मेवाड़ी ठसक
मेवाड़ के इतिहास में चाहे वह उदयसिंह हों, महाराणा प्रताप हों, मीराबाई हों या पन्नाधाय सभी की शौर्य और साहस से भरी गाथाएं आज भी याद की जाती हैं। चित्तौड़ की लगातार होती असुरक्षित स्थिति ने सिसोदिया वंशज को यह सोचने पर मजबूर किया कि राजधानी कहीं और बनाई जाए, तब 1559 ईस्वी में महाराजा उदय सिंह द्वितीय ने चित्तौड़ से पश्चिम में लगभग 120 किलोमीटर दूर चारों और पहाड़ियों से गिरे स्थान ‘गिरवा’ को अपना नया ठिकाना बनाया। लेकिन धीरे-धीरे वक्त बदला और कल तक जिसे गिरवा नाम से जाना जाता था, उसे आज उदय सिंह के नाम पर उदयपुर कहा जाता है। गिरवा को चुनने के पीछे बड़ा कारण था। इसे इसलिए भी चुना गया कि यहां पानी की कई बड़ी-बड़ी झीलें थीं। सिसोदिया के बाद अंग्रेजों ने उदयपुर को अपना प्रिन्स्ली स्टेट बनाया और तब से अब तक उदयपुर इतिहास का एक लंबा दौर देख चुका है। इस जगह से भारतवासी ही नहीं बल्कि अंग्रेज भी बहुत प्रभावित थे। कर्नल टॉड ने इसे भारत की सबसे रोमांटिक जगह कहा थाl बावजूद इसके यहां के कई लोगों में एक तरह की ठसक मिलती है। ठसक का मतलब घमंडी नहीं है। बल्कि यहां के लोग किसी को ज्यादा भाव नहीं देते। यह आदत कुछ लोगों को असहज कर सकती है लेकिन यह स्वभाव दरअसल मेवाड़ का स्वाभिमान है, जिसने स्वतंत्रता की चेतना को संजोया और उसे विस्तारवाद के विरुद्ध खड़ा किया।
तीन संस्कृतियों का मेल
उदयपुर में तीन संस्कृतियां आसानी से दिख जाती हैं। जिनमें पहली है, राजपूताना। महिलाएं राजपूताना अंदाज में रंग-बिरंगी पारंपरिक पोषाकों में हर जगह दिख जाती हैं। दूसरी संस्कृति जैन समुदाय की अधिकता होने के कारण दिखती है। तीसरी है, बोहरा मुस्लिम समुदाय की उपस्थिति से उनकी एक अलग संस्कृति की मौजूदगी। उदयपुर के आसपास बड़ी संख्या में आदिवासी रहते हैं। उदयपुर के ग्रामीण क्षेत्र में आदिवासी संस्कृति भी आसानी से दिखाई पड़ जाती है। यह समुदाय शहर में मेहनत वाले कामधंधों में तो पहले भी बड़ी संख्या में था लेकिन अब सरकारी और दूसरी सेवाओं में भी ये लोग अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। शिक्षा में उनका प्रतिशत भी बढ़ रहा है।
शादियों की शान
आज उदयपुर अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के चलते देशी ही नहीं विदेशियो के लिए भी पर्यटन का महत्वपूर्ण केंद्र है। उदयपुर डेस्टिनेशन वेडिंग के लिए भी पसंदीदा स्थल है और किसी चिंतन शिविर के लिए भी। फतेहसागर और पिछोला झील के किनारे की शाम किसी यूरोपियन शहर की याद दिलाती है। यहां शिल्पग्राम नाम से अनोखी जगह है, जहां भारत के ग्रामीण और आदिवासी समुदायों के घर और झोपड़ियां बनी हुई हैं। जहां आकर भारत के ग्रामीण रहन-सहन की झलक देखी जा सकती है। यहां दिसंबर में एक मेला भी लगता है। पूरे भारत से चलकर लोग उदयपुर आते हैं और शिल्पग्राम में इन झोपड़ियां में रहते हैं। उदयपुर दक्षिणी राजस्थान के पर्यटन की धुरी है क्योंकि इसके आसपास कई प्रसिद्ध ऐतिहासिक और धार्मिक स्थान हैं जैसे, चित्तौड़गढ़, नाथद्वारा, कुंभलगढ़, रणकपुर। माउंट आबू भी यहां से ज्यादा दूर नहीं है। पर्यटन उदयपुर के रोजगार का प्रमुख जरिया है। इसके अलावा यहां का संगमरमर और ग्रेनाइट भी प्रसिद्ध है। पास ही राजसमंद में सफेद संगमरमर और ग्रेनाइट की बहुत बड़ी मंडी है।
शिक्षा में भी अव्वल
उदयपुर शिक्षा की भी प्रमुख नगरी है। यहां आइआइएम के साथ कई निजी मेडिकल कॉलेज और विश्वविद्यालय मौजूद हैं। यहां पूरे भारत से विद्यार्थी पढ़ने आते हैं। यहीं पर ही दक्षिणी राजस्थान का सबसे बड़ा और पुराना गवर्नमेंट मीरा गर्ल्स कॉलेज है। इस कॉलेज में पहले अधिकांश शहर की छात्राएं पढ़ती थी। लेकिन समय बदला और अब यहां बड़ी संख्या में आदिवासी छात्राएं पढ़ती हैं।
सबसे बड़ा रुपैया
गुजरात से सटा होने के कारण उदयपुर पर थोड़ा गुजराती असर है। इसी के चलते व्यापार, अन्य सेवाओं और समाज में स्त्रियों का प्रभाव दिखता है। उदयपुर के बसावट की एक और खूबसूरती है, यहां हिंदू मुस्लिम समुदाय कॉलोनियों में मिश्रित रूप से बसे हुए हैं। भारत के अन्य शहरों की तरह उदयपुर भी लगातार बढ़ रहा है। जंगल की जमीन पर होटल, कॉलोनिया, रिसोर्ट बन रहे हैं, जिसके चलते हरियाली घट रही है, जंगल घट रहे हैंl यहां एक वक्त ऐसा भी था, जब घरों में पंखों की भी जरूरत नहीं थी। आज हर घर में एसी लग रहे हैं। जंगल कम होने की एक परेशानी और है, कई बार तेंदुए रिहायशी क्षेत्र में आ जाते हैं।
मेवाड़ का खाना
यहां आएं, तो मेवाड़ का दाल बाटी-चूरमा खाना मत भूलिए। यह यहां का प्रसिद्ध खाना है। इसके अलावा राजस्थानी और गुजराती थाली का विविधता से भरा स्वाद भी अलग तृप्ति देता है। यहां पर सुखाड़िया-फतेहसागर पर स्ट्रीट फूड का बाजार है, तो माली कॉलोनी में एक पूरी लंबी सड़क केवल ढाबे और रेस्टोरेंट से ही आबाद है। आजकल पारंपरिक खाने पर पिज्जा, बर्गर और चाइनीज का बोलबाला हो गया है।
(राजकीय मीरा कन्या महाविद्यालय में हिंदी प्राध्यापक)