खंडहरों की वास्तुकला
राजनगर की पहचान अब अद्भुत खंडहरों से है। उनमें जो अनुपम वास्तुकला की झलक दिखती है वह इसके समृद्धशाली इतिहास को बयां करता है। खंडवाला राजवंश की आखिरी बछौर ड्योढ़ी का नगर के रूप में निर्माण महाराजा महेश्वर सिंह के छोटे बेटे रामेश्वर सिंह के लिए कराया गया था, जो बिहार के मधुबनी जिले का एक छोटा सा कस्बा है। इतिहासकारों के अनुसार दरभंगा राज के इस शहर को बसाने की योजना 1890 के आसपास बनी पर टाउनशिप 1905 के आसपास बन कर पूरी हुई। तिरहुत सरकार महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह ने अपने छोटे भाई रामेश्वर सिंह के लिए महलों और मंदिरों से इस शहर को सजाने का फैसला किया। जिस प्रकार दिल्ली को लुटियन ने बनाया, उसी प्रकार राजनगर को बनाने की जिम्मेदारी ब्रिटिश वास्तुकार डॉ. एम.ए. कोरनी को दिया गया था। कोरनी ने अपने हुनर का ऐसा प्रदर्शन इस नगर को बसाने में किया कि यह वास्तु कला का अनोखा नमूना बन गया।
टाइटैनिक कनेक्शन
तिरहुत सरकार के कर्जदार कोरनी ने कर्ज चुकाने के बदले तत्कालीन दरभंगा महाराज रामेश्वर सिंह को ऐसी तकनीक से भवन निर्माण का वादा किया था जिसका प्रयोग तब तक किसी भी भवन निर्माण में नहीं हुआ था। कोरनी का दावा था कि यह दुनिया का सबसे मजबूत ढांचा होगा। ऐसे मजबूत निर्माण के लिए कोरनी ने सीमेंट का प्रयोग किया, जो संभवतः भारत में सीमेंट का पहला प्रयोग था। जिस तरह टाइटैनिक को इस दावे के साथ इसके बनाने वाले ने समुद्र में उतारा था कि यह कभी नहीं डूबेगा, उसी तरह कोरनी ने भी इस महल के कभी नहीं टूटने का दावा किया था। दुर्भाग्य से, जिस तरह टाइटैनिक अपने पहले सफर में ही समंदर के गहराइयों में समा गया उसी तरह इस महल का भी हाल हुआ। परिसर बनने के तुरंत बाद 1934 में इसने भूकंप का ऐसा प्रकोप झेला कि पूरा शहर एक झटके में खंडहर में बदल गया। महलों की दीवारों पर वास्तुकार कोरनी की अद्भुत कलाकारी की झलक है। अपने इतिहास के साथ कोरनी का खंभेनुमा ढांचा आज भी खड़ा है। कहा जाता है कि इस खंभे के बीच हाथ से चलनेवाली लिफ्ट लगवाई गई थी, जिसकी कड़ी और रस्सी दिखा कर कुछ लोगों ने इसे फांसी घर का नाम दे दिया, क्योंकि उनकी सोच लिफ्ट तक पहुंची ही नहीं।
सचिवालय का हाथी
सचिवालय के दरवाजे पर खड़े सीमेंट के विशालकाय हाथी की कहानी भी कम रोचक नहीं है। दरअसल जब कोरनी ने रामेश्वर सिंह को सीमेंट की खूबी यह कहते हुए बताई कि यह इतना मजबूत होगा कि हाथी भी इसे नहीं तोड़ पाएगा, तो उन्होंने कोरनी से पहले सीमेंट से एक हाथी बनाकर दिखाने को कहा। कोरनी ने वहीं एक हाथी बनाया, जो भारत में सीमेंट से बना पहला ढांचा है। रामेश्वर सिंह ने इस ढांचे को देखकर कहा कि इसे तोड़ा न जाए, बल्कि सचिवालय का स्वरूप ही इससे जोड़ कर बनाया जाए। कोरनी ने सीमेंट के इस हाथी को महल परिसर स्थित सचिवालय का मुख्य प्रवेश द्वार बना दिया।
मिथिला की चित्रकला
जिस 1934 के भूकंप ने राजनगर को खंडहर में तब्दील कर दिया, उसी भूकंप से मिथिला चित्रकला विश्व कला जगत की नजरों में आई। उस मिथिला चित्रकला में चित्रित होने वाले कोहबर का उपलब्ध पुरातन भित्तिचित्र का प्रमाण अभी भी राजनगर के महल में सुरक्षित है, जो महाराज रामेश्वर सिंह की बेटी लक्ष्मी दाई के विवाह के अवसर पर बनाया गया था। इतना ही नहीं, मिथिला चित्रकला में कचनी तकनीक को जन्म देने वाली गंगा देवी भी इसी राजनगर सिमरी से ताल्लुक रखती हैं, जिन्हें 1984 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
तंत्र शास्त्र की झलक
तंत्र नगरी राजनगर का निर्माण रामेश्वर सिंह के लिए होना था। अतः निर्माण में इस बात का ख्याल रखा गया की शहर की बसावट और भवनों का निर्माण तंत्र शास्त्र से प्रेरित हो। भारत धर्म महामंडल के आजीवन अध्यक्ष रामेश्वर सिंह की पहचान वैश्विक स्तर पर सिद्ध साधक की थी, जिनके अनुयायियों में तत्कालीन नेपाल, ग्वालियर, कश्मीर, जयपुर नरेश जैसे बड़े नाम शामिल थे। रामेश्वर सिंह के सहयोग से जॉन वुडरूफ, पेन नाम आर्थर अवलोन ने तंत्र पर कई मूल ग्रंथों का अंग्रेजी में अनुवाद किया और पश्चिम जगत में तंत्र-मंत्र की मान्यता स्थापित की। इसे जादू-टोना से इतर एक विज्ञान के रूप में मानने को विवश कर दिया। इस कारण इस शहर के खंडहरों में तंत्र शास्त्र की झलक दिखती है।
नौलखा मंदिर की नक्काशी
तंत्र साधना में काली का अंतिम रूप (शिव की छाती से उतर कमल के फूल पर मुस्कुराती काली) का दर्शन आपको विश्व में केवल यहीं देखने को मिलेगी। ऐसा कहा जाता है कि महान तांत्रिक रामेश्वर सिंह ने अपने साधना की पूर्णाहुति पश्चात बड़े मनोयोग से इस मंदिर का निर्माण करवाया और यहां काली के इस अंतिम रूप को स्थापित किया। कहा जाता है कि मंदिर के निर्माण में महराज रामेश्वर सिंह ने नौ लाख चांदी के सिक्के खर्च कर किए थे, इसी कारण इसे नौलखा मंदिर भी कहा जाता है। यह काली मंदिर सफेद संगमरमर से बना है। इसके निर्माण में ताजमहल से अधिक नक्काशी की 22 परतों का उपयोग किया गया था जबकि ताजमहल में अधिकतम 15 परतें हैं। चांदनी रात में तो इसकी सुंदरता देखते ही बनती है।
(मिथिला चित्रकला के सिद्धांत के लेखक)