त्रिमूर्ति भगवान शंकर प्रतिमा का आकर्षण अलग है। मुचकुंद की गुफा और रणछोड़ जी का मंदिर की बहुत मान्यता है। मुचकुंद गुफा के बारे में मान्यता है कि मथुरा पर कालयवन के आक्रमण के बाद श्रीकृष्ण रणभूमि छोड़कर इसी गुफा में आ गए थे। उनके पीछे-पीछे कालयवन भी इस गुफा में आ गया। अंदर मुचकुंद ऋषि तपस्या कर रहे थे। श्रीकृष्ण ने अपना पीतांबर ऋषि को ओढ़ा दिया। कालयवन उन्हें श्रीकृष्ण समझकर उन पर बैठ गया। मुचकुंद ने आंखें खोलीं और क्रोध से कालयवन को देखा। उनके रोष भरे नेत्रों की दृष्टि पड़ते ही कालयवन के देह से ज्वाला निकलने लगी और वह उसी में जलकर भस्म हो गया।
यहीं पर गुप्तकालीन मूर्ति कला का अनोखा आगार देवगढ़ है। बेतवा नदी के किनार ललितपुर से 33 किलोमीटर की दूरी पर यह पुरातात्विक महत्व का स्थान है। यहां गुप्तकालीन मूर्तिकला की पंचायत शैली का दशावतार मंदिर सबसे आकर्षक है। मंदिर की दीवारों पर गजेन्द्र मोक्ष, शेषशायी विष्णु, बद्रिकाश्रम का दृष्य अंकित है। तीन किलोमीटर दूर पहाड़ पर पंचायतन शैली का दक्षिणाभिमुख नृबराह मंदिर के भाग्नावशेष मौजूद हैं। देवगढ़ में इस समय 31 जैन मंदिर हैं। जनपद के अन्य दर्शनीय स्थलों में दूधई, चांदपुर, जहाजपुर के गुप्तकालीन मंदिर, पहाड़ काटकर उकेरी गई भगवान नरसिंह की विशाल मूर्ति, पांडव वन, अमझरा घाटी, बानपुर का किला, महागणपति मंदिर, ललितपुर की महरौनी तहसील क्षेत्र नवागढ़ (नंदपुर) प्राचीन क्षेत्र है, जहां भगवान महावीर के साथ चौबीस जैनाचार्य और मुनियों की प्रतिमाएं हैं। खुदाई के दौरान 114 प्रतिमाएं मिल चुकी हैं। बार का चंदनवन, करकरावल का जल प्रपात, बुदनी का सूर्य मंदिर, मदनपुर की आल्हा-उदल की बैठकी, सेरोन के हिंदु-जैन मंदिर, आजादी का गवाह बालाबैहट का किला, सिरसी की गढ़ी भी देखने लायक हैं।
बोली बुंदेली
बुंदेली भाषा में बहुत मिठास है। यहां हल्के ढंग से बहुत गहरी बात कह दी जाती है। बुंदेली में सामान्य भाषा में ही बहुत हास-परिहास है। बुंदेली बहुत पुरानी बोली है। ठेठ बुंदेलखंडी लोगों के मुंह से कहावते झरती रहती हैं। यहां के लोग सामान्य बातचीत में भी मुहावरों का उपयोग करते हैं। इस भाषा के कुछ अनूठे शब्द आज तक प्रयोग में आ रहे हैं। बुंदेलखंडी के ढेरों शब्दों के अर्थ बांग्ला तथा मैथिली बोलने वाले आसानी से बता सकते हैं। बुंदेली का ठाठ इसी से पता चलता है कि शासकीय पत्र व्यवहार, संदेश, बीजक, राजपत्र, मैत्री संधियों के अभिलेख में बुंदेली भाषा का प्रयोग मिलता है। कहा तो यह भी जाता है कि औरंगजेब और शिवाजी भी क्षेत्र के हिंदू राजाओं से बुंदेली में ही पत्र व्यवहार करते थे। इस भाषा में लोकगीतों की अनोखी परंपरा रही है। गीतो में प्रकृति के वर्णन के लिए बहुत से शब्द हैं। केवल संध्या के लिए बुंदेली में इक्कीस शब्द हैं। बुंदेली भाष में बहुत वैविध्य है। इसमें बांदा का अक्खड़पन है, तो नरसिंहपुर की मधुरता भी है।
अलग खानपान
बाजरे या बेसन के आटे से बनी भाप में पकाई गई रोटी बफौरी का आनंद ही अलग है। हरे चने को पीस कर बनाया हुआ निघौना निमोना की तरह ही है। इसके अलावा मीड़ा बेसन की सब्जी है, जिसे टमाटर की पतली ग्रेवी में मसालों के साथ पकाया जाता है। मीठे में यहां रस खीर बहुत प्रचलित है। यह गन्ने के रस और चावल से बनती है। फरा या पीठा, अद्रेनी, थोपा की बात ही अलग है।
(लेखक और पत्रकार)