अरावली का मुकुटमणि
सूर्य की स्वर्णिम किरणों से नहाई, मेघों से लिपटी अरावली की गोद में स्थित है, राजस्थान का इकलौता हिल स्टेशन माउंट आबू। यह पर्वतीय स्थल प्राचीन काल से ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रहा है। मान्यता है कि पुराणों में ‘अर्बुदाचल’ नाम से विख्यात इस पावन धरा पर महर्षि वशिष्ठ ने अपनी कुटिया बनाई और यहां के अग्निकुंड से अगस्त्य मुनि उत्पन्न हुए थे। प्राकृतिक विरोधाभास का अनूठा संगम यहां देखने को मिलता है। एक ओर थार का विशाल मरुस्थल अपनी तपती रेत से धरती को दहकाता है, वहीं माउंट आबू की वादियां शीतल हरियाली से आच्छादित हैं।
मनोरम नक्की झील
यहां की जैव विविधता, दुर्लभ औषधीय पौधे, विभिन्न प्रजातियों के पक्षी और वन्य जीव इस पारिस्थितिकी तंत्र को समृद्ध बनाते हैं। यहां स्वच्छ नीले जल में आसमान का प्रतिबिंब समेटे झील पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देती है। किंवदंतियां हैं कि यह झील नाखून से खोदकर बनाई गई थी, इसलिए इसका नाम ‘नक्की’ पड़ा। सूर्यास्त के समय झील का दृश्य अलौकिक हो उठता है, जब सूर्य की सुनहरी आभा जल में बिखरकर रंग-बिरंगी छटाएं बिखेरती है। लगभग आधा मील लंबी और एक चौथाई मील चौड़ी यह झील अपनी स्वच्छता और सौंदर्य के लिए विख्यात है। झील के चारों ओर विशालकाय ग्रेनाइट की चट्टानें प्राकृतिक संरक्षक की भूमिका निभाती हैं। जब सूर्य पश्चिमी क्षितिज की ओर ढलता है, तो आकाश रंग-बिरंगी छटाओं से भर उठता है। सूर्य की सुनहरी आभा झील के जल में प्रतिबिंबित होकर अद्भुत दृश्य उपस्थित करती है। हनीमून पॉइंट से देखा जाने वाला अरावली पर्वतमाला का पैनोरमिक दृश्य आंखों में समा जाता है।
पत्थरों पर कविता
दिलवाड़ा के जैन मंदिर भारतीय वास्तुकला के अनमोल रत्न हैं। सफेद संगमरमर से बने ये मंदिर अपनी सूक्ष्म नक्काशी के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। ग्यारहवीं सदी में बना विमल वसही मंदिर और तेरहवीं सदी में बना लूण वसही मंदिर कला के अद्भुत उदाहरण हैं। इन मंदिरों की नक्काशी अद्वितीय है। यहां कोई भी दो आकृतियां समान नहीं है। मंदिरों के गर्भगृह में विराजमान भगवान ऋषभदेव की प्रतिमाएं शांति और वैराग्य का संदेश देती हैं। स्तंभों पर उकेरी गईं अप्सराएं मानो नृत्य करती प्रतीत होती हैं। छत पर बने कमल के फूल इतने जीवंत हैं कि उनकी पंखुड़ियां हिलती-डुलती-सी लगती हैं। यह अद्भुत शिल्प-कला देखने वालों को विस्मित कर देती है। गुरु शिखर की चोटी पर स्थित वशिष्ठ आश्रम से पूरा माउंट आबू नजर आता है। अर्बुदा माता का मंदिर यहां की लोक आस्था का केंद्र है। नौवीं सदी का अचलेश्वर महादेव मंदिर अपनी प्राचीन वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। इन सभी धार्मिक स्थलों में फैली आध्यात्मिक ऊर्जा साधकों को गहन अनुभूति प्रदान करती है। ऐसा लगता है, मानो प्रकृति ने अपना समस्त सौंदर्य इस एक स्थल पर समेट दिया हो। माउंट आबू मात्र पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि प्राकृतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का अमूल्य संगम है।
पौराणिक गाथाओं का स्वर्णिम पन्ना
यह अग्निकुल राजपूत वंशों की जन्मभूमि है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, महर्षि वशिष्ठ ने यहां एक यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञकुंड से ही चार महान राजपूत वंशों- प्रतिहार, परमार, चालुक्य और चौहान की उत्पत्ति हुई। ये वंश इतिहास में अपनी वीरता, न्याय और सुशासन के लिए प्रसिद्ध रहे। परमार वंश ने माउंट आबू को अपनी राजधानी बनाया और यहां से अपने साम्राज्य का विस्तार किया। उनके शासनकाल में कला, संस्कृति और वास्तुकला का अभूतपूर्व विकास हुआ। आज भी यहां के प्राचीन मंदिर, किले और स्मारक उनकी समृद्ध विरासत की गवाही देते हैं। हर पत्थर में इतिहास की कहानियां समाहित हैं और हर वृक्ष सदियों पुरानी गाथाएं संजोए हुए हैं। परमार राजाओं ने न केवल युद्ध कौशल में महारत हासिल की, बल्कि विद्या, कला और साहित्य को भी संरक्षण प्रदान किया। उनके दरबार में अनेक विद्वान और कलाकार थे।
जनजीवन की रंगीन छटा
माउंट आबू सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण अंग है। यहां विशेषकर गरासिया और भील जैसी जनजातियों का निवास है। उनकी समृद्ध परंपराएं और रीति-रिवाज आज भी मौलिक पहचान बनाए हुए हैं। गरासिया महिलाओं की पोशाकों पर रंग-बिरंगी कशीदाकारी होती है, उनके कंठ में झूलते चांदी के आभूषण और हाथों में खनकती चूड़ियां उनकी सांस्कृतिक पहचान है। इन जनजातियों के लोक नृत्य उनकी जीवंत कला परंपरा को प्रदर्शित करते हैं। भील समुदाय का ‘गवरी’ नृत्य, पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन पर किया जाता है। यह अपनी लयबद्धता और जीवंतता के लिए प्रसिद्ध है। इन नृत्यों में जीवन की खुशियां, दुख और आशाएं अभिव्यक्त होती हैं।
समन्वय का अद्भुत उदाहरण
माउंट आबू विज्ञान और अध्यात्म के अद्भुत समन्वय का उदाहरण है। यहां स्थित फिजिकल रिसर्च लैबोरेटरी की इन्फ्रारेड वेधशाला में वैज्ञानिक अंतरिक्ष के रहस्यों की खोज में लगे रहते हैं। साफ आसमान और कम प्रदूषण के कारण यह वेधशाला खगोलीय अध्ययन के लिए आदर्श स्थान है। ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालय का मुख्यालय आध्यात्मिक ज्ञान और मानवीय मूल्यों का केंद्र है। यहां दुनिया भर से लोग आध्यात्मिक ज्ञान और राजयोग का अभ्यास करने आते हैं। 328 वर्ग किलोमीटर का विस्तृत वन्य प्राणी अभयारण्य प्राकृतिक संपदा का संरक्षण करता है। यहां तेंदुआ, जंगली बिल्ली, सांभर, चीतल जैसे वन्य प्राणी और विभिन्न प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं।
(लेखक)