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11 नवंबर 2024 · NOV 11 , 2024

शहरनामा: मधेपुरा

कोसी के किनारे
यादों में शहर

शोक भी, समृद्धि भी

बिहार के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित, अपनी ऐतिहासिक धरोहर, सांस्कृतिक वैभव और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध मधेपुरा कोसी नदी के किनारे बसा है, जिसे ‘बिहार का शोक’ कहा जाता है। लेकिन उसकी जलधारा यहां की माटी को सिंचित करते हुए उसे समृद्ध भी बनाती है। कोसी नदी का प्रवाह इस भूमि को पवित्र और जीवनदायिनी बनाता है। यहां के लोकगीत, नृत्य और त्योहारों की उमंग इस धरती को जीवंत बनाए रखती है।

कर्ण का मधुवन

यहां का ऐतिहासिक महत्व अत्यंत प्राचीन है। इस क्षेत्र का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ माना जाता है। किंवदंती है कि महाभारत काल में कर्ण इस क्षेत्र के शासक थे। मधेपुरा का नामकरण इसके ऐतिहासिक महत्व को इंगित करता है। यह जिला पहले ‘मधुवन’ नाम से जाना जाता था, जो बाद में बदलकर मधेपुरा हो गया। उसका ऐतिहासिक विकास मुगलों और अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान भी जारी रहा।

संस्कृति की लय

यहां की संस्कृति परंपरागत भारतीय ग्रामीण संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है, जिसमें धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों का गहरा प्रभाव देखने को मिलता है। लोककला और संगीत में यहां लोगों की गहरी रुचि है। कर्णप्रिय मैथिली और अंगिका भाषा प्रमुखता से बोली जाती है। लोकगाथाएं, गीत, नृत्य और संगीत सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। छठ पूजा, दुर्गा पूजा, होली और दिवाली जैसे त्योहार बड़े उत्साह से मनाए जाते हैं। इसके साथ ही यहां की पारंपरिक वेशभूषा और खान-पान भी यहां की संस्कृति की पहचान है।

कुछ धार्मिक, कुछ प्राकृतिक

यहां आएं, तो सबसे प्रसिद्ध धार्मिक स्थल सिंहेश्वर जरूर आएं। भगवान शिव को समर्पित यह प्राचीन शिव मंदिर पवित्र तीर्थस्थल है। महाशिवरात्रि और सावन में यहां की छटा देखते ही बनती है। देश भर से शिव भक्त यहां आते हैं। धार्मिक महत्व के साथ यहां की प्राकृतिक सुंदरता और शांति पर्यटकों को मनमोहक अनुभव प्रदान करती है। शिव भक्तों के लिए दूसरा महत्वपूर्ण स्थान है, महादेव स्थान। सावन के महीने में यहां विशेष आयोजन होते हैं, जिसमें हजारों भक्त शिव जी के दर्शन के लिए आते हैं। ऐसा ही एक और प्रमुख स्थल है, उदाकिशुनगंज। कोसी नदी के किनारे स्थित यह जगह प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है। मनोकामना शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध सार्वजनिक दुर्गा मंदिर न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक बल्कि ऐतिहासिक महत्व को भी दिखाता है। अध्यात्म की स्वर्णिम छटा बिखेर रहे इस मंदिर के विषय में कहा जाता है कि 250 वर्षों से भी अधिक समय से यहां मां दुर्गा की पूजा की जा रही है। किवदंतियों के अनुसार, करीब 250 वर्ष पूर्व चंदेल राजपूत सरदार उदय सिंह और किशुन सिंह के प्रयास से यहां मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की शुरुआत की गई थी। तब से यह परंपरा पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती आ रही है। नदी किनारे पिकनिक मनाना और धार्मिक अनुष्ठान होने के कारण यहां पर्यटकों का तांता लगा रहता है।

त्रासदी का स्मारक

2008 में यहां विनाशकारी बाढ़ आई थी। इसे ‘कुसहा त्रासदी’ कहा जाता है। इस बाढ़ ने मधेपुरा समेत पूरे कोसी क्षेत्र को गहरे दर्द में डाल दिया था। हजारों लोगों की जान गई और व्यापक विनाश हुआ। इसी बाढ़ की याद में कुसहा त्रासदी स्मारक बनाया गया है। यह स्मारक न केवल इतिहास का गवाह है बल्कि पर्यटकों के लिए एक जागरूकता स्थल भी है, जहां वे प्रकृति के प्रति सतर्क रहने की सीख ले सकते हैं।

ग्रामीण पर्यटन

यहां कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां पर्यटक ग्रामीण जीवन और प्राकृतिक वन्यजीवन का आनंद ले सकते हैं। कोसी के आसपास के जंगलों और हरे-भरे इलाकों में विभिन्न प्रकार के पक्षियों और वन्य जीवों को देखना भी रोमांचक अनुभव हो सकता है। मधेपुरा जिला अपने समृद्ध इतिहास, संस्कृति और पर्यटन स्थलों के कारण विशेष महत्व रखता है। यह न केवल धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहां की प्राकृतिक सुंदरता भी इसे एक आदर्श पर्यटन स्थल बनाती है। यहां की लोककला, संगीत, नृत्य और परंपराएं इस क्षेत्र की पहचान हैं। 

सादगी और स्वाद

यहां का खान-पान बिहार की पारंपरिक भोजन शैली का प्रतिनिधित्व करता है। बिहार के अन्य हिस्सों की तरह मधेपुरा में भी भोजन में सादगी और स्वाद का खास ध्यान रखा जाता है। सरसों झोल की मछली-कढ़ी, तरुआ (पकौड़ा), अदौरी की मिलौनी, अरिकंचन की तरकारी, कचड़ी, घुघनी-मुढ़ी आदि और मीठे व्यंजनों में मालपुआ, मखाना की खीर, खाजा, पिरोकिया, चूड़ा लाई आदि यहां के प्रसिद्ध व्यंजनों में प्रमुख हैं।

डॉ. मोनिका राज

(नवोदित लेखिका)

 

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