नाम में ही उत्सव
यकीन मानिए, हमारे शहर का पुराना नाम महोत्सव नगर था। यह उत्सवों की नगरी थी इसलिए इस नगर को महोत्सव नगर कहा गया। अपभ्रंश के चलते इस नगर का नाम महोत्सव नगर से होते-होते महोबा हो गया। कथाएं हैं कि चंदेल राजा हर वर्ष यहां विशेष उत्सवों का आयोजन किया करते थे। इन उत्सवों में दूर-दूर से कलाकार आते थे और अपना हुनर दिखाते थे। इन उत्सवों में होने वाले भव्य मेलों के दौरान कई छोटे-बड़े व्यापारी मुनाफे के उद्देश्य से अपनी विशेष वस्तुएं बेचने के लिए यहां लेकर आते थे। यह नगरी उत्सवों के चलते इतनी प्रसिद्ध हुई कि इस नगरी को बुंदेलखंड की राजधानी बना दिया गया। यही वजह है कि इस सुंदर नगरी को इतिहास के पन्नों में विशेष स्थान प्राप्त है।
सबसे बड़े लड़ैया
इसे आप वीरों की नगरी भी कह सकते हैं। महान योद्धा आल्हा-ऊदल की नगरी। वही आल्हा-ऊदल जिनके बारे में आज भी कहा जाता है, ‘आल्हा-ऊदल बड़े लड़ैया।’ भला कौन है, जो उनका नाम नहीं जानता। दोनों महोबा नगर के ऐसे शूरवीर थे कि जिनके नाम मात्र से ही दुश्मन कांप उठते थे। दोनों राजा परमाल के दरबार की शोभा थे। उनकी वीरता के किस्से आज भी इस नगर के जन-जन से सुने जा सकते हैं। बावन गढ़ों पर फतह करने वाला यह नगर शूरवीरों से भरा पड़ा था किसी जमाने में। दोनों लड़ाकों की शान में आज भी आल्हा गाया जाता है, जो उनकी वीरता और बहादुरी के किस्से बयां करता है। आल्हा गाना यहां की विशेष परंपरा है, जिसके तहत समय-समय पर उसे गाया जाता है। उसमें गान के माध्यम से महोबा की वीरता का पूरा इतिहास सुना दिया जाता है। गाने वाले शुरुआत करते हैं,
‘‘बड़े लड़ैया गढ़ महोबे के, इनकी मार सही न जाए।
एक को मारे दुई मर जाए, तीजा खौफ खाए मर जाए।।’’
महोबा आकर आल्हा न सुना तो क्या सुना। वीर रस से भरे इस गान में इतनी उत्तेजना होती है कि कमजोर से कमजोर इरादे वाले की भुजाएं भी फड़कने लगेंगी। खून में वीरता का ऐसा प्रवाह होगा कि सुनने वाला बड़े से बड़े युद्ध के लिए सज जाए। आल्हा गाना मौखिक परंपरा है, जो आज तक जीवित है। राजा परमाल के दरबार के राजकवि जगनिक ने इसे रचा था। दुर्भाग्य कि उसकी पांडुलिपियां उपलब्ध नहीं है। लेकिन मौखिक परंपरा ने उसे आज भी जीवंत रखा है।
मान का पान
मेहमान नवाजी में मान देने के लिए पान न हो, तो आतिथ्य कमजोर दिखता है। यहां के पान दुनिया भर में मशहूर हैं। कह सकते हैं कि पान यहां की शान है। पान की खेती भी यहां खूब होती है। पान के खेतों को यहां बरेजे और खेती करने वालों को बरई कहा जाता है। पान की देशावरी नाम की विशेष किस्म यहां पाई जाती है, जो अनोखे स्वाद के कारण पहचानी जाती है। हाल ही में यहां के पान को जीआइ टैग मिल गया है। खाने के बाद पान खाने का चलन लगभग यहीं से शुरू हुआ है। किसी संग्राम में जाते वक्त योद्धा पान का बीड़ा उठाकर संदेश देते थे कि युद्ध के लिए वे पूरी सजधज के साथ तैयार हैं। यहां के पान के अनोखे स्वाद के बारे में कहा जाता है, ‘‘तुमने का जाने स्वाद कहूंके, का जाने तुमने खान। अगर तुमने चवाओ न भैया, महोबा वालो पान।।’’
अबके बरस सावन में
बुंदेलखंड के प्रमुख पर्वों में से एक है, सावन में मानाया जाने वाला रक्षाबंधन का पर्व। पूरे भारत में महोबा इकलौता ऐसा नगर है, जहां रक्षाबंधन का पर्व दूसरे दिन मनाया जाता है। किंवदंती है कि एक बार राखी पर्व पर नगर के राजा राजकुमारों और सभी योद्धाओं के साथ लड़ाई पर गए हुए थे। इस कारण उस दिन यहां रक्षाबंधन नहीं मना। दूसरे दिन जब सभी योद्धा विजय प्राप्त कर लौटे, तो नगर की सभी बहनों ने धूमधाम से दूसरे दिन यह पर्व मनाया। बस तभी से उस विजय की स्मृति में राखी का त्योहार दूसरे दिन ही मनाया जाने लगा। तब से आज तक यही परंपरा है। यहां अगले दिन ही महोबा का प्रसिद्ध कजली मेला लगता है। अपनी भव्यता के लिए यह पूरे देश में प्रसिद्ध है। इस बरस सावन में महोबा संस्कृति देखने के लिए आइए और कजली मेले में शामिल रहिए।
या देवी सर्वभूतेषु
कीरत सागर और मदन सागर जिस तरह शहर में कभी पानी की कमी नहीं होने देते। उसी तरह शहर में मां चंद्रिका भक्तों पर कभी भी अपनी कृपा कम नहीं होने देतीं। मां चंद्रिका का विश्वप्रसिद्ध, ऐतिहासिक मंदिर इसी शहर में है। यहां माता के दो रूप विराजे हैं। एक मां छोटी चंद्रिका, दूसरा मां बड़ी चंद्रिका। मंदिर अत्यंत प्रचीन तो है ही, साथ ही साथ यह मंदिर पर्यटकों के विशेष आकर्षण का केंद्र भी है। इसके अतिरिक्त यहां और जगहें हैं, जो प्राकृतिक-सौंदर्य से लबरेज हैं। सूर्य मंदिर, मनिया देव, मां संकरीसनैया, शिवतांडव, बलखंडेश्वर, चकौटा देवी का मंदिर, प्राचीन कालीदेवी का मंदिर और आल्हा-ऊदल बैठक प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।
पावन धरा
बुंदेलखंड की पावन धरा में पहाड़ों से घिरी इस सुंदर ऐतिहासिक नगरी की अपनी अलग ही ऊर्जा है। यह छोटा-सा नगर अपने आप में अनोखा है। यह कहा जा सकता है कि अपने अलौकिक सौंदर्य और संपन्नता के चलते ही यह नगर चंदेलों की राजधानी बना होगा। आज भी इस नगर के ठाट-बाट किसी राजधानी से कम नहीं हैं। सच में अनोखी ही है यह वीरों की नगरी।
(लेखिका)