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14 नवंबर 2022 · NOV 14 , 2022

शहरनामा/मैनपुरी

क्रांतिकारी राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ का शहर
यादों में शहर

राजा तेज सिंह जूदेव का शौर्य

दुनिया नायकों की गाथाओं से भरी पड़ी है। मैनपुरी में भी एक नायक था। महाराजा तेज सिंह जूदेव! मयन ऋषि के नाम पर बसे उत्तर प्रदेश के शहर मैनपुरी के बीचोबीच महाराजा तेज सिंह जूदेव का खंडहर में बदलता किला स्वतंत्रता संग्राम की गवाही दे रहा है। यह मैनपुरीवासियों की एकलौती ऐतिहासिक विरासत है। मेरठ से शुरू हुई 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की आग मैनपुरी तक पहुंचने में देर नहीं लगी थी। मैनपुरी में महाराजा तेज सिंह की अगुआई में अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध आंदोलन का बिगुल फूंका गया था। यहां दर्जनों अंग्रेज अधिकारी मौत के घाट उतार दिए गए। सरकारी खजाना लूट लिया गया। अंग्रेजों ने मैनपुरी पर हमला बोला, तो अपनों के दिए जख्मों से महाराजा तेज सिंह अंग्रेजों से लड़ते हुए गिरफ्तार हो गए। अंग्रेजों ने उन्हें बनारस में नजरबंद कर दिया था और बनारस में ही उनकी मृत्यु हुई।

बिस्मिलसे नाता 

क्रांतिकारी राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ का मैनपुरी से गहरा नाता रहा है। ‘बिस्मिल’ की बहन शास्त्री देवी की ससुराल मैनपुरी के कोसमा गांव में थी। मैनपुरी उनके संघर्षों की साक्षी रही है। मैनपुरी से उन्होंने ‘देशवासियों के नाम’ शीर्षक से एक पैम्फलेट प्रकाशित किया और अपनी कविता ‘मैनपुरी की प्रतिज्ञा’ के साथ वितरित किया। यहीं उन्होंने क्रांतिकारी पंडित गेंदालाल दीक्षित के साथ मिलकर मैनपुरी में ‘मातृवेदी’ नाम का संगठन बनाया। यहीं संगठन के लिए धन इकट्ठा करने हेतु उन्होंने सरकारी खजाने को लूटा। अंग्रेजी हुकूमत ने संगठन को प्रतिबंधित कर दिया गया और उनके सभी साहित्य पर रोक लगा दी गई। उन पर ‘मैनपुरी षड्यंत्र’ के लिए मुकदमा चलाया गया। बाद में बिस्मिल काकोरी कांड में भी शामिल हुए। मैनपुरी कांड में गेंदालाल दीक्षित को आगरा के किले से छुड़ाने की योजना बनाने वाले मातृवेदी दल के नेता राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ को आखिरकार फांसी की सजा मिली।

विलुप्त होती तारकशी कला

देश में कई हुनर विलुप्त होने की कगार पर हैं, जैसे मैनपुरी से तारकशी कला। तारकशी खूबसूरत काष्ठ कला है। लंबे समय तक अपनी भौगोलिक स्थिति के चलते मैनपुरी ही तारकशी कला का एकमात्र केंद्र रहा। मैनपुरी में शीशम के पेड़ अधिक थे। मजबूती की वजह से इस कला के लिए खास तौर पर शीशम की लकड़ी का इस्तेमाल होता है। तारकशी ऐसी कला है जिसमें पीतल, तांबे या चांदी के तारों को लकड़ी में जड़ा जाता है। अभी भी यह इस जनपद का अनूठा और कलात्मक उत्पाद है। इस कला का इस्तेमाल जेवरों के डिब्बे, नाम पट्टिका इत्यादि वस्तुओं की सजावट के लिए किया जाता है। सदियों से तारकशी की अद्भुत कला का इस्तेमाल दरवाजों के पैनल, ट्रे और लैम्प, फूलदान, संदूक, मेज वगैरह सजावटी वस्तुओं में होता है जो हमारे घरों की सुंदरता को बढ़ा रहे हैं।

लकड़ी में धातु के तार जड़ने का काम जटिल और लंबी प्रक्रिया है। इसे सिर्फ कुशल कारीगर ही कर सकते हैं। अंग्रेजों की वजह से यह कला मैनपुरी से पूरे भारत में और भारत से विश्व भर में फैल गई। एक समय था जब मैनपुरी के हर घर में तारकशी की झलक मिलती थी। अब तारकशी कला दम तोड़ती नजर आ रही है।

कमलेश्वर की जन्मस्थली

देश के प्रख्यात हिंदी लेखकों में से एक कमलेश्वर का मैनपुरी में आज भी वह पुराना मकान मौजूद है, जहां उन्होंने कहानियां लिखना आरंभ किया था। उनकी पहली चर्चित कहानी ‘राजा निरबंसिया’ से लेकर पहले उपन्यास ‘एक सड़क सत्तावन गलियां’ से अंतिम उपन्यास ‘कितने पाकिस्तान’ में मैनपुरी को देखा जा सकता है।  मैनपुरी में वे जिस मोहल्ले में रहते थे, उसका नाम कटरा मोहल्ला था। कटरे मोहल्ले के उस मकान में वे अपनी मां के साथ ही रहते थे।  उनके सभी सफल उपन्यास और कहानियों में मैनपुरी का जिक्र जरूर आता है।

उल्दा की पूड़ी, मट्ठा के आलू

शहर मैनपुरी आकर जिसने उल्दा की पूड़ी और मट्ठा के आलू नहीं खाए तो फिर उसने खाया ही क्या...। मैनपुरीवासियों का तो मानना यही है कि उल्दा की पूड़ी व्यंजन नहीं, मैनपुरी की संस्कृति है। मैनपुरी में उल्दा की पूड़ी, कद्दू की सब्जी और मट्ठा के आलू के बिना कोई दावत पूरी नहीं होती। यह मैनपुरी की हर दावत का पारंपरिक भोजन है।

मनोकामना मंदिर

बचपन, जवानी, बुढ़ापा, उम्र का हर पड़ाव चाहे कोई भी हो, एक मेला सबकी स्मृति में होता है। मैनपुरी कुरावली मार्ग पर स्थित शीतला माता मंदिर प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर की स्थापना मैनपुरी के राजा ने की थी। साल की दोनों नवरात्रों में मंदिर भक्तों की असंख्य भीड़ से खचाखच भरा रहता है। मैनपुरीवासियों का मानना है कि हर किसी की मनोकामना माता शीतला पूरी कर देती हैं।

अवशेष चौहान

(लेखक, संस्कृतिकर्मी)

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