दिनकर की जन्मस्थली
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जन्मस्थली सिमरिया बिहार में मोकामा और बेगूसराय के मध्य में दोनों ही ओर से पंद्रह किलोमीटर की दूरी पर है। अलौकिक छटा है यहां की। चारों ओर वेणु वन, रबी के मौसम में गेहूं-सरसों और खरीफ के मौसम मे मक्के की बालियां, पेड़ों के बीच गुजरती पगडंडियां। अब यहां भी खपरैल की जगह पक्के मकान बन गए हैं। आधुनिकता ने गांव में करीब दो-तीन दशक पहले ही कदम रख दिया था। आज तो सिमरिया का नाम ‘दिनकर ग्राम सिमरिया’ पड़ चुका है, जहां उनका जन्म 23 सितंबर 1908 को हुआ था। उनकी अमर लेखनी ने इसे भी अमर बना दिया। हे जन्मभूमि शत बार धन्य!/तुझ सा न सिमरिया घाट अन्य/तेरे खेतों की छवि महान/अनियंत्रित आ उर में अजान/भावुकता बन लहराती है/ फिर उमड़ गीत बन जाती है
विश्वास का नुस्खा
इसका रकबा करीब छियालिस हजार बीघा, जनसंख्या लगभग बीस हजार है। छोटे-बड़े पंद्रह मंदिर हैं। मध्य में स्थित है भगवती स्थान, जिसे स्थानीय लोग भगवती थान बोलते हैं। कहते हैं, किसी को सांप काट ले तो यहां का नीर (जल) लोटे में लेकर, मां दुर्गा को स्मरण कर पिला दें तो विष उतर जाता है। गांव के मंदिरों में ध्वनि-विस्तारक यंत्र लगे रहते हैं और रामायण का नवाह्न परायण या मास परायण चलता रहता है। दालानों पर जमा हुए लोग रामकथा का पाठ, चर्चा और मीमांसा करते हैं। पूरा गांव रामचरितमानस के दोहों और दिनकर की कविताओं को उद्धृत करता है। हर घर पर दिनकर की पंक्तियां लिखी हुई हैं। शायद ही किसी अन्य कवि के गांव में ऐसा दृश्य देखने को मिले! कवि के प्रति सम्मान का भाव कूट-कूट कर भरा है, ग्रामीणों में।
विद्यापति की गंगा
यहां वेणु वन है, जिसे ग्रामीण बस-बट्टी कहते हैं। ईख की खेती। आम के पेड़। गांव से कुछ किलोमीटर पर रिफाइनरी और दूसरी ओर थर्मल पावर की चिमनियों से निकलता धुआं। करीब पचास के दशक में ही बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह ने यहां औद्योगिक विकास की नींव रखी थी। यहां से लगभग 28 मील दूर बाजितपुर है, जहां विद्यापति ने शरीर त्याग किया था। किंवदंती है कि अंतिम समय में वे गंगा-सेवन के लिए चले। जब गंगा थोड़ी दूर रह गई तो वे अभिमानी भक्त की तरह पालकी रखवा कर वहीं रुक गए। कहा, मैं गंगा के लिए इतनी दूर आया हूं, तो क्या वह मेरे लिए दो कोस भी नहीं आएगी। कहते हैं कि दूसरे ही दिन गंगा की एक धारा फूटी और बाजितपुर होती हुई सिमरिया आकर गंगा की मुख्य धारा में मिल गई।
रश्मिरथी का कर्ण
वर्ष में दो बार दिनकर जयंती और दिनकर पुण्यतिथि पर कई दिवसीय कार्यक्रम होते हैं। देश भर के गणमान्य कवि, लेखक, साहित्यसेवी सिमरिया आते हैं। वैचारिक सभाएं, गोष्ठियां, कवि समागम होते हैं। यहां नामवर सिंह, मैनेजर पांडेय, पद्मा सचदेव, विष्णु नागर जैसी विभूतियां आती रही हैं। प्रत्येक वर्ष स्मारिका का प्रकाशन होता है। कभी दोपहिए वाहन और पैदल, लोग सिमरिया से बरौनी जीरो माइल स्थित दिनकर जी की प्रस्तर प्रतिमा पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने जाते हैं। रामकथा मर्मज्ञ मुरारी बापू ने 2018 में अपने प्रवचन में कहा था कि जैसे तुलसीदास ने राम का वर्णन किया, वैसे ही दिनकर की रश्मिरथी में कर्ण का वर्णन किया गया है।
मुक्तिधाम में कल्पवास
सिमरिया अपनी पौराणिक, धार्मिक विशिष्टताओं के लिए भी चर्चित है। यहां लोग कार्तिक मास में एक माह तक गंगा किनारे गंगा स्नान और कल्पवास करते हैं। सिमरिया, काशी की तरह ही मुक्तिधाम माना जाता है, जहां लोग दूर-दूर से शवदाह करने आते हैं। लोक प्रचलित विश्वास है कि यहां दाह-संस्कार करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहां कुंभ मेला भी लगता है।
दिनकरमय गांव
गांव में दिनकर उच्च विद्यालय है, जहां बारहवीं तक की पढ़ाई होती है। करीब एक हजार छात्र-छात्राएं हैं। कई बड़े नेताओं ने ‘आदर्श गांव सिमरिया’ के लिए बड़े-बड़े वादे किए, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो सका है। जो कुछ है वह ग्रामीणों के दिनकर प्रेम के कारण। गांव की साहित्यिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक विरासत बहुत समृद्ध है। अगर विषमता और निर्धनता न होती तो यहां स्वर्ग की छटा विद्यमान है। स्वामी चिदात्मन जी महाराज के आश्रम में ‘दिनकर पुस्तकालय’ है और पुस्तकालय में एक बड़ा सभागार है, जिसमें करीब पांच सौ लोगों के बैठ सकते हैं। दिनकर परिवार के लोगों ने ही इसके लिए जमीन दी थी। शायद उन्हीं की लिखी पंक्तियां उसके लिए प्रेरणा रही हों -
सुरम्य शांति के लिए, जमीन दो, जमीन दो
महान क्रांति के लिए, जमीन दो, जमीन दो।
देहात का संस्कार
कभी राष्ट्रकवि ने 22 सितंबर, 1972 की डायरी में लिखा था, “कल मेरा जन्मदिन है। आज सिमरिया आ गया। साथ में मेरा पोता अरविन्द भी आया है। मेरा उद्देश्य भी यही है कि अरविन्द केवल शहरू न बने, देहात का संस्कार भी वह ले।” कवि ने कितनों को धन्य किया।
(कवि, लेखक)